Wednesday, May 1, 2013

" परहित में ही अपना हित "

" परहित में ही अपना हित "

कहते है अपने लिए तो दुनिया जीती है, किन्तु सही मायने में जीना तो वह है जो दूसरो के लिए जिया जाए।
कुछ लोग ऐसे होते है जो सोचते है कि अपना भला तो सबका भला। जबकि सोचना इस ढंग से चाहिए कि सबके भले में ही अपना भला है। जो लोग इस तरह सोचते है वे सदा सुखी रहते है, सदा उन्नति के पथ पर आगे बढ़ाते है और सफलताए उनके कदम चूमती है।  हम सभी जानते है, सिकंदर की जीवन कहानी को ,आज एक बार  फिर समझ ले तो शायद कुछ मन को खुराक मिले और हम सही दिशा में चल पाए।

  
सिकंदर महान ने विश्व विजय को अपना लक्ष्य बनाया था। उसकी इच्छा थी कि वह सारी दुनिया पर राज कर .. ...संसार भर के खजानों पर उसका एकाधिकार हो, मगर भारत कि पवित्र भूमि पर आकार उसने इस सत्य को समझा कि परहित में ही अपना हित है, तभी तो मरते समय उसने सेवको से कहा था - "मेरे दोनों हाथ कफ़न से बहार निकाल देना ताकि लोग देख सके कि सिकंदर अपने साथ कुछ भी नहीं ले जा रहा, वह खाली हाथ आया था और खाली हाथ ही जा रहा है।"

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