Thursday, July 11, 2013

रमज़ान क्या है?........

 

रमज़ान क्या है?

रमज़ान महीने का नाम है, जिस प्रकार हिन्दी महीने चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ, आषाढ़, सावन, भाद्रपद, आश्विन, कार्तिक, अगहन, पौष, माघ, फाल्गुन होते हैं और अंग्रेज़ी महीने जनवरी, फ़रवरी, मार्च, अप्रेल, मई, जून, जुलाई, अगस्त, सितंबर, अक्टूबर, नवंबर, दिसंबर होते हैं। उसी प्रकार, मुस्लिम महीने, मोहर्रम, सफ़र, रबीउल अव्वल, रबीउलसानी, जुमादलऊला, जुमादल उख़्र, रजब, शाबान, रमज़ान, शव्वाल, द्हू अल-क़िदाह, द्हू अल-हिज्जाह ये बारह महीने आते हैं।
रमज़ान के महीने में अल्लाह की तरफ़ से हज़रत मोहम्मद साहब सल्लहो अलहै व सल्लम पर क़ुरान शरीफ़ नाज़िल (उतरा) था। इस महीने की बरकत में अल्लाह ने बताया कि इसमें मेरे बंदे मेरी इबादत करें। इस महीने के आख़री दस दिनों में एक रात ऐसी है जिसे शबे क़द्र कहते हैं। 21, 23, 25, 27, 29 वें में शबे क़द्र को तलाश करते हैं। यह रात हज़ार महीने की इबादत करने से भी अधिक बेहतर होती है। शबे क़द्र का अर्थ है, वह रात जिसकी क़द्र की जाए। यह रात जाग कर अल्लाह की इबादत में गुज़ार दी जाती है।

रोज़ा

रोज़े को अरबी में सोम कहते हैं, जिसका मतलब है रुकना। रोज़ा यानी तमाम बुराइयों से रुकना या परहेज़ करना। ज़बान से ग़लत या बुरा नहीं बोलना, आँख से ग़लत नहीं देखना, कान से ग़लत नहीं सुनना, हाथ-पैर तथा शरीर के अन्य हिस्सों से कोई नाजायज़ अमल नहीं करना। किसी को भला बुरा नहीं कहना। हर वक़्त ख़ुदा की इबादत करना।[2]

बरकतों वाला महीना

रमज़ान की कई फज़ीलत हैं। इस माह में नवाफ़िल का सवाब सुन्नतों के बराबर और हर सुन्नत का सवाब फ़र्ज़ के बराबर और हर फ़र्ज़ का सवाब 70 फ़र्ज़ के बराबर कर दिया जाता है। इस माह में हर नेकी पर 70 नेकी का सवाब होता। इस माह में अल्लाह के इनामों की बारिश होती है।[1]

इबादत का महीना

इस महीने में शैतान को क़ैद कर दिया जाता है, ताकि वह अल्लाह के बंदों की इबादत में खलल न डाल सके। इस पूरे माह में रोज़े रखे जाते हैं और इस दौरान इशा की नमाज़ के साथ 20 रकत नमाज़ में क़ुरआन मजीद सुना जाता है, जिसे तरावीह कहते हैं। इस महीने में आकाश तथा स्वर्ग के द्वार खुल जाते हैं तथा नरक के द्वार बंद हो जाते हैं। इस महीने की एक रात की उपासना, जिसे 'शबे क़द्र' के नाम से जाना जाता है, एक हज़ार महीनों की उपासना से बढ़ कर है। इस महीने में रोज़ा रखने वाले का कर्तव्य, ईश्वर की अधिक से अधिक प्रार्थना करना है।

रोज़े का मक़सद

रोज़े का मक़सद सिर्फ़ भूखे-प्यासे रहना ही नहीं है, बल्कि अल्लाह की इबादत करके उसे राज़ी करना है। रोज़ा पूरे शरीर का होता है। रोज़े की हालत में न कुछ ग़लत बात मुँह से निकाली जाए और न ही किसी के बारे में कोई चु्ग़ली की जाए। ज़बान से सिर्फ़ अल्लाह का ज़िक्र ही किया जाए, जिससे रोज़ा अपने सही मक़सद तक पहुँच सके। रोज़े का असल मक़सद है कि बंदा अपनी ज़िन्दगी में तक्वा ले आए। वह अल्लाह की इबादत करे और अपने नेक आमाल और हुस्ने सुलूक से पूरी इंसानियत को फ़ायदा पहुँचाए। अल्लाह हमें कहने-सुनने से ज़्यादा अमल की तौफ़ीक दे।[1]

सेहरी

रोज़े रखने के लिए सब से पहले सेहरी खाया जाए क्यों कि सेहरी खाने में बरकत है, सेहरी कहते हैं सुबह सादिक़ से पहले जो कुछ उप्लब्ध हो उसे रोज़ा रखने की नीयत से खा लिया जाए। रसूल मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फरमाया, "सेहरी खाओ क्यों कि सेहरी खाने में बरकत है।" एक दूसरी हदीस में आया है, "सेहरी खाओ चाहे एक घूँट पानी ही पी लो"

इफ़्तार

भूखे को खाना खिलाना भी बहुत बड़ा पुण्य है और जिसने किसी भूखे को खिलाया और पिलाया अल्लाह उसे जन्नत के फल खिलाएगा और जन्नत के नहर से पिलाएगा। जो रोज़ेदार को इफ़्तार कराएगा तो उसे रोज़ेदार के बराबर सवाब (पुण्य) मिलेगा और दोनों के सवाब में कमी न होगी जैसा कि रसूल मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) का फरमान है "जिसने किसी रोज़ेदार को इफ़्तार कराया तो उसे रोज़ेदार के बराबर सवाब (पुण्य) प्राप्त होगा मगर रोज़ेदार के सवाब में कु्छ भी कमी न होगी" (मुसनद अहमद तथा सुनन नसई)

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