Friday, March 28, 2014

Hindi Motivational stories - " तजो बुराई, करो बड़ाई "

तजो बुराई, करो बड़ाई

           दो बड़े विद्वान जो कि आपस में दोस्त थे, किसी यजमान के निमंत्रण पर उसके घर पूजा - पाठ के लिए गये। वहाँ उन दोनों का काफी आदर - सत्कार हुआ। और दूसरे दिन सुबह उन में से एक विद्वान् हवन करने गया हुआ था तो यजमान  दूसरे विद्वान से कहा - महाराज, आपके दोस्त तो बहुत बड़े ही नेक इन्सान है। अब यह सुनते ही वह तपाक से बोला - अरे ! वह तो निरा बैल है। कुछ भी जानता नहीं है। वह तो मेरे साथ रहता है, इसलिये उसकी थोड़ी - बहुत इज्ज़त होती है, नहीं तो उसे कौन जानता है। वह तो यहाँ मेरे साथ आया हुआ है मेरी सेवा के लिए !

          उसी प्रकार अगले दिन जब दूसरा विद्वान हवन करने गया तो उस यजमान ने पहले वाले से कहा -महाराज ! आपके दोस्त तो बहुत नेक इन्सान तथा विद्वान है। यह सुनते ही पहले वाले विद्वान ने कहा - वह तो निरा गधा है गधा। वह तो मेरे साथ मेरा सामान ढोने के लिए तथा मेरी सेवा के लिए आया है। ये सुनते ही यजमान को बहुत आश्चर्य हुआ। दोनों साथ रहते भी दोनों के अन्दर मै बड़ा  -  मै बड़ा का  पहाड़ है।

          श्याम को जब दोनों विद्वान पूजा समाप्त करके खाना खाने के लिए आये तो यजमान ने दोनों के सामने हरी घास रख दी और बोले - महाराज! भोजन स्वीकार कीजिये।  दोनों विद्वान आग - बबूला हो गए। क्रोध और आवेश में वे यजमान से बोले - मुर्ख, तूने हमारा आपमान किया है। हम तुम्हें इसके लिये अभिशाप देंगे। मगर.… महाराज ! मेरा अपराध क्या है ? सरलता से यजमान ने प्रश्न किया। क्या हम लोग घास खायेंगे? क्या हम जानवर है ? गुस्से में दोनों विद्वानों ने पूछा।
 
        यजमान ने तुरन्त हाथ जोड़कर बड़े आदर से कहा - महाराज ! आप दोनों ने ही एक दूसरे को बैल तथा गधा बताया है और मेरे विचार से दोनों ही जानवरो का प्रिया भोजन घास है। अंतः मैंने तो आपके बताए अनुसार ही आपका प्रिय भोजन आपके सामने रखा है। फिर भी यदि मेरे से कोई गलती हो गई हो तो कृपया मुझे क्षमा करें।                                                                                                                            
         आज यह वास्तविकता हम देख सकते है। व्यक्ति हमेशा अपनी तारीफ और दूसरों कि बुराई ही करता है। जहाँ वह चाहता है कि मेरा सम्मान हो, मेरा नाम हो, लोग मेरी तारीफ करे, मुझे सलाम करे, ठीक उसके विपरीत वह यह भी चाहता है कि लोग उसके साथी कि बुराई करें, निंदा करें तथा उसे नीचा दिखाये। मनुष्य को चाहिये  कि वह अपने अवगुण देखें और दुसरो के गुण देखे लेकिन मनुष्य आपने गुणों को देखता और दूसरों के अवगुणों को देखता है। जिसके कारण मनुष्य को अपने जीवन में बार - बार घास (ठोकर ) खानी पड़ती है।


सीख - अगर व्यक्ति आपने अवगुण देखना और दूसरे के गुणो को देखना सुरु करें तो ठोकर खाने से बच जायेगा।इस लिये किसीने सच ही कहा है। गुण अवगुण में अन्तर जो जाने वाही सच्चा ज्ञानी है। 

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