Tuesday, April 1, 2014

Hindi Motivational Stories - ' परिश्रम ही सच्ची पूंजी है '

 परिश्रम ही सच्ची पूंजी है

            कालूराम स्वभाव से आलसी और निकम्मा था। वह बैठे - बैठे सपने देखता कि एक दिन अवश्य ही वह धनवान हो जायेगा। और धनवान बनने से जो सुख उसे मिल सकते है उनका मन ही मन अनुभव कर वह खुश हो लेता। इस तरह धनवान बनने का उसे शौक जरुरु था लेकिन काम वह कुछ नहीं करता। कालूराम की पत्नी रमा समझदार और स्वालम्बी महिला थी। उसने दो गाये पाल राखी थी जिनकी वह खूब देखभाल करती। गाये का दूध दुहकर बेच आती। इसी से उसके परिवार का गुजारा भी चलता।  कालूराम के दो बेटे थे जो अपनी माँ के काम में सहयोग देते थे। लेकिन कालूराम दिन - रात सपनों में ही खोया रहता।

           एक दिन गॉव में एक स्वामी का आना हुआ और पुरे गॉव के लोग संध्या के समय स्वामी जी के पास आते और घंटो बैठे रहते। स्वामी जी को गॉव वालो के जरिये कालूराम के बारे में सब कुछ मालूम हो गया। और जब कालूराम को स्वामी जी के बारे में पता चला तो वह सीधा उनके पास गया और बैठ गया प्रवचन के बाद जब सब लोग चले गए तब कालूराम स्वामी जी के पास जाकर प्रणाम करते हुए कहा, मुझे वरदान दो स्वामी जी, मै धनवान बनना चाहता हूँ। गरीबी से में उकता गया हूँ। अब स्वामी जी उसकी बात सुनकर मन में हंसे।  वे जानते थे कि वह काम तो धेले भर का भी नहीं करता। खाली बैठा हुआ ही धनवान बनना चाहता है। कालूराम से मिलकर स्वामी जी को अनुभव हुआ कि उसमे छल, कपट जरा भी नहीं था। उन्होंने सोचा कि इसकी मदत करनी चाहिए। वे बोले - मै तुम्हे वरदान दे सकता हूँ, लेकिन उसके साथ शर्ते भी जुड़ी हुई है। शर्तों का पालन नहीं किया तो वरदान स्वतः समाप्त हो जायेगा। आपका आदेश सिर आँखों पर। आप जैसा कहेंगे, मै वही करूँगा। कालूराम ने प्रसन्न्ता से जवाब दिया। अब स्वामी जी ने कहना शुरू किया - मै तुम्हें एक मंत्र देता हूँ। उसके बारे में किसी को कुछ मत बताना और मन ही मन मंत्र का जाप करना। मंत्र है - आलस छोड़ो ! जागो ! उठो ! शर्त यह है कि तुम सवेरे जल्दी उठोगे और रात्रि दस बजे से पहले कभी सोओगे नहीं। एक - एक क्षण का तुम्हें उपयोग करना होगा। कालूराम हाथ जोड़े हाँ - हाँ करता रहा और सारी बात ध्यान से सुनता रहा। उसे धनवान बनने का मंत्र जो मिल रहा था। स्वामी जी ने फिर कहा - काम करने से जो भी आय हो उस में से जितना हो सके बचाकर रखना और सोच समझकर पत्नी कि सलाह से ही खर्च करना। और मंत्र को कभी मत भूलना।  जाओ, आज से ही काम करना शुरू कर दो।

           कालूराम में जैसे नये जोश का संचार हो गया था।  आलस छोड़ो ! जागो उठो ! यह मंत्र गुन गुनते हुए वह घर पहुँचा। उस दिन गायो का दूध वह स्वम बेच आया।  वापस आकर पास ही जंगल से बहुत सी लकड़ियाँ भी काट लाया। सवेरे अपनी गायों के साथ दुसरो के पशु भी चरा आता।  वह रोज ही जंगल से लकड़ियाँ काटकर लाने लगा और उन्हें शहर में बेच आता। कालूराम को दुसरो के पशु चराने का भी कुछ रुपये मिल जाते। इस तरह कालूराम एक एक पल का उपयोग करने लगा।

         कालूराम में आये इस बदलाव को देख सभी लोगो को आश्चर्य हुआ। कई लोगो के पूछने पर कालूराम कहता काम तो करना ही चाहिए। इसलिए करता हूँ। और कालूराम में आये इस बदलाव को देख उसकी पत्नी बहुत खुश थी।कालूराम को अब लकड़ियाँ बेचने और गाये चराने से जो धन मिलता उसे वह बचा कर रखता। और धीरे धीरे इन्हीं पैसों से वह एक - एक गाय और भैंस खरीदता रहा जिससे दूध भी उसके यह खूब होने लगा। कालूराम का दूध का कारोबार बढ़ता गया। और उसे आज भी मंत्र याद है और उसी तरह लगातार अपने काम में मस्त है गाये को चराना लकड़ी काटकर बेचना। उसे मालूम ही नहीं कि वह धनवान बनने चला है।

           समय बीतता गया कालूराम के पास अब सौ से अधिक पशु हो गए। उसने गॉव ने पास ही खेत खरीद लिए जहाँ बड़ी मात्रा में अनाज पैदा होने लगा। उसके बेटे भी उसके कारोबार में हाथ देने लगे इस तरह एक दिन वह गाँव का जमींदार बन गया। और अब भी वह अपना एक एक पल सफल करता जब भी वह खाली बैठता उसे मंत्र याद आता। एक दिन कालूराम अपने घोड़े पर सवार होकर अपने खेतो की निगरानी कर रहा था। तभी उसे दूर एक महात्मा जी दिखायी दिये। उसने तुरन्त पहचान लिया। वह उनके पास गया और प्रणाम कर बोला, मुझे पहचाना स्वामी जी, मै कालूराम। आपने मुझे वरदान दिया था जो सच साबित हुआ।

           स्वामी बहुत प्रसन्न हुए उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा, मैंने तो तुम्हें कोई वरदान नहीं दिया। मैंने तो तुम्हें मेहनत का पाठ पढ़ाया था।  जिसे तुमने अचूक मंत्र की तरह याद रखा। बेटे, मेहनत का कोई विकल्प नहीं होता।  मनुष्य के श्रम में ही सब से बड़ा वरदान छिपा होता है। तुम अपनी मेहनत और सूझबूझ से ही धनवान बने हो। कालूराम स्वामी जी की बाते सुनकर आश्चर्यचकित हो गया। वह स्वामी जी को घर ले गया और अपने कारोबार के बारे में सारी जानकारी दी, फिर जलपान करवा कर उन्हें सादर विदा किया।  अंतः किसी ने सच ही कहा है -

             "जिन खोजा तिन पाईयाँ, गहरे पानी पैठ। 
                                   वो बावरी क्या पाईयाँ, जो रहे किनारे बैठ।। "         

सीख - मंत्र या वरदान मनुष्य को सद्गुणों से जोड़ते है अच्छी भावना मन में भर देता है लेकिन उसे धारण कर कर्म में उतरने से और मेहनत करने से ही सफलता मिलता है।

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