Sunday, April 13, 2014

Hindi Motivational Stories - गुण ही व्यक्ति की वास्तविक सुन्दरता है

' गुण ही व्यक्ति की वास्तविक सुन्दरता है '

                  राजा जनक के दरबार में एक विद्धान पंडित रहते थे जिनका नाम बंदी था, उन्हें अपनी विद्ता पर इतना घमण्ड था कि जो उनसे शास्त्रार्थ में हार जाता, उसे नदी में डुबो दिया जाता था। इसी कारण काहोद नाम के एक ऋषि को अपने प्राण गंवाने पड़े थे। काहोद का छोटा - सा एक बच्चा था, जो बहुत ही भद्दी सूरत का लूला-लंगड़ा था। उसका नाम अष्टवक्र था यानि उसका शरीर आठ जगह से थेड़ा-मेढ़ा हुआ था। भगवान ने अष्टवक्र को अदभुद प्रतिभा दी थी। जिस बात को वह एक बार सुन लेता वह उसे याद हो जाती थी। याद करने की शक्ति के साथ -साथ उस में कल्पना और तर्क करने की भी अदभुद शक्ति थी। होश संभालने के थोड़े दिन बाद से ही अष्टवक्र अध्ययन के लिए जुट गया, ऐसी कोई विद्य न थी जिसका अध्ययन उसने न किया हो। बहुत कम उम्र में उसने सब कुछ पढ़ लिया और एक दिन बालक अष्टवक्र राजनगर लौट रहा था। राजनगर सड़क पर चल रहा था। और उसी समय पीछे से सिपाही ' हटो - हटो ' कहते सब से रास्ता साफ़ करा रहे थे। पर अष्टवक्र अपनी धुन में चला जा रहा था। रास्ते से हट नहीं रहा था। सिपाहियों ने डांटा तो वह जोर से बोला - रास्ता केवल अपाहिजों और बोझा ढ़ोने वालों के लिए छोड़ा जाता है। तुम्हारे लिए रास्ता क्यों छोड़ूँ ? बालक की ज्ञान भरी बातें सुनकर सब अचम्भे में रह गये। चलते चलते वह राजमहल के पास पहुंचा। संतरियों ने उसे छोटा समझकर अन्दर न जाने दिया, तो वह बोला - मैं छोटा नहीं बड़ी उम्र का हूँ। क्यों कि बड़ो की तरह मैंने सब कुछ पढ़ लिया है सीक लिया है, लम्बाई - चौड़ाई या ऊंचाई आदमी के बड़े होने का प्रमाण नहीं है, उसकी बुद्धि ही बड़प्पन को जताती है। सिपाहियों ने तब भी उसे महल के अन्दर जाने नहीं दिया। तब अष्टवक्र को गुस्सा आया। और बोला हमें नहीं मालूम था कि दरबार में कोई छोटा - बड़ा होता है। छोटे - बड़ो की कसौटी धन - धौलत नहीं, विद्या से होती है। सिपाहियों ने हंसी में टाल दी, ये बात राजा जनक को पता चला और राजा ने अन्दर बुलवाया और नाराजगी का कारण पूछा। अष्टवक्र ने जवाब दिया - राजा जनक, मैं आपके पंडित बंदी को शास्त्रार्थ के लिए ललकारता हूँ। आप उन्हें सभा में बुलवाइए। और सभा जुड़ीं। एक तरफ सुडैल शरीर वाले विद्वान पंडित बंदी बैठे थे और दूसरी तरफ टेढ़े - मेढे शरीर व;वाला लूला - लंगड़ा बालक अष्टवक्र। दरबार में अष्टवक्र की विचित्र वेश और सूरत देख कर चारों कोनों से हंसी के ठहाके गूँज रहे थे। छोटी - सी एक गठरी के सामन वह एक ऊँचे आसन पर बैठा था। सभी उस की हंसी उड़ा रहे थे। जब हंसी बन्द हुई, तो लोग चुप चाप अष्टवक्र की तरफ देखने लगे। अष्टवक्र ने सिंह की गर्जना के समान ऊँची आवाज़ में हंसना शुरू कर दिया। उसकी हंसी का स्वर इतना ऊँचा और मर्मभेदी था कि सारी सभा स्तब्ध रह गई।

      राजा जनक ने विनयपूर्वक पूछा - आपकी हंसी का क्या कारण है ? अष्टवक्र ने कड़कती आवाज़ में कहा - राजा जनक ! बहुत दिनों से आपकी विद्वानोँ की  सभा का तारीफ सुनता आ रहा था। लेकिन मालूम पड़ता है तुम्हारे दरबार में सभी हाड़ - मांस का मोल करने वाले व्यापारी है। बुद्धि का सौदागर कोई नहीं। मैं अपनी मूर्खता पर हंस रहा था कि ऐसी मूर्खो की सभा में इतना कष्ट उठाकर क्यों आया ? अष्टवक्र की इस एक बात ने पूरी सभा में सन्नाटा पैदा कर दिया।  सब एक दूसरे का मुँह ताकने लगे। सामने बैठे पंडित बंदी भी अष्टवक्र की बातों से हैरान रह गये। शास्त्रार्थ शुरु हुआ।  दरबारी आश्चर्य से दाँतो तले अँगुली दबाए बैठे रहे और देखते रहे कि यह बदसूरत लड़का कितना बड़ा विद्वान है। कितनी बुद्धिमता से विद्वान पंडित को उत्तर दे रहा है।शास्त्रार्थ चलता रहा, अष्टवक्र का तो जवाब ही न था। एक से बढ़कर एक जवाब दे रहा था। बंदी ढीले पड़ते जा रहे थे, वह ठीक से जवाब नहीं दे पा रहे थे। जब बंदी से अष्टवक्र के प्रश्नो का उत्तर देते न बन पड़ा तो लाचार होकर उन्होंने अपनी हार स्वीकार कर ली। सारी सभा हैरान रह गई। दरबारियों में जो अष्टवक्र से जलते थे और उसे अपमानित करना चाहते थे, वे चुप होकर बैठ गए। इस तरह मनुष्य की सुन्दरता शरीर नहीं गुण है।



सीख - अष्टवक्र शरीर से कुरूप था लेकिन अदभुत बुद्धिमता के कारण सबको उसके सामने नतमस्तक होना पड़ा। इसी तरह गुण पूज्यनीय है, शरीर कितना भी सुडोल, सुन्दर हो यदि उसमें कोई भी ज्ञान न हो पवित्रता, नम्रता आदि गुण न हो, समझ न हो तो उसे ज्ञान नेत्रहीन ही कहा जायेगा। अवगुणों से सम्पन हो तो उसे कुरूप ही कहा जायेगा। इस लिए गुणवान बनो।


       

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