Wednesday, April 23, 2014

Hindi Motivational stories - " क्षमाशीलता "

क्षमाशीलता 

                   एक राजा स्वाभाव से ही न्याकारी था और क्षमाशील भी। वह अपराधियों को दण्ड भी देता था। परन्तु किसी की क्षमता और परिस्तिथि को देखकर उसके दण्ड को हल्का भी कर देता या उसे क्षमा भी कर देता था। इस प्रकार प्रजा उस राजा के गुणों और कर्तव्यों से सन्तुष्ट थी और स्वम् को शौभाग्यशाली मानती थी कि उन्हें एक ऐसे राजा की छत्रछाया प्राप्त हुई है।

               एक बार राजा के कोषाध्य्क्ष और लेखाधिकारी ने जब पिछले हिसाब-किताब की जाँच की तो उन्हें मालूम हुआ कि एक कर्मचारी ने १००० रुपये का ऋण लिया हुआ है जो उसने अभी तक चुकता नहीं किया है और चुकता करने की अवधि पूरी हो गयी है। लेखाधिकारी ने सोचा पहले उस कर्मचारी से बात करते है और फिर बात आगे देखेंगे, तो लेखाधिकारी उस कर्मचारी से मिला और सारी बात बता दी आपका ऋण चुकाने का समय समाप्त हो गया है और अगर रकम नहीं चुकाया तो राजा के सामने आपको पेश होना होगा। कर्मचारी सारी बात समझ रहा था की राजा के सामने पेश होना माना दण्ड के साथ कारावास भी हो सकता है पर कर्मचारी लाचार और मजबूर था ये बात अधिकारी भी समझ गया था। और बहुत कोशिश करने के बाद अधिकारी को ये पक्का हुआ की कर्मचारी असमर्थ है तो वह कर्मचारी से कहा अब आपको राजा के सामने पेश किया जायेगा। और कुछ दिन बाद निश्चित दिन और समय पर कर्मचारी को राजा के आगे पेश किया गया। और लेखाधिकारी राजा को कर्मचारी की सारी कहानी सुनाने लगा तब राजा हर बात को ध्यान से सुन रहा था और कर्मचारी की तरफ देख भी रहा था। और कर्मचारी गर्दन नीचे झुकाए, आँखे धरती पर गाड़े चुपचाप खड़ा था। एक ओर तो उसे लज्जा आ रही थी कि आज वह अपने पैसे नहीं चूका सकता, दूसरी ओर वह अपनी विवशता के कारण मायूस था, तीसरी ओर वह इस भय से अशान्त था कि न जाने अब महाराज क्या दण्ड सुनायेंगे।

         जब लेखाधिकारी सारा किस्सा सुना रहा था तब राजा उस कर्मचारी के हाव-भाव और उसकी रूपरेखा को ध्यान से देख रहा था। राजा को ऐसा महसूस हुआ कि यह कर्मचारी लाचार है, यह बल-बच्चेदार आदमी है, कोई दुःख की घड़ी आने पर इसने ऋण तो ले लिया परन्तु वेतन से बचत न रहने पर यह उतने समय में पैसे नहीं चूका पाया जितने समय में चुकाने की इससे आशा की थी। इस सारी स्तिथि को भांपकर राजा ने यह हुक्म दिया कि यह कर्मचारी पैसा चुकाने में असमर्थ मालूम होता है वर्ना इसकी नीयत में दोष नहीं है। अंतः इसे माफ़ किया जाता है और जो रकम इसने ली थी, उसे ऋण की बजाय राज दरबार से सहायता के रूप में शुमार किया जाए और इसके बाद इस किस्से को समाप्त किया जाए। राजा के ऐसा हुक्म सुनाने के बाद ऐसा लग रहा था कि जैसे कर्मचारी में फिर से जान आ गई हो। अब उसके चेहरे पर ख़ुशी व शुक्रिया की रेखाएँ उभर आई थी और उसने वहाँ से प्रस्थान किया। वहाँ से छूटने के बाद कर्मचारी सीधे ही एक व्यक्ति के पास गया जिसने १०० रूपया उस कर्मचारी से उधार लिया था। उस व्यक्ति के पास पहुँचकर कर्मचारी अपने आने का प्रयोजन बताया। उसने उस व्यक्ति से कहा १०० रूपया वापस कर दे। उस व्यक्ति ने कहा कि उसकी पत्नी बीमार है और इस परस्तिथि में वह उसका ऋण चुकाने में असमर्थ है। पर कर्मचारी उसको बार बार कहने लगा मुझे आज ही मेरे पैसे चाहिये। और व्यक्ति कर्मचारी से क्षमा याचना करने लगा पर कर्मचारी उसकी एक भी न सुनी और उस पर एक जोर का प्रहार किया ताकि वो व्यक्ति डर कर कही से पैसा ल दे। लेकिन जैसे ही प्रहार हुआ वह व्यक्ति चिल्लाने लगा उसे चोटे आई और आखिर यह किस्सा राजा के पास पहुँच गया।

          राजा ने सारी कहानी सुनी और कहा कर्मचारी से मैंने तो तुम पर दया करके तुम्हारे १००० रुपये माफ़ कर दिये थे, तुम ऐसे निर्दयी निकले कि तुम अपने ऋणी को १०० रुपये भी माफ़ नहीं कर सके। अब में यदि तुम पर १००० रुपये का दण्ड लगाऊ और कारावास में कड़ा दण्ड भी दूँ, तब तुम्हारा क्या हाल होगा ? यह सुनकर उस कर्मचारी के लज्जा से पसीने छूट गए और उसे अपने कर्म पर बहुत अफ़सोस हुआ।

सीख - हम देखते है कि इस कलयुग में प्राय : हरेक मनुष्य का दूसरों से ऐसा ही व्यवहार है। परमपिता न्यायकारी भी है और क्षमाशील भी। वह गुणवान भी है और कल्याणकारी भी।  मनुष्य पर अपने कर्मो का भरी ऋण चढ़ा हुआ है। और यदि सच्चे मन से ईश्वर से माफ़ी मांग ले तो दयालु परमात्मा उसे क्षमा भी कर दे। परन्तु अफ़सोस है कि वह अपनी १००० भूलों को क्षमा कराना चाहता है और दूसरे किसी की एक भूल भी माफ़ नहीं करना चाहता है। इस लिए हमें खुद को क्षमा करना है और साथ साथ दूसरे को क्षमा कर देना है। तब ईश्वर से सच्ची क्षमा मिलेंगी।

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