Sunday, April 6, 2014

Hindi Motivational Stories - ' बड़ा कौन ? संसारिक धन या ज्ञान धन '

" बड़ा कौन ? संसारिक  धन या ज्ञान धन "

            एक प्रभु प्रेमी, नगर के बाहर प्रभु प्रेम में लवलीन होकर प्रभु कि साधना करता रहता था। दूसरी तरफ नगर के अन्दर में एक सेठ को अधिक से अधिक धन पाने की लालसा लगी रहती थी। और उस सेठ को कही से ये खबर मिली की जंगल में कही कोई जगह काफी बड़ा खजाना दबा हुआ है। परन्तु वह धन कहाँ है, इसके बारे में किसी को पता नहीं। सेठ अपनी किस्मत आजमाने के लिए एक दिन जंगल की तरफ चल दिया। जब नगर का मार्ग समाप्त हो गया और जंगल शुरू हो कर धना - सा होने लगा तब वहाँ उसने एक व्यक्ति को पालथी मार कर मनन - चिन्तन करते हुए देखा। उसके चेहरे पर शान्ति और सन्तोष के चिन्ह थे और वह बिल्कुल निश्चिन्त दिखाई देता था। वैसे वो कथिक रूप से तो शहर से दूर बैठा ही था परन्तु लगता था कि उसका मन भी शहर के हाय - हल्ला से दूर कही, एकान्त में बस रहा है। सेठ जी उसके पास जाकर उसे प्रणाम किया और इन शब्दों से सम्बोधित किया - 'महाराज, आपके दर्शन पाकर मेरा मन बहुत प्रसन्न हुआ। आप तो विरक्त है परन्तु मै एक गृहस्थी आदमी हूँ। आपकी कृपा और आप से वरदान की एक कामना करता हूँ।  यादि आप को मुझ पर करुणा हो तो कृपया यह बताने का कष्ट करें कि जंगल में कोई एक बडा खजाना है वो कहाँ दबा हुआ है ?

      प्रभु प्रेमी - परन्तु मेरी तो इन बातों में रूचि नहीं है और मै तो यह कहूँगा कि कमाई करने से जो धन प्राप्त होता है, उसी में ही संतोष होना अच्छा है।

     सेठ - मै मानता हूँ कि आप को इन संसारिक धन - वैभवों से कोई प्रीति नहीं परन्तु मुझ पर आपकी यह कृपा हो - यह मेरी याचना है।

      प्रभु  प्रेमी  - अच्छा, तो जाओ ! उत्तर दिशा कि ऒर आगे बढ़ते चलो। जब लगभग 400 कदम चल चुके होंगे तो वहाँ एक पीपल का पेड़ दिखाई देगा। उस पेड़ की तीन मोटी - मोटी रगे पर्थ्वी में दबी हुई दिखाई देगी। उन में से जो मध्यवर्ती रग है और उसके दहिने ऒर जो रग है, उनके बीच के स्थान पर यदि 4 फुट गहरा खोदोगे तो तीन स्वर्ण कलश मिलेँगे जो अपार धन से भरपूर है। जाओ, अगर धन की ही कामना है और वह भी बिना कमाई वाले धन की, तो जाकर वे कलश निकाल लो।

    यह कहते हुए प्रभु प्रेमी सेठ को दया की दृस्टि से देखने लगा और साथ - साथ मुस्कुराने भी लगा। उस प्रभु प्रेमी से बात करके सेठ की मनोवृति पर कुछ अलौकिक प्रभाव पड़ा परन्तु फिर भी धन की लालसा से खिचा हुआ - सा वह उत्तर दिशा में बढ़ते गया और उस प्रभु प्रेमी को प्रणाम और धन्यवाद करके आगे को निकल पड़ा। और जैसे ही 400 कदम पुरे हुए तो वहाँ उसने पीपल के पेड़ की तीन रगे देखी। उस प्रभु प्रेमी के बताए अनुसार उसने उस स्थान पर 4 फुट गहरा खोदा तो यह देखकर उसके आश्चर्य का कोई ठिकाना न रहा कि वहाँ तीन स्वर्ण कलश दबे थे। उनको उसने जब खोला तो उस में हीरे, अशर्फिया वगैरह देखकर दंग रह गया और उसे बेहद ख़ुशी हुई। परन्तु इस विचार ने उसे सोच में डाल दिया कि प्रभु प्रेमी को जब इस खजाने का पता था तो यह खजाना उसने स्वम् अपने लिए क्यों नहीं ले लिया।

    इसलिए सेठ इस जिज्ञासा को लेकर वह फिर से उस प्रभु प्रेमी के पास गया और बोला - महाराज, आपकी कृपा से खजाना तो मिल गया परन्तु अब उस खजाने के प्रति मेरा कुछ विशेष आकर्षण नहीं है। मेरे मन में यह प्रश्न उठा है कि जब आपको उस खजाने का पता था तो अपने स्वम् ही वह खजाना क्यों नहीं ले लिया। अवश्य ही आपको उससे भी कोई ऊँची प्राप्ति हुई होगी कि जिस से आपको उस खजाने के प्रति कोई आकर्षण नहीं है।

   प्रभु प्रेमी चुप होकर बैठा रहा और उसकी और देखता रहा। इसका उस सेठ पर कुछ ऐसा प्रभाव पड़ा कि धन के प्रति जो उसकी लालसा बनी रहती थी, वह अब मन में नहीं रही। उसी क्षण उस प्रभु प्रेमी के मुख से यह शब्द निकले - भाई, आप यही धन माँगते थे, इसलिए आपको उसका रास्ता बता दिया पर सर्वोपरि धन तो ज्ञान धन है। ज्ञान धन अविनाशी है और शारीर ने नाश होने के बाद भी आत्मा के साथ रहता है और उसे शाश्वत सुख देता है। यह सुनकर वह सेठ भी अब ज्ञानधन अर्जित करने की ऒर प्रवृत हुआ। और नियमित रूप से प्रभु प्रेमी से मिल कर ज्ञान अर्जित करने लगा।


सीख - संसारिक धन से बड़ा धन है ज्ञान धन इस ज्ञान धन को आज की दुनिया में सब भूल चुके है और जिस की वजह से सारा संसार दुःखी है एक बार इस ज्ञान धन का महत्व मानव को समझ में आ जाय तो उस का कल्याण हो जायेगा।

No comments:

Post a Comment