Friday, May 2, 2014

Hindi Motivational Stories - ' नीयत का प्रभाव '

  नीयत का प्रभाव 


           एक राजा अपने मन्त्री के साथ शिकार पर निकला। शिकारी की खोज में वे दोनों जंगल में आगे की और बढ़ते जा रहे थे। इतने में राजा को एक शिकार दिखाई पड़ा। और उस शिकार के पीछे भागते भागते राजा बहुत आगे निकल गए और मन्त्री का घोड़ा थोड़ा बिदक जाने के कारण पीछे रह गया। मन्त्री को सख्त प्यास लगी थी।  प्यास बुझाने के लिए वह इधर उधर देखने लगा कि कहीं से उसकी प्यास बुझ सके। थोड़ी ही देर के बाद उसे एक कुटिया दिखाई पड़ी। वह कुटिया एक किसान का था। और उसके अस पास की जमीन पर खेत की हुई थी, जहाँ बहुत ही सुन्दर भरपूर हरियाली वाले वृक्ष लगे हुए थे और उन पर बहुत ही सुन्दर रसीले पौष्टिक फल लगे थे, जिसे देखते ही खाने का मन हो आता था। मन्त्री जी अपनी प्यास बुझाने के लिए उस कुटिया के दरवाजे पर दस्तक दी , जिसे सुनकर उस कुटिया का मालिक किसान बाहर आया और आगन्तुक की तरफ देखते हुए बोला कहो महाराज, मैं आपकी क्या सेवा कर सकता हूँ ? मन्त्री जी ने कहा अभी तो मुझे बहुत प्यास लगी है अगर आप जल पिला दे तो बड़ी राहत मिलेगी। वह किसान अपने बाग में गया और वहाँ से रस निकला कर बड़े ही आदर भाव से फलों का रस भेंट किया। मन्त्री बहुत ही प्रसन्न हुए क्यों की एक तरफ तो उनकी प्यास बुझी दूसरी तरफ, रसीले तथा पौष्टिक पदार्थ भी खाने को मिले।

         परन्तु , मन्त्री थोड़ा लोभव्रति वाला व्यक्ति था इसलिए उसकी व्रति में उन फलों को देख लोभ भर गया। उसने किसान को धन्यवाद किया और वहाँ से चल पड़ा। मन्त्री का यह स्वभाव था कि वह सदा पैसा इकट्टा करने की उधेड़बुन में लगा रहता था। ताकि राजा का खजाना भरपूर हो तो राजा मन्त्री की वाह वाह करे और यही मन्त्री करता रहता था। कोई न कोई बहाना ढूंढ़कर 'कर' लगान और राजा का खजाना बढ़ाना। जब मन्त्री महल में पहुंचा और राजा की कुशलपूर्वक पहुँचने के बारे में समाचार लेने के लिए उनसे मिला तो उसने किसान और खेत का कहानी राजा को सुना दी। महाराज इस धरती पर इतने पौष्टिक और स्वादिष्ट फल निकलते है तो किसान को अच्छा आमदनी भी होती होगी। तो इस विषय में मेरे एक सुझाव है,, अगर हुज़ूर उसे पसंद करें तो हुकुमनामा जारी कर दे। राजा बोला ! मन्त्री जी आपकी राय, सलाह और सुझाव सदा ही अच्छे होते है उनसे सरकार को सदा फायदा ही होता है। अवश्य ही अब भी कोई लाभकारी राय ही होगी। कहिये ! क्या कहना चाहते है ? मन्त्री बोला - महाराज मेरा ऐसा विचार है कि जिस धरती  इतना स्वादिष्ट, रसीले, पौष्टिक, लुभावने फल उगते है तो जरूर किसान उनकी बिक्री से अच्छा आर्थिक लाभ लेता होगा। अंतः में ऐसा समझता हूँ कि यहाँ की धरती पर 'कर' अथवा लगान की रकम बढ़ा देनी चाहिए।
     
        राजा बोला, मन्त्री जी, आपने जो बात कहीं है वो मुझे भी उचित लगती है और हमें पसन्द है, इसलिए दरबार का हुक्म है कि ऐसा ही किया जाये। राजा की स्वीकृति प्राप्त होते ही मन्त्री ने हुक्मनामा जारी कर दिया।

        इस तरह से समय बीतता जा रहा था। कुछ वर्ष पश्चात मन्त्री जी राजा के साथ फिर से उसी कुटिया के सामने आ रुके अपनी प्यास बुझाने के लिये। किसान ने आगन्तुकों को आते देख अपने स्वभाव के अनुसार उन दोनों का आतित्थय किया। वह बाग में गया और एक छोटी-सी टोकरी में फल भर कर ले आया और उन फलों से रस निकालने लगा। परन्तु इस बार इतने सारे फलों से थोड़ा ही रस निकला। वह रस भी न तो पीने में स्वादिष्ट था और न ही पौष्टिक। मन्त्री जी को फलों के रस से इस बार आनन्द नहीं आया। मन्त्री जी देख रहे थे कि फल सूखे-सूखे से है, और न ही स्वादिष्ट थे। आखिर मन्त्री जी से न रहा गया। उन्होंने उस किसान से पूछ ही लिया। मन्त्री जी ने कहा - जमीदार जी शयद आपको याद नहीं, पिछली बार जब मैं आया था तब भी आपने मुझे रस पिलाया था परन्तु उन फलों के रस में और इन फलों के रस म में रात और दिन का अन्तर है। समझ में नहीं आया वहीं खेत, वही बीज है, उनका संरक्षण करने वाले भी वही है, फिर इनमे इतना अन्तर क्यों पड़ गया ?

       किसान ने दोनों की तरफ देखा और कहा, महाराज, मुझे आपका परिचय नहीं है कि वास्तव में आप कौन है ? इसलिये सच्ची बात बताने में मुझे कुछ संकोच हो रहा है। मन्त्री बोला, जमीदार जी, इस में संकोच करने की बात नहीं है। आप नि ; संकोच बताइये कि क्या बातहै ? किसान ने कहा सच बतलाऊं महाराज, हमारे राजा की नीयत बदल गयी है जिसके कारण ही यह सब हुआ। अच्छी फसल, अच्छी पैदावार देख राजा ने जमीन का लगान बढ़ा दिया। उसकी इस लोभवृत्ति के परिणाम स्वरूप यह सब हुआ। राजा ने जब यह सुना तो उसके पैरो तले से जमीन निकल गयी।  मन्त्री जी भी खिसियाई नज़रों से राजा की तरफ देख रहे थे। दोनों की बुद्धि में वास्तविकता समझ में आ गयी थी।

सीख - आदमी की नीयत जब बदल जाती है लोभ वृत्ति बढ़ जाती है तो ऐसा ही होता है। कुदरत की देन में अन्तर हो जाता है। इस लिये कहा जाता है।  'नीयत साफ तो मुराद हासिल '

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