Sunday, May 25, 2014

Hindi Motivational Stories............मृत्यु की स्मृति और पाप से मुक्ति

  " मृत्यु की स्मृति और पाप से मुक्ति "


              एक संत थे जिनका जीवन निष्पाप एवं पवित्र था। बहुत लोग उनके उपदेश सुनने आते थे। एक दिन एक युवक ने संत से कहा - महात्मन ! मुझे बड़ा आश्चर्य होता है कि आप पाप रहित जीवन कैसे जी सकते है ? कितनी भी कोशिश कर लूँ फिर भी मुझ से पाप तो हो ही जाता है। आप पाप रहित जीवन कैसे जीते है, कृपया पाप रहित जीवन का रहस्य मुझे समझाइये।

                संत ने कहा - वत्स बहुत अच्छा हुआ जो तुम आ गये। क्यों कि मुझे तुम से एक विशेष बात करनी थी। युवक ने उत्सुकता से पूछा -महात्मन ! कैसी बात ?

      संत ने कहा - बेटे ! बात तेरे जीवन से सम्बन्धित है। आज सुबह मैंने सपने में देखा कि ठीक सातवें दिन आपकी मृत्यु होनी वाली है। तेरे पारिवारिक जनों का विलाप सुनकर मेरी नींद खुल गयी।  बेटे, मेरा सुबह का सपना हमेशा सच्चा होता है।

    मृत्यु की बात सुनते ही युवक के दिल की धड़कन बढ़ गयी, आँखों के आगे अँधेरा छाने लगा, हाथ-पैर भय से कापने लगे और सिर चकराने लगा। वह वहाँ से सीधा भगवान के मन्दिर में जाकर उनके चरणों में झुककर प्रार्थना करने लगा - हे प्रभु ! हे मेरे रक्षक ! मैंने अपनी ज़िन्दगी में बहुत पाप किये है। पाप करके कभी मैंने पश्चाताप नहीं किया। मैं अपनी करनी को शब्दों द्वारा व्यक्त नहीं कर सकता। प्रभु ! मुझे माफ़ कर दीजिये। जब वह घर लौटा तो उसका खाने - पीने, हँसने - बोलने में मन नहीं लगा। संसार के वैभव अब उसे आकर्षित नहीं कर रहे थे। पाप करना तो दूर अब तो पाप करने की इच्छा भी नहीं पैदा हो रही थी। संसार की सारी वस्तुएं उसे निःसार लगने लगी क्यों कि कोई ऐसी वस्तु नहीं थी जो उसे मृत्यु से बचा ले।

    धन, दुकान, माकन, पुत्र, पत्नी, परिवार और मित्र कोई भी उसे मृत्यु बचा नहीं सकता था। वह सोचने लग कि क्या कोई ऐसा डॉक्टर नहीं जिसके कैप्सूल से मौत रुक जाये, क्या कोई ऐसा वकील नहीं जो मृत्यु को स्टे- आर्डर दे सके, क्या कोई ऐसा वैज्ञानिक नहीं जिसके शोध से यमराज की गति अवरुद्ध हो जाये। बहुत सोचने पर उसे अहसास हुआ कि सद्गुण और प्रभुस्मरण ही एकमात्र आधार है। तभी उसने हृदय में पवित्रता का संचार होने लगा।

  इस प्रकार निष्पाप एवं पवित्र भावों से उसके छः दिन बीत गये। सातवें दिन का जब सूर्योदय हुआ तो उसके मन से मृत्यु का भय निकल चूका था। इतने में संत उसके घर पहुँचे और पूछा - वत्स ! सात दिन में तुमने कितने पाप किये ? उसने कहा - महात्मन ! पाप करना तो दूर, पाप करने के विचार भी पैदा नहीं हुये। जब मौत सिर पर खड़ी हो तो मन पाप में कहाँ लगता है, गत छः दिनों में मेरा जीवन ही बदल गया है, संत ने कहा - पवित्र जीवन जीने का यही रहस्य है। मैं भी मौत का प्रतिपल स्मरण करता हूँ।

सीख - अपने को पाप से बचाने का सिंपल तरीका - मौत का स्मरण करना है। मरना तो एक दिन है। तो क्यों न अच्छे कर्म का पूँजी जमा करें। कहते है इन्सान मरता है तो दो चीजें साथ चलते है अच्छा या बुरा सतकर्म या विक्रम। तो ये आपके ऊपर है कि आप क्या साथ ले जाना चाहते है।






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