Wednesday, May 28, 2014

Hindi Motivational Stories ....... माँ का वात्सल्य


माँ का वात्सल्य 

            एक बार एक व्यापारी दो घोड़ियों को लेकर राजा के दरबार में उपस्थित हुआ और नम्रतापूर्वक राजा से निवेदन करने लगा कि अपके दरबार में एक से एक ज्ञानी है, क्या उन में से कोई भी यह बता सकता है कि इन दोनों घोड़ियों में से माँ कौन है और बेटी कौन है। राजा के लिए यह चुनौती भरा प्रश्न तो था ही, साथ ही दरबार की प्रतिष्ठा का भी सवाल था। सोच विचार कर राजा मन्त्री को इस रहस्य से पर्दा उठाने का भार सौप दिया।

     दरबार की समाप्ति पर उदास चेहरे के साथ मंत्री जब घर लौटा तो उनकी बुद्धिमान पुत्र वधु विशाखा ने उदासी का कारण जानना चाहा। मंत्री जी पहले तो टालते रहे परन्तु बाद में विशाखा के स्नेह भरे आग्रह के आगे नत मस्तक हो गये और सारी बात उसे बता दी। वह सुशील नारी इस छोटी-सी बात को सुनकर मुस्करा दी और कहा - पिता जी, यह तो बहुत आसान काम है। मंत्री जी ने उसके समाधान सूचक चेहरे को पढ़कर धिरे से पूछा - कैसे बेटी ?

    विशाखा ने कहा - पिता जी, दोनों घोड़ियों को अलग-अलग पात्र में दान डाल देना, जो माँ होगी वह धिरे-धिरे खायेगी और बेटी होगी वह जल्दी-जल्दी खायेगी। बेटी अपने पात्र का दाना समाप्त कर, माँ के पात्र में मुँह डालेगी और माँ हटकर बेटी को खाने देगी। इस प्रकार आपको पहचान हो जायेगी।

    निधार्रित समय पर दरबार में राजा, व्यापारी, दरबारीगण आये और मंत्री जी ने घोड़ियों की अलग-अलग पहचान बता दी। सौदागर इस पहचान से संतुष्ट हुआ। उसने राजा के ज्ञानी मंत्री को और राजा को साधुवाद दिया। और चल दिया अपने राह पर। परन्तु राजा के मन में प्रश्न उत्पन्न हुआ कि ऐसा हल मंत्री के मन की उपज कैसे हो सकता है, यह अवश्य ही किसी वात्सल्यमय नारी के द्वारा सुझाया गया है। राजा के पूछने पर मंत्री ने अपनी पुत्रवधु की बुद्धि का सच्चा- सच्चा हाल कह सुनाया। राजा ने दूसरे दिन विशाखा को दरबार में बुलाकर सम्मानित किया।

सीख - हर जगह हम समर्थ नहीं होते है तो अपने से छोटो का भी कभी कभी सहयोग लेना चाहिए या उनसे उस विषय के बारे में बात करनी चाहिये। जिस के बारे में हमें पता न हो।  ताकि विचार- विमर्श हो सके।



No comments:

Post a Comment