Monday, May 5, 2014

Hindi Motivational Stories - 'ट्रस्टीपन'

'ट्रस्टीपन' 

              एक राजा वर्षो तक सुखपूर्वक राज्य करता रहा लेकिन कुछ समय बाद देश में समस्याये बढ़ गयी तो उसकी चिंता भी बढ़ने लगी। उसे न भूख लगती, न नींद आती। वह बहुत परेशान रहने लगा। घबराकर वह अपने गुरु के पास गया, बोला - गुरुदेव, राज - काज में मन नहीं लगता, राज्य में परेशानियाँ बढ़ गयी है, इच्छा होती है, राज - काज छोड़कर कहीं चला जाऊँ। गुरु अनुभवी था, उसने कहा - राज्य का भार पुत्र को सौंप दो और आप निश्चिंत रहो। राजा ने कहा, पुत्र अभी छोटा है। फिर गुरु ने कहा - अपना राज्य मुझे सौंप दो। राजा खुश हो गया। उसने पूरा राज्य गुरु को सौंप दिया और स्वयं वहाँ से जाने लगा। गुरु ने पूछा - कहाँ जा रहे हो ? राजा ने उत्तर दिया - किसी दूसरे देश में जाकर धंधा करूँगा। गुरु ने कहा - इसके लिए धन कहाँ से आयेगा ? राजा ने कहा - खज़ाने में से ले जाऊँगा।

             गुरु ने कहा, खज़ाना आपका है क्या ? वह तो आपने मुझे सौंप दिया। राजा ने कहा - गुरुदेव गलती हो गयी, मैं यहाँ से कुछ नहीं ले जाऊँगा। बाहर जाकर किसी के पास नौकरी कर लूँगा। तब गुरु ने कहा - नौकरी ही करना है तो मेरे पास ही कर लो। राजा ने पूछा - काम क्या करना होगा ? गुरु ने कहा - जो मैं कहूँ, वही करना होगा। राजा ने गुरु का आदेश स्वीकार कर लिया और उसके यहाँ नौकर हो गया। गुरु ने उसको राज्य की सम्भाल का पूरा काम दे दिया। जो काम राजा पहले करता था वही पुनः उसके हिस्से में आ गया। अन्तर सिर्फ यह रहा कि अब वह राज - कार्य भार नहीं रहा बल्कि निमित्त भाव से कार्य किया जाने लगा। अब उसे भूख भी लगाने लगी, नींद भी आने लगी। कोई भी समस्या नहीं रही।

          एक सप्ताह बाद गुरु ने राजा को बुलाकर पूछा - अब क्या हाल है। राजा ने कहा - आपका उपकार कभी नहीं भूलूँगा। अब मैं परमानंद में हूँ। वही स्थान, वही कार्य पहले बोझ लगता था, अब खेल लगता है, तनाव दूर हो गया और जिम्मेदारी का बोझ उत्तर गया है।

सीख - ये सन्सार ईश्वर की रचना है और हम उस रचयता के रचना याने बच्चे हो गये।  भगवान हमारा पिता है। इस लिये भगवान भी कहते है बच्चे, आपके पास जो भी कुछ है , उसमें से मेरा-पन निकाल कर, उसे ईश्वर की अमानत मानकर, श्रीमत प्रमाण सेवा में लगाओ तो आप भी हल्के हो जायेंगे। बोझ सम्बन्धो और वस्तुओ का नहीं होता है। मेरे पन में होता है। अंतः मेरे- पन को तेरे - पन में बदल दो। 'मेरा' के स्थान पर 'तेरा ' कर दो। मेरा नहीं 'ईशवर का ' यह महावाक्य जीवन का आदर्श बना लो।  

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