Monday, June 2, 2014

Hindi Motivational Stories...... स्वालम्बन की श्रेष्ठता

स्वालम्बन की श्रेष्ठता 

   ग्रीस में किलोथिस नामक एक बालक एथेंस के जीनों की पाठशाला में पढ़ता था। किलोथिस बहुत गरीब था। उसके बदन पर पुरे कपडे भी नहीं थे, पर पाठशाला में प्रतिदिन जो फ़ीस देनी पड़ती थी, उसे किलोथिस रोज नियम से देता था। पढ़ने में वह इतना तेज था कि दूसरे सब बच्चे उससे ईर्षा करते थे। कुछ लोगो ने यह संदेह किया की किलोथिस जो दैनिक फ़ीस के पैसे देता है, वो कहीं से चुराकर लाता होगा, क्यों कि उसके पास तो फटे चिथड़े कपड़े के सिवाय और कुछ है नहीं। आखिकार एक दिन ऐसा भी हुआ उसे चोर बता कर पकड़वा दिया। और मामला अदालत में गया। किलोथिस ऐसे समय में बड़ा हिम्मत से काम लिया निर्भयता के साथ जज (हाकिम) से कहा कि मैं बिल्कुल निर्दोष हूँ। मुझ पर चोरी का झूठा दोष लगाया गया है। मैं अपने इस ब्यान के समर्थन में दो गवाह पेश करना चाहता हूँ। गवाह बुलाये गये। पहला गवाह था एक माली। उसने कहा, यह बालक प्रतिदिन मेरे बगीचे में आकर कुए से पानी खींचता है और इसके लिए इसे कुछ पैसे मजदूरी के रूप में दे दिये जाते है। दूसरी गवाही में एक बुढ़िया आयी। उसने कहा, मैं बूढ़ी हूँ। मेरे घर में कोई पीसने वाला नहीं है। यह बालक हर रोज मेरे घर पर आटा पीस जाता है और उसे बदले में अपनी मजदूरी के पैसे ले जाता है।

  इस प्रकार शारीरिक परिश्रम करके किलोथिस कुछ पैसे रोज कमाता है और उसी से अपना निर्वाह करता है और पाठशाला की फ़ीस भी भरता है। किलोथिस की इस नेक कमाई की बात सुनकर जज (हाकिम) बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने उसे इतनी सहायता देनी चाही कि जिससे उसको पढ़ने के लिए मजदूरी नहीं करनी पड़े, परन्तु उसने सहायता स्वीकार नहीं की और कहा, मैं स्वयं परिश्र्म करके ही पढ़ना चाहता हूँ। किसी से दान लेने के स्थान पर स्वालम्बी बनकर आगे बढ़ना ही मेरे माता-पिता ने मुझे सिखाया है।

सीख - बाल्यकाल के जीवन में समाविष्ट ये संस्कार ही व्यक्ति को आगे चलकर महामानव बनाते है तथा ऐसे लोग ही आगे चलकर श्रेष्ठ नागरिक बनते है। 

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