Friday, June 6, 2014

Hindi Motivational Stories.... कला का सम्मान करो

कला का सम्मान करो


            प्रदर्शनी में प्रदर्शित भगवान की उस भव्य मूर्ति को देखने वालों में सम्राट समुद्र गुप्त, उनके महामात्य व अन्य राज्य कर्मचारी भी शामिल थे और सभी एक स्वर में मूर्तिकार के कला-कौशल की हृदय से सहराना कर  रहे थे। जब सम्राट ने कलाकार का नाम पूछा तो प्रदर्शनी में सन्नाटा छा गया। क्यों कि कलाकार का नाम किसी को पता ही न था। आश्चर्य की बात थी कि इतना अनोखा कलाकार स्वयं को छिपाये हुए क्यों है ? काफी खोज-बीन के पश्चात् राज्य कर्मचारी एक काले-कलूटे युवक को पकड़ कर लाये  सम्राट से बोले-महाराज, गजब हो गया ! इस शूद्र ने भगवान की पवित्र मूर्ति बनाई। दर्शकों में कुछ ऊँची जाति के लोग भी खड़े थे। वे चिल्लाये-पापम् -शान्तम् ! गजब !! महान गजब !!! इस शूद्र को भगवान की मूर्ति गढ़ने  अधिकार किसने दिया। इसके हाथ काट दिये जाने चाहिए। उनकी आवेशपूर्ण बातें सुन कर मूर्तिकार डर के मारे थर-थर काँपने लगा और सम्राट के चरणों में गिर कर क्षमा याचना करने लगा।

            सम्राट समुद्र गुप्त ने बड़े प्यार से उसे उठाया और उच्च वर्ण के लोगों की ओर आँखे तरेर कर देखते हुए कहा -छी : ! कैसी अन्याय पूर्ण बातें कर रहे है आपलोग ! भगवान की मूर्ति बनाने वाले इन सुन्दर हाथों के प्रति आप सबको ऐसा निर्णय ? आप ऊँचे और कुलीन लोगो से मुझे ऐसी अपेक्षा न थी। तोड़ दो इस ऊँची-नीच की दीवार को, तभी सभी आपस में प्यार से हिल-मिल कर रह पाएंगे, समाज सुख-शांति व समृद्धि आयेगी और सही अर्थो में हम वसुधैव-कुटुम्बकमह की भावना को धरा पर साकार कर पायेंगे। यों कहकर सम्राट ने उस काले शूद्र युवक के हाथ अपने हाथों में लेकर चुम लिए और उसे सबके बीच एक हज़ार स्वर्ण मुद्राएँ ईनाम में देते हुए अपना राजमूर्तिकार घोषित कर दिया।

सीख - ये कहानी व्यक्ति की कला कौशल की सरहाना करते हुए ऊँच-नीच का भेद भाव मिटाकर सभी लोगो को हिल मिलकर रहने की प्रेरणा देती है। इस लिए हमें व्यक्ति की जाति धर्म को न देखकर उसकी गुण और कला को देख सम्मान करना चाहिए।
   

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