Sunday, July 20, 2014

Hindi Motivational stories.....................................संतों की शरण

संतों की शरण ……………

      एक गाँव में एक ठाकुर थे। उनके परिवार में कोई नहीं था, केवल एक लड़का था। जो ठाकुर के घर काम करने लगा था। रोजाना सुबह वह बछड़े चराने जाता था और लौटकर आता तो रोटी खा लेता था। ऐसे समय बीतता  गया। एक दिन दोपहर के समय वह बछड़े चराकर आया तो ठाकुर की नौकरानी ने उसको ठंडी रोटी खाने के लिये दे दी। उसने कहा कि थोड़ी-सी छाछ या राबड़ी मिल जाय तो ठीक होगा।  नौकरानी ने कहा कि जा -जा, तेरे लिये बनायीं है क्या? राबड़ी ! जा, ऐसे ही खा ले, नहीं तो तेरी मरजी ! उस लडके के मन में गुस्सा आया  " कि मैं धुप में बछड़े चराकर आया हूँ, भूखा हूँ, पर मेरे को बाजरे की रूखी रोटी दे दी, राबड़ी माँगा तो तिरस्कार कर दिया।" वह भूखा ही वहाँ से चला गया। गाँव के पास एक शहर था। उस शहर में संतों की एक मण्डली आयी हुई थी। वह लड़का वहाँ चला गया। संतों ने उसको भोजन कराया और पूछा कि तेरे परिवार में कौन है ? उसने कहा कोई नहीं है। तो संतों ने कहा कि तू साधु बन जा। लड़का साधु बन गया। फिर वह पड़ने के लिए काशी चला गया। वहाँ पढ़कर वह विद्वान हो गया। फिर समय पाकर वह मण्डलेश्वर (महन्त ) बन गया। मण्डलेश्वर बनने के बाद एक दिन उनको उसी शहर में आने का निमन्त्रण मिला। वे अपनी मण्डली को लेकर वहाँ आये। और ठाकुर भी वहाँ प्रवचन सत्संग में आये उनको सुने और सत्संग के बाद वे स्वामी से प्रार्थना करने लगे की हमारे घर भी एक दिन आओ। और मण्डेलश्वर जी ने उनका निमंत्रण स्वीकार कर लिया।
     
            मण्डलेश्वर जी अपनी मण्डली के साथ ठाकुर के यहाँ पधारे। उनका सम्मान  सत्कार किया गया। और सत्संग हुआ उसके बाद सब के लिये भोजन भी था। मण्डलेश्वर जी  के सामने तरह-तरह के भोजन के पदार्थ रखे हूवे थे। ठाकुर उनके पास आये और साथ में नौकर भी था जो हलवा का पात्र पकड़ा हुआ था ,और ठाकुर ने महाराज से विनंती की महाराज! मेरे हाथ से भी थोड़ा हलवा खावो। और तब महाराज जी को हँसी आयी तो ठाकुर ने हँसी का कारण पूछा ? तब महाराज ने  सब के सामने वो बात सुनाई।  ठाकुर जी आपने मुझे नहीं पहचाना में आपके यहाँ कार्य किया करता था और एक दिन थोड़ी सी राबड़ी माँगी थी पर नौकरानी ने मना कर दिया  और उसके बाद में यहाँ से चला गया। पास में ही सन्त-मण्डली ठहरी हुई थी, मैं वहाँ चला गया। पीछे काशी चला गया, वहाँ पढ़ाई की और फिर मण्डलेश्वर बन गया।

             यही वह आँगन है, जहाँ आपकी नौकरानी ने मेरे को थोड़ी-सी-राबड़ी देने से मना कर दिया था। अब मैं भी वही हूँ, आँगन भी वही है और आप भी वही है, पर अब आप अपने हाथ से मोहनभोग दे रहे हो कि महाराज,कृपा करके थोडा मेरे हाथ से ले लो !

       माँगे मिले न राबड़ी, करुँ कहाँ लगी वरण। 
    मोहनभोग गले में अटक्या, आ सन्तो की शरण।।

सीख - सन्तो की शरण लेने मात्र से इतना हो गया कि जहाँ राबड़ी नहीं मिलती थी. वहाँ मोहनभोग भी गले में अटक रहा है। अगर कोई भगवन की शरण ले ले तो वह सन्तों का भी आदरणीय हो जाय। लखपति-करोड़पति बनने में सब स्वतंत्र नहीं है, पर भगवान के शरण होने में, भगवान का भक्त बनने में सब-के-सब स्वतन्त्र है और ऐसा मौका इस मनुष्य जन्म में ही है। 



No comments:

Post a Comment