Saturday, July 26, 2014

Hindi Motivational Stories........................साधु और चोर

साधु और चोर 


    एक बहुत पुरानी बात है एक नगर में राजा और रानी थे। उनका आपस में बहुत प्रेम था। राजा जो कहता रानी मान जाती और रानी जो कहता वो राजा मान जाता। एक दिन रात्री में राजा और रानी बातें कर रहे थे। उस समय वह एक चोर आया और वह दरवाजे के पीछे बैठकर राजा रानी की बाते सुनने लगा। राजा ने कहा रानी से - 'हमें आपने बेटे को साधु बनाना है।' रानी ने कहा 'ये तो हम नहीं बना सकते।' राजा ने कहा - 'जैसा संग वैसा रंग अगर हम अपने बेटे को किसी अच्छे सन्त की शरण दे तो वह साधु बन सकता है। ' रानी ने कहा -'गाँव के बहार चार साधु आये है। उनसे मिलकर किसी एक साधु के पास बेटे को भेज देना।

      चोर ये ये बाते सुनकर सोचने लगा चोरी से तो पकड़े जाने का डर और साधु बनने से तो कोई डर नहीं और वो भी राजा के लडके को शिष्य बनाकर खूब धन दक्षिणा मिल जायेगा। ये सोच कर वह जंगल की तरफ गया बगवा कपडे पहने और रस्ते में सोचने लगा की सिर्फ कपडे पहन कर कुछ नहीं होगा ज्ञान भी चाहिए इस लिए वह पहले सन्त के पास गया और पूछा 'महाराज कल्याण कैसे हो ?' सन्त बोला - 'किसी का जी मत दुःखओ ' चोर बोला और कोई बात संत बोला नहीं और कोई बात नहीं ! चोर फिर दूसरे सन्त के पास गया और पूछा - ' महाराज कल्याण कैसे हो ? ' सन्त बोला। ' बेटे झूठ नहीं बोलना चाहे कोई गाला ही आपका काटे जैसे देखो वैसे बोलो '

"साँच बराबर तप नहीं, झूठ बराबर पाप।  
   जाके हिरदै साँच है , ताके हिरदै आप।"

     चोर तीसरे सन्त के पास गया और पूछा महाराज मेरा कल्याण कैसे होगा ? सन्त बोला, ' रात दिन बस राम राम करते रहो ' चोर बोले और कोई बात - सन्त बोला।, ' यही करो इस में सब आ गया '   फिर चोर चौथे सन्त के पास गया और पूछा -महाराज मेरा कल्याण कैसे होगा ? सन्त बोला  ' एक भगवान की शरण में जाने से - जैसे एक कुँवारी कन्या शादी के बाद सोचती है मेरी तो शादी हो चुकी है। ऐसे !' चोर बोला और कोई बात - सन्त बोला नहीं और कोई बात नहीं। … चोर ने चारों संतों की बात सुनकर आगे जाकर बैठ गया। और जब राजा आया तो चारों सन्त की बात सुनी और देखा की आगे एक और साधु है राजा उसके पास भी गया और पूछा कल्याण कैसे होगा ? चोर ने वही चार बातें जो सुनी थी वो बता दी और जब राजा ने पूछा और कोई बात तो इसने कहा - जैसा सन्त काहे वैसा करना चाहिये। राजा उसका दर्शन लेकर अपने महल की तरफ आते समय सोचने लगा पाँचवा सन्त ज्यादा ज्ञानी है सब ने एक - एक बात कही और उसने पांच बाते कही। उसको गुरु बनाना चाहिये।

    रात को राजा रानी से कहने लगा आज जंगल में जाकर संतो से मिलकर आया। रानी ने पूछा क्या सोचा आपने ? और इसी बीच राजा रानी जब बात कर रहे थे। तब चोर आकर चुपके से उनकी बातें सुनने लगा। राजा ने कहा मैंने सुना था चार सन्त है पर जंगल में तो पांच सन्त मिले और पांचवा सन्त मुझे ज्यादा ज्ञानी लगा उसने पांच ज्ञान की बाते कही बाकी सब ने एक-एक बात कही और आपका क्या विचार है ? रानी ने कहा जिनके पास ज्यादा ज्ञान हो वाही सन्त ठीक है। राजा रानी बहुत ही बोले और भावना वाले थे।

    चोर राजा रानी की बात सुनकर सोचने लगा मैंने तो झूठ कहा था। तब भी ये मुझे सन्त मान बैठे अगर मै सच में सन्त बन जाऊ तो क्या होग ! चोर की आत्मा जगी उसके ह्रदय में सच्चा साधु बनने की इच्छा उत्पन हुई। और वह सच्चे और अनुभवी गुरु की तलाश में जंगल जंगल भटकने लगा।उसने सोचा जिनसे मिलकर एक खिचाव होगा उन्हें ही वो अपना गुरु मानेंगे। उसकी जिज्ञासा देख भगवान खुद गुरु के रूप में प्रगट हुवे और उन्हें देखते ही खिचाव हुआ चोर उन्हें गुरु मानकर कहने लगे आप ही मेरे गुरु आप जो कहे सो मैं करूँगा। गुरु ने कहा सच मैं करेंगे ? चोर बोला हाँ जी। गुरु ने कहा  ' लो ये तलवार और जिसने कहा झूठ मत बोलो, और जिसने राम- राम का जप करने को कहा,  और जिसने एक भगवान की शरण जाने के लिए कहा, और जिसने कहा -किसी का जी मत दुखाओ ' उन सब के सिर काटकर ले आओ। '

    चोर तलवार लेकर भागा जँगल की तरफ जहाँ ये चारों सन्त बैठे थे। और रस्ते में उसका विचार चला किसी का जी मत दुखाओ तो मैं अगर मार देता हूँ तो जी दुखता हूँ। क्या करू ये चारों बातें तो मेरे ही सर में है। उसकी अन्तर मन ऐसा करने से माना कर दिया। और वह वहाँ से आपस गुरु के पास गया और गुरु ने कहा ले आये। गुरु देव ये चारों बातें मेरे सिर में है और मै आपको अपना सिर काटकर देता हूँ। तब गुरु ने कहा अब सिर काटने की कोई जरुरत नहीं ! मैं तुम्हें दिक्षा देता हूँ।

सीख - चोर ने चालाकी से पांच बातें धारण किया तो उसको भगवान का दर्शन हुआ और वह सन्त बन गया। और अगर कोई सच्चे मन से इन पांच बातों को धारण करे तो फिर कहना ही क्या !




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