Saturday, August 30, 2014

Hindi Motivational Stories...............कंजूसी का परिणाम

कंजूसी का परिणाम 


                           एक गरीब ब्राह्मण था। उसको अपनी कन्या का विवाह करना था। उसने विचार किया कि कथा करने से कुछ पैसे मिलेंगे तो काम चल जायेगा। ऐसा विचार करके उसने भगवान राम के एक मन्दिर में बैठकर कथा आरम्भ कर दी। उसका भाव यह था कि कोई श्रोता आये, चाहे न आये, पर भगवान तो मेरी कथा सुनेंगे ही। 

   पण्डितजी की कथा में थोड़े-से श्रोता आने लगे। एक बहुत कंजूस सेठ था। एक दिन वह मन्दिर में आया। जब वह मन्दिर की परिक्रमा कर रहा था, तब उसको मन्दिर के भीतर से कुछ आवाज़ आयी। ऐसा लगा कि कोई दो व्यक्ति आपस में बात कर रहे है। सेठ ने कान लगाकर सुना। भगवान राम हनुमानजी से कह रहे थे कि इस गरीब ब्राह्मण के लिए सौ रुपयों का प्रबन्ध कर देना, जिस से कन्या दान ठीक हो जाय। हनुमानजी ने कहा - ठीक है महाराज ! इसके सौ रुपये पैदा हो जायेंगे। सेठ ने यह सुना तो वे कथा समाप्ति के बाद पण्डित जी से मिले और उनसे कहा कि महाराज ! कथा में रुपये पैदा हो रहे कि नहीं ? पण्डितजी बोले कि श्रोतालोग बहुत कम आते है, रुपये कैसे पैदा हो ? सेठ ने कहा मेरी एक शर्त है, कथा में जितना रूपया आये, वह मेरे को दे देना, मैं आपको पचास रुपये दे दूँगा। पण्डितजी ने शर्त स्वीकार कर ली। पण्डित जी ने सोचा लोग दे न दे पर सेठ जी से तो पचास रुपये मिल जायेंगे इस की गॉरंटी है। और उस समय पचास रुपये भी बहुत होते थे। और इधर सेठ लोभ के कारण पचास देकर सौ लेने की मानसा से शर्त रखी। भगवान की बाते सुनकर भी भक्ति की भवन नहीं जगी। सेवा के बजाय लोभी ही बना रहा। 

        कथा पूर्णाहुति होने पर सेठ पण्डितजी के पास आया। उसको आशा थी कि आज सौ रुपये भेंट में आये होंगे। पण्डितजी ने कहा कि भाई, आज भेंट बहुत थोड़ी ही आयी ! ये लो कहा कर भेट में आये रुपये सेठ को दे दिये। सेठ ने देखा भेंट के रूप में पाँच-सात रुपये आये है। सेठ बेचारा क्या करे ? वायदे के अनुसार पण्डितजी को पचास रुपये दे दिये। अब लेने के बदले देने पड़ गये। सेठ को हनुमानजी पर बहुत गुस्सा अाया कि उन्होंने पण्डितजी को सौ रुपये नहीं दिये और भगवान के सामने झूठ बोला ! सेठ मन्दिर में गया और हनुमानजी की मूर्ति पर घूँसा मारा। घूँसा मारते ही सेठ का हाथ मूर्ति से चिपक गया ! अब सेठ ने बहुत जोर लगाया, पर हाथ छूटा नहीं। जिसको हनुमानजी पकड़ ले, वह कैसे छूट सकता है ? सेठ को फिर आवाज़ सुनायी दी। उसने ध्यान से सुना। भगवान हनुमानजी से पूछ रहे थे कि तुमने ब्राह्मण को सौ रुपये दिलाये कि नहीं ? हनुमानजी ने कहा कि " महाराज ! पचास रुपये तो दिला दिये है, बाकी पचास रुपयों के लिये सेठ को पकड़ रखा है ! वह पचास रुपये देगा तो छोड़ देंगे।" सेठ ने सुना तो विचार किया कि मन्दिर में लोग आकर मेरे को देखेंगे तो बड़ी बेइज्जती होगी ! वह चल्लाकर बोला कि " हनुमानजी महाराज ! मेरे को छोड़ दो, मैं पचास रुपये दूंगा। " हनुमानजी ने सेठ का हाथ छोड़ दिया। सेठ ने जाकर पण्डितजी को पचास रुपये दे दिये। 

सीख - भक्ति भाव, सेवा भाव से सुख मिलता है। लोभ भावना दुःख देता है इस लिये लोभ से मुक्त हो सेवा भाव में रहो। 

      

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