Monday, September 1, 2014

Hindi Motivational Stories...................जब साधु राजा बना

जब साधु राजा बना


                 एक साधु गॉव से निकल कर शहर की तरफ जा रहा था चलते-चलते उसे बहुत देर हो गया शहर के पास पहुँचा तो शहर का दरवाजा बन्द हो गया था। रात ज्यादा हो गया था। साधु शहर के दरवाजे के बाहर  ही सो गया। और दैवयोग ऐसा था की उसी दिन उस राज्य का राजा का देह शान्त हो गया था उसे कोई संतान नहीं था। और राज्य के लोभ में परिवार और रिश्तेदार लड़ते रहे कोई कहता ये मेरे हक्क का है कोई कहता मेरा भी हक्का है।  अंत में एक निर्णय लिया गया की कल सुबह जो भी व्यक्ति पहले इस शहर में प्रवेश करेगा उसे ही इस राज्य का राजा बना दिया जायेगा। इस निर्णय से विवाद मिट गया।

         दूसरे दिन शहर का दरवाजा खुलते ही साधु अन्दर प्रवेश किया। बस फिर क्या था एक हाथी वह आया और साधु की गले में फूल माला डाल दिया। ये देखकर साधु आश्चर्य चकित हो गया वो समझ नहीं पा रहा था क्या हो रहा है। और तब कुछ सज्जन आये और साधु को सारी बात बता दी और फिर साधु को हाथी पर बिठाकर पुरे शहर में परिक्रमा करा दिया गया। और फिर उन्हें राज्य का राजा घोषित किया गया। साधु ने कहा ठीक है। लेकिन मुझे एक सन्दुक चाहिए। आज्ञा के अनुसार सन्दुक लाया गया। साधु ने अपने पोशाक, कमण्डल  सब उस सन्दुक में रख दिया और राजा का पोशाक पहनकर उस राज्य का राजा बन गया। और साधु भगवान का कार्य समझ राज्य का कार्य करने लगे।

       साधु को कोई लोभ नहीं था इस लिए राज्य का जो भी पैसा था उसे राज्य के विकास के लिए उपयोग किया और राज्य में काफ़ी सुधार होने लगा पहले से ज्यादा बढ़िया रीति से राज्य चलने लगा। फलस्वरूप राज्य की बहुत उन्नति हो गयी। आमदनी बहुत ज्यादा हो गयी। राज्य का खजाना भर गया। प्रजा सुखी हो गयी। राज्य की समृद्धि को देखकर पड़ोस के एक राजा ने विचार किया कि साधु राज्य तो करना जानते है, पर लड़ाई करना नहीं जानते ! इस लिए  उसने चढाई कर दी।

         राज्य के सैनिकों ने साधु को समाचार दिया की अमुक राजा ने चढाई कर दी है। साधु ने कहा करने दो हमें लड़ाई नहीं करनी है। थोड़ी देर में समाचार आया कि शत्रु की सेना नजदीक आ रही है। साधु बोले आने दो। और फिर समाचार मिला कि शत्रु की सेना पास में आ गयी है तो साधु ने आदमी भेजा और उस राजा को भुला लिया। साधु ने पूछा आप यहाँ किस मनसा से आये है राजन ! पडोसी राजा ने कहा राज्य लेने आये है ? साधु ने कहा राज्य लेने के लिए लड़ाई की जरुरत नहीं है। फिर एक सेवक को साधु ने कहा मेरा सन्दुक लाओ। सन्दुक आते ही साधु ने उसे खोला और पोशाक बदल कर हाथ में कमण्डल पकड़ लिए और कहा - " राजन इतने दिनों से मैंने इस राज्य की रोटी खायी, अब आप खाओ ! मैं तो इस लिए बैठा था की राज्य सम्भालनेवाला कोई नहीं था। अब आप आये हो तो संभालो व्यर्थ में मनुष्यों को क्यों मारे। "

सीख - इस कहानी का तात्पर्य यह नहीं की शत्रु की सेना आये तो उसको राज्य दे दो , लेकिन साधु की तरह जो काम सामने आ जाय , उसको भगवान का काम समझ कर निष्काम भाव से बढ़िया रीति से करो , अपना कोई आग्रह मत रखो।

         

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