Wednesday, September 17, 2014

Hindi Motivational Stories....... ..............सौ रुपये की एक बात

सौ रुपये की एक बात

एक सेठ था। वह बहुत ईमानदार तथा धार्मिक प्रवृत्तिवाला था। एक दिन उसके यहाँ एक बूढ़े पण्डितजी आये। उनको देखकर सेठ की उन पर श्रद्धा हो गयी। सेठने आदरपूर्वक उनको बैठाया और प्रार्थना की कि मेरे लाभ के लिये कोई बढ़िया बात बताये। पण्डितजी बोले कि बात तो बहुत बढ़िया बताऊँगा, पर उसके दाम लगेंगे ! एक बात के सौ रुपये लगेंगे। सेठ ने कहा कि आप बात बताओ, रुपये मैं दे दूँगा। पण्डितजी बोले - ' छोटा आदमी यदि बड़ा हो जाय तो उसको बड़ा ही मानना चाहिये, छोटा नहीं। ' सेठ ने मुनीम से पण्डित जी को सौ रुपये देने के लिये कहा। मुनीम ने सौ रुपये दे दिये। सेठ ने कहा - और कोई बात बताये। पण्डितजी बोले - 'दूसरे के दोष को प्रगट नहीं करना चाहिये। 'मुनीम ने सौ रुपये दे दिये  सेठ ने कहा और कोई बात , पण्डितजी  - '  जो काम नौकरो से हो जाय, उसको करने में अपना समय नहीं लगाना चाहिये। ' मुनीम ने इस का भी सौ रुपये दिये सेठ ने कहा एक और बात सुना दो , पण्डितजी ने कहा - ' जहाँ एक बार मन हट जाय, वहाँ फिर नहीं रहना चाहिये। ' मुनीम ने इस के भी सौ रुपये दिये। पण्डितजी चले गये। सेठ चारों बातें याद कर ली और उनको घर में तथा दुकान में कई जगह लिखवा दिया।

कुछ समय के बाद सेठ के व्यपार में घाटा लगना शुरू हो गया। घाटा लगते-लगते ऐसी परिस्तिथि आयी कि सेठ को शहर छोड़कर दूसरी जगह जाना पड़ा। साथ में मुनीम भी था। चलते-चलते वे एक शहर के पास पहुँचे। सेठ ने मुनीम को शहर में कुछ खाने-पीने का सामान लाने के लिये भेजा। देवयोग से उस शहर के राजा की मृत्यु हो गयी थी। उसकी कोई संतान नहीं थी। लोगो ने ये निश्चय किया था। जो भी व्यक्ति उस दिन उस शहर में सब से पहला प्रवेश करेगा उसे राजा बना दिया जायेगा। और जैसे ही मुनीम उस शहर में पहुँचा तो लोगो ने उसे हाथी पर बैठाकर धूमधाम से महल में ले गये और राजसिंहासन पर बैठा दिया।

इधर सेठ मुनीम के लौटने की प्रतीक्षा कर रहा था। जब बहुत देर हो गयी, तब सेठ मुनीम का पता लगाने के लिये खुद शहर में गया। शहर में जाने पर सेठ को पता लगा कि मुनीम तो यहाँ का राजा बन गया है। सेठ महल में जाकर उससे मिला। राजा बने हुवे मुनीम ने सेठ को सारी कहानी बता दी। तब सेठ को पण्डितजी की बात याद आ गयी। 'छोटा आदमी बड़ा हो जाय तो उसे बड़ा ही समझना चाहिये। ' सेठ ने राजा को प्रणाम किया। राजाने उसको मन्त्री बनाकर अपने पास रख लिया।

राजा के घुड़्सलका जो अध्यक्ष था, उसका रानी के साथ अनैतिक सम्बन्ध था। सेठजी को इस बात का पता चला सेठ ने देखा वे दोनों एक साथ बैठ कर बाते कर रहे है। सेठ को पण्डितजी बात याद आयी। 'दूसरे के दोष को प्रगट नहीं करना है। ' सेठ के पास् शाल थी उसे उसने  रस्सी पर डाल दिया ताकि दूसरा कोई न देखे पर जब रानी वहाँ से लौट रही थी तो रस्सी पर शाल देख कर उसको शंका हुआ और उसने पता लगाया ये शाल किस का है। रानी को पता चला की ये शाल सेठ का है। तो रानी ने सोचा मेरी बात राजा तक ना बता दे इस डर से वह राजा के पास गयी और सेठ के खिलाफ रानी ने उलटी सुल्टी बाते बताकर बोली आज मन्त्री की नीयत ठीक नहीं थी। उसने मेरे साथ बुरा व्यवहार करना चाहा पर मैंने जब चिल्लाया तो मन्त्री वहाँ से चला गया लेकिन मैंने ये उसकी शाल चीन ली देखो। राजा को रानी की बात लग गयी उसने तुरन्त निर्णय ले लिए मन्त्री को मार डालने की। और राजा ने मॉस वाले को बता दिया की कल जो भी मेरी चिट्टी लेकर आयेगा उसे मार देना।

राजा ने दूसरे दिन मन्त्री को भुलाया और कहा ये चिट्टी लो और मॉस लेकर आओ। सेठ तो ब्राह्मण था वह मॉस को छूता तक नहीं। सेठ को फिर पण्डितजी बात याद आयी - जो काम नौकरो से हो जाये उसको करने में समय नहीं गवाना है। इस लिए सेठ मॉस लाने के लिए एक नौकर को भेज दिया और इधर राजा को अपने गुप्तचरों द्वारा मालूम हुआ की रानी की ही गलती थी। और उसका घुड़्सलका से तालुकात है। तब राजा को बहुत पश्चताप हुआ की उसने गलती से अपने ईमानदार सेठ को मार दिया। और बाद में राजा को इस बात का पता लगा की सेठ जिन्दा है तो वह झट सेठ से मिलने आये और माफ़ी माँगी और पुनः मन्त्री पद संभालने को कहा। पर सेठ ने उन्हें पण्डितजी की बात याद दिलायी और कहा में तो पण्डितजी की बातो  के अनुसार चलता हूँ उनकी वजह से मेरे प्राण बच गए। पण्डितजी ने ये भी कहा था। 'जब कही से दिल हट जाय तो वहाँ फिर नहीं रहना चाहिये। ' इस लिए मैं यहाँ से जा रहा हूँ।

सीख - जीवन में ज्ञान की बातो को धारण करने से फायदा ही होता है। इसलिये परमात्मा की राय को समझों और अपने जीवन को अनमोल बना दो। 

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