Tuesday, September 9, 2014

Hindi Motivational Stories......................................आशीर्वाद

आशीर्वाद  

एक जंगल में एक शिकारी जा रहा था। और उसी रस्ते में एक घोड़े पर सवार राजकुमार उस से मिला और दोनों साथ चल दिए। कुछ समय के बाद आगे उन्हें एक तपस्वी और एक साधु मिले। वे दोनों भी इनके साथ मिलकर चलने लगे। अब ये चारों ही उस जंगल से जा रहे थे। आगे उनको एक कुटिया दिखायी दी। उस में एक बूढ़े बाबा जी बैठे थे। चारों आदमी कुटिया के भीतर गये और बाबाजी को प्रणाम किया। बाबाजी उन चारों को चार आशीर्वाद दिये। पहला राजकुमार से कहा -' राजपुत्र ! चिरंजीव रहो। ' दूसरा तपस्वी से कहा - ' ऋषिपुत्र ! तुम मत जीओ। ' तीसरा साधु से कहा - ' तुम चाहे जीओ या मरो, जैसी तुम्हारी मरजी !' चौथा शिकारी से कहा -'तुम न जीओ न मरो। ' बाबाजी इस तरह आशीर्वाद देकर चुप हो गये।

अब चारों आदमियों को बाबा जी का आशीर्वाद समझ में नहीं आया। तब सब ने प्रार्थना कि कि बाबा जी कृपा करके अपने आशीर्वाद का भावर्थ समझाये। बाबा जी बोले १. -' राजा को नरक में जाना पड़ता है। मनुष्य पहले तप करता है, तप के प्रभाव से राजा बनता है और फिर मरकर नरक में जाता है। कहा गया है -"तपेश्वरी राजेश्वरी, राजेश्वरी नरकेश्वरी "  इस लिये मैंने राजकुमार को सदा जीते रहने का आशीर्वाद दिया। जीता रहेगा तो सुख पायेगा। २. तपस्या करनेवाला जीता रहेगा तो तप करके शरीर को कष्ट देता रहेगा। वह मर जायेगा तो तपस्या के प्रभाव से स्वर्ग में जायेगा या राजा बनेगा। इसलिये उसको मर जाने का आशीर्वाद दिया। जिस से वह सुख पाये। ३. साधु जीता रहेगा तो भजन-स्मरण करेगा , दुसरो का उपकार करेगा और मर जायेगा तो भगवान के धाम में जायेगा। वह जीता रहे तो भी आनन्द है, मर जाय तो भी आनन्द है। इस लिये मैंने उसको आशीर्वाद दिया कि तुम जीओ, चाहे मरो, तुम्हारी मरजी। ४. शिकारी दिन भर जीवों को मारता है। वह जीयेगा तो जीवों को मारेगा और मरेगा तो नरक में जायेगा। इस लिए मैंने कहा कि तुम न जीओ, न मरो।

मनुष्य को अपना जीवन ऐसा बनाना चाहिये कि जीते भी मौज रहे और मरने पर भी मौज रहे ! साधु बनना है, पर साधु का वेश धारण करने की जरुरत नहीं। गृहस्थ में रहते हुए भी मनुष्य साधु बन सकता है। भगवान का भजन-स्मरण करे और दूसरों की सेवा करे तो यहाँ भी आनन्द है और वहाँ भी आनन्द है। दोनों हाथों में लड्डू है।कबीर जी ने कहा है -

राजपुत्र चिरंजीव मा     जीव ऋषिपुत्रक : ।
जीव वा मर वा साधु व्याध  मा जीव मा मर : ।।

सब  जग डरपे मरण से,    मेरे मरण आनन्द। 
कब मारिये कब भेटिये,     पूरण परमानन्द।। 

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