Wednesday, April 30, 2014

Hindi Motivational Stories - " सत्यता की जीत "

सत्यता की जीत 

         एक बार एक काफिला कहीं जा रहा था। उस काफिले में एक बालक था जिसका नाम था - विवेक। चलते चलते रस्ते में उस काफिले को लुटेरों ने घेर लिया। लुटेरे सब की तलाशी ले रहे थे ,छीन रहे थे ,लूट रहे थे। एक डाकू ने विवेक से पूछा - 'तेरे पास तो कुछ नहीं है रे.… ? क्यों नहीं है ?मेरे पास चालिस मुहरें है। विवेक ने कहा। कहाँ है ? मेरी सदरी में - सदरी में किधर ? अन्दर सिल राखी है मेरी माँ ने। और उसके बाद दूसरा डाकू पास आ गया। उसने भी वाही सवाल किया दोनों को उसने यही बात, इसी प्रकार बतायी। डाकुओ का सरदार भी उनके पास आ गया। लड़के ने तब भी यही कहा। सरदार ने अपने साथियों को आदेश दिया कि बालक की सदरी फाड़कर मुहरें निकाल कर देखों यह सच बोलता है या झूठ।

         सदरी फाड़ दी गई। चालिस मुहरें निकली। डाकू सरदार आश्चर्य से बालक का मुँह देखने लगा। उसने बालक से पूछा - तुमने हमें क्यों बताया था कि तुम्हारे पास चालिस मुहरे है! झूठ बोलकर बचा भी सकते थे। जी नहीं, बालक ने कहा - मेरी माँ ने चलते समय कहा था कि मैं किसी भी परिस्थिति में झूठ नहीं बोलूँ। मैं अपनी माँ की आज्ञा को नहीं टाल सकता। डाकू सरदार बालक का मुख देखता रहा गया। वह लज्जित  हो गया। उसने कहा - सच मुच तुम बड़े महान हो बालक ! अपनी माँ की आज्ञा का तुम्हें इतना ध्यान है जब की मैं तो खुदा के हुक्म को भी भुला बैठा हूँ, तुमने मेरी आंखें खोल दी है। और उस बालक ने उस डाकू की आँखों खोल दी उसी दिन से उसने डाके और लूट छोड़ दी और एक अच्छा आदमी बन गया। उसने बालक से ही प्रेरणा ग्रहण की। यह सत्य का प्रभाव था। सत्य की शक्ति थी। सत्य का तेज था।

सीख - इस तरह की कहानी अच्छी भी लगती है और सुनकर पढ़कर ख़ुशी होती है। तो क्यों न हम भी इस एक गुण सत्य को अपनाये और सत्य का तेज जीवन में अनुभव करे। अब इस झूठ की दुनिया में एक बार फिर सत्य का प्रकाश फैलाए।

Tuesday, April 29, 2014

Hindi Motivational Stories - " सेवा का फल - मेवा "

सेवा का फल - मेवा

            एक बार एक महात्मा जी निर्जन वन में भगवद्चिंतन के लिए जा रहे थे। तो उन्हें एक व्यक्ति ने रोक लिया। वह व्यक्ति अत्यंत गरीब था। बड़ी मुश्किल से दो वक्त की रोटी जुटा पाता था। उस व्यक्ति ने महात्मा से कहा - महात्मा जी, आप परमात्मा को जानते है, उनसे बातें करते है। अब यदि परमात्मा से मिले तो उनसे कहियेगा कि मुझे सारी उम्र में जितनी दौलत मिलनी है , कृपया वह एक साथ ही मिल जाये ताकि कुछ दिन तो चैन से जी सकूँ। महात्मा ने उसे समझाया - मैं तुम्हारी दुःख भरी कहानी परमात्मा को सुनाऊंगा लेकिन तुम जरा खुद भी सोचो, यदि भाग्य की सारी दौलत एक साथ मिल जायेगी तो आगे की ज़िन्दगी कैसे गुजारोगे ? किन्तु वह व्यक्ति अपनी बात पर अडिग रहा। महात्मा उस व्यक्ति को आशा दिलाते हुए आगे बढ़ा।

     इन्हीं दिनों में उसे ईश्वरीय ज्ञान मिल चूका था। महात्मा जी ने उस व्यक्ति के लिए अर्जी डाली। परमात्मा की कृपा से कुछ दिनों बाद उस व्यक्ति को काफी धन - दौलत मिल गई। जब धन -दौलत मिल गई तो उसने सोचा - मैंने अब तक गरीबी के दिन काटे है, ईश्वरीय सेवा कुछ भी नहीं कर पाया।  अब मुझे भाग्य की सारी दौलत एक साथ मिली है। क्यों न इसे ईश्वरीय सेवा में लगाऊँ क्यों की इसके बाद मुझे दौलत मिलने वाली नहीं। ऐसा सोचकर उसने लग भग सारी दौलत ईश्वरीय सेवा में लगा दी।

     समय गुजरता गया। लगभग दो वर्ष पश्चात् महात्मा जी उधर से गुजरे तो उन्हें उस व्यक्ति की याद आयी। महात्मा जी सोचने लगे - वह व्यक्ति जरूर आर्थिक तंगी में होगा क्यों की उसने सारी दौलत एक साथ पायी थी। और कुछ भी उसे प्राप्त होगा नहीं।  यह सोचते -सोचते महात्मा जी उसके घर के सामने पहुँचे। लेकिन यह  क्या ! झोपड़ी की जगह महल खड़ा था ! जैसे ही उस व्यक्ति की नज़र महात्मा जी पर पड़ी, महात्मा जी उसका वैभव देखकर आश्चर्य चकित हो गए। भाग्य की सारी दौलत कैसे बढ़ गई ? वह व्यक्ति नम्रता से बोला, महात्माजी, मुझे जो दौलत मिली थी, वह मैंने चन्द दिनों में ही ईश्वरीय सेवा में लगा दी थी। उसके बाद दौलत कहाँ से आई - मैं नहीं जनता। इसका जवाब तो परमात्मा ही दे सकता है।

   महात्मा जी वहाँ से चले गये। और एक विशेष स्थान पर पहुँच कर ध्यान मग्न हुए। उन्होंने परमात्मा से पूछा - यह सब कैसे हुआ ? महात्मा जी को आवाज़ सुनाई दी।

किसी की चोर ले जाये , किसी की आग जलाये 
धन उसी का सफल हो जो ईश्वर अर्थ लगाये। 

सीख - जो व्यक्ति जितना कमाता है उस में का कुछ हिस्सा अगर ईश्वरीय सेवा  कार्य में लगता है तो उस का फल अवश्य मिलता है। इसलिए कहा गया है सेवा का फल तो मेवा है। 

Monday, April 28, 2014

Hindi Motivational Stories - " सम्बन्धों से स्नेह होता है "

सम्बन्धों से स्नेह होता है 

    एक नव- विवाहित वर और वधू गाड़ी में यात्रा कर रहे थे। रस्ते में उनके साथ उनके पिताजी को भी शामिल होकर आगे की यात्रा करनी थी। जब गाड़ी उस स्टेशन पर आई तो वर का पिता भी वहाँ प्लेटफार्म पर आया हुआ था। गाड़ी रुकते ही वर तो सुराही लेकर पानी भरने चला गया। उसका पिता उस डिब्बे को ढूंढ रहा था जहाँ उसका बेटा और उसकी बहू बैठे थे। उसे बेटा तो दिखाई दिया नहीं तथा गाड़ी चलने का समय भी नजदीक आता जा रहा था, इसलिए उसने एक डिब्बे में धुसपैठ करने की कोशिश की। अब जहा बहू बैठी थी ठीक  उसी डिब्बे में  पिताजी गये। अब बात ये थी की ना बहू उन्हें जनती थी और ना ही ससुर बहु को जनते थे। और बहू तो घुँघट करती थी। और पहचान न होने के कारण बहू ने उस वृद्ध व्यक्ति को अन्दर प्रवेश नहीं करने दिया। डिब्बे के भीतर से दरवाजे की चिटखनी बन्द करते हुए वह कड़क कर बोली - यह बूढ़ा घुसता चला आ रहा है, इसे दीखता नहीं है कि यहाँ पहले ही जगह नहीं है जा दूसरे डिब्बे में कहीं घुस जा। बूढ़ा भी उस नारी के कटु शब्द सुनकर अशान्त हुआ। वह बोला - मालूम नहीं, यह किस मुर्ख की बहू है, यह तो बोलना ही नहीं जानती।

           इस प्रकार कहासुनी हो रही थी कि इतने में बेटा (वर ) पानी की सुराही भर कर आ पहुँचा। अपने पिता को देख कर वह उनके सामने झुका और उसने नमस्कार किया और झगड़ा देखकर दुःखी भी हुआ और शर्मिन्दा भी। उसने अपनी पत्नी से कहा - जानती नहीं हो यह मेरे पिताजी, अथार्त तुम्हारे ससुर साहब है....…। ओहो, तुमने इन्हें बैठने के लिए न कर दी ! यह तो बहुत पाप कर दिया है..  तब बेटे ने पिता से क्षमा माँगी और उस बहू ने भी पश्चाताप प्रगट किया। वृद्ध महोदय भीतर बैठ गये, अब उनके लिये जगह भी बन गयी थी। वह झगड़ा भी निपट गया तथा अब शान्ति, सम्मान और प्रेम की बाते होने लगी क्यों की अब सम्बन्धों का ज्ञान हो गया था।

सीख -  अज्ञान में मनुष्य दुःखी होता है। और ज्ञान से मनुष्य सुख का अनुभव करता है। इसलिए ज्ञानवान बनो। 

Hindi Motivational Stories - " प्रभु स्नेह ! सर्व दुःखो से छूटकारा "

प्रभु स्नेह ! सर्व दुःखो से छूटकारा 

      शंकराचर्य घर-बार छोड़ कर धर्म का प्रचार करना चाहते थे। परन्तु उनकी माँ उनके इस प्रस्ताव को स्वीकार नहीं करती थी। शंकराचर्य ने आखिर एक युक्ति सोची। वह एक बार अपनी माँ के साथ नहाने नदी पर गये। कपड़े किनारे पर रखकर शंकराचर्य ने माँ को किनारे पर बैठने को कहा। और अचानक ही नहाते-नहाते शंकराचर्य जोर-जोर से चिल्लाने लगे। माँ - माँ। . ओ मैं मरा ! मगरमच्छ ने मेरा पॉव पकड़ लिया ! रे कोई बचाओ … बचाओ …  इधर माँ घबरा गयी और हाय-हल्ला करने लगी। शंकराचर्य ने कहा - माँ, एक भगवान ही बचा सकते है वरना आज मैं मरा, हाय मरा , अरे मगरमच्छ, माँ मैं तो मरा …कह दो मैंने अपना बच्चा भगवान को दिया। जल्दी कह दो माँ, एक सर्वशक्तिवान भगवान ही गज को ग्रह से बचाने की भाँति मुझे बचा सकते है … हाय.… मरा जल्दी करो माँ.…. . । जल्दी के कारण माँ ने कुछ सोचा नहीं गया। उसे तो बच्चे का जीवन प्यारा था उसने तुरन्त कह दिया - मैंने यह बच्चा भगवान को दिया। फिर वह कहने लगी - बचाओ भगवान बचाओ ! अब यह आप की शरण में है, यह आप ही का बच्चा है।

    शंकराचर्य तट की ओर बढ़ने लगे। माँ ने सोचा कि शायद मगरमच्छ ढीला छोड़ता जा रहा है। उसकी आशा बंध गयी। वह फिर दोहराने लगी - बचाओ भगवान् ! हे प्रभु बचाओ, यह आप का ही बच्चा है, इसे मैंने आपके शरण में सौपा है। इस तरह शंकराचर्य तट पर आ पहुँचे और बोले - माँ, तूने अच्छा किया, मुझे भगवान् के हवाले कर दिया, वर्ना तो आज बचने की कोई आशा नहीं थी। तूने बचा लिया मुझे, माँ.… …। माँ बोली - मैंने नहीं, भगवान् ने तुजे बचाया है शंकर, इस बात को कभी मत भूलना। शंकराचर्य बोले - ठीक कहती हो माँ ! तो अब से मेरा यह जीवन भगवान के ही हवाले है तुमने तो उसे सौप दिया था न, माँ ? उसी ने बचाया है न मुझे ? माँ ने अब समझा कि शंकराचर्य किस अर्थ में उसे यह कह रहा है। धार्मिक स्वाभाव की और श्रदालु माता होने के कारण उसने कह दिया - हाँ, हो तो तुम भगवान के ही। परन्तु क्या मुझे छोड़ जाओगे ? तब शंकराचर्य ने कहा - माँ, मैं छोड़ने की भावना से नहीं जा रहा, धर्म का प्रचार करने जा रहा हूँ, जिस भगवान ने मुझे बचाया है, नया जीवन दिया है, उसकी महिमा करने जा रहा हूँ।

सीख - धर्म का प्रचार या भगवान की महिमा करने के लिए घर वालों को राजी कर या स्वीकृती लेकर आगे निकालना है। 

Sunday, April 27, 2014

Hindi Motivational Stories - " युक्ति से मुक्ति "

युक्ति से मुक्ति 

         एक बार पागलखाने में से एक पागल किसी तरह अपने कमरे से बाहर निकल गया  तीसरी मंजिल के कमरों के बाहर छत का जो हिस्सा थोड़ा बाहर निकला था, उस छज्जे पर जा खड़ा हुआ। और कुछ समय के बाद अचानक हस्पताल के  वार्डन ने जब देखा कि वह पागल अपने कमरे में नहीं है तो उसे ढूँढते - ढूँढते उसका ध्यान तीसरी मंजिल के बाहर की छज्जे पर गया। उसने सोचा कि अगर वह रोगी वहाँ से छलाँग लगा देगा या पागलपन में इस पर बेपरवाही से घूमेगा तो यह मर जायेगा। इस लिये कुछ अधिक सोचे बिना वह भागा और स्वयं भी वहाँ छज्जे पर जा पहुँचा। वहाँ पहुँचा कर उसने पागल से कहा - सुनाओ भाई, क्या हालचाल है ? यहाँ क्या कर रहे हो ? पागल बड़ी मस्ती से बोला - सोच रहा था कि जैसे पंक्षी पंख फैला कर उड़ते हुए नीचे उतरता है , मैं भी आज पंक्षी की तरह फर्श पर उतरूँ। ऐसा कहते हुए पागल ने मुँह को नीचे की ओर झुकाया और अपनी दोनों भुजाओं तथा हथेलियों को पीठ के पीछे ले जाकर पंख की तरह रूप दिया।

        वार्डन डर गया और चौका! उसने पागल को एक हाथ से तो थपथपाया और दूसरे हाथ से उसके हाथ को पकड़ लिया ताकि वह कहीं नीचे छलाँग न लगा दे। परन्तु उसने देखा कि पागल में बल बहुत है और वह उसे पकड़ कर रोक नहीं सकेगा। उसे यह भी डर था कि अगर वह पागल को जबरदस्ती रोकेगा तो पागल कहीं उसे ही नीचे धक्का न दे दे। परन्तु कुछ ही क्षण में कुछ हो जाने वाला था, इसलिये जल्दी ही कुछ करना था।

      अचानक वार्डन को एक युक्ति सूझी। उसने मुस्कुराते हुए और दोस्ताना तरीके से पागल को कहा - वाह भाई वाह, आप जो करना चाहते हो वह कोई बड़ी बात तो है नहीं। आप तो कोई बड़ा काम करके दिखाओ। और, मुझे विश्वास है कि आप विशेष काम कर सकते है। पागल ने कहा - अच्छा, सुनाओ दोस्त, अगर यह बड़ा काम नहीं है तो और क्या चाहते हो ? तब वार्डन ने कहा - ऊपर से नीचे तो कोई भी जा सकता है पर फर्श से अर्श की ओर एक पंक्षी की तरह उड़ कर दिखाओ। और पंख तो आपको लगे हुए है। चलो आओ, हम दोनों एक-साथ नीचे से ऊपर की ओर उड़ेंगे। यह कहते हुए वह पागल की अंगुली प्यार से पकड़ते हुए उसे कमरे के रस्ते से नीचे ले चला। इस प्रकार उसने पागल की भी जान बचाई और अपना कर्तव्य भी निभाया। अगर वह पागल से जोर-जबरदस्ती या हाथापाई करता तो दोनों ही धड़ाम से धराशायी होते। तो सच है कि युक्ति से ही दोनों की (मौत के मुँह से ) मुक्ति हुई।

सीख - बहुत बार हम बुरे फस जाते या परस्तिथी अनुकूल नहीं होती है। तब युक्ति से ही छुटकारा प् सकते है इस लिये युक्ति से मुक्ति कहा गया है। 

Hindi Motivational Stories - " व्यक्ति की पहचान, बोल "

व्यक्ति की पहचान, बोल 

            एक बार एक जंगल में राजा, मंत्री और दरबान रास्ता भूल गये। तीनों ही एक दूसरे से बिछड़ गये थे। राजा इधर उधर देखता हुआ एक पेड़ के पास आया और उस पेड़ के नीचे एक फ़क़ीर को  बैठा हुआ देखा। (जो की अन्धा था ) राजा ने फ़क़ीर से पूछा हे प्रज्ञाचक्षु क्या यह रास्ता नगर की तरफ जायेगा ? हाँ राजन, यह रास्ता नगर की तरह जायेगा। और थोड़ी देर बाद मंत्री उसी जगह पर आया और फ़क़ीर से पूछा हे सूरदास क्या यह रास्ता नगर की ओर जायेगा। हाँ मंत्रीजी नगर की ओर ही जायेगा। और अभी अभी राजा जी इसी रास्ते से गये है। उसके बाद दरबान आता है और रोब से पूछता है अबे औ अन्धे, क्या यहाँ से कोई आगे गया है ? हाँ दरबान जी यहाँ से राजा और मंत्री जी आगे गये है। आगे जाने पर थोड़ी दूरी पर राजा, मंत्री और दरबान तीनों इकट्ठे मिल जाते है। और हरेक उस अन्धे फ़क़ीर के साथ हुई बात के बारे में एक-दूसरे को बताया। बिना आँखों के उसने कैसे पहचान लिया कि कौन राजा,कौन मंत्री, तथा कौन दरबान ? तब तीनों मिलकर फ़क़ीर के पास गये और अपना प्रश्न पूछा। तब फ़क़ीर ने कहा आप तीनों को वाणी तथा शब्दों से मैंने पहचान लिया कि कौन कौन है ? 'प्रज्ञाचक्षु' जैसा कर्ण मधुर शब्द राजा के मुख पर ही हो सकता है। सूरदास इतना मधुर नहीं तो इतना कठोर भी नहीं इसलिए मंत्री हो सकता है और अन्धे के सम्बोधन से तथा रोब से दरबान जी भी तुरन्त पहचाने गये।

     नाक, कान, हाथ-पाँव पर से मनुष्य जीतनी जल्दी नहीं पहचाना जा सकता लेकिन भाषा व्यक्ति की परख देती है। इस लिए किसी ने कहा है -

         वाणी ऐसी बोलिये, मन का आपा खोय। 
      औरों को शीतल कर, आपे ही शीतल होय।।

सीख - हर व्यक्ति से मीठा व्यव्हार रखो मीठा बोलो बोल ही हमारे सच्ची पहचान है। 

Hindi Motivational Stories - ' उन्नति में विघ्न रूप ईर्ष्या '

उन्नति में विघ्न रूप ईर्ष्या 

किसी मोहल्ले में कुछ बच्चे छोटे छोटे शीशे के मर्तबान लेकर बैठे थे। सभी मर्तबानों पर ढक्कन भी लगा हुआ था और हरेक बच्चे ने अपने-अपने मर्तबान में कोई-न- कोई छोटा मोटा जन्तु, कीड़ा, मच्छर कैद कर रखा था। वे देख रहे थे कि किस प्रकार ये जन्तु उछाल-उछाल कर मर्तबान से बाहर निकलने की कोशिश करते थे परन्तु ढक्कन बन्द होने के कारण निकल नहीं पाते थे। ज्यों ही वे जरा सा ढक्कन ऊपर करते, तत्क्षण ही वे उछाल कर बाहर निकल आते और वे बच्चे फिर उसे पकड़ कर अन्दर बन्द कर देते।  इस प्रकार ये बच्चे खेल में मस्त थे।

        परन्तु इन्हीं बच्चों के साथ एक बच्चा ऐसा भी था जिसके पास मर्तबान तो थे पर उसका ढक्कन नहीं था उसके मर्तबान में दो केकड़े थे। केकड़े मर्तबान के बीच में उछलते भी थे परन्तु ढक्कन न होने पर भी उस मर्तबान से बाहर नहीं आ पाते थे। सभी बच्चे इस दृश्य को देख हैरान हो रहे थे। वे सोच रहे थे कि उनके मर्तबान का ज्यों ही ढक्कन उठता है, तो मर्तबान में पड़ा जन्तु फ़ौरन उछाल कर बाहर आ जाता है परन्तु इसके मर्तबान पर तो ढक्कन भी नहीं है। फिर भी इसके केकड़े बाहर क्यों नहीं आ रहे। वे आपस में खुसर-पुसर करने लगे और कहने लगे कि ये केकड़े जरूर कमजोर होंगे तभी तो ढक्कन खुला होने पर भी ये बाहर नहीं आ रहे है। आखिर उन में से एक बच्चे ने उस बच्चे से पूछ ही लिया - क्या तुम्हारे ये केकड़े कमजोर है जो मर्तबान पर ढक्कन न लगा होने पर भी ये उससे बाहर नहीं आ पाते ? उसने जवाब दिया - अरे नहीं, ये तो बहुत बलवान है। परन्तु इनके बाहर न आ पाने का भी एक राज है। वह क्या राज है ? सभी बच्चे एक आवाज़ में बोल उठे। उसने कहा - बात यह है कि ये दोनों केकड़े एक दूसरे से बढ़कर कर ताकतवर है। परन्तु जब एक बाहर निकलने के लिए उछलता है तो दूसरा केकड़ा उसकी टाँग खीच लेता है और जब दूसरा केकड़ा छलाँग लगता है तो पहला उसकी टाँग खींच लेता है। और इस प्रकार दोनों ही एक दूसरे की टाँग खींचते रहते है और दोनों में से कोई भी बाहर नहीं आ पाता।

      इस राज को सुनकर सभी खिलखिला कर हँस पड़े। ठीक ऐसी ही हालत आज के संसार की है। इस संसार में कई मनुष्य ऐसे है जिन्हें आगे बढ़ने का मौका ही नहीं मिलता मानो कि उनका ढक्कन बन्द है। अगर उन्हें मौका मिले तो वे बहुत जल्दी ही उन्नति कर सकते है परन्तु चाहे कोई भी वजह हो, उन्हें मौका नहीं मिलता है, वे उसके लिए प्रयास भी करते है परन्तु कुछ अन्य ईर्ष्यालु व्यक्ति उनकी टाँग खींच लेते है याने उनके प्रयास में वे कोई- न -कोई विघ्न डाल देते है। इससे न वे खुद आगे बढ़ पाते है न औरों को ही बढ़ने देते है। 

सीख - इस कहानी से यही सीख मिलता है कि हमें एक दूसरे से ईर्ष्या नहीं करना है एक दूसरे को आगे बढ़ने के लिए मदत करना है और हर एक की विशेषता को देख उन्हें उस अनुसार मौका देना है। तभी हम भी उन्नति की और बढ़ सकते है।