Saturday, May 31, 2014

Hindi Motivational Stories ......ऐसा भी होता है

ऐसा भी होता है

           एक राजा बहुत दानी था। मरने के बाद जब धर्मराज के समाने गया तो चित्रगुप्त ने बताया कि राजा के खाते में लाखों मछलियाँ मारने का पाप लिखा है। राजा ने कहा मैं तो शाकाहारी था और मैंने कभी मछली को हाथ भी नहीं लगाया। तब चित्रगुप्त ने बताया कि आपके राज्य के एक मछुवारे ने आपके दान के पैसों से मछली पकड़ने वाले जाल की नई जाली खरीदी थी। परिणाम स्वरूप आपके खाते में दान - पुण्य जमा नहीं हुआ बल्कि पाप का खाता ही बढ़ गया। इस तरह से सेवा और जमा खाते  फर्क रह जाता है उसे समझा जा सकता है। मतलब दान हमेशा सुपात्र को दें।

सीख - दान भी सोच समझ करना है। 

Thursday, May 29, 2014

Hindi Motivational Stories - तुलना से असन्तोष

तुलना से असन्तोष 

       एक बार एक मालिक ने १०० रुपये प्रतिदिन के हिसाब से ४ मजदूरों को काम पर लगाया जो सुबह ८ बजे काम पर आते थे और सायंकाल ५ बजे जाते थे। प्रतिदिन दोपहर एक घण्टे की छुट्टी मिलती थी। ये मजदुर नौकरी पाकर खुश थे और बड़ी सन्तुष्टता के साथ कार्य कर रहे थे। कुछ दिन के बाद मालिक ने ४ और मजदूरों को काम पर लगाया जो दोपहर १२ बजे काम पर आते थे और सायं ५ बजे जाते थे। उन्हें भी प्रतिदिन १०० रुपये ही मिलते थे। सुबह आने वाले मजदूरों ने एक-दो दिन तो यह सब देखा फिर उनमें कानाफूसी शुरु हो गयी कि हम ८ घण्टे काम करके भी १०० ही रुपये प्राप्त करते है और ये मजदुर केवल ५ घण्टा काम करते है परन्तु पाते है पुरे १०० रुपये। ऐसा क्यों ?

        धीरे-धीरे यह कानाफूसी जोर पकड़ती गयी। वे अपना काम करते-करते भी बीच-बीच में उन दूसरे मजदूरों को देखने लगे और काम से उनका ध्यान हटने लगा, असंतोष जीवन में छाने लगी, एकाग्रता भंग हो गयी और उनके कार्य में अनेक प्रकार की त्रुटियाँ निकलने लगी। पहले जिनके कार्य की सर्वत्र प्रशंसा हो रही थी, अब उन्ही के कार्य को असंतोषजनक कहा जाने लगा। इस असन्तोष का कारण है तुलना। जब तक तुलना नहीं कि किसी के साथ, पहले वाले मजदुर धन्य थे परन्तु दूसरे मजदूरों से तुलना करके, अपने पलड़े को हल्का पाकर उनके  श्रम में कमी हो गयी और परिश्रम भी कम नज़र आने लगा।

 सीख -  ऐसा ही आज मानव जीवन में भी हो रहा है। व्यक्ति के पास कोई कमी नहीं है परन्तु दूसरे से तुलना करने पर कई कमियाँ निकल ही आती है! तुलना करने के बजाये यदि दूसरे की भौतिक प्राप्तियों को तूल (महत्व ) ना दिया जाये तो इस समस्या का समाधान हो सकता है।




Wednesday, May 28, 2014

Hindi Motivational Stories ....... माँ का वात्सल्य


माँ का वात्सल्य 

            एक बार एक व्यापारी दो घोड़ियों को लेकर राजा के दरबार में उपस्थित हुआ और नम्रतापूर्वक राजा से निवेदन करने लगा कि अपके दरबार में एक से एक ज्ञानी है, क्या उन में से कोई भी यह बता सकता है कि इन दोनों घोड़ियों में से माँ कौन है और बेटी कौन है। राजा के लिए यह चुनौती भरा प्रश्न तो था ही, साथ ही दरबार की प्रतिष्ठा का भी सवाल था। सोच विचार कर राजा मन्त्री को इस रहस्य से पर्दा उठाने का भार सौप दिया।

     दरबार की समाप्ति पर उदास चेहरे के साथ मंत्री जब घर लौटा तो उनकी बुद्धिमान पुत्र वधु विशाखा ने उदासी का कारण जानना चाहा। मंत्री जी पहले तो टालते रहे परन्तु बाद में विशाखा के स्नेह भरे आग्रह के आगे नत मस्तक हो गये और सारी बात उसे बता दी। वह सुशील नारी इस छोटी-सी बात को सुनकर मुस्करा दी और कहा - पिता जी, यह तो बहुत आसान काम है। मंत्री जी ने उसके समाधान सूचक चेहरे को पढ़कर धिरे से पूछा - कैसे बेटी ?

    विशाखा ने कहा - पिता जी, दोनों घोड़ियों को अलग-अलग पात्र में दान डाल देना, जो माँ होगी वह धिरे-धिरे खायेगी और बेटी होगी वह जल्दी-जल्दी खायेगी। बेटी अपने पात्र का दाना समाप्त कर, माँ के पात्र में मुँह डालेगी और माँ हटकर बेटी को खाने देगी। इस प्रकार आपको पहचान हो जायेगी।

    निधार्रित समय पर दरबार में राजा, व्यापारी, दरबारीगण आये और मंत्री जी ने घोड़ियों की अलग-अलग पहचान बता दी। सौदागर इस पहचान से संतुष्ट हुआ। उसने राजा के ज्ञानी मंत्री को और राजा को साधुवाद दिया। और चल दिया अपने राह पर। परन्तु राजा के मन में प्रश्न उत्पन्न हुआ कि ऐसा हल मंत्री के मन की उपज कैसे हो सकता है, यह अवश्य ही किसी वात्सल्यमय नारी के द्वारा सुझाया गया है। राजा के पूछने पर मंत्री ने अपनी पुत्रवधु की बुद्धि का सच्चा- सच्चा हाल कह सुनाया। राजा ने दूसरे दिन विशाखा को दरबार में बुलाकर सम्मानित किया।

सीख - हर जगह हम समर्थ नहीं होते है तो अपने से छोटो का भी कभी कभी सहयोग लेना चाहिए या उनसे उस विषय के बारे में बात करनी चाहिये। जिस के बारे में हमें पता न हो।  ताकि विचार- विमर्श हो सके।



Monday, May 26, 2014

Hindi Motivational Stories............... सत्य से बढ़कर असत्य

सत्य से बढ़कर असत्य 

     बहुत समय पहले की बात है जब राजा महाराजा अपने मंत्रियों से काफी प्रभावित रहते थे। जैसे राजा अकबर और राजा कृष्णराय और तेनालीरामा ऐसे ही एक राजा के पास मंत्री था वो कभी भी झूठ नहीं बोलता था। राजा एक दिन उस मंत्री की परीक्षा लेने की सोची। और भरे दरबार में सम्राट ने अपने हाथ के पंजे में एक पक्षी को लिया और मंत्री से पूछा - बताओ,  पक्षी जिंदा है या मृत ? मंत्री के सन्मुख यह नई तथा विचित्र परीक्षा की घड़ी थी। यदि वह कहता है कि पक्षी जिंदा है तो सम्राट पंजा दबा कर उसे मार देगा और यदि वह कहता है कि पक्षी मृत है, तो सम्राट पंजा खोलकर उसे उड़ा देगा। मंत्री के दोनों ही उत्तर झूठे ठहराये जाने की पूरी संभावना थी। आखिर मंत्री ने फैसला किया यदि मेरे एक झूठ से पक्षी के प्राण बच सकते है,  तो झूठ भी मुझे मंजूर है।

        मंत्री ने कहा - हे सम्राट,  आपके पंजे में जो पक्षी है, वह मृत है। ऐसा सुनते ही सम्राट ने पंजा खोल दिया और पक्षी उड़ गया। सम्राट  ने कहा - आज तो तुमने झूठ बोल दिया। मंत्री ने जवाब दिया - महाराज, यदि मेरे इस झूठ से इस निर्दोष पक्षी की जान बच गयी है, तो यह झूठ बोलकर भी मैं विजयी ही हूँ , हारकर भी विजयी हूँ।

       इस उत्तर से सम्राट बहुत खुश हुआ और भरे दरबार में उसकी तारीफ करने को विवश हो गया। कल्याण के लिए बोला गया झूठ, कई बार सत्य से भी बढ़कर होता है। सत्य लचीला होता है, वह व्यक्ति, समय, स्थान और परिस्थिति को परखकर निर्धारित होता है। एक व्यक्ति के सम्बन्ध में जो झूठ है, वही दूसरे के सम्बन्ध में कल्याणकारी हो सकता है।

सीख - किसी मासूम की जान बचाने ने लिए बोला गया झूठ, झूठ नहीं पर वो कल्याणकारी होता है इस लिए कहा गया सत्य से बढ़कर असत्य।
    

Hindi Motivational Stories............मृत्यु की स्मृति और पाप से मुक्ति

  " मृत्यु की स्मृति और पाप से मुक्ति "


              एक संत थे जिनका जीवन निष्पाप एवं पवित्र था। बहुत लोग उनके उपदेश सुनने आते थे। एक दिन एक युवक ने संत से कहा - महात्मन ! मुझे बड़ा आश्चर्य होता है कि आप पाप रहित जीवन कैसे जी सकते है ? कितनी भी कोशिश कर लूँ फिर भी मुझ से पाप तो हो ही जाता है। आप पाप रहित जीवन कैसे जीते है, कृपया पाप रहित जीवन का रहस्य मुझे समझाइये।

                संत ने कहा - वत्स बहुत अच्छा हुआ जो तुम आ गये। क्यों कि मुझे तुम से एक विशेष बात करनी थी। युवक ने उत्सुकता से पूछा -महात्मन ! कैसी बात ?

      संत ने कहा - बेटे ! बात तेरे जीवन से सम्बन्धित है। आज सुबह मैंने सपने में देखा कि ठीक सातवें दिन आपकी मृत्यु होनी वाली है। तेरे पारिवारिक जनों का विलाप सुनकर मेरी नींद खुल गयी।  बेटे, मेरा सुबह का सपना हमेशा सच्चा होता है।

    मृत्यु की बात सुनते ही युवक के दिल की धड़कन बढ़ गयी, आँखों के आगे अँधेरा छाने लगा, हाथ-पैर भय से कापने लगे और सिर चकराने लगा। वह वहाँ से सीधा भगवान के मन्दिर में जाकर उनके चरणों में झुककर प्रार्थना करने लगा - हे प्रभु ! हे मेरे रक्षक ! मैंने अपनी ज़िन्दगी में बहुत पाप किये है। पाप करके कभी मैंने पश्चाताप नहीं किया। मैं अपनी करनी को शब्दों द्वारा व्यक्त नहीं कर सकता। प्रभु ! मुझे माफ़ कर दीजिये। जब वह घर लौटा तो उसका खाने - पीने, हँसने - बोलने में मन नहीं लगा। संसार के वैभव अब उसे आकर्षित नहीं कर रहे थे। पाप करना तो दूर अब तो पाप करने की इच्छा भी नहीं पैदा हो रही थी। संसार की सारी वस्तुएं उसे निःसार लगने लगी क्यों कि कोई ऐसी वस्तु नहीं थी जो उसे मृत्यु से बचा ले।

    धन, दुकान, माकन, पुत्र, पत्नी, परिवार और मित्र कोई भी उसे मृत्यु बचा नहीं सकता था। वह सोचने लग कि क्या कोई ऐसा डॉक्टर नहीं जिसके कैप्सूल से मौत रुक जाये, क्या कोई ऐसा वकील नहीं जो मृत्यु को स्टे- आर्डर दे सके, क्या कोई ऐसा वैज्ञानिक नहीं जिसके शोध से यमराज की गति अवरुद्ध हो जाये। बहुत सोचने पर उसे अहसास हुआ कि सद्गुण और प्रभुस्मरण ही एकमात्र आधार है। तभी उसने हृदय में पवित्रता का संचार होने लगा।

  इस प्रकार निष्पाप एवं पवित्र भावों से उसके छः दिन बीत गये। सातवें दिन का जब सूर्योदय हुआ तो उसके मन से मृत्यु का भय निकल चूका था। इतने में संत उसके घर पहुँचे और पूछा - वत्स ! सात दिन में तुमने कितने पाप किये ? उसने कहा - महात्मन ! पाप करना तो दूर, पाप करने के विचार भी पैदा नहीं हुये। जब मौत सिर पर खड़ी हो तो मन पाप में कहाँ लगता है, गत छः दिनों में मेरा जीवन ही बदल गया है, संत ने कहा - पवित्र जीवन जीने का यही रहस्य है। मैं भी मौत का प्रतिपल स्मरण करता हूँ।

सीख - अपने को पाप से बचाने का सिंपल तरीका - मौत का स्मरण करना है। मरना तो एक दिन है। तो क्यों न अच्छे कर्म का पूँजी जमा करें। कहते है इन्सान मरता है तो दो चीजें साथ चलते है अच्छा या बुरा सतकर्म या विक्रम। तो ये आपके ऊपर है कि आप क्या साथ ले जाना चाहते है।






Friday, May 23, 2014

Hindi Motivational Stories ............भोले का साथी भगवन

भोले का साथी भगवन 


        एक बार की बात है एक सियार जंगल में से गुजर रहा था। दोपहर का समय था, गर्मी का मौसम था। गर्मी बहुत पड़ रही थी। सियार को बहुत प्यास लगी, उसका गला सूखता जा रहा था, उसे ऐसे लगा कि अगर जल्दी पानी नहीं मिलेंगा तो आज प्राण पखेरू उड़ जायेंगे। वह पानी की तलाश में हांफता हुआ आगे बढ़ रहा था कि उसकी निगाह एकाएक एक खड्डे की ओर गयी जिस में कुछ पानी था। उसे देखते ही जीवन बचने की कुछ उमीद लगी परन्तु वह खढडा कुछ गहरा था। उसमें वह जैसे-तैसे उतर तो जाता परन्तु फिर उस में से बाहर निकलना उसे मुश्किल लग रहा था। यह सोचकर उसे महसूस होने लगा कि आज उसकी मौत तो आ ही जायेगी। या तो वह प्यासा ही खढ़डे के बाहर मर जाएगा या पानी पीकर खढ़डे में पड़ा-पड़ा बाहर आने की चिंता में दम तोड़ देगा।

         अचानक ही उसने देखा कि एक बकरी उस ओर आ रही थी। उसे लगा कि वह भी पानी ही की तलाश में आ रही है। उसे ख्याल आया कि अब शायद काम बन जाये। जब बकरी उसके निकट पहुँची तो सियार ने उससे कहा - बहन बकरी, क्या तुम्हे प्यास लगी है ? क्या तुम पानी की तलाश में निकली हो ? बकरी बोली - हाँ भैय्या ? गला सुखा जा रहा है और प्यास के मरे दम घुटता जा रहा है। अगर थोड़ी देर पानी न मिला तो आज यह तेरी बहन बचेगी नहीं।

        सियार बोला - अरे, ऐसा क्यों कहती हो ? चलो मैं तुम्हे दिखाऊँगा पानी कहाँ है ? सियार मक्कार तो होता ही है। वह बकरी को बहन कहकर पुकारता हुआ नेता बनकर स्वयं को बड़ा निःस्वार्थ प्रगट करता हुआ खढडे की ओर ले चला। खढ्डे पर पहुँच कर सियार बोला - लो जितना पानी पीना हो, पि लो। बकरी बोली - भैय्या, पानी पीने के लिए इस में उतर तो जाऊँ परन्तु फिर निकालूंगी कैसे ? दूसरी बात यह है कि तुम भी तो पानी पी लो।  सियार बोला - अच्छा, तो फिर ऐसा करते है कि तुम कहती हो तो मैं भी पानी पि लेता हूँ। मैं भी उतरता हूँ, तुम भी उतरो। मैं पानी पीकर तुम्हारी पीठ पर चढ़कर बाहर निकल आऊंगा और बाहर खड़े होकर तुम्हारे सींगो से पकड़कर तुम्हे भी बाहर खींच लूँगा ताकि तुम भी बाहर आ सको। अगर मैं तुम्हें सींगो से खींच लूँ, तब तुम बुरा तो नहीं मानोगी ?

     बकरी बोली - इसमें बुरा मानने की भला क्या बात है ? तुम तो मेरा भला ही चाह रहे हो। लो, अब देर किस बात की है। दोनों उतर कर जल्दी से पानी पी लेते है। अब सियार तो बकरी की पीठ पर चढ़कर बाहर निकल आया। तब बकरी ने उसे कहा - लो भैय्या, अब मुझे भी खींच लो। ऐसा कहकर बकरी ने अपने सींग आगे बढ़ाये। परन्तु मक्कार सियार बोला - वाह बहन वाह, अगर तू मेरी खैर चाहती होती, तू कभी न कहती कि मुझे सींगो से पकड़कर बाहर खींच लूँ क्यों कि तुझे खीचने की कोशिश करने पर तो मैं स्वयं ही वापस खढ़डे में गिर जाऊँगा। तू स्वयं ही सोच की तू कितनी भारी और बड़ी है। मैं तुम्हे खींचने की कोशिश करूँगा तो तुम्हारे साथ मैं भी खढ़डे में मर जाऊँगा। इस लिए नमस्कार, मैं तो अब चलता हूँ क्यों कि मेरी साथी मेरा इंतज़ार करते होंगे। ऐसा कहकर वह तो वहाँ से चल दिया और बकरी वही ठगी-सी खड़ी रह गयी।

      सियार कुछ ही आगे बढ़ा था कि रास्ते में एक बाघ आ रहा था। बाघ सियार पर झपटा उसे अपनी भूख का शिकार और गले का ग्रास बना लिया। बकरी वहाँ खड़ी मैं.. में कर रही थी मानो भगवान से प्रार्थना कर रही हो कि प्रभु, सच्चाई वालों के आप ही साथी हो। हे प्रभु, आप मुझे इस खढ़डे से निकालो। वह अपना मुँह ऊपर को उठाकर मैं. मैं … मैं कर रही थी।

      कुछ देर बाद उसी रस्ते से एक भक्त स्वभाव का यात्री वह से गुजर रहा था। उसने मैं.. मैं की आवाज़ सुनकर जब चारों तरफ देखा उसे कोई बकरी दिखाई नहीं दी तो उसे ख्याल आया कि बकरी किसी परेशानी में है। वह उस आवाज़ का अनुशरण करते खढ़डे के पास पहुँचा गया। उसने उसे निकाल कर बाहर किया। जीवन की रक्षा पाकर बकरी ख़ुशी से उछलती-कुढ़ती चली गयी।

सीख -  इस कहानी से हमें ये सीख मिलती है कि हम चालाकी से अपना काम तो कर लेँगे पर उसका भुगतान कहाँ और कैसे किस रूप में भरना पड़ता है इस का पता वक्त ही बताएगा। इस लिये चालाकी नहीं करे। और एक सीख ये मिला की भोले का साथी भगवान है मुश्किल घडी में ईश्वर को दिल से याद करो तो मदत अवश्य मिल जाती है। 

Thursday, May 22, 2014

Hindi Motivational Stories...................................... सत्यता की महानता

सत्यता की महानता 

      एक वन में कुमुद नाम के ऋषि रहा करते थे। एक कुछ कार्य से उन्हें बाहर जाना हुआ। और कुमुद ऋषि अपना कार्य पूरा करके वापिस लौटे तो देखा कि अन्य ऋषि उनके वन में लगे वृक्ष के फल तोड़कर खा रहा था। ये दृश्य देखने के पश्चात् कुमुद ऋषि उनके नजदीक पहुँचे और पूछा -  क्या आपने फल ग्रहण करने से पूर्व इस वन के अधिपति की अनुमति प्राप्त की है ? ये बात सुनकर दूसरे ऋषि चौके क्यों कि वो यहाँ से गुजर रहे थे तो भूख की व्यकुलता में बिना कुछ सोचे ही फल तोड़कर खाना शुरू  कर दिया। इस पर कुमुद ऋषि ने बताया के ये उनका ही वन है और वे ये समझते है कि बिना किसी आज्ञा से उसकी वस्तु का उपभोग भी चोरी है, पाप है। इसकी सजा तो आपको आवश्य भुगतनी चाहिए। ये सुनकर फल खाने वाले ऋषि को अत्यन्त पश्चाताप हुआ और उन्होंने सुझाव दिया कि सजा देने का अधिकार तो राजा के पास है, आप उन्हें अपना अपराध सुनाकर सजा पूरा करे। 

       ऋषि राजा के पास पहुँचे। सारी बात सुनने के पश्चात् राजा ने कहा कि इतने थोड़े से फल बिना पूछे ले लेना सो भी आप जैसे ऋषि के लिए कोई पाप नहीं है। मैं तो इसकी सजा देने में अक्षम हूँ। अगर कुमुद ऋषि इसे चोरी या पाप समझते है तो आप उन्हीं से क्षमा याचना कीजिये। ऋषि ये सुनकर पुनः वन अधिपति के पास पहुँचे और अपराध की सजा माँगी। इस बार कुमुद ऋषि ने जवाब दिया कि - जाईये, मैंने आपको क्षमा किया। पर अब तो अपराधी ऋषि ढूढ़ थे सजा भोगने के लिए। बहुत देर समझाने पर भी जब वे अपनी बात से नहीं टूटे तो कुमुद ऋषि ने वन से दूर कुटिया में जाकर उन्हें तपस्या करने का सुजाव दिया और कहा की शायद परमात्मा स्वयं ही क्षमा कर दे। अपराधी ऋषि का ग्लानियुक्त मन तो जैसे प्रतिक्षण उन्हें झकझोर रहा था। भूख-प्यास, सर्दी-गर्मी की परवाह किये बिना वो कुटिया में जाकर ध्यान मग्न हो गये। 

     दो दिन की कठिन तपस्या रंग लाई। अपने अन्दर एक नई शक्ति का अनुभव करते हुए उन्होंने सुना - " हे वत्स, मैंने तुम्हें क्षमा किया, तुमने सच बताकर अपनी चोरी स्वीकार की, इसी के लिये तुम्हारी आधी सजा से तुम्हे मुक्ति मिली और रही हुई सजा इस तपस्या से पूर्ण हुई। अब जाओ, जाकर अपना कर्तव्य  फिर से शुरू करो। "

सीख - इस कहानी से हम समझ सकते है की बिना अनुमति के कोई वस्तु का उपयोग करना भी पाप है। और अगर जाने - अनजाने ऐसा हो जाता है तो सच बताकर पश्चाताप करे और ईश्वर की याद में रहकर अपने मन को शुद्ध करे।