Saturday, July 26, 2014

Hindi Motivational Stories........................साधु और चोर

साधु और चोर 


    एक बहुत पुरानी बात है एक नगर में राजा और रानी थे। उनका आपस में बहुत प्रेम था। राजा जो कहता रानी मान जाती और रानी जो कहता वो राजा मान जाता। एक दिन रात्री में राजा और रानी बातें कर रहे थे। उस समय वह एक चोर आया और वह दरवाजे के पीछे बैठकर राजा रानी की बाते सुनने लगा। राजा ने कहा रानी से - 'हमें आपने बेटे को साधु बनाना है।' रानी ने कहा 'ये तो हम नहीं बना सकते।' राजा ने कहा - 'जैसा संग वैसा रंग अगर हम अपने बेटे को किसी अच्छे सन्त की शरण दे तो वह साधु बन सकता है। ' रानी ने कहा -'गाँव के बहार चार साधु आये है। उनसे मिलकर किसी एक साधु के पास बेटे को भेज देना।

      चोर ये ये बाते सुनकर सोचने लगा चोरी से तो पकड़े जाने का डर और साधु बनने से तो कोई डर नहीं और वो भी राजा के लडके को शिष्य बनाकर खूब धन दक्षिणा मिल जायेगा। ये सोच कर वह जंगल की तरफ गया बगवा कपडे पहने और रस्ते में सोचने लगा की सिर्फ कपडे पहन कर कुछ नहीं होगा ज्ञान भी चाहिए इस लिए वह पहले सन्त के पास गया और पूछा 'महाराज कल्याण कैसे हो ?' सन्त बोला - 'किसी का जी मत दुःखओ ' चोर बोला और कोई बात संत बोला नहीं और कोई बात नहीं ! चोर फिर दूसरे सन्त के पास गया और पूछा - ' महाराज कल्याण कैसे हो ? ' सन्त बोला। ' बेटे झूठ नहीं बोलना चाहे कोई गाला ही आपका काटे जैसे देखो वैसे बोलो '

"साँच बराबर तप नहीं, झूठ बराबर पाप।  
   जाके हिरदै साँच है , ताके हिरदै आप।"

     चोर तीसरे सन्त के पास गया और पूछा महाराज मेरा कल्याण कैसे होगा ? सन्त बोला, ' रात दिन बस राम राम करते रहो ' चोर बोले और कोई बात - सन्त बोला।, ' यही करो इस में सब आ गया '   फिर चोर चौथे सन्त के पास गया और पूछा -महाराज मेरा कल्याण कैसे होगा ? सन्त बोला  ' एक भगवान की शरण में जाने से - जैसे एक कुँवारी कन्या शादी के बाद सोचती है मेरी तो शादी हो चुकी है। ऐसे !' चोर बोला और कोई बात - सन्त बोला नहीं और कोई बात नहीं। … चोर ने चारों संतों की बात सुनकर आगे जाकर बैठ गया। और जब राजा आया तो चारों सन्त की बात सुनी और देखा की आगे एक और साधु है राजा उसके पास भी गया और पूछा कल्याण कैसे होगा ? चोर ने वही चार बातें जो सुनी थी वो बता दी और जब राजा ने पूछा और कोई बात तो इसने कहा - जैसा सन्त काहे वैसा करना चाहिये। राजा उसका दर्शन लेकर अपने महल की तरफ आते समय सोचने लगा पाँचवा सन्त ज्यादा ज्ञानी है सब ने एक - एक बात कही और उसने पांच बाते कही। उसको गुरु बनाना चाहिये।

    रात को राजा रानी से कहने लगा आज जंगल में जाकर संतो से मिलकर आया। रानी ने पूछा क्या सोचा आपने ? और इसी बीच राजा रानी जब बात कर रहे थे। तब चोर आकर चुपके से उनकी बातें सुनने लगा। राजा ने कहा मैंने सुना था चार सन्त है पर जंगल में तो पांच सन्त मिले और पांचवा सन्त मुझे ज्यादा ज्ञानी लगा उसने पांच ज्ञान की बाते कही बाकी सब ने एक-एक बात कही और आपका क्या विचार है ? रानी ने कहा जिनके पास ज्यादा ज्ञान हो वाही सन्त ठीक है। राजा रानी बहुत ही बोले और भावना वाले थे।

    चोर राजा रानी की बात सुनकर सोचने लगा मैंने तो झूठ कहा था। तब भी ये मुझे सन्त मान बैठे अगर मै सच में सन्त बन जाऊ तो क्या होग ! चोर की आत्मा जगी उसके ह्रदय में सच्चा साधु बनने की इच्छा उत्पन हुई। और वह सच्चे और अनुभवी गुरु की तलाश में जंगल जंगल भटकने लगा।उसने सोचा जिनसे मिलकर एक खिचाव होगा उन्हें ही वो अपना गुरु मानेंगे। उसकी जिज्ञासा देख भगवान खुद गुरु के रूप में प्रगट हुवे और उन्हें देखते ही खिचाव हुआ चोर उन्हें गुरु मानकर कहने लगे आप ही मेरे गुरु आप जो कहे सो मैं करूँगा। गुरु ने कहा सच मैं करेंगे ? चोर बोला हाँ जी। गुरु ने कहा  ' लो ये तलवार और जिसने कहा झूठ मत बोलो, और जिसने राम- राम का जप करने को कहा,  और जिसने एक भगवान की शरण जाने के लिए कहा, और जिसने कहा -किसी का जी मत दुखाओ ' उन सब के सिर काटकर ले आओ। '

    चोर तलवार लेकर भागा जँगल की तरफ जहाँ ये चारों सन्त बैठे थे। और रस्ते में उसका विचार चला किसी का जी मत दुखाओ तो मैं अगर मार देता हूँ तो जी दुखता हूँ। क्या करू ये चारों बातें तो मेरे ही सर में है। उसकी अन्तर मन ऐसा करने से माना कर दिया। और वह वहाँ से आपस गुरु के पास गया और गुरु ने कहा ले आये। गुरु देव ये चारों बातें मेरे सिर में है और मै आपको अपना सिर काटकर देता हूँ। तब गुरु ने कहा अब सिर काटने की कोई जरुरत नहीं ! मैं तुम्हें दिक्षा देता हूँ।

सीख - चोर ने चालाकी से पांच बातें धारण किया तो उसको भगवान का दर्शन हुआ और वह सन्त बन गया। और अगर कोई सच्चे मन से इन पांच बातों को धारण करे तो फिर कहना ही क्या !




Thursday, July 24, 2014

Hindi Motivational Stories.................. मरकर आदमी कहा जाता है।

मरकर आदमी कहा जाता है।

    एक बार एक पण्डित काशी से पढ़ाई पूरी कर अपने शहर आया और जैसे ही स्टेशन से उतर कर अपने घर के लिए रिक्शा करना चाहा पर उस दिन शहर में कुछ हड़ताल के कारण रिक्शा नहीं मिलीं तो पण्डितजी अपने पोती पुस्तक लेकर चल पड़े पैदल और रस्ते में एक जनाजा निकल रहा था तो पास के एक घर के यहाँ बाहर खड़े हो गए। उस घर के ऊपर एक वेश्या रहती थी उसने एक लड़की से कहा पता करो ये आदमी नरक गया है या स्वर्ग ? लड़की गयी और कुछ समय के बाद वापस आई और कहा ये तो नरक में गया।

     पण्डितजी सोचने लगे कि ऐसी कौन सी विद्य है जिस से ये पता चलता है कि आदमी मरने के बाद नरक में या स्वर्ग में गया है? जरूर वेश्या के पास कोई अनोखी विद्या है जिसे समझना होगा। पण्डित जी ये सोच ही रहे थे, कि एक और मुर्दा वहाँ से निकला तब फिर वेश्या ने लड़की से फिर कहाँ पता करके आओ ये कहाँ गया है ? लड़की गयी और कुछ देर बाद आई और कहा कि ये तो स्वर्ग गया। ....

   पण्डित जी से रह न गया वे तुरंत सीढ़ियों से ऊपर गये और वेश्या ने उसे देखते ही समझ गयी की ये अपना कोई ग्राहक नहीं है। पण्डित जाते ही कहा 'नमस्ते बहन जी' वेश्या बोली 'में बहनजी नहीं हूँ में तो वेश्या हूँ ' पण्डित बोला 'हमारे लिए तो आप सब माँ बहन ही हो।' वेश्या बोली 'अच्छा बोलो क्या काम है।' पण्डित ने कहा 'आपके पास कौन सी विद्य है जिस से ये पता चलता है कि मरने के बाद आदमी कहा जाता है ? ' तब वेश्या ने उस लड़की को बुलाया और कहा इन्हें बताउ कि अपने कैसे परिक्षण किया।

    लड़की ने कहा पहले जो मुर्दा गया उसके जनाजे में शामिल लोगो से उनका घर का पता मालूम किया और उनके घर गयी तो वे बहुत रो रहे थे पर उसमें दुःख का भाव कम था और वहाँ के लोगो से पूछा कि ये आदमी कैसा था? मोहल्ले वालों ने कहा हम तो निहाल हो गये। 'वह तो रोज गाली देता था और आये दिन कोई न कोई हंगामा करता था।' तो मैं समझ गयी कि ये व्यक्ति नरक में गया है।

      और दूसरे के घर गयी तो वहाँ बहुत लोग एक घर में बैठे रो रहे थे। में समझ गयी कि ये वही घर है और फिर उनसे पता किया तो मालूम हुआ की वो सब का बहुत प्यारा था। और मोहल्ले वालो से पूछा तो वे कहने लगे हम तो अनाथ हो गये। हमारा मशीहा चला गया ! कहकर वो भी रो पड़े। तो मैं समझ गयी की ये आदमी स्वर्ग में गया है। पण्डित जी ये बाते सुनकर बोले ये बातें तो हमें पढ़ाया गया था पर मेरे दिमाग में आया ही नहीं। और लड़की को धन्यावाद देकर पण्डित जी अपने घर चल दिये।

सीख - पढ़ाई करने के बाद भी वो बातें हमारे जीवन में समय पर याद नहीं आते क्यों कि चिन्तन का अभाव है। पढ़ाई के बाद हम अपने कारोबार और व्यर्थ चिन्तन में रहते है जिस के कारण मुलभुत चीजे खो देते है। इस लिए सदा चिंतन मनन करते रहो।


Sunday, July 20, 2014

Hindi Motivational stories.....................................संतों की शरण

संतों की शरण ……………

      एक गाँव में एक ठाकुर थे। उनके परिवार में कोई नहीं था, केवल एक लड़का था। जो ठाकुर के घर काम करने लगा था। रोजाना सुबह वह बछड़े चराने जाता था और लौटकर आता तो रोटी खा लेता था। ऐसे समय बीतता  गया। एक दिन दोपहर के समय वह बछड़े चराकर आया तो ठाकुर की नौकरानी ने उसको ठंडी रोटी खाने के लिये दे दी। उसने कहा कि थोड़ी-सी छाछ या राबड़ी मिल जाय तो ठीक होगा।  नौकरानी ने कहा कि जा -जा, तेरे लिये बनायीं है क्या? राबड़ी ! जा, ऐसे ही खा ले, नहीं तो तेरी मरजी ! उस लडके के मन में गुस्सा आया  " कि मैं धुप में बछड़े चराकर आया हूँ, भूखा हूँ, पर मेरे को बाजरे की रूखी रोटी दे दी, राबड़ी माँगा तो तिरस्कार कर दिया।" वह भूखा ही वहाँ से चला गया। गाँव के पास एक शहर था। उस शहर में संतों की एक मण्डली आयी हुई थी। वह लड़का वहाँ चला गया। संतों ने उसको भोजन कराया और पूछा कि तेरे परिवार में कौन है ? उसने कहा कोई नहीं है। तो संतों ने कहा कि तू साधु बन जा। लड़का साधु बन गया। फिर वह पड़ने के लिए काशी चला गया। वहाँ पढ़कर वह विद्वान हो गया। फिर समय पाकर वह मण्डलेश्वर (महन्त ) बन गया। मण्डलेश्वर बनने के बाद एक दिन उनको उसी शहर में आने का निमन्त्रण मिला। वे अपनी मण्डली को लेकर वहाँ आये। और ठाकुर भी वहाँ प्रवचन सत्संग में आये उनको सुने और सत्संग के बाद वे स्वामी से प्रार्थना करने लगे की हमारे घर भी एक दिन आओ। और मण्डेलश्वर जी ने उनका निमंत्रण स्वीकार कर लिया।
     
            मण्डलेश्वर जी अपनी मण्डली के साथ ठाकुर के यहाँ पधारे। उनका सम्मान  सत्कार किया गया। और सत्संग हुआ उसके बाद सब के लिये भोजन भी था। मण्डलेश्वर जी  के सामने तरह-तरह के भोजन के पदार्थ रखे हूवे थे। ठाकुर उनके पास आये और साथ में नौकर भी था जो हलवा का पात्र पकड़ा हुआ था ,और ठाकुर ने महाराज से विनंती की महाराज! मेरे हाथ से भी थोड़ा हलवा खावो। और तब महाराज जी को हँसी आयी तो ठाकुर ने हँसी का कारण पूछा ? तब महाराज ने  सब के सामने वो बात सुनाई।  ठाकुर जी आपने मुझे नहीं पहचाना में आपके यहाँ कार्य किया करता था और एक दिन थोड़ी सी राबड़ी माँगी थी पर नौकरानी ने मना कर दिया  और उसके बाद में यहाँ से चला गया। पास में ही सन्त-मण्डली ठहरी हुई थी, मैं वहाँ चला गया। पीछे काशी चला गया, वहाँ पढ़ाई की और फिर मण्डलेश्वर बन गया।

             यही वह आँगन है, जहाँ आपकी नौकरानी ने मेरे को थोड़ी-सी-राबड़ी देने से मना कर दिया था। अब मैं भी वही हूँ, आँगन भी वही है और आप भी वही है, पर अब आप अपने हाथ से मोहनभोग दे रहे हो कि महाराज,कृपा करके थोडा मेरे हाथ से ले लो !

       माँगे मिले न राबड़ी, करुँ कहाँ लगी वरण। 
    मोहनभोग गले में अटक्या, आ सन्तो की शरण।।

सीख - सन्तो की शरण लेने मात्र से इतना हो गया कि जहाँ राबड़ी नहीं मिलती थी. वहाँ मोहनभोग भी गले में अटक रहा है। अगर कोई भगवन की शरण ले ले तो वह सन्तों का भी आदरणीय हो जाय। लखपति-करोड़पति बनने में सब स्वतंत्र नहीं है, पर भगवान के शरण होने में, भगवान का भक्त बनने में सब-के-सब स्वतन्त्र है और ऐसा मौका इस मनुष्य जन्म में ही है। 



Friday, July 18, 2014

Hindi Motivational Stories.............................................जापानी सैनिक

जापानी सैनिक

    जापान के लोग अपनी देशभक्ति और राजभक्ति के लिये प्रसिद्ध है। अपने देश के लिये हँसते-हँसते प्राण देना जापान के लोग बड़े गौरव की बात मानते है। एक बार रूस और जापान में युद्ध हुआ था। रूस-जैसे बड़े देश को जापान ने उस बार हरा दिया था। उस युद्ध में जापानी सैनिकों ने वीरता के बड़े-बड़े काम किये थे। उन में से एक और उदहारण आपको सुना रहे है।

    रूस-जापान के एक और युद्ध की बात है। रूस की सेना ने एक पहाड़ी पर आक्रमण किया। उस पहाड़ी पर जापान के थोड़े-से सैनिक और एक भारी तोप थी। रुसी सैनिक उस तोप पर अधिकार करना चाहते थे, क्यों कि उनके पास वहाँ उतनी बड़ी तोप नहीं थी। रूस के सैनिकों का आक्रमण बहुत भयानक था। वे संख्या में बहुत अधिक थे। जापानी सेना को पीछे हटना पड़ा। वे अपनी भारी तोप हटा नहीं सके। उस तोप तथा पहाड़ी पर रुसी सेना ने अधिकार कर लिया।

     उस तोप को चलाने वाला जो जापानी तोपची था, उसे यह बात सहन नहीं हुई कि उसकी तोप से शत्रु उसी के पक्ष के सैनिकों के प्राण ले। रात में बिना किसी को बताये वह पेट के बल सरकता, छिपता उस पहाड़ी पर चढ़ गया। वह उस तोप के पास तो पहुँच गया, किन्तु तोप को हटाने या नष्ट करने का उसके पास कोई उपाय नहीं था। अन्त में वह उस तोप की नली में घुस गया।

     रात में वहाँ बरफ पड़ी। तोप की नली में घुसे तोपची को ऐसा लगता था कि सर्दी के मारे उसकी नसों के भीतर रक्त जमता जा रहा है। उसकी एक-एक नस फटी जा रही थी। सारे शरीर में भयंकर पीड़ा हो रही थी। फिर भी वह दाँत-पर-दाँत दबाये वहाँ चुपचाप पड़ा रहा। सुबह हुआ। रुसी सैनिक तोप के पास आये। उन्होंने तोप की परीक्षा लेने का निश्चय किया। तोप में गोला-बारूद भरा गया। जैसे ही तोप छूटी, उसकी नली में घुसे जापानी सैनिक के चिथड़े उड़ गये और तोप के सामने का वृक्ष रक्त से लाल हो गया। तोप की नली से रक्त निकल रहा था। रुसी सैनिकों ने वह रक्त देखा तो कहने लगे - "ऐसा लगता है कि तोप छोड़कर जाते समय जापानी लोग इस में कोई प्रेत बैठा गये है। वह अब रक्त उगल रहा है। आगे पता नहीं क्या करेगा, यहाँ से भाग चलना चाहिये। "

    प्रेत के भय से रुसी सैनिक वह तोप वहीँ छोड़कर उस पहाड़ी से भाग गये। इस बार रूस जीत कर भी हार गया।

सीख - एक जापानी तोपची ने अपना बलिदान करके वह काम कर दिखाया जो एक सेना नहीं कर सकी थी।

Thursday, July 17, 2014

Hindi Motivational stories..........................जापानी सैनिकों की देशभक्ति

जापानी सैनिकों की देशभक्ति 

    जापान के लोग अपनी देशभक्ति और राजभक्ति के लिये प्रसिद्ध है। अपने देश के लिये हँसते-हँसते प्राण देना जापान के लोग बड़े गौरव की बात मानते है। एक बार रूस और जापान में युद्ध हुआ था। रूस-जैसे बड़े देश को जापान ने उस बार हरा दिया था। उस युद्ध में जापानी सैनिकों ने वीरता के बड़े-बड़े काम किये थे। उन में से एक उदहारण आपको सुना रहे है। 

          एक किले पर रुसी सेना का अधिकार था। किले के चारों ओर गहरी खाई थी और उस में पानी भरा हुआ था। खाई के ऊपर का पुल रुसी लोगों ने तोड़ दिया था। किले में रूस के थोड़े-से सैनिक थे, किन्तु खाई को पार किये बिना किले पर अधिकार नहीं हो सकता था। युद्ध में उस किले का बहुत महत्त्व था। जापानी सेनापति के पास खाई पर पुल बनाने का सामान नहीं था। और डर यह था कि दूसरे दिन और रुसी सेना वहाँ आ जायेगी। 

   सेनापति कुछ सोचकर सैनिकों से कहा - "इस खाई को मनुष्यों के शरीर से भर देने को छोड़कर दूसरा कोई उपाय नहीं है। जापान के लिये जो प्रसन्नता से अपना बलिदान करना चाहें, वे दो पद आगे बढ़े। " पूरी-की-पूरी सेना दो पद आगे बढ़ आयी। एक भी सैनिक ऐसा नहीं था, जो प्राण देने में पीछे रहना चाहता हो। सेनापति ने सब को नम्बर बोलने को कहा। उसके बाद उसने आज्ञा दी कि प्रति पाँचवा सैनिक कपड़े उतार दे और हथियार रखकर खाई में कूद पड़े। एक के ऊपर एक जापानी सैनिक उस खाई में धड़ाधड़ कूदने लगे। खाई उनके शरीर से भर गयी।

       अपने देशभक्त वीर सैनिकों की लाशों के पुल पर से जापानी सेना और उनकी भारी तोपो ने पुल पार करके उस किले पर अधिकार कर लिया। 

सीख - जिन सैनिकों में इस तरह का साहस और जो बलिदान के लिए पहले खुद आगे बढ़ता है। वह देश कभी नहीं हारता। ऐसे वीरो को पूरी दुनिया सलाम करती है। 


Tuesday, July 15, 2014

Hindi Motivational Stories.........................सर गुरुदास की मातृभक्ति

सर गुरुदास की मातृभक्ति 

     बहुत पुरानी बात है उस समय की है जब भारत में अंग्रेजो का राज्य था। बहुत थोड़े से भारतवासी उस समय ऊँचे सरकारी पदों पर नियुक्त हो सकते थे। सर गुरुदास की माँ बचपन में ही चल बसी, तब उनका पालन पोषण यहाँ तक की दूध भी धाय ने पिलाया और इस तरह गुरुदास बड़े हुए। बुढ़िया धाय को गुरुदास माता के रूप में ही देखते थे। कुछ समय के बाद धाय देहात में चली गई।

     समय के साथ बहुत बदलाव हुआ। गुरुदास कलकत्ता के हाईकोर्ट के न्याधीश (बड़े जज ) बन गए और साथ ही कलकत्ता-विश्वविद्यालय के वोइसचांसलर भी बने। एक बार सर गुरुदास हाईकोर्ट में बैठे कोई मुकदमा सुन रहे थे।उसी समय एक बुढ़िया वह आयी।बुढ़िया धाय बहुत समय से कलकत्ता नहीं आयी थी। एक दिन वह गंगा स्नान करने कलकत्ता आयी और गंगा स्नान के बाद उसे गुरुदास की याद आयी। उसने सोचा चलो गुरुदास से मिलते हुए जाऊँ। लोगो से पूछती -पूछती वह हाईकोर्ट के पास आ गयी।

     देहात की एक गरीब बुढ़िया मैले कपड़े पहने आयी थी। गंगा स्नान करने से उसके कपडे भीगे थे। उसने सूखे कपडे भी नहीं पहने थे। हाईकोर्ट का चपरासी उसे कमरे के भीतर नहीं जाने दे रहा था, और वह उससे हाथ जोड़कर कह रही थी - 'भैया ! मुझे अपने गुरुदास से मिल लेने दो। " अचानक सर गुरुदास की दॄष्टि दरवाज़े की ओर चली गयी।

       वे न्याधीश के आसन से झटपट खड़े हो गये। उनको आते देखकर चपरासी एक ओर हट गया। सर गुरुदास ने भूमि में लेटकर उस मैली-कुचैली गरीब बुढ़िया को दण्डवत-प्रणाम किया। सब लोग हक्के-बक्के-से देखते रह गये। देहाती बुढ़िया क्या जाने कि हाईकोर्ट क्या होता है और जज क्या होता है। उसकी तो दोनों आँखों से आँसू की धारा चलने लगी। उसने कहा - " मेरा गुरुदास ! जीता रह बेटा। "

   सर गुरुदास ने सब को बताया - " ये मेरी माता है। इन्होने मुझे दूध पिलाया है। अब आज मुकदमा बन्द रहेगा। मैं इन्हें लेकर घर जा रहा हूँ। " उस बुढ़िया को जस्टिस सर गुरुदास आदर पूर्वक अपने घर ले गये। वहाँ उन्होंने उसका खूब आदर-सत्कार किया। दूध पिलाने वाली धाय भी माता ही है। जो इतने बड़े जज होकर धाय का भी इतना आदर करते थे, वे अपनी माता स्वर्णमणि देवी का कितना आदर करते होंगे।

सीख - जो लोग पढ़-लिखकर और ऊँचे पद पाकर अपने माता-पिता तथा घर-गाँव के बड़े लोगों का आदर नहीं करते, वे तो ओछे स्वाभाव के कहे जाते है। अच्छे पुरुष वही है, जो पद, विधा और बड़ाई पाकर भी अभिमान नहीं करते। वे सदा नम्र बने रहते है और अपने से बड़ों का पूरा आदर करते है। 

Hindi Motivational Stories........................राजा मानिचन्द्र की उदारता

राजा मानिचन्द्र की उदारता 

         बंगाल में गुष्करा  एक छोटा-सा स्टेशन है। एक दिन रेलगाड़ी आकर स्टेशन पर खड़ी हुई। उतरनेवाले झटपट उतरने लगे और चढ़ने वाले दौड़-दौड़कर गाड़ी में चढ़ने लगे। एक बुढ़िया भी गाड़ी से उतरी। उसने अपनी गठरी खिसकाकर डिब्बे के दरवाजे पर तो कर ली थी, किन्तु बहुत चेष्टा करके भी उठा नहीं पायी थी। कई लोग गठरी को लाँघते हुए डिब्बे में चढ़े और डिब्बे से उतरे। बुड़ियाने कई लोगोँ से बड़ी दीनता से प्रार्थना की कि उसकी गठरी उसके सिर पर उठाकर रख दे। किन्तु किसी ने उनकी बात पर ध्यान नहीं दिया। लोग ऐसे चले जाते थे, जैसे बहिरे हो। गाड़ी छूटने का समय हो गया। बेचारी बुढ़िया इधर-उधर बड़ी व्याकुलता से देखने लगी। उसकी आँखों से टप-टप आँसू गिरने लगे।

      उसी समय एकाएक प्रथम श्रेणी के डिब्बे में बैठे एक सज्जन की दॄष्टि बुढ़िया पर पड़ी। गाड़ी छूटने की घंटी बज चुकी थी। किन्तु उन्होंने इसकी परवा नहीं की। अपने डिब्बे से वे शीघ्रता से उतरे और बुढ़िया की गठरी उठाकर उन्होंने उस के सिर पर रख दी। वहाँ से बड़ी शीघ्रता से अपने डिब्बे में जाकर जैसे ही वे बैठे, गाड़ी चल पड़ी। बुढ़िया सिर पर गठरी लिये उन्हें आशीर्वाद दे रही थी -" बेटा ! भगवान तेरा भला करें। "

     आप जानते हो कि बुढ़िया की गठरी उठा देनेवाले सज्जन कौन थे ? वे थे कासिम बाजार के राजा मानिचन्द्र नन्द, जो उस गाड़ी से कलकत्ते जा रहे थे। सचमुच वे राजा थे, क्यों कि सच्चा राजा वह नहीं है जो धनी है या बड़ी सेना रखता है। राजा वह है जो समय पर प्रजा की मदत करे।

सीख -  सच्चा राजा वह है, जिसका हृदय उदार है, जो दीन-दुःखियों और दुर्बलों की सहायता कर सकता है ? ऐसे सच्चे राजा बनने का आप सब हम सब का अधिकार है। तुम्हे इसके लिये प्रयत्न करना चाहिये। मुम्बई, कलकत्ता, गुजरात ऐसे  … बहुत से शहरों में जहाँ रेलगाड़ी चलती है। वहाँ ऐसे बहुत उदहारण आज भी देखने को मिलते है।