Sunday, August 31, 2014

Hindi Motivational Stories...............कंजूसी का परिणाम

कंजूसी का परिणाम 


                           एक गरीब ब्राह्मण था। उसको अपनी कन्या का विवाह करना था। उसने विचार किया कि कथा करने से कुछ पैसे मिलेंगे तो काम चल जायेगा। ऐसा विचार करके उसने भगवान राम के एक मन्दिर में बैठकर कथा आरम्भ कर दी। उसका भाव यह था कि कोई श्रोता आये, चाहे न आये, पर भगवान तो मेरी कथा सुनेंगे ही। 

   पण्डितजी की कथा में थोड़े-से श्रोता आने लगे। एक बहुत कंजूस सेठ था। एक दिन वह मन्दिर में आया। जब वह मन्दिर की परिक्रमा कर रहा था, तब उसको मन्दिर के भीतर से कुछ आवाज़ आयी। ऐसा लगा कि कोई दो व्यक्ति आपस में बात कर रहे है। सेठ ने कान लगाकर सुना। भगवान राम हनुमानजी से कह रहे थे कि इस गरीब ब्राह्मण के लिए सौ रुपयों का प्रबन्ध कर देना, जिस से कन्या दान ठीक हो जाय। हनुमानजी ने कहा - ठीक है महाराज ! इसके सौ रुपये पैदा हो जायेंगे। सेठ ने यह सुना तो वे कथा समाप्ति के बाद पण्डित जी से मिले और उनसे कहा कि महाराज ! कथा में रुपये पैदा हो रहे कि नहीं ? पण्डितजी बोले कि श्रोतालोग बहुत कम आते है, रुपये कैसे पैदा हो ? सेठ ने कहा मेरी एक शर्त है, कथा में जितना रूपया आये, वह मेरे को दे देना, मैं आपको पचास रुपये दे दूँगा। पण्डितजी ने शर्त स्वीकार कर ली। पण्डित जी ने सोचा लोग दे न दे पर सेठ जी से तो पचास रुपये मिल जायेंगे इस की गॉरंटी है। और उस समय पचास रुपये भी बहुत होते थे। और इधर सेठ लोभ के कारण पचास देकर सौ लेने की मानसा से शर्त रखी। भगवान की बाते सुनकर भी भक्ति की भवन नहीं जगी। सेवा के बजाय लोभी ही बना रहा। 

        कथा पूर्णाहुति होने पर सेठ पण्डितजी के पास आया। उसको आशा थी कि आज सौ रुपये भेंट में आये होंगे। पण्डितजी ने कहा कि भाई, आज भेंट बहुत थोड़ी ही आयी ! ये लो कहा कर भेट में आये रुपये सेठ को दे दिये। सेठ ने देखा भेंट के रूप में पाँच-सात रुपये आये है। सेठ बेचारा क्या करे ? वायदे के अनुसार पण्डितजी को पचास रुपये दे दिये। अब लेने के बदले देने पड़ गये। सेठ को हनुमानजी पर बहुत गुस्सा अाया कि उन्होंने पण्डितजी को सौ रुपये नहीं दिये और भगवान के सामने झूठ बोला ! सेठ मन्दिर में गया और हनुमानजी की मूर्ति पर घूँसा मारा। घूँसा मारते ही सेठ का हाथ मूर्ति से चिपक गया ! अब सेठ ने बहुत जोर लगाया, पर हाथ छूटा नहीं। जिसको हनुमानजी पकड़ ले, वह कैसे छूट सकता है ? सेठ को फिर आवाज़ सुनायी दी। उसने ध्यान से सुना। भगवान हनुमानजी से पूछ रहे थे कि तुमने ब्राह्मण को सौ रुपये दिलाये कि नहीं ? हनुमानजी ने कहा कि " महाराज ! पचास रुपये तो दिला दिये है, बाकी पचास रुपयों के लिये सेठ को पकड़ रखा है ! वह पचास रुपये देगा तो छोड़ देंगे।" सेठ ने सुना तो विचार किया कि मन्दिर में लोग आकर मेरे को देखेंगे तो बड़ी बेइज्जती होगी ! वह चल्लाकर बोला कि " हनुमानजी महाराज ! मेरे को छोड़ दो, मैं पचास रुपये दूंगा। " हनुमानजी ने सेठ का हाथ छोड़ दिया। सेठ ने जाकर पण्डितजी को पचास रुपये दे दिये। 

सीख - भक्ति भाव, सेवा भाव से सुख मिलता है। लोभ भावना दुःख देता है इस लिये लोभ से मुक्त हो सेवा भाव में रहो। 

      

Saturday, August 30, 2014

Hindi Motivational Stories - असली गहना

असली गहना

        एक ' चक्ववेण '  नाम के राजा थे। वे बड़े धर्मात्मा थे। राजा और रानी दोनों खेती करते थे और खेती से जितना उपार्जन हो उस से अपना निर्वाह करते थे। राज्य के धनको वे अपने काम में नहीं लेते थे। प्रजा से जो कर लेते थे, उसको प्रजा के हित में ही खर्च करते थे। राजा हुवे भी वे साधारण मोटा कपड़ा पहनते थे और भोजन भी साधारण ही करते थे।

       एक दिन नगर में बड़ा उत्सव हुआ। उस दिन नगर की स्त्रियाँ रानी के पास आयी। नगर की स्त्रियाँ तो बहुत किमती साड़ी और सोने के गहने पहन रखे थे। स्त्रियों ने जब रानी को देखा की वे बहुत ही साधारण कपडे पहने है तो सब ने कहा " रानी साहेबा आप तो हमारे मालकिन है। आप को तो हम से भी अच्छे कपडे और गहने पहनने चहिये। ये बात रानी को लगी। और उसी रात रानी ने राजा से कहा "आज मेरी बहुत फजीती हुई। हम मालिक होकर भी प्रजा की तुलना में नहीं है ? नगर की स्त्रियाँ हम से अच्छे गहने और कपडे पहनते है। इस लिए हमें भी अब अच्छे कपडे और गहने चाहिए। " राजा ने कहा " हम तो अपनी मेहनत की कमाई से खाते है और पहनते है गहनों के लिए हमें कर्ज लेना होगा। फिर भी हम आपके लिए प्रबन्ध करेंगे धैर्य रखो। "

      अगले दिन चक्ववेण राजा ने अपने एक आदमी से कहा तुम लंकापति रावण के पास जाओ और उस से कहो की " चक्ववेण राजा ने आप से कर माँगा है " और कर रूप में रावण से सोना ले लेना। वो आदमी गया और रावण से कर माँगा। रावण सुन कर हँसाने लगा और कहा रावण से कर माँगने की हिम्मत कैसे की ? रावण ने आज तक किसी को कर नहीं दिया है। और ना ही देग तुम्हारी अक्ल कहा चली गयी है ? जो रावण से कर माँगने चले आ गए ! चला जा यहाँ से. उस आदमी ने कहा अब तो तुम्हे कर देना ही होगा। में कल फिर आऊंगा आज रात विचार करो।

  रावण रात जब मन्दोदरी से मिला और कहा ऐसे ऐसे मुर्ख लोग है संसार में!रावण से कर माँगने आ जाते है।   मन्दोदरी ने कहा क्या हुआ महाराज, रावण ने सारी बात बता दी , मन्दोदरी राजा चक्ववेण के बारे में जानती थी। उसने सुबह रावण से कहा महाराज आज छत पर चलो में तुम्हें तमाशा दिखाती हूँ। रावण छत पर गए  मन्दोदरी ने कबूतरों को दाना डाल कर कहा " तुम्हें रावण की कसम अगर एक भी दाना चुगा तो " कबूतरों पर उसके इस बात का कोई असर नहीं हुआ फिर थोड़ी देर बाद कुछ दाना और डाल कर मन्दोदरी ने कहा " तुम्हे कसम है चक्ववेण राजा की अगर एक भी दाना चुगा तो " कबूतर सब रुख गये और एक कबूतर बहरा होने के कारण दाना चुगता रहा तो उसकी गर्दन काट गयी। ये देख रावण ने कहा " ये तुम्हारी मन की बात है। ये तेरा जादू है, ऐसा कभी हुआ है क्या ? रावण किसी को कर नहीं देगा।

    रावण दरबार में अपने राजगद्दी पर जाकर बैठ गये। उसी समय वो आदमी फिर आ गया और कहा-"अपने रात में विचार किया होगा कर देने का मुझे कर रूप में सोना दे देना। रावण हँसाने लगा और कहा देवतायें मेरे यहाँ पानी भरते है। हम किसी को कर नहीं देंगे ये हमारे शान के खिलाफ है। अच्छा ! वो आदमी बोला आप मेरे साथ समुद्रके किनारे चलिये। रावण को कोई डर तो था ही नहीं वो चल दिया। वो आदमी समुद्र के किनारे पर बालू से लंका की हु बा हु आकृति बना दी और कहा लंका ऐसा ही है न ? रावण ने कहा हाँ - फिर उस आदमी ने कहा -" राजा चक्ववेण की दुहाई है " ऐसा बोलकर उस आदमी ने एक हाथ मारा तो एक दरवाजा गिरा जैसा यहाँ गिरा बिल्कुल वैसे ही लंका का भी एक दरवाजा गिरा। उस आदमी ने कहा कर देते हो या अभी आपकी लंका पूरा गिरा दूँ। रावण डर गया बोला हल्ला मत कर जा जितना सोना चाहिए उतना सोना लेकर जा।

       आदमी ने सारा सोना लाकर  राजा चक्ववेण को दिया और राजा ने रानी को दे दिया और कहा जितना गहने चाहिए उतना बनवाले। रानी ने पूछा इतना सोना आया कहा से ? राजा ने कहा रावण से कर रूप में आया है।  रानी सोचने लगी की रावण कर दिया कैसे ? कुछ समय बाद रानी ने उस आदमी को पूछा की रावण ने कर दिया कैसे ? आदमी ने सारी कहानी बता दी। रानी आश्चर्य चकित हो गयी। उनके मन में पतिदेव के प्रति श्रद्धा बड़ी और उसने कहा मेरे पास मेरा असली गहना तो मेरे पति देव है। दूसरा गहना मेरे क्या काम का ? गहनों की शोभा तो पति के कारण है। पति के बिना गहनों की शोभा ही क्या ? जिसका प्रभाव इतना की रावण भी डर जाय उस से बढ़कर गहना और क्या हो सकता है। उसी समय रानी ने उस आदमी से कहा जाओ ये सोना रावण को लौटकर कहो - "राजा चक्ववेण तुम्हारा कर स्वीकार नहीं करते। "

Saturday, August 9, 2014

Hindi Motivational Stories...... राजा और महल

       राजा और महल 

     एक राजा था। वह एक सन्त के पास जाया करता और उनका सत्संग किया करता था। उस राजाने अपने लिये एक महल बनाया। पहले उसके कई महल थे, पर अब ऐसा महल बनाया, जिस में आराम की सब चीजें हो और उस में ज्यादा ठ।ट - बाट से रहे। राजा ने सन्त से कहा कि महाराज ! एक दिन चलो, हमारी कुटिया पवित्र हो जाय ! सन्त उसको टालते गए। राजाने बहुत बार कहा तो एक दिन सन्त बोले कि अच्छा  भाई चलो।

       राजाने सन्त को महल दिखाना शुरू किया कि यह हमारी जगह है, यह हमारे पंचायती की जगह है, यह भोजन की जगह है, यह शौच-स्नान की जगह है, आदि-आदि सन्त चुप-चाप देखते रहे, कुछ बोले नहीं। सन्त पशु प्राणियों से प्यार करते थे। और जिनके पास रहने के लिए घर नहीं तो ठीक लेकिन राजा के पास सब कुछ होने के बाद भी वो और एक महल बनाया। और अन्दर सोचने लगे की अगर वाह-वाह करते है तो हिंसा लगती है। कारण कि महल बनाने में बड़ी हिंसा होती है ! बहुत से जीव जन्तु मरते है। चूहे,साँप, गिलहरी आदि के रहने और चलने-फिरने में आड़ लग जाती है ; क्यों कि जितने हिस्से में महल बना है, उतने हिस्से में वे जा नहीं सकते। ऐसी बहुत बाते सन्त में मन में आती रही। और राजा समझा कि महाराज को महल पसन्द नहीं आया। राजा लोग चतुर होते है। राजाने पूछ लिया कि महाराज ! महल में कमी क्या है ? सन्त बोले कि कमी तो इस में बड़ी भारी है ! राजाने विचार किया कि बड़े-बड़े कुशल कारीगरों ने महल बनाया है। उन्होंने कोई कमी बाकी नहीं छोड़ी। जहाँ कमी दिखी, उसको पूरा कर दिया। परन्तु बाबा जी कहते है कि कमी है, और वह भी मामूली नहीं है, बड़ी कमी है। राजाने पूछा कि क्या बहुत बड़ी कमी है ? सन्त बोले की हाँ, भाई बहुत बड़ी कमी है। राजा ने पूछा कि महाराज ! वो बड़ी कमी क्या है ? संत बोले कि यह दरवाजा रख दिया है न, यह कमी है। राजा बोले महाराज ! दरवाजे बिना महल क्या काम का ? तब महाराज !बोले राजा अपने ये महल क्यों बनाया है ? राजा बोले रहने के लिए। सन्त बोले की राजन ! तुमने तो रहने के लिए बनाया है, पर एक दिन लोग तुम्हें उठाकर ले जायेंगे ! इस से ज्यादा कमी क्या होगी, बताओ ? बनाया तो है रहने के लिए पर लोग उठाकर बाहर ले जायेंगे, रहने देंगे नहीं ! इसलिये अगर रहना  तो यह दरवाजा नहीं होना चाहिये, बाहर एक दिन जाना ही है तो दरवाजे की जरुरत ही कहा है।

   भाव ये है कि यह अपना असली घर नहीं है। एक दिन सब कुछ छोड़कर यहाँ से जाना पड़ेगा। हमारा असली घर तो वह है, जहाँ से हम आये है। अथार्थ परमधाम , मुक्तिधाम ,शान्तिधाम।  यहाँ पर चाहे जितना भी सुख सुविधा वाला महल बना ले पर इसे यही छोड़ जाना होगा।

सीख - संसार में रहते हुवे भी अपने अन्दर कोई संसार न हो। सब कुछ उस ईश्वर का है ये भाव मन में रख कर कार्य करना है। जिस से दुःख नहीं होगा। 

Friday, August 8, 2014

Hindi Motivational stories.............किसान और देव इंद्र ( S.M)

किसान और देव इंद्र

  एक गाँव में बहुत किसान रहते थे सब में बहुत एकता थी और सब खेती करते थे। गाँव में हर साल दिवाली पर खूब खुशियाँ मनाई जाती थी। .... किसानों की एकता बहुत मजबूत थी किसी के भी अगर घर कुछ होता जैसे कोई बीमार हुआ तो सारा गाँव एक हो जाता था और उस व्यक्ति की सेवा में लग जाता। समय के अन्तराल में काफी परिवर्तन आता गया और एक बार उस गाँव में एक साल अकाल आया बारिश नहीं हुई और सब एक दूसरे को देखते पर अब पेट का सवाल था।

     गाँव से कुछ लोग शहर की तरफ चल दिये कोई मित्र रिश्तेदार के यहाँ गए।   इस तरह गाँव की आबादी कम हुई और किसानों की मन्सा बदली और वे सोचने लगे की इस बार फसल हो तो उसे संजोए रखेंगे ताकि वो साल बार चल सके। इस बीच कृषि विज्ञान के लोग उस गाँव में गए और किसानों से बात किया कुछ किसान उनकी बातों में आ गए और ज्यादा फसल की लोभ में आ गए और  केमिकल दवाओं का इस्तेमाल खेती में होने लगी। और उस साल बारिश भी अच्छी हुई। समय के चलते खेती ज्यादा होने लगी और गाँव में फिर एक बार खुशाली हुई। और ये कुछ समय तक चला। लेकिन अब किसान दवाओं के अधीन हुआ उसके बिना खेती नहीं करता और वह आराम पसंद बन गया। मेहनत नहीं करता। आज उसके पास बैलगाड़ी की जगह मोटर है।अच्छे सीमेंट का माकन है। आधुनिक जीवन शैली में रहता है।

    समय का चक्र एक बार फिर पलटा और एक साल बारिश नहीं हुई। अब फिर सब किसान परेशान और सब एक दूसरे की तरफ देखने लगे क्या किया जाय ? गाँव का मुखिया ने सब किसानों से बात की और निष्कर्ष ये हुआ की सब किसान एक दिन इंद्र की पूजा करेंगे बारिश के लिए। निश्चित दिन और समय पर गाँव के बाहर सब किसान  साथ जमा हुवे। और पूजा करने लगे। आरती के बाद जब सब घर की तरफ चलने ही वाले थे। तो अचानक एक बूढ़ा ब्राह्मण वहाँ आया बूढ़े ब्राह्मण को देख सब किसान रुख गए। और ब्राह्मण ने पूछा आप लोग पूजा क्यों कर रहे हो। बारिश के लिए सब किसानो ने कहा। ब्राह्मण ने कहा बारिश तो खुदरत की  देन है। इस के लिए पूजा नहीं प्रकृति का विधी नियम समझना होगा। किसानो ने पूछा वो कैसे करे ?

   ब्राह्मण ने उन्हें बताया की इस संसार में परिवर्तन चक्र फिरता रहता है। लोभ लालच के कारन अपने खेती में दवाओ का उपयोग प्रमाण से ज्यादा किया और जिस के कारन भूमि की शक्ति कम हुई और हमने जितने पेड़ थे उन्हें काट दिया। और पशुधन के बजाय मोटर गाड़ी का उपयोग करना शुरू किया। ये सब चीजे अल्प काल के लिये सुख देते है। सदा का सुख तो खुदरत के नियम से चलने में है। दवाओ का उपयोग बंद और ज्यादा से ज्यादा पेड़ लगाये। और पशु धन का उपयोग कर उस से ही खेती करना है। इतना कहकर ब्राह्मण अदृश्य हुआ।

 किसानो को अपनी ग़लती का एहसास हुआ। और वे पहले की तरह खेती करने लगे सब दवाओं का उपयोग बंद करके। जैविक विधि से खेती करने लगे। और उस गाँव में फिर से परिवर्तन आया। और किसान ख़ुशी में रहने लगे।
सीख - वक्त के साथ बदलाव आता जरूर है पर अधिक लोभ से अपना ही नुकसान कर बैठते है। इस लिए समय के साथ हर बात ज्ञान रखे  परिवर्तन करे। तो ज्यादा नुकसान से बच जायेंगे।

Saturday, July 26, 2014

Hindi Motivational Stories........................साधु और चोर

साधु और चोर 


    एक बहुत पुरानी बात है एक नगर में राजा और रानी थे। उनका आपस में बहुत प्रेम था। राजा जो कहता रानी मान जाती और रानी जो कहता वो राजा मान जाता। एक दिन रात्री में राजा और रानी बातें कर रहे थे। उस समय वह एक चोर आया और वह दरवाजे के पीछे बैठकर राजा रानी की बाते सुनने लगा। राजा ने कहा रानी से - 'हमें आपने बेटे को साधु बनाना है।' रानी ने कहा 'ये तो हम नहीं बना सकते।' राजा ने कहा - 'जैसा संग वैसा रंग अगर हम अपने बेटे को किसी अच्छे सन्त की शरण दे तो वह साधु बन सकता है। ' रानी ने कहा -'गाँव के बहार चार साधु आये है। उनसे मिलकर किसी एक साधु के पास बेटे को भेज देना।

      चोर ये ये बाते सुनकर सोचने लगा चोरी से तो पकड़े जाने का डर और साधु बनने से तो कोई डर नहीं और वो भी राजा के लडके को शिष्य बनाकर खूब धन दक्षिणा मिल जायेगा। ये सोच कर वह जंगल की तरफ गया बगवा कपडे पहने और रस्ते में सोचने लगा की सिर्फ कपडे पहन कर कुछ नहीं होगा ज्ञान भी चाहिए इस लिए वह पहले सन्त के पास गया और पूछा 'महाराज कल्याण कैसे हो ?' सन्त बोला - 'किसी का जी मत दुःखओ ' चोर बोला और कोई बात संत बोला नहीं और कोई बात नहीं ! चोर फिर दूसरे सन्त के पास गया और पूछा - ' महाराज कल्याण कैसे हो ? ' सन्त बोला। ' बेटे झूठ नहीं बोलना चाहे कोई गाला ही आपका काटे जैसे देखो वैसे बोलो '

"साँच बराबर तप नहीं, झूठ बराबर पाप।  
   जाके हिरदै साँच है , ताके हिरदै आप।"

     चोर तीसरे सन्त के पास गया और पूछा महाराज मेरा कल्याण कैसे होगा ? सन्त बोला, ' रात दिन बस राम राम करते रहो ' चोर बोले और कोई बात - सन्त बोला।, ' यही करो इस में सब आ गया '   फिर चोर चौथे सन्त के पास गया और पूछा -महाराज मेरा कल्याण कैसे होगा ? सन्त बोला  ' एक भगवान की शरण में जाने से - जैसे एक कुँवारी कन्या शादी के बाद सोचती है मेरी तो शादी हो चुकी है। ऐसे !' चोर बोला और कोई बात - सन्त बोला नहीं और कोई बात नहीं। … चोर ने चारों संतों की बात सुनकर आगे जाकर बैठ गया। और जब राजा आया तो चारों सन्त की बात सुनी और देखा की आगे एक और साधु है राजा उसके पास भी गया और पूछा कल्याण कैसे होगा ? चोर ने वही चार बातें जो सुनी थी वो बता दी और जब राजा ने पूछा और कोई बात तो इसने कहा - जैसा सन्त काहे वैसा करना चाहिये। राजा उसका दर्शन लेकर अपने महल की तरफ आते समय सोचने लगा पाँचवा सन्त ज्यादा ज्ञानी है सब ने एक - एक बात कही और उसने पांच बाते कही। उसको गुरु बनाना चाहिये।

    रात को राजा रानी से कहने लगा आज जंगल में जाकर संतो से मिलकर आया। रानी ने पूछा क्या सोचा आपने ? और इसी बीच राजा रानी जब बात कर रहे थे। तब चोर आकर चुपके से उनकी बातें सुनने लगा। राजा ने कहा मैंने सुना था चार सन्त है पर जंगल में तो पांच सन्त मिले और पांचवा सन्त मुझे ज्यादा ज्ञानी लगा उसने पांच ज्ञान की बाते कही बाकी सब ने एक-एक बात कही और आपका क्या विचार है ? रानी ने कहा जिनके पास ज्यादा ज्ञान हो वाही सन्त ठीक है। राजा रानी बहुत ही बोले और भावना वाले थे।

    चोर राजा रानी की बात सुनकर सोचने लगा मैंने तो झूठ कहा था। तब भी ये मुझे सन्त मान बैठे अगर मै सच में सन्त बन जाऊ तो क्या होग ! चोर की आत्मा जगी उसके ह्रदय में सच्चा साधु बनने की इच्छा उत्पन हुई। और वह सच्चे और अनुभवी गुरु की तलाश में जंगल जंगल भटकने लगा।उसने सोचा जिनसे मिलकर एक खिचाव होगा उन्हें ही वो अपना गुरु मानेंगे। उसकी जिज्ञासा देख भगवान खुद गुरु के रूप में प्रगट हुवे और उन्हें देखते ही खिचाव हुआ चोर उन्हें गुरु मानकर कहने लगे आप ही मेरे गुरु आप जो कहे सो मैं करूँगा। गुरु ने कहा सच मैं करेंगे ? चोर बोला हाँ जी। गुरु ने कहा  ' लो ये तलवार और जिसने कहा झूठ मत बोलो, और जिसने राम- राम का जप करने को कहा,  और जिसने एक भगवान की शरण जाने के लिए कहा, और जिसने कहा -किसी का जी मत दुखाओ ' उन सब के सिर काटकर ले आओ। '

    चोर तलवार लेकर भागा जँगल की तरफ जहाँ ये चारों सन्त बैठे थे। और रस्ते में उसका विचार चला किसी का जी मत दुखाओ तो मैं अगर मार देता हूँ तो जी दुखता हूँ। क्या करू ये चारों बातें तो मेरे ही सर में है। उसकी अन्तर मन ऐसा करने से माना कर दिया। और वह वहाँ से आपस गुरु के पास गया और गुरु ने कहा ले आये। गुरु देव ये चारों बातें मेरे सिर में है और मै आपको अपना सिर काटकर देता हूँ। तब गुरु ने कहा अब सिर काटने की कोई जरुरत नहीं ! मैं तुम्हें दिक्षा देता हूँ।

सीख - चोर ने चालाकी से पांच बातें धारण किया तो उसको भगवान का दर्शन हुआ और वह सन्त बन गया। और अगर कोई सच्चे मन से इन पांच बातों को धारण करे तो फिर कहना ही क्या !




Thursday, July 24, 2014

Hindi Motivational Stories.................. मरकर आदमी कहा जाता है।

मरकर आदमी कहा जाता है।

    एक बार एक पण्डित काशी से पढ़ाई पूरी कर अपने शहर आया और जैसे ही स्टेशन से उतर कर अपने घर के लिए रिक्शा करना चाहा पर उस दिन शहर में कुछ हड़ताल के कारण रिक्शा नहीं मिलीं तो पण्डितजी अपने पोती पुस्तक लेकर चल पड़े पैदल और रस्ते में एक जनाजा निकल रहा था तो पास के एक घर के यहाँ बाहर खड़े हो गए। उस घर के ऊपर एक वेश्या रहती थी उसने एक लड़की से कहा पता करो ये आदमी नरक गया है या स्वर्ग ? लड़की गयी और कुछ समय के बाद वापस आई और कहा ये तो नरक में गया।

     पण्डितजी सोचने लगे कि ऐसी कौन सी विद्य है जिस से ये पता चलता है कि आदमी मरने के बाद नरक में या स्वर्ग में गया है? जरूर वेश्या के पास कोई अनोखी विद्या है जिसे समझना होगा। पण्डित जी ये सोच ही रहे थे, कि एक और मुर्दा वहाँ से निकला तब फिर वेश्या ने लड़की से फिर कहाँ पता करके आओ ये कहाँ गया है ? लड़की गयी और कुछ देर बाद आई और कहा कि ये तो स्वर्ग गया। ....

   पण्डित जी से रह न गया वे तुरंत सीढ़ियों से ऊपर गये और वेश्या ने उसे देखते ही समझ गयी की ये अपना कोई ग्राहक नहीं है। पण्डित जाते ही कहा 'नमस्ते बहन जी' वेश्या बोली 'में बहनजी नहीं हूँ में तो वेश्या हूँ ' पण्डित बोला 'हमारे लिए तो आप सब माँ बहन ही हो।' वेश्या बोली 'अच्छा बोलो क्या काम है।' पण्डित ने कहा 'आपके पास कौन सी विद्य है जिस से ये पता चलता है कि मरने के बाद आदमी कहा जाता है ? ' तब वेश्या ने उस लड़की को बुलाया और कहा इन्हें बताउ कि अपने कैसे परिक्षण किया।

    लड़की ने कहा पहले जो मुर्दा गया उसके जनाजे में शामिल लोगो से उनका घर का पता मालूम किया और उनके घर गयी तो वे बहुत रो रहे थे पर उसमें दुःख का भाव कम था और वहाँ के लोगो से पूछा कि ये आदमी कैसा था? मोहल्ले वालों ने कहा हम तो निहाल हो गये। 'वह तो रोज गाली देता था और आये दिन कोई न कोई हंगामा करता था।' तो मैं समझ गयी कि ये व्यक्ति नरक में गया है।

      और दूसरे के घर गयी तो वहाँ बहुत लोग एक घर में बैठे रो रहे थे। में समझ गयी कि ये वही घर है और फिर उनसे पता किया तो मालूम हुआ की वो सब का बहुत प्यारा था। और मोहल्ले वालो से पूछा तो वे कहने लगे हम तो अनाथ हो गये। हमारा मशीहा चला गया ! कहकर वो भी रो पड़े। तो मैं समझ गयी की ये आदमी स्वर्ग में गया है। पण्डित जी ये बाते सुनकर बोले ये बातें तो हमें पढ़ाया गया था पर मेरे दिमाग में आया ही नहीं। और लड़की को धन्यावाद देकर पण्डित जी अपने घर चल दिये।

सीख - पढ़ाई करने के बाद भी वो बातें हमारे जीवन में समय पर याद नहीं आते क्यों कि चिन्तन का अभाव है। पढ़ाई के बाद हम अपने कारोबार और व्यर्थ चिन्तन में रहते है जिस के कारण मुलभुत चीजे खो देते है। इस लिए सदा चिंतन मनन करते रहो।


Sunday, July 20, 2014

Hindi Motivational stories.....................................संतों की शरण

संतों की शरण ……………

      एक गाँव में एक ठाकुर थे। उनके परिवार में कोई नहीं था, केवल एक लड़का था। जो ठाकुर के घर काम करने लगा था। रोजाना सुबह वह बछड़े चराने जाता था और लौटकर आता तो रोटी खा लेता था। ऐसे समय बीतता  गया। एक दिन दोपहर के समय वह बछड़े चराकर आया तो ठाकुर की नौकरानी ने उसको ठंडी रोटी खाने के लिये दे दी। उसने कहा कि थोड़ी-सी छाछ या राबड़ी मिल जाय तो ठीक होगा।  नौकरानी ने कहा कि जा -जा, तेरे लिये बनायीं है क्या? राबड़ी ! जा, ऐसे ही खा ले, नहीं तो तेरी मरजी ! उस लडके के मन में गुस्सा आया  " कि मैं धुप में बछड़े चराकर आया हूँ, भूखा हूँ, पर मेरे को बाजरे की रूखी रोटी दे दी, राबड़ी माँगा तो तिरस्कार कर दिया।" वह भूखा ही वहाँ से चला गया। गाँव के पास एक शहर था। उस शहर में संतों की एक मण्डली आयी हुई थी। वह लड़का वहाँ चला गया। संतों ने उसको भोजन कराया और पूछा कि तेरे परिवार में कौन है ? उसने कहा कोई नहीं है। तो संतों ने कहा कि तू साधु बन जा। लड़का साधु बन गया। फिर वह पड़ने के लिए काशी चला गया। वहाँ पढ़कर वह विद्वान हो गया। फिर समय पाकर वह मण्डलेश्वर (महन्त ) बन गया। मण्डलेश्वर बनने के बाद एक दिन उनको उसी शहर में आने का निमन्त्रण मिला। वे अपनी मण्डली को लेकर वहाँ आये। और ठाकुर भी वहाँ प्रवचन सत्संग में आये उनको सुने और सत्संग के बाद वे स्वामी से प्रार्थना करने लगे की हमारे घर भी एक दिन आओ। और मण्डेलश्वर जी ने उनका निमंत्रण स्वीकार कर लिया।
     
            मण्डलेश्वर जी अपनी मण्डली के साथ ठाकुर के यहाँ पधारे। उनका सम्मान  सत्कार किया गया। और सत्संग हुआ उसके बाद सब के लिये भोजन भी था। मण्डलेश्वर जी  के सामने तरह-तरह के भोजन के पदार्थ रखे हूवे थे। ठाकुर उनके पास आये और साथ में नौकर भी था जो हलवा का पात्र पकड़ा हुआ था ,और ठाकुर ने महाराज से विनंती की महाराज! मेरे हाथ से भी थोड़ा हलवा खावो। और तब महाराज जी को हँसी आयी तो ठाकुर ने हँसी का कारण पूछा ? तब महाराज ने  सब के सामने वो बात सुनाई।  ठाकुर जी आपने मुझे नहीं पहचाना में आपके यहाँ कार्य किया करता था और एक दिन थोड़ी सी राबड़ी माँगी थी पर नौकरानी ने मना कर दिया  और उसके बाद में यहाँ से चला गया। पास में ही सन्त-मण्डली ठहरी हुई थी, मैं वहाँ चला गया। पीछे काशी चला गया, वहाँ पढ़ाई की और फिर मण्डलेश्वर बन गया।

             यही वह आँगन है, जहाँ आपकी नौकरानी ने मेरे को थोड़ी-सी-राबड़ी देने से मना कर दिया था। अब मैं भी वही हूँ, आँगन भी वही है और आप भी वही है, पर अब आप अपने हाथ से मोहनभोग दे रहे हो कि महाराज,कृपा करके थोडा मेरे हाथ से ले लो !

       माँगे मिले न राबड़ी, करुँ कहाँ लगी वरण। 
    मोहनभोग गले में अटक्या, आ सन्तो की शरण।।

सीख - सन्तो की शरण लेने मात्र से इतना हो गया कि जहाँ राबड़ी नहीं मिलती थी. वहाँ मोहनभोग भी गले में अटक रहा है। अगर कोई भगवन की शरण ले ले तो वह सन्तों का भी आदरणीय हो जाय। लखपति-करोड़पति बनने में सब स्वतंत्र नहीं है, पर भगवान के शरण होने में, भगवान का भक्त बनने में सब-के-सब स्वतन्त्र है और ऐसा मौका इस मनुष्य जन्म में ही है।