मेहंदी हसान का लोकप्रिय ग़ज़ल। ....
अब के हम बिछड़े तो शायद कभी ख्वाबों में मिले
जिस तरह सूखे हुए फूल किताबों में मिले
ढूंड उजड़े हुए लोगों में वफ़ा के मोती
ये ख़ज़ाने तुझे मुमकिन है खरबों में मिले
तू खुदा है ना मेरा इश्क़ फरिश्तों जैसा
दोनो इंसान हैं तो इनूं इतने हिजाबों में मिले
घाम-ए-दुनिया भी घाम-ए-यार में शामिल कर लो
नशा बहता है शराबों में तो शरबों में मिले
अब लबों में हूँ ना तू है ना वो माजी है फराक़
जैसे दो साए तमाना के सराबों में मिले
अब के हम बिछड़े तो शायद कभी ख्वाबों में मिले
जिस तरह सूखे हुए फूल किताबों में मिले
ढूंड उजड़े हुए लोगों में वफ़ा के मोती
ये ख़ज़ाने तुझे मुमकिन है खरबों में मिले
तू खुदा है ना मेरा इश्क़ फरिश्तों जैसा
दोनो इंसान हैं तो इनूं इतने हिजाबों में मिले
घाम-ए-दुनिया भी घाम-ए-यार में शामिल कर लो
नशा बहता है शराबों में तो शरबों में मिले
अब लबों में हूँ ना तू है ना वो माजी है फराक़
जैसे दो साए तमाना के सराबों में मिले
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