Monday, April 21, 2014

Hindi Motivational Stories - शरणार्थी की रक्षा

' शरणार्थी की रक्षा '

     एक बार एक राजा बगीचे में बैठे हुए अपनी राजधानी के बारे में , राज - काज के बारे में मंत्रियों से बातें कर रहे थे। और कुछ देर बाद आकाश से किसी पक्षी की करुणा ध्वनि सबके कानों में गुँज गई। सबका ध्यान बर बस ऊपर उस ध्वनि की तरफ गया। देखते है एक घायल कबूतर उड़ता हुआ आ रहा था उन्हीं की ओर।  उसके पंख लड़खड़ा रहे थे, लग तो ऐसा रहा था मानो वह गिर पड़ेगा। सारा शरीर रक्त से भीगा था। 

      वह उड़ता हुआ नीचे उतरा और धीरे से केवल राजा की ही गोद में जाकर गिर पड़ा। इतने में थोड़ी ही देर बाद एक भयंकर बाज उड़ता आया। जब उसने अपने शिकार को राजा की गॉड में देखा तो तेजी से उसने एक झपटटा मारा, कबूतर को दबोचने के लिए। परन्तु कबूतर तो राजा की गोद में ऐसे छिप गया था जैसे एक अबोध शिशु माँ की गोद में जाने के बाद निश्चिंत हो जाता हो। बाज देखकर उड़ा और राजा के सर से होकर गुजरा। ऐसा लगा माना वह राजा को अपनी हुक जैसे पैनी चोंच मार देगा ऐसा करते हुए दूसरे पेड़ पर जा बैठा। 
          यह सब थोड़ी ही देर में घटित हो गया। सभी इस खेल को कौतुहल पूर्वक देख रहे थे। यह समजते देर न लगी कि यह कबूतर इस बाज का शिकार है। एक मंत्री बोला - 

मंत्री - राजन यह कबूतर इस बाज का भोजन है। इसे आप छोड़ दे, नहीं तो यह बाज हमारा पीछा छोड़ने वाला नहीं है। 

राजा - नहीं ! में इस शरण में आये कबूतर को नहीं छोड़ना। इस भोले पक्षी ने किसी का क्या बिगाड़ा। इस छोटे प्राणी ने मुझ पर विश्वास किया। अपने को मेरे समर्पण किया है आख़िर क्यों ? पक्षी तो इन्सानों से डरते है। परन्तु इसने अपने को मेरे हवाले किया है। इसके प्राणों की रक्षा करना मेरा धर्म है। 

दूसरा मंत्री - परन्तु महाराज ! एक की रक्षा दूसरे की हत्या, यह कैसा न्याय ?
राजा - वह कैसे ?इससे दूसरे की हत्या कैसे ?

मंत्री - वह इस प्रकार कि आप कबूतर की रक्षा तो कर लेंगे परन्तु उस बाज की रक्षा कौन करेगा ? क्यों कि यह उसका भोजन है। अंतः वह मरेगा या नहीं ?

राजा - ठीक है। मैं उसके लिए उसका भोजन मंगवा देता हूँ। इससे दोनों की रक्षा होगी। यह कहकर राजा ने बाज के लिए तरह तरह के मॉस मंगवाये। और फिर मॉस डाले गये बाज के सामने, परन्तु बाज ने उसकी ओर देखा तक नहीं। वह तो टकटकी बाँधे कबूतर को देख रहा था। 

तीसरा मंत्री - महाराज ! इस कबूतर को आप छोड़ेंगे तभी यह दुष्ट बाज जायेगा अन्यथा नहीं। यह तो कबूतर को ही मारकर खाना चाहता है। 

राजा - नहीं, मैं इस कबूतर को किसी भी कीमत पर नहीं जाने दूंगा। चाहे इस के लिए मुझे अपना मॉस ही बाज को क्यों ना देना पड़े। यह कहकर राजा ने अपनी तलवार से अपनी जाँघ का मॉस काटकर बाज के सामने डाल दिया। सारे दरबारी घबरा उठे और बाज भी सब देखकर राजा का इरादा समझ गया था, और बाज उड़ गया। उस दयालु राजा ने केवल एक पक्षी के समर्पण भाव को देखकर ही अपनी जान जोखिम में डाली और उस समर्पित हुए पक्षी की रक्षा की।  

सीख -  दिल से समर्पण हो जाने से उसका फल भी अवश्य मिलता है इस लिए किसी ने कहा है सच्चा सुख है समर्पण में !

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