Wednesday, April 30, 2014

Hindi Motivational Stories - 'अहंकार रहित व्यक्ति ही महान होता है'

       अहंकार रहित व्यक्ति ही महान होता है  


                      महाभारत का एक अनूठा प्रसंग है। अर्जुन ने श्रीकृष्ण से कहा भगवान् मैं ही आपका सब से बड़ा सेवक, भक्त और दानी हूँ। श्रीकृष्ण को आभास हो गया कि अर्जुन को इन गुणों का अहंकार हो गया। यह प्रसंग उस समय का है जब महाभारत का अंतिम दौर था। कौरव सेना धराशायी हो गई थी। युद्ध भूमि में कुछ योद्धा अन्तिम सांस लेने के लिए छटपटा रहे थे। श्रीकृष्ण और अर्जुन ने साधु का वेश बनाया। और घायल अवस्था में पड़े कर्ण के पास गए और उससे कहा - हे कर्ण ! हम तुम्हारे पास कुछ दान लेने के लिए आये है। कर्ण ने कहा - महराज, मैं तो इस समय आपको कुछ नहीं दे सकता।  मैं तो यहाँ युद्ध भूमि में अन्तिम सांस ले रहा हूँ। साधु ने कहा  - अच्छा बच्चा, क्या साधु तुम्हारे द्धार से खाली जाएगा।

                       कर्ण ने कुछ विचार कर कहा - महाराज मेरे पास एक सोने का दाँत है, मैं उसे तोड़ कर आपको समर्पित करता हूँ। जब दाँत तोड़ कर साधु की तरफ बढ़ाया तो वह रक्त-रंजित था जिसे देखकर साधु ने कहा - छी-छी ; हम ऐसा दान नहीं लेते। साधु किसी का खून नहीं करता। तब दानवीर कर्ण ने अपना आखरी तीर छोड़ा और वह बाण दनदनाता हुआ मेघाच्छदित आसमान को चीरता चला गया। और पानी की धरा बह निकली। और दाँत को धो दिया और साधु ने उसे स्वीकार कर लिया। और ये देख कर अर्जुन का अहंकार चूर चूर हो गया और अर्जुन ने श्री कृष्ण से क्षमा माँगी।

सीख - इस प्रसंग से हमे अपने कई गुणों की कमी और अहंकार से दूर रहने की प्रेरणा मिलती है।


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