Friday, May 8, 2020

Indian Heritage & Culture Part 3





Radio Madhuban 90.4 fm Sunte Raho Muskurate Raho.RJ Ramesh के साथ

विषय -भारतीय संस्कृति और विरासत

स्पीकर-prof.गजेंद्र कुमार(इतिहास)

एपिसोड ३

आइए जानते है ,भारतीय संस्कृति की लिपि और भाषाओं के बारे में क्योंकि तकनीक के दौर में हम आमतौर पर हिंदी और अंग्रेज़ी का ही उपयोग करते है ।बोलियों के बारे में कम जानने को मिलता है ।

प्रश्न-भारत की विरासत में भाषा के बारे में कुछ बताइए?

उत्तर-भारत विविधताओं का देश है ।इसकी विरासत बड़ी समृद्ध है।इसकी विभिन्नता के कारण  इसे उपमहाद्वीप भी कहा जाता है ।एक महाद्वीप में जितनी विभिन्नतायें पाई जा सकती है,वे सब भारत में  साथ ही  है।भाषा की एकता की माँग   होती ही है ,इसलिए हिंदी को राष्ट्रीय भाषा के रूप में रखा गया है।अंग्रेज़ी का उपयोग भी   भारत के अधिकांश क्षेत्र में मान्य है ।

लेकिन यदि हम भाषा का वर्गीकरण (categories) करे तो उत्तर,पश्चिम

और पूर्वोत्तर में जो भाषा बोली जाती है उनको इंडोआर्या(indo arya) कहा जाता है ।दक्षिण की तरफ़ द्रविड़ भाषा का समूह हूँ ।भारतीय अपेक्षाकृत tribal(जनजातीय) लोग है।उनकी अपनी ही भाषाएँ है ।जिनकी व्याकरण या लिखित इतनी स्पष्ट नहीं है ।हर ५-१० km क्षेत्र में खड़ी बोलियाँ है।मोटे तौर पर कहे तो हर क्षेत्र में विभिन्न भाषाएँ,बोलियाँ और लिपियाँ आपको मिलेगी ही ।

प्रश्न -भाषा का विद्यार्थी जीवन में क्या महत्व है ?

उत्तर-इसी क्रम में पहले ये कहूँगा कि भारत की जो प्राचीनतम सभ्यता है ,घाटी सभ्यता उसकी लिपि पढ़ी नहीं जा सकी ।ऐसा माना जाता है कि उसका कोई लिखित दस्तावेज़ नहीं है,लेखन की जानकारी तो थी ।चित्र  के माध्यम से लिपि प्रचिलित हुई।इसलिए प्रारम्भिक शिक्षा में भी चित्र,कलाकृति,चित्रकला के माध्यम से समझाया जाता है ।साहित्य को अगर हम काल अवधि के अनुसार देखे तो हमारे पास बुद्ध काल साहित्य ,मौर्य  साहित्य,विदेशियों के यात्रा के दौरान लिखित वृतांत है,साथ ही साथ अनेक विदेशी दार्शनिक और इतिहासकार के द्वारा हमें हमारे  देश  की अनेक जानकारियाँ प्राप्त है ।

बुद्ध और महावीर ने क्षेत्रीय भाषा  अपना कर इसको प्रचिलित किया था ।

वैसे  भारत में १००० से ज़्यादा

भाषाएँ है जो कि आँचलिक,क्षेत्रीय और राजकीय है।मगर हिंदी को official language माना जाता है ।

प्रश्न-भाषा के विषय पर संदेश क्या देना चाहेंगे ?

उत्तर-संवाद का सबसे सहज साधन भाषा ही है ।कहीं कहीं भाव इतने प्रबल हो जाते है कि मौन भी अभिव्यक्ति का साधन बन जाता है ।लेकिन भाषा पर वाद विवाद नहि होना चाहिए । भाषा सहज और सम्पन्न हो और जो जनजातीय में बोली जाए ,वह स्वीकार्य हो।भाषा के विषय को संकीर्णता से दूर रखा जाए क्यूँकि भाषा जोड़ने का काम करती है इसको लोगों को बाँटने के लिए उपयोग ना करे ।स्वदेशी भाषा  को महत्व दे ।भाषा  के आधार पर किसी से भेद  ना करे ।

RJ रमेश- बहुत ही अच्छा संदेश  दिया आपने ।

दोस्तों,भाषा नहीं तो भावनाओं को समझना भी थोड़ा मुश्किल हो जाता है ।यह व्यक्ति विशेष के विकास में बहुत महत्व रखती है ।हम दूसरी भाषा बोल रहे है तो हम अलग हो जाए ऐसा नहि होना चाहिए।भाषा सिखना,बोलना हमें जोड़ने के लिए बनाई गयी है।सबकी अपनी अपनी भाषा हो सकती है पर स्वयं को सशक्त बनाए तोड़े नहीं।😁

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