Friday, February 21, 2014

Hindi Motivational Stories - " महान शिल्पी "

" महान शिल्पी "

             बहुत पुरानी बात है एक गॉव में एक धोबी रहता था वह कपड़े धुलाई करता था  कपड़ो का ढेर कूटते-कूटते छज्जु धोबी मन ही मन गिड़गिड़ाया - क्या अजीब पत्थर है ये गड़रिया (वो पत्थर जिस पर धोबी कपड़े धोता है )  भी कितने सालो से मेरे पूर्वज और फिर मै इस पर हर रोज ढेरों कपड़े कूटते आ रहे हैं , पर ये फिर भी काला का काला ही है , ज़रा भी सफेद नहीं हुआ।  किसी ने ठीक ही कहा है कि अधजला अंगारा .... . . भला कोयला भी कही अपना रंग बदलने लगा?

           कपड़े धूल चुके थे।  छज्जु ने फिर से उस काले पत्थर की ऒर देखा और मन ही मन सोचने लगा ,
 अच्छा ,कल कपड़ो पर ढेर सारा सोडा डालूँगा। खूब गरम - गरम डालकर कपड़ो को जोर - जोर से कूटूंगा . फिर तो शायद तुझ बदनसीब का भी नसीब बदल जाए। मगर -- दूसरे दिन भी गिड़गिड़ाना ही छज्जू के
हाथ आया क्योंकि अभी भी वह पत्थर काला का काला ही दिखायी दे रहा था। बेचारा छज्जु परेशान सा कपड़ो कि गठरी लिए मालिकों के घर देने चल दिया।

          सेठ दयाराम जी के घर आज देश के सम्मानित शिल्पी "हेमन्त राज " आये हुए थे।  परेशान -सा छज्जू  कपड़ों की गठरी ले दयाराम जी के घर पहुँचा। दयाराम जी ने उसके चेहरे के भाव को पढ़ते हुए पूछा , क्यों भाई छज्जू , आज तुम काफी परेशान दिखाई दे रहे हो ? क्या बात है ? परेशान दिल का हाल पूछे जाने पर छज्जू  फूट पड़ा , क्या बताऊँ सेठ जी।  रोज गरम पानी में ढेर सारा सोडा डाल कर खूब देरी तक उस गड़रिया पर कपड़े कूटता हूँ ,पर फिर भी वह गड़रिया काला का काला ही है। अरे मै ही नहीं बल्कि मेरा पूरा खानदान उस पर कपड़े कूटता आ रहा है , पर बदनसीब गड़रिया अभी तक काला का काला ही है।  छज्जू के मुहँ फुलाने पर सेठ जी को हंसी आ गई।  परन्तु  .... शिल्पी राज उसकी बात को बहुत ध्यान से सुन रहा था।

              दूसरे दिन सवेरे जब छज्जू कपड़ों को सुखाने जा रहा था , तो देखा कि स्वयं शिल्पीराज उसकी तरफ आ रहे हैं। शिल्पीराज पास आकर बड़े प्यार से बोले - छज्जू ,क्या तुम मुझे अपना गड़रिया देगा ? उसके बदले जो माँगेगा में दे दूँगा।  परन्तु भोला छज्जू समझ नहीं पाया कि यह सब क्या नाटक है ,और बोल उठा ,साहब ये तो पतित गड़रिया है। इस पर तो मै लोगो के तमाम मैले कपड़े धोता हूँ।  इसे छूने पर तो आपको शुद्ध होना पडेगा।  इसे लेकर आप क्या करेंगे ? खैर ,उस कलूटे गड़रिया के बदले छज्जू को एक बड़ा सुन्दर गड्डर (पत्थर) और कुछ नोट भी मिले। फिर तो छज्जू कि ज़िन्दगी बदल गई।  और दिन पर दिन बीतते गये। और एक बार छज्जू धोबी को किसी काम से शहर जाना पड़ा।  शिल्पगार के सामने से गुजरते हुए अचानक उसे गड़रिया कि याद आयी तो वह तुरन्त ही उस शिल्पगार के अंदर चला गया। उसकी व्याकुल निगाहें जब टिकी तो देखा कि शिल्पी छैनी और हथौड़े के प्रहार से एक पत्थर को जोर - जोर से काट रहा था। और वह पत्थर कोई और नहीं बल्कि गड़रिया ही था।  

            कुछ दिन बाद छज्जू को मालूम पड़ा कि शिल्पी ने उस पत्थर से श्री कृष्ण की मूर्ति बनाई है जो आज कल साक्षी गोपाल के नाम से जीवंतसम है।  आज उस मंदिर में मूर्ति प्रतिष्ठा समारोह था जिस में छज्जू भी आया था।  उस का आनंदित मन किसी असीम आकाश को छू रहा था। उस साधारण गड़रिया से बनाई गयी पूजनीय देवता श्री कृष्ण कि मूर्ति पर सभी लोग अपनी- अपनी भेंट चढ़ाये जा रहे थे।  लेकिन   सच तो यह है कि कुशल शिल्पी के हाथ लगने पर पतित गड्डर भी देवता बन गया।  जिसे छूने मात्र से लोग अपने को पतित समझते थे , आज वो गड्डर पतित पावन बन गया।


सीख - इस कहानी से हमको सीख मिलती है कि कोई भी वस्तु या इंसान हो वो कितना भी ख़राब हो कैसा भी हो लेकिन उसको अच्छे हाथ का सहयोग मिलते ही अच्छा शिल्पी या गुरु का संग मिलते ही उसका रूप रंग बदल जाता है याने वो सम्पूर्णता को प्राप्त होता है। ....





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