Monday, March 10, 2014

Hindi inspirational & Motivational Stories - " जीवन का सत्य "

" जीवन का सत्य "

                 ऊँची -ऊँची पथरीली चट्टानों को पार करते हुए एक युवा सन्यासी तेज कदमों से अपनी मंजिल की ओर बढ़ता ही चला जा रहा था। काफी लम्बा सफ़र तय करने के बाद उसे विश्राम की आवश्कता महसूस हुई। आश्रय की तलाश में इधर - उधर नज़र दौड़ाई तो देखा उत्तर दिशा में एक विशाल वट - वॄक्ष की छाया में कुछ पथिक विश्राम कर रहे है। सन्यासी भी उसी वट - वॄक्ष के नीचे पहुँच कर अपना दण्ड -कमण्डल रखकर वाही विश्राम करने लगा। अन्य पथिकों में से एक गृहस्थी व एक संगीतकार भी था, जो वट - वॄक्ष की शीतल छॉव में लेटे हुए थे।  .......... 
 
               अब कुछ देर बाद अचानक मौसम में परिवर्तन होता है , और प्रवाहित हो रही मन्द शीतल पवन आँधी के रूप में बदल गई। आँधी के कारण वृक्ष की डालियाँ  आपस में टकराने लगी, कुछ टूट भी गई। डालियों का टकराना व टूटना देखकर गृहस्थी बोलने लगा - " संसार में शान्ति कहीं नहीं , देखो ! घर से निकलकर कुछ पल शान्ति के लिए यहाँ इस वृक्ष के नीचे आया तो यहाँ भी अशान्ति , टकराव , बिकराव।  ऐ डालियों ! तुम आपस में क्यों टकराती हो।  तुम्हें कौन से हिस्से बाँट का भय सताये जा रहा है।  तुम तो शान्ति से रहो। "


                युवा सन्यासी देखता है कि आँधी के कारण पत्ते पेड़ से टूटकर दूर उड़ते चले जा रहे है।  जिनका कोई अता पता ही नहीं पड़ता। सन्यासी सोचता है कि जीवन भी क्या है ? एक अन्तहीन लम्बी अन्नत यात्रा .... जिस में लगता है मंजिल कही नहीं, बस पड़ाव ही पडाव है।  देखो , कल तक ये पत्ते पेड़ की डाली से जुड़े थे, इनका कितना महत्व था आज ये महत्वहीन बनकर मिट्टी में मिल गये।  मै भी क्या हूँ ? जब तक इस संसार में हूँ तब तक मेरी पहचान है । ये शरीर छूट जाये तो मै भी माटी में मिल जाऊंगा।  सच , जीवन तो पानी का एक बुलबुला है। पता नहीं कब कौन सी लहर आये और फुट जाये।  भावी को किसने जाना।  ऐसा कहकर युवा सन्यासी अपनी वैराग्य की दुनिया में खो गया। 

सीख - सत्य को जानकार व्यक्ति अगर जीवन जिये तो संसार में कोई बुरा काम नहीं होगा। 

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