Saturday, March 8, 2014

Hindi Inspirational & Motivational Stories - " आशीर्वाद की क़ीमत "

" आशीर्वाद  की  क़ीमत "

                       एक बार एक नगर सेठ ने महात्मा बुद्ध को भिक्षा के लिए निमन्त्रण दिया। महात्मा बुद्ध ने निमन्त्रण स्वीकार कर लिया।  सेठ जी का  मन तो उछलने लगा कि मुझे भिक्षा के बदले ढेरो आशीर्वाद और दुआये मिलेंगी। निशचित समय पर महत्मा बुद्ध  द्वार पर पहुँचे। नगर सेठ  देखते ही दौड़े -दौड़े गए  अन्दर से खीर भरा पात्र लाये। पर ज्यु ही महाभिक्षु के पात्र में उड़ेलने लगे तो एकदम रुक गए क्योंकि भिक्षा पात्र कीचड़ से भरा था। सेठ जी को थोडा विचित्र लगा परन्तु मौके महानता को ध्यान में रखकर वे बिना बोले पात्र को साफ़ करने में लग गए और स्वच्छ भिक्षा - पात्र में खीर डालकर , महात्मा जी के हाथ में देकर और आशीर्वाद कि कामना से हाथ जोड़कर , सिर झुका कर उनके सामने खड़े हो गए। और महात्मा बुद्ध शान्त मुद्रा में खड़े उसे निहारते रहे।  उनका मौन नहीं टुटा,आशीर्वाद की झड़ी नहीं लगी।  सेठजी  का धैर्य -बाँध टूट गया।  उन्होंने कातर स्वर में कहा - महाराज , आशीर्वाद से कृतार्थ कीजिए। 

                   महत्मा जी तो जैसे इसी क्षण के इंतज़ार में थे।  उन्होंने ओजस्वी वाणी में धीरे- धीरे कहना सुरु किया - हे नगर सेठ, जिस प्रकार भिक्षा लेने से पहले भिक्षा - पात्र का स्वच्छ होना भी जरुरी है।  आपने कीचड़ से भरे पात्र के ऊपर खीर नहीं डाली क्यों की आपको ख्याल था कि खीर व्यर्थ हो जायेगी।  खीर की कीमत तो कुछ पैसे मात्र ही है परन्तु अशीर्वाद तो अमूल्य है। काम ,क्रोध, लोभ, मोहा, अहंकार  और छल -कपट से भरे मन - बुद्धि रूपी पात्र पर कीमती अशीर्वाद ठहरते ही नहीं।  इसलिए आप भी पहले मन - बुद्धि को स्वच्छ कीजिये। काम कि जगह आत्मिक स्नेह , क्रोध कि जगह क्षमा ,लोभ कि जगह संतोष , मोहा कि जगह वैशविक प्रेम ,और अंहकार कि जगह नम्रता भरिए।  छल - कपट कि जगह पर सरल चित बन जाइये।  फिर अमृत - तुल्य आशिर्वाद स्वतः तुम्हारी निजी सम्पदा बन जायेंगे , बिना माँगे भी मिल जायेंगे। 


                 नगर सेठ को सत्य का बोध हो गया उसका अंतर मन बदल गया।  महात्मा जी के शब्दों से सेठ जी को आत्म - विश्लेषण का बहुत सुंदर मन्त्र मिल गया जिसने उसके जीवन को अच्छाई कि ऒर मोड़ दिया। 

सीख - अशीर्वाद , प्रेम , सुख,शांति ये आत्मा के निजी गुण है जिसे प्राप्त करने के लिए दान में वस्तु या पैसे देने से नहीं मिलते है सच्चा सुख शांति के लिए मनुष को चाहिए कि वो आपने अन्तर मन को साफ रखे। खुद के लिए और दुसरो के लिए दिल में सदा शुभ भावना रहे।                  






                           

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