" दृढ़ता सफलता की कुँजी है "
एक बड़ा चतुर किसान था। कितना भी कोई कहे लेकिन वह कभी कोई प्रतिज्ञा या अच्छा संकल्प लेने को तैयार नहीं होता था। वह बहुत भावना वाला था और उसकी उदारता भी महिमा योग्य थी लेकिन वह कभी कोई नियम लेने को तैयार नहीं होता था। एक दिन गॉव में एक साधू आया। किसान के एक मित्र को मज़ाक सूझी। वह उस किसान को उस संत के पास ले गया। दोनों ने विनम्र भाव से वंदना की। कोई आज्ञा चाही। साधू ने बड़े प्यार से पूछा - क्या आप कोई प्रतिज्ञा या संकल्प लेंगे ? इस पर किसान पहले तो हिचकिचाया , कहने लगा - वैसे आज तक कभी प्रतिज्ञा नहीं ली है लेकिन आप आज्ञा देँगे तो ना भी नहीं कर सकता। बेचारा किसान बंध गया। साधू ने मुस्कुराकर पूछा - अच्छा क्या प्रतिज्ञा लेंगे ? किसान ने कुछ देर तक सोचकर कहा - मेरे खेत के पास से रोज एक गंजा व्यक्ति निकलता है , आज से उसके गंजे सिर को देखकर फिर भोजन करूँगा।
अब तो यह उसका नित्यक्रम बन गया कि पहले गंजे का दर्शन करना और फिर भोजन करना। अब ६ से ८ मास निकल गए।और एक दिन वह गंजा दिखाई नहीं दिया। एक तरफ भूख और दूसरी तरफ इंतज़ार। और आप जानते है। कि इंतज़ार कि घड़ियाँ लम्बी होती है। बहुत देर बाद दूर से उसने उस गंजे व्यक्ति को देखा जो चारों और देख रहा था। किसान ख़ुशी से चिल्लाया - देख लिया देख लिया ! अब बात ये थी कि उस गंजे व्यक्ति को अपने खेत में एक सोने की मुहरों से भरा हुआ घड़ा मिला था , वह सिर ऊँचा करके देख रहा था कि कोई देखता तो नहीं है। और इधर किसान अपनी ख़ुशी को व्यक्त करने के लिए चिल्लाया। अब ये सुनकर गंजा व्यक्ति घबरा गया और सोचा इस किसान ने मुझे देख लिया है , अब गंजा ने सोचा क्यों न उसकी ही मद्दत घड़ा उठाने में ली जाए ? सो उसने किसान को बुलाया और उसकी मदत ली और कुछ मुहरें किसान को दी। दोनों ने मिलकर घड़ा घर पहुँचा दिया।
सीख - वैसे किसी भी व्यक्ति को प्रतिज्ञा के बन्धन में रहना अच्छा नहीं लगता परन्तु प्रतिज्ञा चाहे कैसी भी हो लगातर अभ्यास करने से उसका लाभ जरुर होता है।
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