Wednesday, May 21, 2014

Hindi Motivational Stories...................................... सत्यता की महानता

सत्यता की महानता 

      एक वन में कुमुद नाम के ऋषि रहा करते थे। एक कुछ कार्य से उन्हें बाहर जाना हुआ। और कुमुद ऋषि अपना कार्य पूरा करके वापिस लौटे तो देखा कि अन्य ऋषि उनके वन में लगे वृक्ष के फल तोड़कर खा रहा था। ये दृश्य देखने के पश्चात् कुमुद ऋषि उनके नजदीक पहुँचे और पूछा -  क्या आपने फल ग्रहण करने से पूर्व इस वन के अधिपति की अनुमति प्राप्त की है ? ये बात सुनकर दूसरे ऋषि चौके क्यों कि वो यहाँ से गुजर रहे थे तो भूख की व्यकुलता में बिना कुछ सोचे ही फल तोड़कर खाना शुरू  कर दिया। इस पर कुमुद ऋषि ने बताया के ये उनका ही वन है और वे ये समझते है कि बिना किसी आज्ञा से उसकी वस्तु का उपभोग भी चोरी है, पाप है। इसकी सजा तो आपको आवश्य भुगतनी चाहिए। ये सुनकर फल खाने वाले ऋषि को अत्यन्त पश्चाताप हुआ और उन्होंने सुझाव दिया कि सजा देने का अधिकार तो राजा के पास है, आप उन्हें अपना अपराध सुनाकर सजा पूरा करे। 

       ऋषि राजा के पास पहुँचे। सारी बात सुनने के पश्चात् राजा ने कहा कि इतने थोड़े से फल बिना पूछे ले लेना सो भी आप जैसे ऋषि के लिए कोई पाप नहीं है। मैं तो इसकी सजा देने में अक्षम हूँ। अगर कुमुद ऋषि इसे चोरी या पाप समझते है तो आप उन्हीं से क्षमा याचना कीजिये। ऋषि ये सुनकर पुनः वन अधिपति के पास पहुँचे और अपराध की सजा माँगी। इस बार कुमुद ऋषि ने जवाब दिया कि - जाईये, मैंने आपको क्षमा किया। पर अब तो अपराधी ऋषि ढूढ़ थे सजा भोगने के लिए। बहुत देर समझाने पर भी जब वे अपनी बात से नहीं टूटे तो कुमुद ऋषि ने वन से दूर कुटिया में जाकर उन्हें तपस्या करने का सुजाव दिया और कहा की शायद परमात्मा स्वयं ही क्षमा कर दे। अपराधी ऋषि का ग्लानियुक्त मन तो जैसे प्रतिक्षण उन्हें झकझोर रहा था। भूख-प्यास, सर्दी-गर्मी की परवाह किये बिना वो कुटिया में जाकर ध्यान मग्न हो गये। 

     दो दिन की कठिन तपस्या रंग लाई। अपने अन्दर एक नई शक्ति का अनुभव करते हुए उन्होंने सुना - " हे वत्स, मैंने तुम्हें क्षमा किया, तुमने सच बताकर अपनी चोरी स्वीकार की, इसी के लिये तुम्हारी आधी सजा से तुम्हे मुक्ति मिली और रही हुई सजा इस तपस्या से पूर्ण हुई। अब जाओ, जाकर अपना कर्तव्य  फिर से शुरू करो। "

सीख - इस कहानी से हम समझ सकते है की बिना अनुमति के कोई वस्तु का उपयोग करना भी पाप है। और अगर जाने - अनजाने ऐसा हो जाता है तो सच बताकर पश्चाताप करे और ईश्वर की याद में रहकर अपने मन को शुद्ध करे। 

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