Sunday, December 1, 2013

" वो रात के मुसाफिर अब सुबह हुयी है "

 
 
वो रात के मुसाफिर अब सुबह हुयी है
देख ज़रा नज़ारे उठाकर कोई आया है
अब छोड़ भी दे ये जमीन
तेरे लिए कोई नया असामा लेकर आया है
वो रात के मुसाफिर अब सुबह हुयी है
अब नहीं करो तुम तनीक भी देरी
समय है ये बड़ा अनमोल
पल में बदल जायेगी तेरी तक़दीर
वो रात के मुसाफिर अब सुबह हुयी है
छोड़ आलस अलबेलापन
ये तेरे है सब से बड़े दुशमन
जिस ने छीना है तेरा सुख चैन
वो रात के मुसाफिर अब सुबह हुयी है
हटा दे तू आज सारे मन के भ्रम
चल अब चल तेरे इंतज़ार में है कोई
फिर नहीं मिलेगा ऐसी सौगात
वक्त कि आवाज़ येही है अब नहीं तो कब नहीं
वो रात के मुसाफिर अब सुबह हुयी है
वो रात के मुसाफिर अब सुबह हुयी है

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