"यह भी बदल जायेगा"
एक समय की बात है कि किसी राजा ने अपने राजकीय स्वर्णकार को बुलाकर कहा - हमें एक सुन्दर अंगूठी बनाकर दो तथा उस पर एक छोटी - सी पंक्ति अंकित के दो , जो हमें हर परिस्थिति में काम आये। अंगूठी तो बन गई लेकिन वह स्वर्णकार इसी चिन्तन में था - इस पर लिखें क्या ? उन्हीं दिनों उस राज्य में एक सन्त पधारे हुए थे। अँगूठी बनाने वाले स्वर्णकार ने राजा के आदेश का उस सन्त से जिक्र किया। सन्त बोले - ठीक है , इस पर यह पंक्ति अंकित कर दो कि - यह भी बदल जायेगा। राजा ने उस अँगूठी को पहन लिया और अपने राज्य - कारोबार में मग्न हो गया।
थोड़े समय के बाद पड़ोसी राजा ने उस राजा पर आक्रमण कर दिया। नौबत यहाँ तक आ गई कि उसे भागकर अपनी जान बचानी पड़ी। जब वह भाग रहा था, उस समय भी दुश्मन के कुछ घुड़सवार उसका पीछा कर रहे थे। वह एक गुफा की आड़ में खड़ा हो गया और अपने को जितना छुपा सकता था छुपा लिया। घोड़ो की टाप टाप आवाज़ सुनायी दे रही थी। उसके नजदीक घोड़े आ रहे थे। तब अचानक उसकी नज़र अपनी अँगूठी पर अंकित उन शब्दों पर पड़ी कि यह भी बदल जायेगा। और उसकी धड़कन शान्त होने लगी। उसने सोचा - इतना घबराने की जरुरत ही क्या है ?.... यह परिस्थिति भी थोड़े समय में बदल ही जायेगी। ज्ञान की एक नन्हीं किरण ने शब्दो के रूप में उसके अन्तर को आलोकित कर दिया। फिर कैसा दुःख ! और अब घोड़ो कि टाप टाप कि आवाज़ दूर और दूर होती चली गई।
समय के अन्तराल में एक दिन वह अपने आपको बहुत अच्छा तैयार कर लिया और युद्ध में पुनः विजय हुआ। बड़े गर्व से , ख़ुशी -ख़ुशी,गाजे - बाजे के साथ वह पुनः अपने राज्य में प्रवेश कर रहा था। लेकिन उसी वक्त अचानक उसकी नज़र पुनः उस अँगूठी पर पड़ी - यह भी बदल जायेगा। अब राजा विजय उत्सव के बीच वह पुनः शान्त और अन्तर्मुखी होता चला गया - अरे , यहाँ तो सभी बदल जाते है। ये हार ये जीत सब अल्पकाल के है , फिर इस में कैसा दुःख , और कैसा सुख ! अन्तर आलोक में राजा अब साक्षी बन गया था। और राजा ने ज्ञान का वह एक शब्द अपने जीवन में उतार लिया था। उसका जीवन आध्यात्मिक शक्ति से आलोकित हो गया था। समभाव की राजयुक्त मुस्कान उसके चेहरे पर फ़ैल गई। आज वह पहली बार अपने को अनेक बोझों से मुक्त , हल्का-फुल्का अनुभव कर रहा था।
सीख - ज्ञान के किसी भी बिन्दु को जीवन में धारन कर लो वह आपके जीवन को आलोकित कर देगा आपको सुख दुःख से पार ले जायेगा। ……………
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