Thursday, May 8, 2014

Hindi Motivational Stories - " साधना से भगवान मिलते है "

साधना से भगवान मिलते है 

            एक राजा था। वह बहुत न्याय प्रिय तथा प्रजा वत्सल्य एवं धार्मिक स्वाभाव का था। वह हमेशा अपने इष्ट देव की बड़ी श्रद्धा और आस्था से पूजा करता था। और एक दिन इष्ट देव ने प्रसन्न होकर उसे दर्शन दिये तथा कहा - राजन मैं तुम से प्रसन्न हूँ। बोलो तुम्हारी क्या इच्छा है, मैं उसे पूर्ण करूँगा। प्रजा को चाहने वाला राजा बोलो भगवान मेरे पास आपका दिया सब कुछ है। आपकी कृपा से राज्य में अभाव, रोग - शोक भी नहीं है। फिर भी मेरी एक इच्छा है कि जैसे आपने मुझे दर्शन देकर ध्यन किया है, वैसे ही मेरी सारी प्रजा को भी दर्शन दीजिये।

            भगवान ने बहुत समझाया ये सम्भव नहीं है पर राजा के जिद्द ने भगवान को राजी कर लिया और कल अपनी सारी प्रजा को लेकर पहाड़ी के पास आना और पहाड़ी के ऊपर से सभी को दर्शन दूँगा। ऐसा भगवान ने कहा और राजा बहुत खुश हुआ। और सारे नगर में ढिंढोरा पिटवा दिया कि कल सभी मेरे साथ पहाड़ी के पास चलेँगे जहाँ सभी को भगवान दर्शन देंगे।

         दूसरे दिन राजा अपनी प्रजा के साथ अपने स्वजनो के साथ पहाड़ी की ओर चलने लगा तो रास्ते में एक स्थान पर तांबे के सिक्को का पहाड़ दिखा। तांबे के सिक्को को देखते ही प्रजा भागी उस तरफ और सिक्को का गठरी बांध कर घर की तरफ चल दी राजा ने बहुत समझाया पर उसका कोई असर नहीं हुआ। और आगे बड़े तो चाँदी के सिक्को का पहाड़ आया तो कुछ रही हुई प्रझा उस पहाड़ की तरफ गयी और चाँदी के सिक्को को गठरी में बांधने लगी। और अभी सिर्फ स्वजन और रानी राजा के साथ थे और कुछ दूर जाने पर एक सोने के सिक्को का पहाड़ आया तो स्वजनों ने राजा का साथ छोड़ कर सोने के सिक्को की गठरी बांधने लगा गये और गठरी लेकर अपने घर की ओर चल दिये।

         राजा ने रानी को समझाया की लोग कितने लोभी है भगवान से मिलने के बजाय वो इन सब में फँसकर अपना भाग्य की रेखा को छोटा कर रहे भगवान जो सब का दाता है उन से बड़ी कोई और वस्तु नहीं है। रानी राजा की बात सुनकर राजा के साथ चलती रही। अब राजा और रानी दोनों ही आगे का सफर तय कर रहे थे और कुछ दूर जाने पर राजा और रानी ने देखा कि सप्तरंगी आभा बिखेरता हीरों का पहाड़ है। अब तो रानी भी दौड़ पड़ी और हीरों की गठरी बनाने लगी। फिर भी उनका मन नहीं भरा तो साड़ी के पल्लू में भी बाँधने लगी। रानी के वस्त्र देह से अलग हो गये, परन्तु हीरों की तृष्णा अभी भी नहीं मिटी। यह सब देख राजा को आत्मा ग्लानि और वैराग आया। वह आगे बढ़ गया। वहाँ भगवान सचमुच खड़े उसका इंतज़ार कर रहे थे। राजा को देखते ही भगवान मुस्कुराये और पूछा - राजनं कहाँ है तुम्हारी प्रजा और तुम्हारे प्रियजन। मैं तो कब से उनसे मिलने के लिये बेक़रारी से उनका इन्तज़ार कर रहा हूँ।

        राजा ने शर्म और आत्मा-ग्लानि से अपने सर को झुका दिया। तब भगवान ने राजा को समझाया - राजनं जो लोग भौतिक प्राप्ति को मुझ से अधिक मानते है , उन्हें कदाचित मेरी प्राप्ति नहीं होती और वे मेरे स्नेह तथा आशीर्वाद से भी वंचित रह जाते है। दूसरा बिना प्रेम और पुरुषार्थ के भी मुझे नहीं पा सकते। तुमने स्वम् को पहचाना, मुझे प्रेम से याद किया, तब तू मुझे पा सका।

सीख -  भगवान की प्राप्ति उन्हीं को होती है जो भौतिक प्राप्ति से दूर रहते है याने संसार में रहते संसार आप में न हो तो ही भगवान की प्राप्ति और उसका प्रेम मिलेगा। कर्म करे पर कर्म फल की इच्छा न हो। इच्छा ये हो मैं सदा भगवान की याद में राहु। 

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