"अहिंसा की विजय"
एक बार महात्मा बुद्ध एक स्थान से किसी दूसरे गॉव जाना चाहते थे। जिस गॉव जाना चाहते थे, उस गॉव का एक छोटा - सा रास्ता जंगल से होकर जाता था। जंगल में अंगुलिमाल नाम का एक बहुत खूँखार, निर्दयी एवं क्रूर डाकू रहता था। वहाँ से जो भी व्यक्ति जाते थे, वह उसे लूटकर उसके हाथों की अंगुलियाँ काट लेता था और फिर उन्हीं अंगुलियों की माला बना कर एवं पहन कर स्वछन्द घूमता था। ऐसे भयानक डाकू से सभी लोग डरते थे और दूसरे लम्बे मार्ग को पार करके दूसरे गॉवो की यात्रा करते थे।
जब बुद्ध उसी रस्ते से जाने लगे तो लोगों ने उन्हें खतरे से आगाह करते हुए बहुत समझाया कि आप उस रस्ते से न जाये। परन्तु महात्मा बुद्ध उसी रस्ते से अकेले चल पड़े। जब वे घनघोर जंगल से गुजर रहे थे तो किसी व्यक्ति ने भरी और ऊँची आवाज़ में आदेश दिया - रुक जाओ, एक कदम भी आगे बढ़ाया तो जान से हाथ धोना पड़ेगा। किन्तु बुद्ध अपनी मस्त चल से चलते ही रहे। उस व्यक्ति ने बुद्ध कि तरफ भयानक आवाज़ करते हूआ उन्हें पकड़ने हेतु दौड़ लगायी। जब वह पास आ गया तो उसने फिर रुकने को कहा, उसकी आँखे गुस्से से लाल थी, उसके आँखों में खून भरी थी और हाथ में एक बहुत धारवाला हथियार था। महत्मा रुख गए।
उसने बुद्ध से पूछा - जानते हो मै कौन हूँ ? बुद्ध ने कहा - हाँ, लोगों ने बताया कि आप अंगुलिमाल हो। उसने फिर पूछा - क्या मुझे देखकर तुम्हे डर नहीं लग रहा है ? और तुम दुसरो कि तरह मुझे देख कर भाग भी नहीं रहे हो। बुद्ध ने कहा - नहीं, बिल्कुल नहीं। वह पुनः कहने लगा कि मै लोगों कि अंगुलियाँ काट लेता हूँ और उसकी माला बनाकर पहनता हूँ। उसने डरावनी शक्ल बनाकर कहा - देखो, यह माला ! बुद्ध ने इसके उत्तर में निर्भयता पूर्वक दोनों हाथ उसके सामने बढ़ा दिये। ऐसा दृश्य जीवन में पहली बार देखकर अंगुलिमाल अवाक रह गया। उसे जीवन में पहली बार ऐसा कोई व्यक्ति मिला था। जो इतना निर्भय अचल अडोल था। ऐसे क्रूर हिंसा पर उतारू व्यक्ति के प्रति भी करुणा एवं दया का भाव था। फिर भी उसने महत्मा बुद्ध के दोनों हाथ एक हाथ से पकड़ कर दूसरे हाथ में हथियार पूरी शक्ति से ऊपर उठाकर हाथ कटाने को बढ़ाया और उसी समय बुद्ध की आँखों में आँखे डाल कर देखता रहा और जैसे ही नज़र से नज़र मिली उस डाकू पर उनकी अहिंसा का ऐसा असर पड़ा कि वह हथियार दूसरी तरफ फेंक कर उन के चरणों पर गिर पड़ा और गिड़गिडा कर प्रार्थना करते हुए कहने लगा - बताईये आप कौन है ? इतने शान्त और निर्भय। महत्मा बुद्ध उसे उठाया और एक पेड़ के नीचे बैठकर उसे उपदेश दिया और अपने रस्ते चल दिए।
सीख - हिंसा करने वाले कितने भी शक्तिशाली हो अहिंसा के आगे उसकी हार निश्चीत है। इस लिए अहिंसा को धारण करो।
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