Friday, February 21, 2014

Hindi Motivational Stories - " एक ही भूल "

" एक ही भूल "


               एक बार ग्यारह यात्री एक नगर से दूसरे नगर जा रहे थे।  जैसे आगे बड़े तो रास्ते में एक नदी आ गयी। सभी घबरा गए कि अब नदी को कैसे पार  करें।  किसी भी प्रकार की सुविधा वह नहीं थी परन्तु जाना बहुत जरुरी था।  उसमें एक चतुर था।  उसने कहा ,"घबराओ नहीं , नदी को अवश्य पार  करेंगे। " उसके कहने पर सब ने एक दूसरे का हाथ पकड़कर नदी को पार कर लिया।  फिर उस चतुर व्यक्ति ने कहा गिनती तो कर ले हम सब है कि नहीं। अब उसके कहने से एक ने गिनती सुरु की। एक - दो - तीन - चार - पाँच … दस। और स्वम को उसने गिनती नहीं किया और फिर चौक कर कहने लगा कि हम तो ग्यारह थे , एक कहा गया ?

      दूसरे ने कहा - में गिनता हुँ।  उसने भी अपने को छोड़कर गिनती किया और कहा - दस। उसके बाद सब ने गिनती किया वैसे ही जैसे पहले व्यक्ति ने किया सभी ने दस ही गिनती किये सभी रोने चिल्लाने लगे।  वहाँ से एक अन्य यात्री गुज़र रहा था।  उसने पूछा - अरे भाई ! क्यों रो रहे हो ? सभी ने एक साथ उत्तर दिया ,"हम ग्यारह थे और नदी पार करते ही हम दस हो गए है इस लिए हम रो रहे है " उस व्यक्ति को तो ग्यारह दिखायी दे रहे थे उसने समझ लिया कि मजरा क्या है, और कहा अगर में ग्यारहवें यात्री को खोजा तो ? वे सभी बोले हम आपको भगवान मनेंगे।  तब यात्री ने कहा - बहुत अच्छा ,आप सभी एक के पीछे एक बैठ जाओ। सभी बैठ गए।
अब जैसे ही में चमाट मारुँ तो एक दो तीन.… कहते जाओ। यात्री ने मारना शुरू किया , एक को मारी तो उसने कहा - एक , दूसरे को मारी तो उसने कहा दो , तीसरे को मारी तो उसने कहा तीन.… . .  । इस प्रकार अन्तिम व्यक्ति ने कहा ग्यारह।  सब बहुत प्रसन्न हो गये। सभी ने उस चमाट मरने वाले व्यक्ति को कहा ,-"सचमुच तुम तो भगवान हो।"

               हम सब को इन यात्रियों कि मूर्खता पर हॅसी आती होगी। परन्तु सोच कर देखें , हम स्वम क्या कर रहे है।  हम भी ग्यारह यात्री चले थे इस जीवन यात्रा पर।  पाँच कर्मन्द्रियाँ , पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ और ग्यारहवी आत्मा।  देह अभिमान में आकर पांचों कर्मन्द्रियाँ , पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ की गिनती हर रोज कर लेते है परन्तु स्वम को यानी आत्मा को भूल जाते है और स्वम को भूलने के कारण ही इस संसार रुपी विषय वैतरणी नदी की दलदल में फॅस गए।

 



सीख - ये कहानी से हम को ये सीख मिलती है की वर्तमान में जो दुःख हमें हो रहा है उसका कारण है खुद को भूलने से इस लिए अब अपने को आत्मा समझ एक पिता परमात्मा को याद करने से सब दुःख दूर हो जायेंगे और सुख शांति कि अनुभूति होगी तो आज से खुद को देह न समझ आत्मा समझ कर्म करे। …






Thursday, February 20, 2014

Hindi Motivational Storie - The End of the Earth - सृष्टि के अन्त का लक्षण

सृष्टि के अन्त का लक्षण 

                 महाभारत में बहुत सी ऐसी बाते है जिन को समझ ने से आज के समय कि पहचान मिलती है ऐसा ही एक उदहारण आज में आपको बताना चाहूंगा … महाभारत में वर्णन आता है की एक बार पाण्डवों ने भगवन से पूछा , "भगवन ,कृपया हमको सृष्टि की वे निशानियाँ बतायें जब आपका पुनः इस धरा पर अवतरण होगा। ?
भगवन ने कहा,"में आपको निशानियाँ बताऊँगा जरुर पर उसके लिए आपको एक काम करना होगा आप सब भाई अलग अलग दिशाओं में एक एक घण्टा घूम कर आऒ और लौटकर मुझे बताओ कि आपने क्या क्या देखा ? पाँचो भाई एक साथ गए और एक घण्टे के बाद भगवन के पास आकर आश्चर्यजनक  घटनाओं का वर्णन करने लगे।  सब से पहले युधिष्ठिर बोला ,"मैंने एक हाथी देखा जिसकी दो सूंडे थी।'  उसके बाद अर्जुन बोला ,"मैंने एक ऐसी पक्षी देखा जिसके पैरो में मंत्र बंधे हुए थे परन्तु वह मॉस को चोच से नोच नोच कर खा रहा था।'  अब भीम की बरी थी , उसने कहा ,"मैंने एक ऐसी गाय देखी जो अपनी बछड़ी का दूध पी रही थी।'  नकुल भी बोला ,"मैंने तीन कुआँ देखा। पहला कुआँ भरा हुआ था लेकिन उसके पास एक कुआँ खाली था।  इन दोनों से दूर , भरा हुए एक तीसरा कुआँ था, जो खाली कुआँ को पानी दे रहा था।"  अब अन्त में सहदेव ने भी अपना अनोखी घटना को सुना दिया ,"मैंने पहाड़ से एक पत्थर को फिसलते देखा जो रास्ते के सारे पेड़ो को गिरता हुआ आ रहा था।  वाही पत्थर एक घास के तिनके के आगे रुक गया।  इन अजीबोगरीब बातों को सुनाकर पांचो भाई एक - दूसरे को देखने लगे और सयंत भाव से भगवन के उत्तर कि प्रतीक्षा करने लगे।

                                                   

          भगवन ने सब को सुनने के बाद इन अजीबोगरीब बातो का आध्यात्मिक रहस्य  बताना  सुरु किया  और कहा , "  दो  सूंड वाला हाथी राज्य सत्ता का प्रतीक है।  धर्म ग्लानि के समय का राजा (राजनैतिक ) अमीर व गरीब दोनों से खायेगा।  दोनों से लगान के रूप में पैसे वसूल करेगा।  उसके मन में दया और सेवा की भावना नहीं रहेंगी। मंत्र युक्त पक्षी मॉस नोच कर खाये , इसका अर्थ है कि कलयुग के अन्त में तथाकथित ब्राह्मण , पण्डित , पुजारी , आदि मंत्रो के ज्ञाता होते हुआ भी भ्रस्ट आचरण वाले होंगे।  वे तमोगुणी खानपान , चरणों की पूजा और धन कि हवश , इन विकृतियों से ग्रसित होंगे।  गाय द्वारा बछड़ी का दूध पिया जाना इस बात का प्रतीक है कि कलयुग में माता - पिता भी बेटी का कमाया खायेंगे।  तीन अलग अलग कुओ का रहस्य है - धर्म ग्लानि के समय मनुष अपने माता पिता तथा अति नजदीक  सम्बन्धियों से दूर - दराज के लोगों से मदद व लेन - देन करेंगे।  पहाड़ से गिरता पत्थर धर्म की गिरावट का प्रतीक है।  इस गिरावट से बड़े - बड़े विद्धानों का भी पतन हो जायेगा।  अन्त में तिनका समान हल्के , बिन्दु रूप भगवन शिव के द्वारा मानव मात्र को ज्ञान - योग कि शरण दी जायेगी , तब गिरावट बन्द होगी।

 


सीख  - वर्तमान समय को समाने रख कर देखो ऐसा ही है अब आपको क्या करना है आप समझ गए होंगे तो आज ही से भारत का प्रचीन राजयोग जरुर सीखे इस का अभ्यास आज से सुरु करे जिस में सारा संसार का कल्याण समाया हुआ है।







Sunday, February 16, 2014

Hindi motivational stories - " अहंकार से अपमान होता है "

अहंकार से अपमान  होता है 

      एक बार कि बात बताते है आज से बहुत साल पहले कहानिया सुनाने का ढंग कुछ खास था तब कहानियो को बहुत प्यार से लोग सुनते थे और सुनाने वाले भी बड़ी रोचकता से सुनाते थे। 
मोमबत्ती और अगरबत्ती दो  बहनें  थीं। दोनों ही एक मंदिर में रहती थीं। 
बड़ी बहन मोमबत्ती हर बात में अपने को गुणवान और अपने फैलते प्रकाश के प्रभाव में 
अपने को  ज्ञानवान समझकर , छोटी बहन को नीचा दिखाने का प्रयास करती थी।
  अगरबत्ती उसके इस प्रयास से व्यथित होती थी परन्तु व्यथा को प्रकट नहीं कर पाती थी। 
 सदा की भाँति उस दिन भी पुजारी आया , दोनों को जलाया और 
किसी कार्यवश मंदिर से बाहर चला गया। तभी हवा का एक तेज  
 झोंका आया और मोमबत्ती बुझ गयी। ये देख अगरबत्ती ने धीरे से 
अपना मुख खोला - हवा के एक हल्के झोंके ने तुम्हारे प्रकाश को समाप्त कर दिया 
परन्तु इस झोंके ने मेरी सुगन्ध को और ही चारो तरफ बिखेर दिया।  
ये सुनकर मोमबत्ती को अपने अहंकार का बोध हो गया।


 
 
सीख - व्यक्ति को कभी भी किसी भी बात का अहंकार नहीं करना चाहिए 
क्यों कि इस संसार में हर व्यक्ति का अपना विशेष रोल है .

Hindi Motivational stories - " मूल्यों की धारणा "

मूल्यों की धारणा

             बरसात कि हल्की फुहार के बीच फिसलन भरे रास्ते पर दो साईकिल सवार सामने से आ रहे थे , और अचानक दोनों कि टक्कर होती है।  दोनों गिर जाते है।  एक जैसे तैसे खड़ा होता है और आँखे लाल करके दूसरे को कहता है -"अन्धा है क्या ? दिखाई नहीं देता तुझे ?

 
 
दूसरा भी तब तक खड़ा हो चूका था।  वह तैश में आकर कहता है। ।,"तू अन्धा ,तेरा बाप। …। ." अब मामला इतना गम्भीर हो जाता है कि अनेक लोगो को  बचाव करने के लिए एकत्रित होना पड़ता है।  थोड़ी देर बाद  उसी रास्ते पर दो और साइकिल सवार सामने से आ रहे थे। और अचानक उनकी भी टक्कर हो जाती है।  और दोनों गिर पड़ते है।  एक उठा , कपड़ो को टिक किया और दूसरे भाई की तरफ हाथ बढ़ाया - "भाई साहब ! माफ कीजिये। मेरी गलती से आप गिरे। " दूसरा उठकर मुस्कुराता है - " नहीं। . नहीं, मेरा हैण्डल ही टिक नहीं था।  "'दोनों ख़ुशी-ख़ुशी आगे अपना रास्ता तय करते है।

दोनों घटनाओं में सब कुछ समान होते हुए भी मूल्यों की व्यवहारिक धारणा के कारण इतना अन्तर नज़र आ रहा है।  तो आईये , प्रेम, शांति , सदभावना , नम्रता , सत्यता का पाठ पढ़े , जीवन में उतारे और सुखी समाज निर्माण करे।

Friday, February 14, 2014

Hindi Motivational stories - " ईमानदारी ही महानता है "

" ईमानदारी ही महानता है "

आचार्य चाणक्य मगध साम्राज्य के स्थापक और सबकुछ थे।
 उन्हें राजनीति के प्रवर्तक भी माने जाते है। वे पुरे साम्राज्य का संचालन भी करते थे। 
 उनके इशारे पर चंद्रगुप्त कार्य करते थे।  उनकी बुद्धि और सूझबूज से मगध सम्राट संतुष्ट थे।  
इतने बड़े राज्य का संचालक होने के बाद भी चाणक्य स्वम साधारण -सा जीवन जीते थे 
और घास -फूस  की बनी एक झोपड़ी में रहते थे। 
 कई विदेशी लोग भी उनसे मिलते और उनकी सादगी और पवित्र आचरण को देख कर दंग रह जाते। 

 

और एक बार फहियान ने मगध देश में आचार्य चाणक्य कि प्रशंसा सुनी ,
 तो वह उनसे मिलने राजधानी में आ पहुँचा।  और उस समय रात हो चुकी थी।
  और उस समय चाणक्य अपना कार्य कर रहे थे।  तेल का एक दीपक जल रहा था। 
चाणक्य आगंतुक को जमीन पर बिछे आसान पर बैठने का अनुरोध किया। 
 फिर वहाँ जल रहे दीपक को बुझा दिया , अन्दर गए और दूसरे दीपक को जला कर ले आए। 
 आगंतुक विदेशी व्यक्ति आश्चर्य में पड़ गया। 
 वह इस रहस्य को नहीं समझ सका कि जलते दीपक को बुझाकर , बुझे हुए दूसरे दीपक को जलाना ,यह कैसी बुद्धिमानी हो सकती है ? उसने संकोच करते हुए चाणक्य से पूछा - यह क्या खेल है ? 
जलते दीपक को बुझाना और बुझे दीपक को जलना ! 
जला था तो बुझाया ही क्यों और बुझाया तो जलाया ही क्यों ? रहस्य क्या है ? 
चाणक्य ने मुस्कुराते हुए कहा इतने देर से अपना निजी कार्य कर रहा था 
इसलिए मेरा दीपक जल रहा था , अब आप आये
 मुझे राज्य के कार्य में लगाना होगा , इसलिए यह सरकारी दीपक जलाया है। 
 आगंतुक चाणक्य  की इस ईमानदारी और सच्चाई  को देख बड़ा प्रभावित हुआ। 

सीख - व्यक्ति के जीवन में  ईमानदारी का एक गुण पूरी तरह से व्यक्ति को निखार देता है 
इस लिए ईमानदारी के गुण जीवन में अपनाकर अपना व्यक्तित्व निखारते जाए।

Hindi Motivational stories- "स्वमान कि जागृति "

स्वमान कि जागृति



एक दिन आरब बादशाह नशाखान से मिलने के लिए एक आरब आ पहुंचा।
और आरब बादशाह के महल के पास आया तो प्रवेश द्वार पर ही उसे रोक दिया गया।
 तब आरब ने थोड़े इंतज़ार के बाद उसने बादशाह के नाम एक चिट्ठी लिखी कि
 " में एक दिन हीन आरब हुँ और आपसे मिलाना चाहता हुँ। "
दरबान ने जाकर चिट्ठी बादशाह को दे दी , उसे अन्दर बुलवा लिया गया।
तब आरब अन्दर गया और अन्दर जाते ही बादशाह नशाखान 
ने पहला ही सवाल किया - तुम कौन हो ?
 और  आरब ने नशे से उत्तर दिया जहाँपनाह , में एक महान आरब हुँ। 
बादशाह चौक कर बोले अरे भाई ! तुमने चिट्ठी में तो लिख भेजा था कि तुम एक दिन हीन आरब हो।
  और यहाँ आते ही तुम्हारी भाषा बदल गई ?
 आरब ने स्वमान युक्त नशे से जवाब दिया।
 "जब में बादशाह नशाखान से दूर था तब एक मामूली-सा आरब था लेकिन अब में स्वयं बादशाह के साथ हुँ तो महान आरब बन गया हुँ।"

सीख - हम को सदा स्वमान के नशे में रहना है . इस से हमें याद रहता है हम कौन और हमारा कौन है 
          हम सब उस ईश्वर कि संतान है तो खुद को ईश्वर का बच्चा समझ अच्छे कर्म करते जाए. . 
          बाकि व्यसनों का नशा कभी मत करना उससे खुद का और ईश्वर का नाम बदनाम होता है।

Tuesday, February 11, 2014

Hindi Motivational stories - निश्चय में विजय है


                                                         " निश्चय  में विजय है "



दूर एक गाँव में  एक पति -पत्नी का आपस में बहुत प्यार था।

  एक बार वे दोनों जहाज़ पर सफ़र कर रहे थे।  

अचानक समुद्र में तूफान उठा और सब घबरा ने लगे।

 पत्नी ने देखा कि उसका पति एकदम निर्भीक होकर 

बैठा है। उसने पूछा - आपको डर नहीं लग रहा है ?

पति ने तुरंत म्यान से तलवार निकली और पत्नी कि गर्दन 

पर रख दी और पूछा बताओ  तुम्हे ड़र लग रहा है ?

 तो पत्नी ने जवाब दिया कि मुझे मालूम है कि आपको मुझ  

से बहुत प्यार है , इस लिए आप मेरी गर्दन नहीं काट सकते है।

तब पति ने कहा इतना ही निश्चय , इतना ही 

विश्वास मुझे परम पिता परमात्मा में है।

  मेरा किसी भी बात में ,

किसी भी कारण से अकल्याण नहीं हो सकता।


इस लिए कहा जाता है निश्चय में ही विजय है