Monday, February 24, 2014

Hindi Motivational stories - "दुआयें दें और दुआयें लें"

"दुआयें दें और दुआयें लें"

                  बचपन में दुआओ के बारे में एक कहानी पढ़ी थी। एक राजा की सौतेली लड़की को उसकी सौतेली माँ ने थोड़ा खाने के सामान के दूर जंगल में भेज दिया।  राजकुमारी के मन में सब के लिए दया और प्रेम था इस लिए राजकुमारी सौतेली माँ के कहने पर जंगल आ गई। थेड़ी देर घूमने के बाद राजकुमारी एक नदी के पास आ गई ,तब राजकुमारी ने सोचा चलो स्नान कर लेते है। अब राजकुमारी स्नान करने नदी में गई। उतने में एक नाग -रानी जिसने अभी - अभी अपने बच्चे को जन्म दिया था और वह बहुत भूखी थी , तो उसने राजकुमारी का सब खाना का लिया। तत्पश्चात् नाग - रानी थोड़ी जाकर बैठ गई और सोचने लगी - मैंने जिनका खाना खाया है वह क्या सोचती है या कहती है ? राजकुमारी जब स्नान करके वापस आई तो उसने अपने सामान से खाने की चीजें ख़त्म हुई देखी तो राजकुमारी ने प्रेम से दुआयें देते हुए कही - कोई हर्जा नहीं , या खाना जैसे मेरे पेट में शान्ति देता , ऐसे खाने वाले को भी पेट में शान्ति देगा। राजकुमारी कि इन दुआओ भरे शब्दों को सुनकर नागरानी खुश हुई और उसने राजकुमारी को अनेख रत्न दिए।  और राजकुमारी रत्नों लेकर अपने पिता के पास गई। अब ये देखकर सौतेली माँ को बड़ा ईर्षा हुई। और दूसरे दिन सौतेली माँ ने अपनी लड़की को बहुत अच्छा खाना देखर जंगल भेज दिया। अब जैसे ही लड़की जंगल में आई तो वह भी नदी के पास अपना खाना छोड़ कर स्नान करने के लिए नदी में उतर गई और उसी समय नागरानी वह से गुजर रही थी ,तो उसने अच्छा खाना देख उस खाने को खा लिए और दूर जाकर बैठ कर देखने लगा कि अब क्या होगा। कुछ ही देर बाद लड़की नदी से बहार आई तो उसने खाना न देखकर गुस्से से खाने वाले को बददुआ देने लगी। और नागरानी को ये अच्छा नहीं लगा उसने लड़की को डस लिया जिसके कारन लड़की काली हो गई और वह जब राज महल में आयी तो ये देखकर सौतेली माँ को बहुत दुःख हुआ।

सीख - इस कहानी से हमको ये सीख मिलाती है कि जाने अनजाने में सदा दुआये देते रहो ,क्या पता कब किसकी दुआए काम में आ जाये। …दुआओ से सुख मिलता है और बददुआयों से दुःख मिलता है। ऐसा संस्कार बच्चों में डाले ताकि दुवाये लेना - देना स्वाभाविक संस्कार बन जाये।

Sunday, February 23, 2014

हर किसी का अपना अपना जीने का अंदाज़ है - The Poems i Like Most.

हर किसी का अपना अपना जीने का अंदाज़ है
पर ये अंदाज़ मेरा , मुझ से ही क्यों राज है 

कोशिश में खुद को समझने कि तो  हर बार करू 
क्यों कि समझना खुद को ये कोई आसान काम नहीं है
 हर किसी का अपना अपना जीने का अंदाज़ है 

खुद को पाया था कभी , पर बिछड़ा भी हूँ खुद से बार बार 
क्यों कि खुद को पाना और खुद से बिछड़ना ही तो ज़िन्दगी का साज़ है
 हर किसी का अपना अपना जीने का अंदाज़ है 

ज़िन्दगी का साज़ (सत्य) भी, कैसे कोई समझे भला ,
क्यों कि जिस के पीछे भागती  है दुनिया , सब माया का जंजाल है।
हर किसी का अपना अपना जीने का अंदाज़ है
पर ये अंदाज़ मेरा , मुझ से ही क्यों राज है

Saturday, February 22, 2014

Hindi Motivational Stories - "जैसा बोलोगे ,वैसा ही सुनोगे"

"जैसा बोलोगे ,वैसा ही सुनोगे"

                        एक पहाड़ी इलाके में एक झोपड़ी में एक गरीब माँ अपने १३ वर्षीय पुत्र  के साथ रहती थी।  वह लड़का प्रातः ही कुल्हाड़ी लेकर लकड़ी काटने पहाड़ की घाटी में निकल जाता था और लकड़ी काटकर अपनी झोपड़ी में लाया करता था। ये उसका का काम था।

          एक दिन घाटी में लकड़ी काटते समय लड़के ने जोर से आवाज़ लगाई आवाज़ घाटी से टकरा कर गुंजने लगी।  उस लड़के ने समझा दूसरा लडक़ा भी यहाँ है जो उसे चिढ़ा रहा है। उसने जोर से बोला कि तुम कौन हो ? आवाज़ आई तुम कौन हो ? तब लड़के ने कहा तुम मुझे नहीं जानते ? तब आवाज़ गूँजी तुम मुझे नहीं जानते ? लड़के ने ललकारा - मै तुम्हें देख लूँगा ,तब आवाज़ आयी मै तुम्हें देख लूँगा। फिर लड़के ने कहा - मै कुल्हाड़ी से तुम्हारे टुकड़े - टुकड़े कर  दूँगा। तब सामने से आवाज़ गूँजी - मै कुल्हाड़ी से तुम्हारे टुकड़े - टुकड़े कर  दूँगा।  अब उस बालक को निश्चय हो गया कि घाटी में दूसरा लड़का उसे चिढ़ा और धमका रहा है।

                  उसने वापस घर आकर वह घटना अपनी माँ को सुनाई तो उसकी माँ समझ गई। घाटी में आवाज़ टकरा कर आने की बात को लड़का नहीं समझा। तब माँ ने अपने बेटे से कहा - बेटा कल जब तुम लकड़ी लाने जाना तो उस लड़के से प्यार से बोलना फिर देखना क्या होता है ? दूसरे दिन घाटी में पहुँचते ही उसने आवाज़ लगाई - दोस्त मै आ गया हूँ तो आवाज़ आई दोस्त मै आ गया हूँ।  फिर लड़का बोला, मै तुमसे प्यार करता हूँ ,हम और तुम एक परमात्मा के बच्चें हैं। तुम मेरे घर चलो। आवाज़ आई तुम मेरे घर चलो। वह लड़का बड़ा प्रसन्न होकर झोपड़ी में लौटा और सारी बात माँ से कह सुनाई कि वह लड़का अब मेरा दोस्त बन गया हैं।  वो हमारे घर भी आयेगा और मै भी उसके घर जाऊँगा , तब माँ ने कहा बेटा जैसा व्यवहार तुम दूसरो से करोगे वैसा ही व्यवहार दूसरे भी तुम से करेंगे। जैसा बोलोगे वैसा सुनोगे।  मिठे वचन अमृत समान है जिससे शत्रु भी मित्र बन जाते है।

सीख - इस छोटी सी कहानी से हम को एक बहुत बड़ी बात समझ में आती है कि अगर हम खुद सब से प्यार से बात करेंगे तो दूसरे भी प्यार से बात करेंगे तो यहाँ पर अगर हम आज से ही इस प्रक्टिस को बनाये  कि मै सब से प्यार से बात करूँगा।।… तो आपको बहुत जल्दी सफलता हर क्षेत्र में मिलेगी।






Friday, February 21, 2014

Hindi Motivational Stories - " महान शिल्पी "

" महान शिल्पी "

             बहुत पुरानी बात है एक गॉव में एक धोबी रहता था वह कपड़े धुलाई करता था  कपड़ो का ढेर कूटते-कूटते छज्जु धोबी मन ही मन गिड़गिड़ाया - क्या अजीब पत्थर है ये गड़रिया (वो पत्थर जिस पर धोबी कपड़े धोता है )  भी कितने सालो से मेरे पूर्वज और फिर मै इस पर हर रोज ढेरों कपड़े कूटते आ रहे हैं , पर ये फिर भी काला का काला ही है , ज़रा भी सफेद नहीं हुआ।  किसी ने ठीक ही कहा है कि अधजला अंगारा .... . . भला कोयला भी कही अपना रंग बदलने लगा?

           कपड़े धूल चुके थे।  छज्जु ने फिर से उस काले पत्थर की ऒर देखा और मन ही मन सोचने लगा ,
 अच्छा ,कल कपड़ो पर ढेर सारा सोडा डालूँगा। खूब गरम - गरम डालकर कपड़ो को जोर - जोर से कूटूंगा . फिर तो शायद तुझ बदनसीब का भी नसीब बदल जाए। मगर -- दूसरे दिन भी गिड़गिड़ाना ही छज्जू के
हाथ आया क्योंकि अभी भी वह पत्थर काला का काला ही दिखायी दे रहा था। बेचारा छज्जु परेशान सा कपड़ो कि गठरी लिए मालिकों के घर देने चल दिया।

          सेठ दयाराम जी के घर आज देश के सम्मानित शिल्पी "हेमन्त राज " आये हुए थे।  परेशान -सा छज्जू  कपड़ों की गठरी ले दयाराम जी के घर पहुँचा। दयाराम जी ने उसके चेहरे के भाव को पढ़ते हुए पूछा , क्यों भाई छज्जू , आज तुम काफी परेशान दिखाई दे रहे हो ? क्या बात है ? परेशान दिल का हाल पूछे जाने पर छज्जू  फूट पड़ा , क्या बताऊँ सेठ जी।  रोज गरम पानी में ढेर सारा सोडा डाल कर खूब देरी तक उस गड़रिया पर कपड़े कूटता हूँ ,पर फिर भी वह गड़रिया काला का काला ही है। अरे मै ही नहीं बल्कि मेरा पूरा खानदान उस पर कपड़े कूटता आ रहा है , पर बदनसीब गड़रिया अभी तक काला का काला ही है।  छज्जू के मुहँ फुलाने पर सेठ जी को हंसी आ गई।  परन्तु  .... शिल्पी राज उसकी बात को बहुत ध्यान से सुन रहा था।

              दूसरे दिन सवेरे जब छज्जू कपड़ों को सुखाने जा रहा था , तो देखा कि स्वयं शिल्पीराज उसकी तरफ आ रहे हैं। शिल्पीराज पास आकर बड़े प्यार से बोले - छज्जू ,क्या तुम मुझे अपना गड़रिया देगा ? उसके बदले जो माँगेगा में दे दूँगा।  परन्तु भोला छज्जू समझ नहीं पाया कि यह सब क्या नाटक है ,और बोल उठा ,साहब ये तो पतित गड़रिया है। इस पर तो मै लोगो के तमाम मैले कपड़े धोता हूँ।  इसे छूने पर तो आपको शुद्ध होना पडेगा।  इसे लेकर आप क्या करेंगे ? खैर ,उस कलूटे गड़रिया के बदले छज्जू को एक बड़ा सुन्दर गड्डर (पत्थर) और कुछ नोट भी मिले। फिर तो छज्जू कि ज़िन्दगी बदल गई।  और दिन पर दिन बीतते गये। और एक बार छज्जू धोबी को किसी काम से शहर जाना पड़ा।  शिल्पगार के सामने से गुजरते हुए अचानक उसे गड़रिया कि याद आयी तो वह तुरन्त ही उस शिल्पगार के अंदर चला गया। उसकी व्याकुल निगाहें जब टिकी तो देखा कि शिल्पी छैनी और हथौड़े के प्रहार से एक पत्थर को जोर - जोर से काट रहा था। और वह पत्थर कोई और नहीं बल्कि गड़रिया ही था।  

            कुछ दिन बाद छज्जू को मालूम पड़ा कि शिल्पी ने उस पत्थर से श्री कृष्ण की मूर्ति बनाई है जो आज कल साक्षी गोपाल के नाम से जीवंतसम है।  आज उस मंदिर में मूर्ति प्रतिष्ठा समारोह था जिस में छज्जू भी आया था।  उस का आनंदित मन किसी असीम आकाश को छू रहा था। उस साधारण गड़रिया से बनाई गयी पूजनीय देवता श्री कृष्ण कि मूर्ति पर सभी लोग अपनी- अपनी भेंट चढ़ाये जा रहे थे।  लेकिन   सच तो यह है कि कुशल शिल्पी के हाथ लगने पर पतित गड्डर भी देवता बन गया।  जिसे छूने मात्र से लोग अपने को पतित समझते थे , आज वो गड्डर पतित पावन बन गया।


सीख - इस कहानी से हमको सीख मिलती है कि कोई भी वस्तु या इंसान हो वो कितना भी ख़राब हो कैसा भी हो लेकिन उसको अच्छे हाथ का सहयोग मिलते ही अच्छा शिल्पी या गुरु का संग मिलते ही उसका रूप रंग बदल जाता है याने वो सम्पूर्णता को प्राप्त होता है। ....





Hindi Motivational Stories - " एक ही भूल "

" एक ही भूल "


               एक बार ग्यारह यात्री एक नगर से दूसरे नगर जा रहे थे।  जैसे आगे बड़े तो रास्ते में एक नदी आ गयी। सभी घबरा गए कि अब नदी को कैसे पार  करें।  किसी भी प्रकार की सुविधा वह नहीं थी परन्तु जाना बहुत जरुरी था।  उसमें एक चतुर था।  उसने कहा ,"घबराओ नहीं , नदी को अवश्य पार  करेंगे। " उसके कहने पर सब ने एक दूसरे का हाथ पकड़कर नदी को पार कर लिया।  फिर उस चतुर व्यक्ति ने कहा गिनती तो कर ले हम सब है कि नहीं। अब उसके कहने से एक ने गिनती सुरु की। एक - दो - तीन - चार - पाँच … दस। और स्वम को उसने गिनती नहीं किया और फिर चौक कर कहने लगा कि हम तो ग्यारह थे , एक कहा गया ?

      दूसरे ने कहा - में गिनता हुँ।  उसने भी अपने को छोड़कर गिनती किया और कहा - दस। उसके बाद सब ने गिनती किया वैसे ही जैसे पहले व्यक्ति ने किया सभी ने दस ही गिनती किये सभी रोने चिल्लाने लगे।  वहाँ से एक अन्य यात्री गुज़र रहा था।  उसने पूछा - अरे भाई ! क्यों रो रहे हो ? सभी ने एक साथ उत्तर दिया ,"हम ग्यारह थे और नदी पार करते ही हम दस हो गए है इस लिए हम रो रहे है " उस व्यक्ति को तो ग्यारह दिखायी दे रहे थे उसने समझ लिया कि मजरा क्या है, और कहा अगर में ग्यारहवें यात्री को खोजा तो ? वे सभी बोले हम आपको भगवान मनेंगे।  तब यात्री ने कहा - बहुत अच्छा ,आप सभी एक के पीछे एक बैठ जाओ। सभी बैठ गए।
अब जैसे ही में चमाट मारुँ तो एक दो तीन.… कहते जाओ। यात्री ने मारना शुरू किया , एक को मारी तो उसने कहा - एक , दूसरे को मारी तो उसने कहा दो , तीसरे को मारी तो उसने कहा तीन.… . .  । इस प्रकार अन्तिम व्यक्ति ने कहा ग्यारह।  सब बहुत प्रसन्न हो गये। सभी ने उस चमाट मरने वाले व्यक्ति को कहा ,-"सचमुच तुम तो भगवान हो।"

               हम सब को इन यात्रियों कि मूर्खता पर हॅसी आती होगी। परन्तु सोच कर देखें , हम स्वम क्या कर रहे है।  हम भी ग्यारह यात्री चले थे इस जीवन यात्रा पर।  पाँच कर्मन्द्रियाँ , पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ और ग्यारहवी आत्मा।  देह अभिमान में आकर पांचों कर्मन्द्रियाँ , पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ की गिनती हर रोज कर लेते है परन्तु स्वम को यानी आत्मा को भूल जाते है और स्वम को भूलने के कारण ही इस संसार रुपी विषय वैतरणी नदी की दलदल में फॅस गए।

 



सीख - ये कहानी से हम को ये सीख मिलती है की वर्तमान में जो दुःख हमें हो रहा है उसका कारण है खुद को भूलने से इस लिए अब अपने को आत्मा समझ एक पिता परमात्मा को याद करने से सब दुःख दूर हो जायेंगे और सुख शांति कि अनुभूति होगी तो आज से खुद को देह न समझ आत्मा समझ कर्म करे। …






Thursday, February 20, 2014

Hindi Motivational Storie - The End of the Earth - सृष्टि के अन्त का लक्षण

सृष्टि के अन्त का लक्षण 

                 महाभारत में बहुत सी ऐसी बाते है जिन को समझ ने से आज के समय कि पहचान मिलती है ऐसा ही एक उदहारण आज में आपको बताना चाहूंगा … महाभारत में वर्णन आता है की एक बार पाण्डवों ने भगवन से पूछा , "भगवन ,कृपया हमको सृष्टि की वे निशानियाँ बतायें जब आपका पुनः इस धरा पर अवतरण होगा। ?
भगवन ने कहा,"में आपको निशानियाँ बताऊँगा जरुर पर उसके लिए आपको एक काम करना होगा आप सब भाई अलग अलग दिशाओं में एक एक घण्टा घूम कर आऒ और लौटकर मुझे बताओ कि आपने क्या क्या देखा ? पाँचो भाई एक साथ गए और एक घण्टे के बाद भगवन के पास आकर आश्चर्यजनक  घटनाओं का वर्णन करने लगे।  सब से पहले युधिष्ठिर बोला ,"मैंने एक हाथी देखा जिसकी दो सूंडे थी।'  उसके बाद अर्जुन बोला ,"मैंने एक ऐसी पक्षी देखा जिसके पैरो में मंत्र बंधे हुए थे परन्तु वह मॉस को चोच से नोच नोच कर खा रहा था।'  अब भीम की बरी थी , उसने कहा ,"मैंने एक ऐसी गाय देखी जो अपनी बछड़ी का दूध पी रही थी।'  नकुल भी बोला ,"मैंने तीन कुआँ देखा। पहला कुआँ भरा हुआ था लेकिन उसके पास एक कुआँ खाली था।  इन दोनों से दूर , भरा हुए एक तीसरा कुआँ था, जो खाली कुआँ को पानी दे रहा था।"  अब अन्त में सहदेव ने भी अपना अनोखी घटना को सुना दिया ,"मैंने पहाड़ से एक पत्थर को फिसलते देखा जो रास्ते के सारे पेड़ो को गिरता हुआ आ रहा था।  वाही पत्थर एक घास के तिनके के आगे रुक गया।  इन अजीबोगरीब बातों को सुनाकर पांचो भाई एक - दूसरे को देखने लगे और सयंत भाव से भगवन के उत्तर कि प्रतीक्षा करने लगे।

                                                   

          भगवन ने सब को सुनने के बाद इन अजीबोगरीब बातो का आध्यात्मिक रहस्य  बताना  सुरु किया  और कहा , "  दो  सूंड वाला हाथी राज्य सत्ता का प्रतीक है।  धर्म ग्लानि के समय का राजा (राजनैतिक ) अमीर व गरीब दोनों से खायेगा।  दोनों से लगान के रूप में पैसे वसूल करेगा।  उसके मन में दया और सेवा की भावना नहीं रहेंगी। मंत्र युक्त पक्षी मॉस नोच कर खाये , इसका अर्थ है कि कलयुग के अन्त में तथाकथित ब्राह्मण , पण्डित , पुजारी , आदि मंत्रो के ज्ञाता होते हुआ भी भ्रस्ट आचरण वाले होंगे।  वे तमोगुणी खानपान , चरणों की पूजा और धन कि हवश , इन विकृतियों से ग्रसित होंगे।  गाय द्वारा बछड़ी का दूध पिया जाना इस बात का प्रतीक है कि कलयुग में माता - पिता भी बेटी का कमाया खायेंगे।  तीन अलग अलग कुओ का रहस्य है - धर्म ग्लानि के समय मनुष अपने माता पिता तथा अति नजदीक  सम्बन्धियों से दूर - दराज के लोगों से मदद व लेन - देन करेंगे।  पहाड़ से गिरता पत्थर धर्म की गिरावट का प्रतीक है।  इस गिरावट से बड़े - बड़े विद्धानों का भी पतन हो जायेगा।  अन्त में तिनका समान हल्के , बिन्दु रूप भगवन शिव के द्वारा मानव मात्र को ज्ञान - योग कि शरण दी जायेगी , तब गिरावट बन्द होगी।

 


सीख  - वर्तमान समय को समाने रख कर देखो ऐसा ही है अब आपको क्या करना है आप समझ गए होंगे तो आज ही से भारत का प्रचीन राजयोग जरुर सीखे इस का अभ्यास आज से सुरु करे जिस में सारा संसार का कल्याण समाया हुआ है।







Sunday, February 16, 2014

Hindi motivational stories - " अहंकार से अपमान होता है "

अहंकार से अपमान  होता है 

      एक बार कि बात बताते है आज से बहुत साल पहले कहानिया सुनाने का ढंग कुछ खास था तब कहानियो को बहुत प्यार से लोग सुनते थे और सुनाने वाले भी बड़ी रोचकता से सुनाते थे। 
मोमबत्ती और अगरबत्ती दो  बहनें  थीं। दोनों ही एक मंदिर में रहती थीं। 
बड़ी बहन मोमबत्ती हर बात में अपने को गुणवान और अपने फैलते प्रकाश के प्रभाव में 
अपने को  ज्ञानवान समझकर , छोटी बहन को नीचा दिखाने का प्रयास करती थी।
  अगरबत्ती उसके इस प्रयास से व्यथित होती थी परन्तु व्यथा को प्रकट नहीं कर पाती थी। 
 सदा की भाँति उस दिन भी पुजारी आया , दोनों को जलाया और 
किसी कार्यवश मंदिर से बाहर चला गया। तभी हवा का एक तेज  
 झोंका आया और मोमबत्ती बुझ गयी। ये देख अगरबत्ती ने धीरे से 
अपना मुख खोला - हवा के एक हल्के झोंके ने तुम्हारे प्रकाश को समाप्त कर दिया 
परन्तु इस झोंके ने मेरी सुगन्ध को और ही चारो तरफ बिखेर दिया।  
ये सुनकर मोमबत्ती को अपने अहंकार का बोध हो गया।


 
 
सीख - व्यक्ति को कभी भी किसी भी बात का अहंकार नहीं करना चाहिए 
क्यों कि इस संसार में हर व्यक्ति का अपना विशेष रोल है .