Sunday, March 9, 2014

Hindi Motivational & Inspirational Stories - सोचिये पाप का भागी कौन ?

सोचिये पाप का भागी कौन ?

            एक मनुष्य ने एक बहुत सुन्दर उपवन लगाया।  उस में कई प्रकार के सुन्दर - सुन्दर फल देने वाले वृक्ष, पौधे व खुशबूदार फूल लगाये।  बड़ी लगन व मेहनत से खाद व् पानी देकर बगीचे कि शोभा बढ़ाई। बगीचे को देख कर वह मन ही मन आति हर्ष का अनुभव करता था और कहते नहीं थकता था कि कितना सुन्दर बगीचा है , जो मैंने अपने हाथो से तैयार किया है।   


            अब एक दिन इस सुन्दर उपवन में एक गाय घुस गई और सभी सुन्दर पौधों, फूलो व् पेड़ो को उसने नष्ट कर दिया।  यह देख कर वह मनुष्य आग बबूला हो गया।  उसने क्रोध वश उस गाय को इतना पीटा की वह वाही ढेर हो गई।  अब व्यक्ति का क्रोध जब शांत हो गया तो उसे बहुत दुःख हुआ कि यह क्या हो गया ? उसके मन में विचार आया कि इस गाय को तो मैंने नहीं मारा।  या कुकृत्य तो भगवान ने ही मेरे इन दो हाथों से करवाया है। मेरे हाथ तो भगवान के अधीन है।  दुःख देना , पाप करना , मारना , यह भी तो वाही करवाता है।


           कहते है कि भगवान ने तभी एक फ़रिश्ते को उस मनुष्य के पास भेजा। फ़रिश्ते ने पूछा - सुना है कि आपका बहुत सुन्दर बगीचा था जिसे एक गाय ने नष्ट कर दिया।  क्या आप बता सकते है कि इतना सुन्दर बगीचा किसने लगाया ? तब उस व्यक्ति ने गर्व से जवाब दिया - मैंने। फ़रिश्ते ने पुनः पूछा - ये सुन्दर - सुन्दर खुशबूदार फूल किसने लगाये ? वह बोला - यह भी मैंने। फिर फ़रिश्ते ने बोला - फिर उस गाय को किसने मारा ? व्यक्ति ने कहा - भगवान ने।  सोचिए , इस तरह की बहानेबाजी से मनुष्य पाप के दोषों से छुटकारा कैसे पा सकता है ? परमात्मा हम सब आत्माओं के पिता है , प्रेम के सागर है, आनन्द का सागर है , शान्ति के सागर है , सुख के सागर है , न कि दुःख का सागर।  दुःख तो मनुष्य को आपने पाप कर्मो के फल के रूप में भोगने पड़ते है।  इस लिए दुःख के समय मनुष्य भगवान को याद करता है और कहता है हे दुःख हारता सुख करता मेरे दुःख दूर करो। ……और एक तरफ मनुष्य भगवान को दोष भी देता है। …  इस में भगवान दोषी कहाँ हुआ ? जरा सोचिये पाप का भागी कौन ?……

 

सीख - मनुष्य अपने कर्म से सुख या दुःख प्राप्त करता है अगर हम मेहनत कर के बगीचा लगते है तो उसका फल फूल और सुन्दरता को हम भोगते है सुख पाते है।  और दूसरी तरफ हम अगर आवेष या क्रोध वश कोई कुकृत्य करते है तो उसका दुःख भी हम ही भोगते है। .... इस लिए कहा गया है आत्मा अपना ही मित्र भी है तो शत्रु भी है।                                      

     

Hindi Inspirational & Motivational Stories - " आशीर्वाद की क़ीमत "

" आशीर्वाद  की  क़ीमत "

                       एक बार एक नगर सेठ ने महात्मा बुद्ध को भिक्षा के लिए निमन्त्रण दिया। महात्मा बुद्ध ने निमन्त्रण स्वीकार कर लिया।  सेठ जी का  मन तो उछलने लगा कि मुझे भिक्षा के बदले ढेरो आशीर्वाद और दुआये मिलेंगी। निशचित समय पर महत्मा बुद्ध  द्वार पर पहुँचे। नगर सेठ  देखते ही दौड़े -दौड़े गए  अन्दर से खीर भरा पात्र लाये। पर ज्यु ही महाभिक्षु के पात्र में उड़ेलने लगे तो एकदम रुक गए क्योंकि भिक्षा पात्र कीचड़ से भरा था। सेठ जी को थोडा विचित्र लगा परन्तु मौके महानता को ध्यान में रखकर वे बिना बोले पात्र को साफ़ करने में लग गए और स्वच्छ भिक्षा - पात्र में खीर डालकर , महात्मा जी के हाथ में देकर और आशीर्वाद कि कामना से हाथ जोड़कर , सिर झुका कर उनके सामने खड़े हो गए। और महात्मा बुद्ध शान्त मुद्रा में खड़े उसे निहारते रहे।  उनका मौन नहीं टुटा,आशीर्वाद की झड़ी नहीं लगी।  सेठजी  का धैर्य -बाँध टूट गया।  उन्होंने कातर स्वर में कहा - महाराज , आशीर्वाद से कृतार्थ कीजिए। 

                   महत्मा जी तो जैसे इसी क्षण के इंतज़ार में थे।  उन्होंने ओजस्वी वाणी में धीरे- धीरे कहना सुरु किया - हे नगर सेठ, जिस प्रकार भिक्षा लेने से पहले भिक्षा - पात्र का स्वच्छ होना भी जरुरी है।  आपने कीचड़ से भरे पात्र के ऊपर खीर नहीं डाली क्यों की आपको ख्याल था कि खीर व्यर्थ हो जायेगी।  खीर की कीमत तो कुछ पैसे मात्र ही है परन्तु अशीर्वाद तो अमूल्य है। काम ,क्रोध, लोभ, मोहा, अहंकार  और छल -कपट से भरे मन - बुद्धि रूपी पात्र पर कीमती अशीर्वाद ठहरते ही नहीं।  इसलिए आप भी पहले मन - बुद्धि को स्वच्छ कीजिये। काम कि जगह आत्मिक स्नेह , क्रोध कि जगह क्षमा ,लोभ कि जगह संतोष , मोहा कि जगह वैशविक प्रेम ,और अंहकार कि जगह नम्रता भरिए।  छल - कपट कि जगह पर सरल चित बन जाइये।  फिर अमृत - तुल्य आशिर्वाद स्वतः तुम्हारी निजी सम्पदा बन जायेंगे , बिना माँगे भी मिल जायेंगे। 


                 नगर सेठ को सत्य का बोध हो गया उसका अंतर मन बदल गया।  महात्मा जी के शब्दों से सेठ जी को आत्म - विश्लेषण का बहुत सुंदर मन्त्र मिल गया जिसने उसके जीवन को अच्छाई कि ऒर मोड़ दिया। 

सीख - अशीर्वाद , प्रेम , सुख,शांति ये आत्मा के निजी गुण है जिसे प्राप्त करने के लिए दान में वस्तु या पैसे देने से नहीं मिलते है सच्चा सुख शांति के लिए मनुष को चाहिए कि वो आपने अन्तर मन को साफ रखे। खुद के लिए और दुसरो के लिए दिल में सदा शुभ भावना रहे।                  






                           

Saturday, March 8, 2014

Hindi Inspirational & Motivational Stories - " सहयोग या संग्राम "

" सहयोग या संग्राम "

         एक बार परमपिता परमात्मा ने सभी को भोजन के लिए निमन्त्रण दिया। भोजन  में ५६ प्रकार के पकवान और १०८ प्रकार के फल आदि रखे हुआ थे। जिनको निमन्त्रण मिला सारे लोग तमो गुणी संस्कार वाले व्यक्ति थे और भोजन एक नियम से खाना था। तो सभी भोजन कक्ष में जाये , उसके पहले उनके दोनों हाथों में तीन फुट की लकड़ी का डण्डा बाँध दिया गया, जिससे उनके हाथ मुड़ न सके। सभी मेहमान भोजन कक्ष में गये और इतना स्वादिष्ट भोजन और फल देख कर सब के मुँह में पानी आ गया और सब ने अपने मुख की तरफ हाथ मोड़ा तो लकड़ी के कारण हाथ नहीं मुड़ सका और भोजन पीछे वाली पंक्ति में बैठे मेहमानों के ऊपर अथवा आगे की पंक्ति में बैठे मेहमानों के ऊपर गिरा। सबके कपड़े आदि ख़राब हो गये।  जिससे वे क्रोधित होकर आपस में लड़ने लगे , एक - दूसरे को अपशब्द बोलने लगे और कोई कोई तो हाथपाई भी शुरू कर दी। भोजन कक्ष बदल कर संग्राम का मैदान हो गया था , सभी जगह भोजन बिखर गया था और सभी मेहमान भूखे ही रह गये। ये सब आत्माये तमो गुणी संस्कार वाली होने के कारण भोजन कक्ष संग्राम कक्ष बना। अब परमात्मा ने सोचा चलो एक और बार प्रायोग करके देखते है।  

         फिर परमात्मा ने अपने दूतों को भेज कर भोजन कक्ष खाली करवाया। और दूसरे दिन दूसरे समुदाय को बुला कर उसी तरह हाथ बाँधकर भोजन कक्ष में भेज दिया।  सुंदर स्वादिष्ट भोजन को देख कर उनको भी खाने कि इच्छा होने लगी परन्तु खाये कैसे ? इस पर सोच चलने लगा। ये सभी  सतो प्रधान संस्कारों वाले व्यक्ति थे , इस लिए उन्होंने धैर्य से विचार किया।  उनका हाथ अपने मुँह की तरफ तो मुड़ ही नही सकता था परन्तु दूसरे की तरफ तो बिना मोड़े ही जा सकता था।  इस लिए उन्होंने प्रेम और स्नेह से , सहयोग भावना से अपने हाथ में चम्मच लेकर एक - दो को खिलाना शुरू किया और सभी ने अपने को तृप्त किया।  उनकी सहयोग भावना से न तो भोजन ख़राब हुआ और न ही भोजन कक्ष ख़राब हुआ और सभी भोजन खाकर तृप्त भी हुए।


सीख - जीवन में सुख पाने के लिए एक दूसरे का सहयोग चाहिए और जीवन को सफल बनाने के लिए भी हम सब को एक दूसरे को सहयोग देना और लेना चाहिए। इस लिए किसी ने ठीक ही कहा है सहयोग से होगा सर्वोदय सहयोग करो  सहयोग करो। 

Friday, March 7, 2014

Hindi Inspirational & Motivational Stories - " आज्ञा - भंग की सजा "

" आज्ञा - भंग की सजा "

             इस संसार में बहुत से लोग ऐसे हुए है जिनका जीवन जीने का एक खास मक़सद रहा और वो जो कहते उसे किसी भी हाल में वे पूरा करते चाहे उस के लिए उन्हें किसी कि जान भी लेना पड़े तो वे पीछे नहीं हटते अपने नेपोलियन का नाम सुना होगा।उन्ही के जीवन का एक प्रसंग में यह आपको सुना रहा हूँ।

               विश्व विजेता बनने का स्वप्न देखने वाला नेपोलियन एक दिन अपनी विराट सेना के साथ शत्रु पर आक्रमण करने के लिए आगे बढ़ रहा था। एक जंगल में उनका पड़ाव था। संध्या होते ही नेपोलियन ने आज्ञा फरमाई ,ब्लैक आउट (सम्पूर्ण अंधकार ), कोई भी सैनिक रात्रि में दीपक नहीं जलाएगा। सभी सैनिकों ने स्वामी कि आज्ञा शिरोधार्थ  की। नेपोलियन, भेष बदलकर सभी तम्बुओ का रात्रि में निरीक्षण करने लगा। अचानक एक तम्बू में उसे प्रकाश दिखाई दिया , निकट जाकर देखा कि एक सैनिक मोमबत्ती के प्रकाश में कुछ लिख रहा था।  नेपोलियन ने सिंह -सी गर्जना करते हुए पूछा - क्या कर रहे हो ? मेरी आज्ञा नहीं सुनी थी ? सैनिक काँपने  लगा।  थरथराती आवाज़ में बोला - सुनी तो थी पर मुझे क्षमा करें , पत्नी की अचानक याद आ गई , तो उसे पत्र लिखने बैठ गया।  नेपोलियन ने कहा  - ठीक है , अब पत्र में इतना जोड़ दो कि मैंने आज्ञा -भंग करके यह पत्र लिखा है और आज्ञा भंग की सजा में मुझे मौत मिल रही है। मेरा यह अन्तिम पत्र है, अब में तुम्हे इस दुनिया में नहीं मिल पाउँगा। बेचारा सैनिक क्या करता ! नेपोलियन की आज्ञा से उसे पत्र में इतना और जोड़ना पड़ा। पत्र पूरा होते ही नेपोलियन ने उसे गोली से उड़ा दिया।


सीख - किसी भी तरह का आज्ञा हो उसको तोड़ने या भंग करने से उसकी सजा मिलती ही है चाहे सहकार रूप में या शुक्ष्म रूप में ही क्यों न हो मिलती ही है। … इस लिए आज्ञा को मानकर जीवन जिये। 

Hindi Inspirational & Motivational Stories - " ईश्वर में तन्मयता "

" ईश्वर  में तन्मयता "

                    बहुत पुरानी बात है एक बार अकबर बादशाह दिन भर यात्रा करते हुए बहुत दूर निकल गए। चलते - चलते नमाज़ का समय हो गया। तब मार्ग में एक ओर नमाज़ का वस्त्र बिछा कर दो -जानु (घुटनों के बल बैठना ) हो गए। उधर एक युवती अपने पतिदेव को खोजती आ रही थी।  उसने नमाज़ का कपड़ा देखा नहीं और उसी के ऊपर पग रखती हुई आगे बढ़ गई। अकबर को उसकी गुस्ताखी पर क्रोध तो आया परन्तु चुप रहे।  थोड़ी देर में जब वह युवती अपने पतिदेव के साथ लौटी तो अकबर कहने लगा - तुझे दिखा नहीं , मै नमाज़ पढ़ रहा था और प्रभु भक्ति में था ? तुझे नज़र नहीं पड़ा नमाज़ के कपड़े पर पग धरती गई ? पतिदेव सोचने लगे कि  अब क्या किया जाय, लेकिन उस समय युवती ने बड़े धैर्य से एक दोहा बोली -                                              
                             "  नर राची सूझी नहीं , तुम कस लख्यो सुजान।
                                कुरान पढ़त बोरे भयो , नहीं राच्यो रहमान।। "

                मै तो अपने पतिदेव कि खोज में गुम हो चुकी थी जिस कारण मुझे कुछ सुझा नहीं।  परन्तु तुम तो प्रभु भजन में लीन थे। तुमने मुझे कैसे देख लिया ? मालूम होता है कि कुरान पढ़ कर बौख़ला गए हो।  भगवान से अभी प्रीत नहीं हुई। अकबर यह उत्तर सुनकर आश्चर्य़चकित रह गया। क्यों कि युवती कि बात भी सही थी।


             
            सीख -  ईश्वरीय ज्ञान भी हमें बताता है कि ईश्वर से सच्ची दिल कि प्रीत हो तो न व्यर्थ दिखाई देगा और न सुनाई देगा।  लगन में मगन का मतलब प्रभु से सच्ची प्रीत जोड़ने के लिए घर का संन्यास करने की जरुरत है परमात्मा को बस हमारा शुद्ध मन चाहिए। मन निर्मल है तो प्रभु से सर्व प्राप्तियाँ करना कोई मुशकिल नहीं है। 

Thursday, March 6, 2014

Hindi Inspirational & Motivational Stories - " दृढ़ता सफलता की कुँजी है "

" दृढ़ता सफलता की कुँजी है " 


             एक बड़ा चतुर किसान था। कितना भी कोई कहे लेकिन वह कभी कोई प्रतिज्ञा या अच्छा संकल्प लेने को तैयार नहीं होता था। वह बहुत भावना वाला था और उसकी उदारता भी महिमा योग्य थी लेकिन वह कभी कोई नियम लेने को तैयार नहीं होता था। एक दिन गॉव में एक साधू आया।  किसान के एक मित्र को मज़ाक सूझी।  वह उस किसान को उस संत के पास ले गया। दोनों ने विनम्र भाव से वंदना की। कोई आज्ञा चाही।  साधू ने बड़े प्यार से पूछा - क्या आप कोई प्रतिज्ञा या संकल्प लेंगे ? इस पर किसान पहले तो हिचकिचाया , कहने लगा - वैसे आज तक कभी प्रतिज्ञा नहीं ली है लेकिन आप आज्ञा देँगे तो ना भी नहीं कर सकता।  बेचारा किसान बंध गया।  साधू ने मुस्कुराकर पूछा - अच्छा क्या प्रतिज्ञा लेंगे ? किसान ने कुछ देर तक सोचकर कहा - मेरे खेत के पास से रोज एक गंजा व्यक्ति निकलता है , आज से उसके गंजे सिर को देखकर फिर भोजन करूँगा।




               अब तो यह उसका नित्यक्रम बन गया कि पहले गंजे का दर्शन करना और फिर भोजन करना। अब ६ से ८ मास निकल गए।और  एक दिन वह गंजा दिखाई नहीं दिया।  एक तरफ भूख और दूसरी तरफ इंतज़ार।  और आप जानते है। कि इंतज़ार कि घड़ियाँ लम्बी होती है। बहुत देर बाद दूर से उसने उस गंजे व्यक्ति को देखा जो चारों और देख रहा था।  किसान ख़ुशी से चिल्लाया - देख लिया देख लिया ! अब बात ये थी कि उस गंजे व्यक्ति को अपने खेत में एक सोने की मुहरों से भरा हुआ घड़ा मिला था , वह सिर  ऊँचा करके देख रहा था कि कोई देखता तो नहीं है।  और इधर किसान अपनी ख़ुशी को व्यक्त करने के लिए चिल्लाया। अब ये सुनकर गंजा व्यक्ति घबरा गया और सोचा इस किसान ने मुझे देख लिया है , अब गंजा ने सोचा क्यों न उसकी ही मद्दत घड़ा उठाने में ली जाए ? सो उसने किसान को बुलाया और उसकी मदत ली और कुछ मुहरें  किसान को दी। दोनों ने मिलकर घड़ा घर पहुँचा दिया।

सीख - वैसे किसी भी व्यक्ति को प्रतिज्ञा के बन्धन में रहना अच्छा नहीं लगता परन्तु प्रतिज्ञा चाहे कैसी भी हो लगातर अभ्यास करने से उसका लाभ जरुर होता है। 

Wednesday, March 5, 2014

Hindi Inspirational & Motivational Stories - " स्व से विश्व परिवर्तन "

स्व से विश्व परिवर्तन 


                ये कहानी शायद अपने  सुनी भी होगी लेकिन मै फिर से सुनाना चाहूँगा ये कहानी बार बार सुनने से या पढने से मुझे प्रेरणा मिलती है तो हो सकता है, आपको भी प्रेरणा मिले।
           
               एक बार एक बच्चा अपने पिता के कार्य में बाधा डाल रहा था, जो किसी आवश्यक कार्य में लगे हुए थे। पिताजी ने बच्चे को किसी  कार्य में लगाना चाहा। सोचा ये व्यस्त रहेगा तो मै अपना कार्य आराम से करूँगा इस लिए उन्होंने मेज़ पर रखी हुई विश्व का मानचित्र उठाया और उसके छोटे- छोटे टुकड़े कर दिये और बच्चे को वो टुकड़े देकर कहा कि वह विश्व का मानचित्र बनाकर लाये।

               अब बच्चा बहुत ही चतुर था। टुकड़ो को सही क्रम में लगाने से पहले उसने टुकड़ो को पीछे से देखना शुरु किया। जैसे ही उसने पीछे देखा तो एक टुकड़े पर मानव शरीर के अंग का छोटा सा हिस्सा दिखाई दिया। उसके मन में जिज्ञासा उठी और उसने सभी टुकड़ो को उल्टा करके फर्श पर रखा दिया तो उसे मानव के अलग अंग दिखायी दिए उसके बाद उसने मानव शरीर के हिसाब से सब टुकड़ो को मानव शरीर कि रचना के अनुसार जोड़ दिया। उसके बाद जब उसने फिर से उल्टा किया तो विश्व का मानचित्र तैयार था। तब वह भागता हुआ अपने पिताजी को दिखाने ले गया।  जैसे ही पिताजी अपने बच्चे के हाथ में वह मानचित्र देखा तो आश्चर्यचकित  हुए।


पिताजी : - ( आश्चर्यचकित होकर ) बेटा तुमने इतनी जल्दी विश्व का नक्शा कैसे बना दिया ?

पुत्र     : -     यह तो बहुत ही आसान है।

पिताजी : - लेकिन यह कोई इतना सरल कार्य नहीं था। मैंने तो विश्व के टुकड़े - टुकड़े कर दिए थे और
                  तुमने इतनी जल्दी कैसे जोड़ लिया ?

पुत्र     : -    मैंने 'व्यक्ति' को ठीक किया और 'विश्व' ठीक हो गया।

सीख  - इसी तरह से यदि हम व्यक्ति के परिवर्तन का नक्शा तैयार करें जैसे बच्चा ने किया , यदि हम व्यक्ति को मानसिक रूप से सकारात्मक परिवर्तन के लिए तैयार करें तो विश्व का सम्पूर्ण  नक्शा तैयार हो जायेगा और एक नया सकारात्मक विश्व बन जायेगा। जहाँ सभी सुखी होंगे।