Wednesday, May 7, 2014

Hindi Motivational Stories - ' स्वमान सम्मान देता है '

स्वमान सम्मान देता है 

         एक संन्यासी अपने गन्तव्य स्थान की लकड़ी के सहारा लिए अंधकारमय रास्ते के बीचों-बीच बढ़ता जा रहा था। उसे स्पष्ट दिखाई भी नहीं दे रहा था। और सामने से अचानक उस अंधकारमय रास्ते में उस राज्य का बादशाह अकेले राजधानी का भ्रमण करता हुआ  पहुँचा। बादशाह ने अपने आपको सम्राट मानते हुए रास्ते से अलग हटने की आवश्यकता नहीं समझी और संन्यासी को अन्धेरे के कारण बराबर दिखाई नहीं दिया। अंतः दोनों की टक्कर हो गयी। इस से बादशाह को बड़ा क्रोध आया और कहा - देखकर नहीं चलते, कौन हो तुम ?

         संन्यासी ने शांतिपूर्वक उत्तर दिया - मैं सम्राट हूँ.… । बादशाह खिलखिला कर हँस पड़ा और उसने व्यंग्य  के साथ कौतूहलवश पूछा - अच्छा सम्राट ! यह बताईये कि मैं कौन हूँ ? तुम गुलाम हो। संन्यासी ने स्पष्ट शब्दों में कह दिया। यह तो सरासर बादशाह का अपमान था। अपमानित राजा आगबबूला हो गया और गश्त लगाने वाले सिपाहियों को आदेश दे उस संन्यासी को जेल में डलवा दिया। अगले दिन प्रातः काल दरबार में बादशाह ने संन्यासी को बुलवाया और पूछा - रात को तुमने अपने आपको बादशाह और मुझको गुलाम क्यों कहा ?

      संन्यासी ने धैर्यता,शांतिपूर्वक और मधुर वाणी से जवाब दिया - इसलिए कि मैंने अपने मन और इन्द्रियों को जीत लिया हूँ। इच्छाओं और वासनाओं का मैं विजेता हूँ। आपने मुझे कैद कर लिया फिर भी मेरे मन में आपके प्रति तनिक भी रोष नहीं है और आप अपने ही गुलाम है, अपनी जिहा के, अपनी वासनाओं के..... और मैं अपने मन का सम्राट हूँ। यह मेरा स्वमान है। राजा उसकी बातों से अत्यंन्त प्रभावित हुआ और उस संन्यासी को बड़े सम्मान के साथ बिदायी दी और कहा जब भी ऐसा कुछ हो तो हमें सेवा का मौका दे ये यचना भी किया।

सीख - स्वमान ही सम्मान देता है, इस में समय जरूर लगता है। अपने आप को स्वमान में सेट करने में पर एक बार अपने इस पर कार्य किया तो ये आप को सम्मान के साथ जीवन जीने देता है। स्वमान और सम्मान एक सिक्के के दो पहलू है। इसलिए स्वमान में रहो। 

Tuesday, May 6, 2014

Hindi Motivational Stories - " सकारात्मक दॄष्टिकोण "

सकारात्मक  दॄष्टिकोण 

  एक प्रसिद्ध जूता बनाने वाली कम्पनी ने एशिया खण्ड में मॉल्स की श्रृंख़ला खोलने का विचार किया। सफलता सुनिश्चित करने के लिये कम्पनी प्रबंधन ने एशिया खण्ड के बाजार का गहन सर्वेक्षण करवाया। पहला सर्वेक्षण टीम के परिणाम, कुछ इस प्रकार मिले -  देश के मूल निवासी असभ्य, बबर्र और जंगली है , जो जानवरों के चमड़े और पेड़ो के पत्तों से बने कपड़े और टोपी भी केवल ठंड और बरसात में ही पहनते है। ऐसे में जब कि कपडे भी उनके लिए अनावश्यक है तब वहाँ जूते बेचना मूर्खता है। अब कम्पनी के अध्यक्ष ने इस रिपोर्ट को एक तरफ किया और उसी सर्वेक्षण के लिए दूसरी टीम को फिर भेजा। नई टीम ने लिखा - सड़कों के अभाव तथा यातायात के साधनों की कमी के कारण जूते इस देश के नागरिकों के लिए वरदान सिद्ध हो सकते है। स्थानीय लोगों और चिकित्सकों के संदर्भ से यह जानकारी मिली है कि स्थानीय लोगों को सब से ज्यादा चोट पैरों में लगती है अंतः जूतो के व्यापार में सफलता संभव है। अध्यक्ष ने इस नई रिपोर्ट पर पूरा ध्यान दिया और वहाँ तत्काल काम शुरू किया। और सफलता पाया। 

सीख - एक छोटी सी बात बताती है कि दॄष्टिकोण  का परिणाम पर कितना असर पड़ता है। इस लिए हमेशा अपनी सोच को नज़र को सकारत्मक रखे। यही सफलता का राज है। 

Hindi Motivational Stories - " शंका दुःख का कारण "

शंका दुःख का कारण

     मेरे दोस्तों हम सब जीवन जीते है हमारा खाना पहनावा लग भग एक जैसा ही है १९ /२० का फरक वो एक अलग बात है। जीवन में सुख सब चाहते है और इस सुख के लिये हम वस्तु वैभव और दूसरों से अपेक्षाएँ करते है पर फिर भी सुख पाने की आशा बानी ही रहती है। और एक सुखमय सन्सार दुःख में कैसे बदलता है इस के लिए एक छोटी कहानी के दवरा समझेंगे।

          एक बहुत ही प्यारा परिवार था, राम और श्याम दो सागे भाई थे। दोनों का आपस में बहुत प्यार था,  दोनों की पत्नियाँ भी सुशील और संस्कारी थी। गृहस्थी बड़े सुन्दर ढंग से चल रही थी। राम यदि कोई भी वस्तु अपनी पत्नी के लिए लाता तो ठीक वैसे ही श्याम की पत्नी के लिए भी लाता था। खुद के लिए कोई  वस्तु  लाता तो ठीक वैसी ही अपने छोटे भाई के लिए भी ले आता था। अब एक बार राम एक जैसी दो साड़ीयाँ लाया। उसने अपनी पत्नी से कहा - पहले छोटी बहु को पसन्द की साड़ी दे देना, बची हुई तुम रख लेना। पत्नी ने वैसा ही किया।

        एक किसी प्रसंग पर दोनों ने वे साड़ीयाँ पहनी थी। अब हुआ ऐसा की राम की पत्नी की साड़ी की अन्य महिलाओं ने तारीफ की जब कि श्याम की पत्नी की साड़ी का सिर्फ रंग ही अलग था पर किसी ने भी उसकी तारीफ नहीं की। बस, शंका का जन्म हो गया कि जान-बूझकर मेरे जेठ ने अलग रंग की साड़ीयाँ खरीदी है। दोनों भाईयों में जो आज तक अपूर्व विश्वास था , सिर्फ एक छोटी-सी शंका ने ऐसा कहर ढा दिया कि उनकी गृहस्थी पूर्णतः नर्क में परिवर्तित हो गयी। दोनों परिवार साथ रहते थे पर शंका के कारण दोनों अलग अलग परिवार में रहने लगे।

सीख - दोस्तों इस कहानी से एक बात हम सीख सकते है चाहे कुछ भी हो शंका को दूर ही रहने देना चाहिए। क्यों की शंका ही दुःख का मुख्या कारण है। 

Hindi Motivational Stories - 'ट्रस्टीपन'

'ट्रस्टीपन' 

              एक राजा वर्षो तक सुखपूर्वक राज्य करता रहा लेकिन कुछ समय बाद देश में समस्याये बढ़ गयी तो उसकी चिंता भी बढ़ने लगी। उसे न भूख लगती, न नींद आती। वह बहुत परेशान रहने लगा। घबराकर वह अपने गुरु के पास गया, बोला - गुरुदेव, राज - काज में मन नहीं लगता, राज्य में परेशानियाँ बढ़ गयी है, इच्छा होती है, राज - काज छोड़कर कहीं चला जाऊँ। गुरु अनुभवी था, उसने कहा - राज्य का भार पुत्र को सौंप दो और आप निश्चिंत रहो। राजा ने कहा, पुत्र अभी छोटा है। फिर गुरु ने कहा - अपना राज्य मुझे सौंप दो। राजा खुश हो गया। उसने पूरा राज्य गुरु को सौंप दिया और स्वयं वहाँ से जाने लगा। गुरु ने पूछा - कहाँ जा रहे हो ? राजा ने उत्तर दिया - किसी दूसरे देश में जाकर धंधा करूँगा। गुरु ने कहा - इसके लिए धन कहाँ से आयेगा ? राजा ने कहा - खज़ाने में से ले जाऊँगा।

             गुरु ने कहा, खज़ाना आपका है क्या ? वह तो आपने मुझे सौंप दिया। राजा ने कहा - गुरुदेव गलती हो गयी, मैं यहाँ से कुछ नहीं ले जाऊँगा। बाहर जाकर किसी के पास नौकरी कर लूँगा। तब गुरु ने कहा - नौकरी ही करना है तो मेरे पास ही कर लो। राजा ने पूछा - काम क्या करना होगा ? गुरु ने कहा - जो मैं कहूँ, वही करना होगा। राजा ने गुरु का आदेश स्वीकार कर लिया और उसके यहाँ नौकर हो गया। गुरु ने उसको राज्य की सम्भाल का पूरा काम दे दिया। जो काम राजा पहले करता था वही पुनः उसके हिस्से में आ गया। अन्तर सिर्फ यह रहा कि अब वह राज - कार्य भार नहीं रहा बल्कि निमित्त भाव से कार्य किया जाने लगा। अब उसे भूख भी लगाने लगी, नींद भी आने लगी। कोई भी समस्या नहीं रही।

          एक सप्ताह बाद गुरु ने राजा को बुलाकर पूछा - अब क्या हाल है। राजा ने कहा - आपका उपकार कभी नहीं भूलूँगा। अब मैं परमानंद में हूँ। वही स्थान, वही कार्य पहले बोझ लगता था, अब खेल लगता है, तनाव दूर हो गया और जिम्मेदारी का बोझ उत्तर गया है।

सीख - ये सन्सार ईश्वर की रचना है और हम उस रचयता के रचना याने बच्चे हो गये।  भगवान हमारा पिता है। इस लिये भगवान भी कहते है बच्चे, आपके पास जो भी कुछ है , उसमें से मेरा-पन निकाल कर, उसे ईश्वर की अमानत मानकर, श्रीमत प्रमाण सेवा में लगाओ तो आप भी हल्के हो जायेंगे। बोझ सम्बन्धो और वस्तुओ का नहीं होता है। मेरे पन में होता है। अंतः मेरे- पन को तेरे - पन में बदल दो। 'मेरा' के स्थान पर 'तेरा ' कर दो। मेरा नहीं 'ईशवर का ' यह महावाक्य जीवन का आदर्श बना लो।  

Hindi Motivational Stories - " इच्छाओ को जीतो "

इच्छाओ को जीतो 

                 सिकन्दर जब भारत में आया तो उसने एक योगी की दिल से सेवा की। योगी के दिल में आया कि सिकन्दर को जरूर कोई इच्छा है जिसके कारण यह मेरी इतनी सेवा कर रहा है। उसने राजा सिकन्दर से पूछा - आप क्या चाहते है ? राजा ने कहा - मेरा सारे विश्व पर राज्य हो जाये। योगी ने कहा - तथास्तु , लेकिन मेरी एक शर्त है , यह एक खप्पर है इसे आप अनाज से भर देना। सिकन्दर ने कहा - महाराज जी , आप अनाज की बात कर रहे है, मैं तो इसे हीरों से भर दूँगा। तभी उसने सैनिकों से हीरे मँगवाये और लगा भरने। बहुत देर हो गई भरते - भरते लेकिन खप्पर भरने को ही नहीं आया। सिकन्दर थक गया। योगी ने कहा - यह खप्पर मानव की इच्छाओं का प्रतिक है , यह कभी नहीं भरता। एक इच्छा पूरी होती है तो दूसरी आ जाती है, दूसरी पूरी होती है तो तीसरी आ जाती है। इस तरह मानव की इच्छाये कभी पूरी नहीं होती है। आज आप विश्व पर राज्य करना चाह रहे है फिर आकाश पर और अन्य ग्रहों पर राज्य करना चाहेंगे। इस तरह सारे विश्व पर राज्य प्राप्त करने के बाद आपकी इच्छाये शान्त होने के बजाये और बढ़ेगी। 

सीख - ' इच्छा मात्रम अविद्या ' जो व्यक्ति अपने इच्छाओं को समझ ले और उन पर विजय बने तो वह बिना कुछ पुरषर्थ के भी सुखमय जीवन जी सकता है। किसी ने ये कहा है की मनुष्य अपने इच्छाओं को कम कर दे तो वो सुखी बन जाएगा। 

Monday, May 5, 2014

Hindi Motivational Stories - ' तृष्णा दुःख का कारण '

' तृष्णा दुःख का कारण '

    एक गरीब कलाकार की कला पर प्रसन्न होकर राजा ने उसे अशर्फियों से भरें (८ १/२ ) साढ़े आठ घड़े इनाम में दे दिया। कलाकार  के मन में प्रसन्नता तो हुई पर साथ ही एक चाह - सी उठी कि नवाँ घड़ा आधी खाली है, भर जाए तो कितना अच्छा हो। इस विचार ने उसे बेचैन कर दिया और वहा मारा- मारा फिरने लगा कि कहीं से आधा घड़ा अशर्फियाँ मिले। भरे हुए 8 घड़े उतना सुख नहीं दे पाए जितना दुःख उसे आधे खाली घड़े को देख कर उत्पन्न हो गया। इसलिए कहा जाता - बढ़ता है लोभ अधिक धन के संचय से जब तक एक भी घड़ा नहीं था तो चैन से सोता था, इतने मिल गए तो चैन छीन गया। वाह रे इन्सान, तेरी कैसी प्रवृति है ?

सीख - एक कहावत सुनी होगी आपने  ' आप होत बूढ़े पर तृष्णा होत जवान ' इन्सान के पास जीतना है और जितना मिलता है उसी में आनन्द उठावे यही जीवन का राज है। ये एक सच्ची कला जीवन जीने का जिस में ये कला है वाही इस सृष्टि रुपी नाटक का सच्चा कलाकार है।

Sunday, May 4, 2014

Hindi Motivational Stories - एकता से सफलता

" एकता से सफलता "

   एक गरीब परिवार था पर सभी सदस्यो में आपसी एकता बहुत थी। सो एक दिन वे सभी कमाने के लिए निकले बहुत दूर जाने पर एक पेड़ की छाया में बैठ गए। अब भूख भी बहुत लगी थी सो सभी भोजन का सामान जुटाने लगे। पिता ने बड़े पुत्र से कहा - जाओ, कुछ लकड़ियाँ ले आओ। यह सुन छोटा बेटा बोल पड़ा - इन्हें मत भेजो, मैं ले आता हूँ। पिता ने कहा - सभी एक - एक कार्य करो। एक लकड़ी लाए, दूसरा पानी, तीसरा पत्थर लाकर चूल्ह बनाए। देखते देखते सब तैयारी हो गई। वृक्ष पर बैठा एक देवदूत यह सब देख रहा था। और सोचा इनके पास तो खाना बनाने के लिए समग्री तो नहीं है बस लकड़ी पानो चूल्ह से क्या करेंगे। तब उसने हँसकर पूछा - पकाओगे क्या ? खाओगे क्या ? बड़े लड़के ने ऊपर देवदूत को देखा तो कहा - तुम जो हो। ये बात सुनते ही देवदूत के मन में आया इन्होंने मुझ पर आस राखी है तो में जरूर पूरी करूँगा और उन्हें एक स्थान दिखाया जहाँ बड़ा खजाना दबा पड़ा था। और उस दौलत को निकल कर दूसरे दिन वे सभी वापस चले गये और आनन्द से रहने लगे।

      अब पड़ोसी ने उनकी समृद्दि देखी तो पूछा - तुम एक ही रात में इतने सम्पत्तिवान कैसे हो गए ? उन्होंने सारी बात सुना दी। पड़ोसी भी उनकी नक़ल करता हुआ सारे परिवार को लेकर उसी वृक्ष के नीचे पहुँचा और भोजन बनाने का प्रयत्न में जुट गया। उसने बड़े पुत्र से कहा - जाओ, थोड़ी लकड़ियाँ ले आओ। उसने क्रोध से कहा - छोटे को क्यों नहीं कहते हो, क्या उसकी टाँग टूटी हुई है? पिता ने फिर छोटे को कहा।  वह बोला - मैं तो बहुत थक गया हूँ, मुझ से चला नहीं जाता, दुसरो को क्यों नहीं कहते, इनकी टैंगो में पानी नहीं भरा है? पिता ने तीसरे पुत्र से कहा परन्तु वह भी नहीं गया। तंग आकर पत्नी ने कहा - अच्छा, मैं जाती हूँ। इस पर उसने कहा - तू कहाँ जायेगी, बैठी रह, ऊँची - नीची जगह में कहीं गिर जायेगी। वृक्ष पर बैठा देवदूत यह सारा तमाशा देखता रहा। फिर बोला - तुम विचित्र लोग हो। लकड़ी नहीं, पानी नहीं , खाने का सामान नहीं, तब क्या भूखे रहोगे। बड़े लड़के ने कहा - तुम जो हो। देवदूत ने कहा - मैं उनके लिये हूँ जो एक होकर रहते है। तुम तो आपस में ही फूटे बैठे हो। तुम को कुछ देने का कोई लाभ नहीं होगा। यह कह कर वह देवदूत अदृश्य हो गया।

सीख - कभी भी नक़ल नहीं करनी है और परिवार में एकता हो तो वो परिवार सुखी और समृद्ध होगा इस लिये सदा एकता में रहो।