Sunday, July 13, 2014

Hindi Motivational stories.........................वचन का पालन ऐसा भी ……

वचन का पालन ऐसा भी ……

    स्पेन देश के एक छोटे-से गाँव में एक माली अपने बगीचे को सींचने और पेड़-पौधों को ठीक करने में लगा था। उसी समय एक मनुष्य दौड़ता हुआ बगीचे में आया। वह मनुष्य लम्बा था, उसका सर नंगा था और  बाल बिखरे हुए थे। उसने एक कोट पहन रखा था। बगीचे के स्वामी के सामने आकर हाथ जोड़कर गिड़गिड़ाता हुआ वह बोला - " आप मेरी रक्षा कीजिये। दिन भर के लिये मुझे कहीं छुपा दीजिये। कुछ लोग मेरे पीछे पड़े है। वे मुझे मार डालना चाहते है। "

       वह आदमी थर-थर काँप रहा था और भय के मारे बार-बार पीछे की ओर मुड़कर बगीचे के फाटक की तरफ देख रहा था। बगीचे के स्वामी को उस पर दया आ गयी। उन्होंने उसे एक कोठरी दिखाकर कहा - "उसमें रद्दी फावड़े, टोकरियाँ तथा दूसरा सामान पड़ा है। तुम उसी में छिपकर बैठ जाओ। मैं किसी को तुम्हारा पता नही बताऊँगा। रात को अँधेरा होने पर तुम्हे यहाँ से निकाल दूंगा। "

     थोड़ी देर में कुछ लोग एक युवक की मृत देह उठाये वहाँ आये। बगीचे के स्वामी ने उस युवक को देखा और "बेटा !- बेटा ! कहकर रोता हुआ उस से लिपट गया। वह युवक उसका पुत्र था। आज सवेरे वह अकेले ही घर से घूमने निकला था !

   जो लोग उस युवक की मृत देह लेकर आये थे , उन्होंने बताया -"गाँव के बाहर केवेलियर जाति के एक मनुष्य ने इसका गला घोंटकर मार डाला है। हमलोग दौड़े, किन्तु वह भागकर अपने गाँव में ही कही छिप गया।  हमें बहुत दुःख है कि हमारे पहुँचाने में देर हो गयी। आपके पुत्र के प्राण हम नहीं बचा सके। "

   उस समय केवेलियर जाति और स्पेन के दूसरे लोगों में दुश्मनी थी। इसी वजह से केवेलियर जाति के लोग स्पेन के लोगों को छिपकर मार दिया करते थे। बगीचे के स्वामी को उन लोगों ने हत्यारे का रूप-रंग उसके कोट का रंग बताया। ये बात सुनते ही बगीचे का स्वामी सिर पकड़कर बैठ गया। वह समझ गया कि जिस मनुष्य को उसने कोठरी में छिपा रखा है, वही उसके पुत्र का हत्यारा है। हत्या करके पकड़े जाने के भय से यहाँ छिपा है। लेकिन उस हत्यारे के सम्बन्ध में एक शब्द भी बगीचे के स्वामी ने नहीं कहा।

    पूरा दिन अपने पुत्र का अंतिम संस्कार करने में बीत गया और जब सब लोग सो गए। रात हुई, तो बगीचे का स्वामी अपने बगीचे में आये। उसने वह कोठरी खोली और उस में छिपे मनुष्य से कहा - "तुम्हे पता है कि दिन में तुमने जिस युवक की हत्या,  वह मेरा पुत्र था। " हत्यारा काँपने लगा। भय के मारे उस से बोला नहीं गया। उसने समझ लिया कि अब उसके प्राण नहीं बच सकते। लेकिन बगीचे के स्वामी ने उसे निर्भय करते हुए कहा - "डरो मत ! मैंने तुम्हें शरण दी है और तुम्हारी रक्षा का वचन दिया है, में अपने वचन का पालन करूँगा। तुम रातों रात यहाँ से भाग जाओ। " हत्यारा उस बगीचे के स्वामी के पैरों पर गिर पड़ा और फुट-फुटकर रोने लगा। बगीचे के स्वामी ने उसे उठाया और कहा - "मेरा बेटा अब लौट के आ नहीं सकता। तुम व्यर्थ देर मत करो। "

सीख - अपने वचन के पालन के लिये अपने पुत्र के हत्यारे को भी क्षमा करने वाले ऐसे पुरुष ही संसार में महापुरुष कहे जाते है। 

Friday, July 11, 2014

Hindi Motivational Stories..........................दो आदर्श मित्र

दो आदर्श मित्र

  बहुत सालों पुरानी ये बात है। इंगलैंड के एक छोटे शहर में मिनिस्टर नाम के एक प्रसिद्ध स्कूल में दो मित्र पढ़ते थे। एक का नाम था निकोलस और दूसरे का नाम था बेक। इन दो की विशेषता अलग-अलग थी। निकोलस आलसी, नटखट और झूठा था। परन्तु बेक परिश्रमी, सीधा और सच्चा लड़का था। इतना होने पर भी बेक और निकोलस में बहुत पक्की मित्रता थी।

    एक दिन पाठशाला के टीचर किसी काम से थोड़ी देर के लिये कक्षा से बाहर चले गये। लड़कों ने पढ़ना बन्द कर दिया और वे बातचीत करने लगे। नटखट निकोलस को धूम करने की सूझी। उसने कक्षा में लगा दर्पण उठाकर पटक दिया। दर्पण चूर-चूर हो गया। दर्पण के टूटते ही सब लड़के चौक गये। पूरा सन्नाटा छा गया। और तब निकोलस को भी लगा कि उस से बहुत बड़ी भूल हुई। मार पड़ने के भय से वह अपने स्थान पर जाकर चुपचाप बैठ गया और सिर झुकाकर पढ़ने में लग गया।

       शिक्षक ने कक्षा में आते ही दर्पण के टुकड़े देखे। वे बहुत कठोर स्वाभाव के थे। बड़े क्रोध से डाँट कर उन्होंने कहा - 'यह उत्पात किसने किया है ? वह अपने स्थान पर खड़ा हो जाय। ' अब भयके मारे कोई लड़का बोला नहीं। लेकिन शिक्षक यु सहज छोड़ देने वाले नहीं थे। उन्होंने एक - एक लडके को खडा करके पूछना शुरू किया। जब निकोलस की बारी आयी तो दूसरे लड़कों के समान उसने भी कह दिया - ' मैंने दर्पण नहीं तोड़ा। '

     बेक ने जब देखा कि उसका मित्र निकोलस मार पड़ने के डर से झूठ बोल गया है तो उसने सोचा कि 'शिक्षक अवश्य दर्पण तोड़नेवाले का पता लगा लेंगे। और निकोलस को झूठ बोलने के कारण और भी ज्यादा मार पड़ेगी। इसलिये मुझे अपने मित्र को बचा लेना चाहिये। ' वह उठकर खड़ा गया और बोला- दर्पण मेरे हाथ से टूट गया है। अब सब लडके और निकोलस भी आश्चर्य से बेक का मुख देखने लगे। शिक्षक ने बेत उठा लिया और बेक को पीटने लगे। बेचारे बेक के शरीर पर नीले- नीले दाग पड़ गये, किन्तु न तो वह रोया और न ही चिल्लाया।

   जब पाठशाला की छुट्टी हुई, सब लड़कों ने बेक को घेर लिया। निकोलस रोता-रोता उसके पास आया और बोला - "बेक ! मैं तुम्हारे इस उपकार को कभी नहीं भूलूँगा। तुमने मुझे आज मनुष्य बना दिया। मैं अब कभी झूठ नहीं बोलूँगा, ऊधम नहीं करूँगा। अब मैं पढ़ने में ही परिश्रम करूँगा। "  निकोलस सचमुच उसी दिन से सुधर गया। वह पढ़ने में परिश्रम करने लगा। बड़ा होने पर उसने इतनी उन्नति की कि वह न्याधीश के पद पर पहुँच गया।

Wednesday, July 9, 2014

Hindi Motivational stories.......... ............महान शंकर की ईमानदारी

महान शंकर की ईमानदारी

      महान शंकर का जन्म सीलोन में हुआ था। सीलोन का पुराना नाम सिंहलदीप है। इसे लंका भी कहा जाता है। महान शंकर एक आदर्श पुरुष हो गये है। उनका बचपन बड़ी दरिद्रता में बिता था। उनके पिता दिवाकर बहुत कम पढ़े-लिखे थे। जंगली जड़ी-बूटियाँ बेचकर वे अपने परिवार का भरण-पोषण करते थे। अपने पुत्र शंकर को उन्होंने थोड़ी-बहुत शिक्षा दी और वैधक भी सिखाया।

   कुछ दिनों  के बाद सीलोन में अकाल आया और उस समय दिवाकर की मृत्यु हो गयी। उस समय शंकर मात्र 18 साल के थे। अब दिवाकर के मृत्यु के बाद सारा परिवार का बोज शंकर पर आ गया। एक तो वे लडके थे, दूसरा उनके गाँव में दूसरे भी कई अच्छे वैध थे। और वे शंकर से द्धेष रखते थे और रोगियों को भड़काया करते थे। कि  'शंकर को वैध का कुछ भी ज्ञान नहीं है। वह तो रोगियों की बीमारी बढ़ा देता है। ' इन सब कारणों से शंकर को वैध से जो दो-चार आने मिलते भी थे, वे भी बंद हो गए। उनको और उनके परिवार को कई बार केवल पानी पीकर रहना पड़ता था। उसकी माता दूसरों का अन्न पीसती थी और उनकी बहिन फूलों की माला बनाती थी, जिसे वे बेच आते थे। इस प्रकार वह परिवार बड़े कष्ट में जीवन बिता रहा था।

    अचानक एक दिन सिंहलदीप के एक प्रसिद्ध धनी का पत्र शंकर को मिला। उस धनी का नाम लोरेटो बेंजामिन था। शंकर के पिता दिवाकर लोरोटो के पारिवारिक चिकिस्तक थे। लोरोटो बीमार था और उसने शंकर को अपनी चिकित्सा करने के लिये बुलाया था। पत्र पाकर शंकर लोरोटो के गाँव गये और उसकी चिकित्सा करने के लिये वहीं ठहर गए। लोरोटो का एक बड़ा बगीचा था। किसी समय वह बगीचा बहुत सुन्दर रहा होगा, किन्तु उन दिनों तो उसके बीच के मकान खंडहर हो गये थे। बगीचे में घास और जंगली झाड़ियों उग गयी थी। उस में कोई आता-जाता नहीं था। शंकर जड़ी-बूटी ढूंढने उस बगीचे में प्राय; जाने लगे।

    एक दिन शंकर जड़ी-बूटी ढूंढते उस बगीचे में घूम रहा था। घूमते समय एक जगह उसका पैर धँस गया। और उसने देखा की एक ताँबे का हंडा जमीन में गड़ा है। शंकर ने मेहनत कर उस स्थान की मिट्टी हटाई तो बहुत से हंडे दिखाई पड़े। बहुत मेहनत और मुश्किल से एक हंडे के मुख से ऊपर का ढक्कन हटा सका। और जैसे उसने अन्दर देखा तो उसका आश्चर्य का ठिकाना न रहा। हंडा सोने और अशर्फियों से भरा था।

      शंकर बड़े दरिद्र थे। उनके सारे परिवार को उपवास करने पड़ते थे।और उनके सामने सोने हीरो से भरे हंडे थे। लेकिन फिर भी शंकर के मन में लोभ नहीं था। वो सोचा ' बेचारा लोरोटो धन की चिन्ता के कारण ही रोगी बना है उस पर कर्ज  हो गया था। अब वह स्वस्थ हो जाएगा। ' वह तुरंत लोरोटो के पास आकर सारी बात बता दी और दोनों मिलकर हंडे लोरोटो के घर में सुरक्षित रखा दिये। तब लोरोटो ने शंकर को 200 सोने के सिक्खे और 500 रुपये देना चाहा। पर शंकर ने कहा - "मैं आपका धन नहीं लूंगा। मैंने आपके ऊपर कोई उपकार नहीं किया है। मैंने तो एक साधारण कर्तव्य का पालन किया है। "

   लोरोटो पर शंकर की ईमानदारी और सद्व्यवहार का बड़ा प्रभाव पड़ा। आगे चलकर उसने अपनी इकलौती पुत्री का विवाह शंकर के साथ कर दिया। एक धनी की एक मात्र कन्या से विवाह करके भी शंकर ने उनका धन नहीं लिया। शंकर खुद परिश्रम करके ही अपना काम चलाया। अपने परिश्रम तथा उदारता से वे सीलोन में बहुत प्रसिद्ध और संपन्न हो गये थे।

सीख - सच्चे और ईमानदार व्यक्ति की हमेशा जीत होती है। 

Friday, July 4, 2014

Hindi Motivational Stories....................छत्रपति महाराज शिवाजी की उदारता

छत्रपति महाराज शिवाजी की उदारता 


   एक बार एक बालक जो तेरा-चौदह वर्ष का था। रात में किसी प्रकार छिपकर उस कमरे में पहुँचे जहा शिवाजी महाराज सो रहे थे। अब उसने देखा की महाराज सो रहे है। तो उसने तलवार निकाली महाराज को मारने ही वाला था कि पीछे से तानाजी ने उसका हाथ पकड़ लिया। छत्रपति शिवाजी महाराज के विश्वासी सेनापति तानाजी ने उस लड़के को पहले ही देख लिया था और वे यह देखना चाहते थे कि वह क्या करने आया है।  इसी बीच शिवाजी की नींद खुल गयी। उन्होंने पूछा बालक से -'तुम कौन हो ? और यहाँ क्यों आये हो?बालक ने कहा - ' मेरा नाम मालोजी है। मैं आपकी हत्या करने आया था। ' शिवाजी बोले - 'तुम मुझे क्यों मारना चाहते हो ? मैंने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है ? ' बालक बोला - ' आपने मेरा कुछ नहीं बिगाड़ा है। लेकिन मेरी माँ कई दिनों से भूखी है। हम बहुत गरीब है। आपके शत्रु शुभगारा ने मुझे कहा था कि यदि मैं आपको मार डालू तो वे मुझे बहुत धन देंगे। '

 इतने में तानाजी बोले - 'दुष्ट लडके ! धन के लोभ से तू  महाराष्ट्र के उद्धारक का वध करना चाहता था? अब मरने के लिए तैयार हो जा। ' बालक तनिक भी डरा नहीं। उसने तानाजी के बदले शिवाजी से कहा - ' महाराज ! मैं मरने से डरता नहीं हूँ। मुझे अपने मरने की चिन्ता भी नहीं है। लेकिन मेरी माँ बीमार है और कई दिनों से भूखी है। वह मरने को पड़ी है। आप मुझे एक बार घर जाने दीजिये। उनसे माफ़ी माँगकर माता के चरणों में प्रणाम करके मैं फिर आपके पास लौट आऊंगा। मैंने आपको मारने का यत्न किया। अब आप मुझे मार डाले; यह तो ठीक ही है.परन्तु मुझे थोड़ा-सा समय दीजिये। '

      तानाजी बोले - ' तू हमें बातो से धोखा देकर भाग नहीं सकता। ' बालक बोला - ' मैं भागूँगा नहीं। मैं मराठा हूँ, मराठा झूठ नहीं बोलता। ' शिवाजी ने उसे घर जाने की आज्ञा दे दी। बालक घर गया। दूसरे दिन सबेरे जब छत्रपति महाराज शिवाजी राजदरबार में सिंहासन पर बैठे थे, तब द्धारपालने आकर सूचना दी कि एक बालक महाराज के दर्शन करना चाहता है। बालक को बुलाया गया। वह वही मालोजी था। मालोजी दरबार में आकर छत्रपति को प्रणाम किया। और बोला - 'महाराज ! मैं आपकी उदारता का आभारी हूँ। माता का दर्शन कर आया हुँ. अब आप मुझे मृत्यु दण्ड दे।

    छत्रपति महाराज सिँहासन से ऊठे। और बालक को गले से लगा लिया और कहा -' यदि तुम्हारे-जैसे वीर एवं सच्चे लोगों को प्राण दण्ड दे दिया जायेगा तो देश में रहेगा कौन ?
 तुम्हारे-जैसे बालक ही तो महाराष्ट्र के भूषण है। '

  इस तरह बालक मालोजी शिवाजी महाराज की सेना में नियुक्त हो गया। छत्रपति उसकी माता की चिकित्सा के लिए राजवैध को भेजा और बहुत-सा धन उसे उपहार में दिया।

सीख - सुना है -"दिल साफ तो मुराद हासील " " सच्चे दिल पर साहेब राजी "
 इस लिये सच्चे बनो नेक बनो।
 तो दिल की हर मुराद पूरी होगी। 

Thursday, July 3, 2014

Hindi Motivational Stories..............................भामाशाह का त्याग

भामाशाह का त्याग 

     ये उस समय की बात है जब चित्तौड़ पर अकबर की सेना ने अधिकार कर लिया था। महाराणा प्रताप अरावली पर्वतो के वनों में अपने परिवार तथा राजपूत सैनिकों के साथ जहाँ-तहाँ भटकते-फिरते थे। महाराणा तथा उनके छोटे बच्चों को कभी-कभी दो-दो, तीन-तीन दिनों तक घास के बीजों की बनी रोटी तक नहीं मिलती थी। चित्तौड़ के महाराणा और सोने के पलंग पर सोने वाले उनके बच्चे भूखे-प्यासे पर्वत की गुफाओं में घास-पत्ते खाते और पत्थर की चट्टान पर सोया करते थे। लेकिन महाराणा प्रताप को इन सब कष्टों की चिन्ता नहीं थी। उन्हें एक ही धुन थी कि शत्रुओं से देश का चित्तौड़ की पवित्र भूमि का उद्धार कैसे किया जाय।

   किसी के पास काम करने का साधन न हो तो उसका अकेला उत्साह क्या काम आवे। महाराणा प्रताप और दूसरे सैनिक भी कुछ दिन भूखे-प्यासे रह सकते थे: किन्तु भूखे रहकर युद्ध कैसे चलाया जा सकता है। छोड़ो के लिये, हथियारों के लिए, सेना को भोजन देने के लिए तो धन चाहिये। और महाराणा के पास फूटी कौड़ी नहीं थी। उनके राजपूत और भील सैनिक अपने देश के लिये मर-मिटने को तैयार थे। उन देशभक्त वीरों को वेतन नहीं लेना था: किन्तु बिना धन के घोड़े कहाँ से आवें, हथियार कैसे बने, मनुष्य और घोड़ो को भोजन कैसे दिया जाय। इतना भी प्रबन्ध न हो तो दिल्ली के बादशाह की सेना से युद्ध कैसे चले। महराणा प्रताप को बड़ी निराशा हो रही थी येही सब बातें सोचकर। और अंत में एक दिन महाराणा ने अपने सरदारों से बिदा ली, भीलों को समझकर लौटा दिया। प्राणों से प्यारी जन्म-भूमि को छोड़कर महराणा राजस्थान से कहीं बाहर जाने को तैयार हुए।

      जब महाराणा अपने सरदारों को रोता छोड़कर महारानी और बच्चों के साथ वन के मार्ग से जा रहे थे, महाराणा के मन्त्री भामाशाह घोडा दौड़ाते आये और घोडे से कूदकर महाराणा के पैरों पर गिरकर फुट-फुटकर रोने लगे -'आप हम लोगों को अनाथ करके कहाँ जा रहे है ?'

    महाराणा प्रताप भामाशाह को उठाकर ह्रदय से लगाया और आँसू बहाते हुए कहा - 'आज भाग्य हमारे साथ नहीं है। अब यहाँ रहने से क्या लाभ ? मैं इसलिये जन्म-भूमि छोड़कर जा रहा हूँ कि कहीं से कुछ धन मिल जाय तो उस से सेना एकत्र करके फिर चित्तौड़ का उद्धार करने लौटूँ। आप लोग तब तक धैर्य धारण करें। ' भामाशाह ने हाथ जोड़कर कहा -'महाराणा ! आप मेरी एक प्रार्थना मान लें। ' राणाप्रताप बड़े स्नेह से बोले -'मन्त्री ! मैंने आपकी बात कभी टाली है क्या ?'

      भामाशाह के पीछे उनके बहुत-से-सेवक घोड़ों पर अशर्फियों के थैले लादे ले आये थे। भामाशाह ने महाराणा के आगे उन अशर्फियों का बड़ा भारी ढेर लगा दिया और फिर हाथ जोड़कर बड़ी नम्रता से कहा - 'महाराणा ! यह सब धन आपका ही है। मैंने और मेरे बाप-दादाओ ने चित्तौड़ के राजदरबार की कृपा से ही इन्हें इकट्टा किया है। आप कृपा करके इसे स्वीकार कर लीजिये और इस से देश का उद्धार कीजिये। '

     महाराणा प्रताप भामाशाह को गले से लगा लिया। उनकी आँखों से आँसू की बुँदे टपक रही थी। वे बोले - ' लोग प्रताप को देश का उद्धारक कहते है, किन्तु इस पवित्र भूमि का उद्धार तो तुम्हारे-जैसे उद्धार पुरुषों से होगा। तुम धन्य हो भामाशाह !'

  उस धन से महाराणा प्रताप ने सेना इकट्ठी की और फिर मुगलसेना पर आक्रमण किया। मुगलों के अधिकार की बहुत सी भूमि महाराणा प्रताप ने जीत ली और उदयपुर में अपनी राजधानी बना ली।

सीख - महाराणा प्रताप की वीरता जैसे राजपूताने के इतिहास में विख्यात है, वैसे ही भामाशाह का त्याग भी विख्यात है। ऐसे त्यागी पुरुष ही देश के गौरव होते है। जो व्यक्ति समय पर अपना सहयोग देता है उसे कही जन्मों का पुण्य प्राप्त होता है।

Tuesday, July 1, 2014

Hindi Motivational Stories........................पन्ना धायका त्याग

पन्ना धायका त्याग 

 
     चित्तौड़ के महाराणा संग्राम सिंह की वीरता प्रसिद्ध है। उनके स्वर्गवासी होने पर चित्तौड़ की ग़द्दी पर राणा विक्रमादित्य बैठे, किन्तु वे शासन करने की योग्यता नहीं रखते थे। उन में न बुद्धि थी और न वीरता। इस लिए चित्तौड़ के सामन्तो और मंत्रियों ने सलाह करके उनको गद्दी से उत्तार दिया तथा महाराणा संग्राम सिंह के छोटे कुमार उदय सिंह को गद्दी पर बैठाया।

    उदय सिंह की अवस्था उस समय केवल छ: वर्ष की थी। उनकी माता रानी करुणावती का स्वर्गवास हो चूका था। पन्ना नाम की एक धाय उनका पालन-पोषण करती थी। और उस समय राज्य का संचालन दासी-पुत्र बनवीर करता था। वह उदय सिंह का संरक्षक बनाया गया था।

    बनवीर के मन में राज्य का लोभ आया। उसने सोचा कि यदि विक्रमादित्य और उदय सिंह को मार दिया जाय तो सदा के लिए वह राजा बन सकेगा। सेना और राज्य का संचालन उसके हाथ में था ही। एक दिन रात में बनवीर नंगी तलवार लेकर राजभवन में गया और उसने सोते हुए राजकुमार विक्रमादित्य का सिर काट लिया। और जूठी पत्तल उठानेवाले एक बारी ने बनवीर को विक्रमादित्य की हत्या करते देख लिया। वह ईमानदार और स्वामिभक्त बारी बड़ी शीघ्रता से पन्ना के पास आया और उसने कहा - ' बनवीर राणा उदय सिंह की हत्या करने शीघ्र ही यहाँ आयेगा। कोई उपाय करके बालक राणा के प्राण बचाओ। '

 पन्ना धाय अकेली बनवीर को कैसे रोक सकती थी। उसके पास कोई उपाय सोचने का समय भी नहीं था। लेकिन उसने एक उपाय सोच लिया। उदय सिंह उस समय सो रहे थे। उनको उठाकर पन्ना ने एक टोकरी में रखा दिया और टोकरी पत्तल से ढककर उस बारी को देकर कहा - ' इसे लेकर तुम यहाँ से चले जाओ। और वीरा नदी के किनारे मेरा रास्ता देखना। ' उदय सिंह को तो वह से हटा दिया पर इस से भी काम पूरा नहीं हुआ। अगर बनवीर को पता लगा कि उदय सिंह को छिपाकर कहीं भेजा गया है। तो अवश्य ही घुड़सवार भेजकर पकड़ लेगा। अब पन्ना ने एक और उपाय सोचा। उसका भी एक पुत्र था। उसका पुत्र चन्दन की अवस्था भी छ: वर्ष की थी। उसने अपने पुत्र को उदय सिंह के पलंग पर सुलाकर रेशमी चदर उढ़ा दी और स्वयं एक ओर बैठ गयी। जब बनवीर रक्त में सनी तलवार लिये वहाँ आया और पूछने लगा - '  उदय सिंह कहाँ है ?' तब पन्ना ने बिना एक शब्द बोले अँगुली से अपने सोते लड़के की ओर संकेत कर दिया। हत्यारे बनवीर ने उसके निरपराध बालक के तलवार द्दारा दो टुकड़े कर दिये और वहाँ से चला गया।

   अपने स्वामी की रक्षा के लिये अपने पुत्र का बलिदान करके बेचारी पन्ना रो भी नहीं सकती थी। उसे झटपट वहाँ से नदी किनारे जाना था, जहाँ बारी उदय सिंह को लिये उसका रास्ता देख रहा था। पन्ना ने अपने पुत्र की लाश ले जाकर नदी में डाल दी और उदय सिंह को लेकर मेवाड़ से चली गयी। उसे अनेक स्थानों पर भटकना पड़ा। अन्त में देवरा के सामन्त आकाशाह ने उसे अपने यहाँ आश्रय दिया।

      और आखिर में बनवीर को अपने पाप का दण्ड मिला। बड़े होने पर राणा उदय सिंह चित्तौड़ की गद्दी पर बैठे। पन्ना धाय उस समय जीवित थी। राणा उदय सिंह माता के समान उसका सम्मान करते थे।

सीख - पन्ना की स्वामी भक्ति महान है। स्वामी के लिये अपने पुत्र का बलिदान करने वाली पन्ना माई धन्य है !................  इस धरती पर ऐसे ऐसे महान व्यक्ति हुए है। चाहे पद छोटा हो या बड़ा लेकिन व्यक्ति महान बनता है अपने गुणों से। इस लिये पन्ना धाय को सन्सार के लोग भाले भूल जाय लेकिन इतिहास में उनका नाम हमेशा अमर रहेगा।
 

Sunday, June 29, 2014

Hindi Motivational Stories..................सावधानी और दयालुता

सावधानी और दयालुता

          चित्तौड़ के बड़े राजकुमार चन्द्रस शिकार खेलने निकले थे। अपने साथियों के साथ वे दूर निकल गये थे। उन्होंने उस दिन श्रीनाथ द्वारे में रात बिताने का निश्चय किया था। जब शाम होने पर वे श्रीनाथद्वारे की ओर लौटने लगे, तब पहाड़ी रास्ते में एक घोड़ा मरा हुआ पड़ा दिखायी दिया। राजकुमार ने कहा - ' किसी यात्री का घोड़ा यहाँ मर गया है। घोड़ा आज का ही मरा है। यहाँ से आगे ठहरने का स्थान तो श्रीनाथद्दारा ही है। वह यात्री वहीं गया होगा। '

    श्रीनाथद्दारे पहुँचकर राजकुमारने सब से पहले यात्री की खोज की। उनके मन में एक ही चिन्ता थी कि यात्रा में घोड़ा मरने  यात्री को कष्ट होगा। राजकुमार उसे दूसरा घोड़ा दे देना चाहते थे। लेकिन जब सेवकों ने बताया कि यात्री यहाँ नहीं आया है, तब राजकुमार और चिन्तित हो गये। वे कहने लगे - 'अवश्य वह यात्री मार्ग भूलकर कहीं भटक गया है। वह इस देश से अपरिचित होगा। और रात्रि में वन में पता नहीं, वह कहाँ जायेगा। तुम लोग टोलियाँ बनाकर जाओ और उसे ढूंढ़कर ले आओ।

      राजकुमार की आज्ञा पाकर उनके सेवक मशालें जलाकर तीन,तीन चार-चार की टोलियाँ बनाकर यात्री को ढूंढने निकल पड़े। बहुत भटकने पर उन में से एक टोली के लोगों को किसी ने पुकारा। जब उस टोली के लोग पुकारने वाले के पास पहुँचे, तब देखा कि एक बूढ़ा और एक नवयुवक एक घोड़े पर बहुत-सा सामान लादे पैदल चल रहे है। वे लोग बहुत घबराये और थके हुए थे। राजकुमार के सेवकों ने कहा - ' आप लोग डरे नहीं। हम लोग आपको ही ढूंढने निकले है। '

           बूढ़े ने बड़े आश्चर्य से कहा - ' हम लोग तो अपरिचित है। विपति के मारे घर-द्दार छोड़कर श्रीनाथजी की शरण लेने निकल पड़े थे।  और आज ही रस्ते में हमारा घोड़ा गिर पड़ा और मर गया। यहाँ हमलोग रास्ता भूलकर भटक पड़े। और आप लोग हम लोगों को भला कैसे ढूंढने निकले ?  तब सेवकों ने कहा - ' हमारे राजकुमार ने आपका मरा घोड़ा देख लिया था। वे प्रत्येक बात में बहुत सावधानी रखते है। और उन्होंने जान लिए की घोडा मरा है तो यात्री भटक गया होगा। इस लिए उन्होंने हम लोगो को भेजा आप लोगोँ को ढूंढने।

   एक राजकुमार इतनी सावधानी रखें और ऐसे दयालु हो, यह दोनों यात्रियों को बहुत अदभुत लगा। श्रीनाथद्दारे आकर उन्होंने राजकुमार के प्रति कृत्यज्ञता प्रकट की। राजकुमार चन्द्रस बोलो - ' यह तो प्रत्येक मनुष्य का कर्तव्य है कि वह सावधान रहे और कठिनाई में पड़े लोगों की सहायता करे। मैंने तो अपने कर्तव्य का ही पालन किया है। '

सीख - हर मनुष्य के दिल में इस तरह सब के लिए दया और प्रेम जागे तो सन्सार स्वर्ग हो जाएगा।