Monday, November 17, 2014

Hindi Motivational stories... राम और हनुमानजी की सेवा

               राम और हनुमानजी की सेवा 

          एक बार ऐसा हुआ की भारत, लक्ष्मण और शत्रुघ्न तीनों भाई मिलकर माता सीताजी से विचार किया कि  हनुमान जी राम जी सेवा करते है और हमें सेवा का मौका नहीं मिलता इसलिए आज से हम तीनों भाई मिलकर राम जी की सेवा करेंगे। सीता माता ने कहा ठीक है। और दूसरे दिन जब हनुमानजी आये तो उन्हें कोई सेवा नहीं दी गई। और कहा की आज आपके लिए कोई सेवा नहीं है रामजी की सेवा सब को बाँट दी गयी है। हनुमान जी ने देखा की प्रभु राम जी जम्भाई आने पर चुटकी देकर कम करने की सेवा किसी ने नहीं ली है। सो हनुमानजी राम जी के पास खड़े रहे।

           जब रात हुई तो तीनो भाईयो ने हनुमान जी को बहुत समझाया की अब घर जाओ रामजी को सोने दो और हम उनकी सेवा में है। हनुमान जी ने कहा ठीक है और वो छत पर जाकर बैठ गये और चुटकी बजाने लगे। और जब सब चले गये तो सीता माता सेवा में आ गयी। और उन्होंने देखा की राम जी का मुँह खुला का खुला ही है। वे घबरा गई और सब को बूलाने लगी कुछ ही देर में सब आ गये। सब ने बहुत प्रयास किया की रामजी का मुख बंद हो पर सफल नहीं हो पाये। वैद जी को बुलाया गया पर कुछ नहीं हुआ। वासिष्ठ जी आये तो उनको  आश्चर्य हुआ कि ऐसी चिन्ताजनक समय पर हनुमानजी दिखायी नहीं दे रहे है। उस समय सब को हनुमान जी याद आयी तो हनुमानजी को ढूंढने लगे पता चला कि वो तो छत पर ही बैठकर चुटकी बजा रहे है। उन्हें बूलाया गया और जैसे ही हनुमान जी चुटकी बजाना बंद किया तो राम जी का मुख अपने आप बंद हो गया।

   सीख - अब सब की समझ में आया कि यह सब लीला हनुमानजी के चुटकी बजाने के कारण ही थी ! भगवान ने ये लीला इसलिये की थी कि जैसे भूखे को अन्न देना ही चाहिये, ऐसे ही सेवा के लिये आतुर हनुमानजी को सेवा का अवसर देना ही चाहिये, बंद नहीं करना चाहिये। फिर तीनों भाईयो ने कभी ऐसा आग्रह नहीं किया।

      

Friday, November 14, 2014

Hindi Motivational stories........ ढूढ उदेश्य से सम्पूर्णता की ओर !

ढूढ उदेश्य से सम्पूर्णता की ओर !

    बहुत पुरानी बात है। एक भक्त इमली के पेड़ के नीचे बैठकर भगवान का भजन कर रहा था। एक दिन अचानक घूमते घूमते वहाँ नारदजी महाराज आ गये। उस भक्त ने नारद जी से कहा की ,"जब आप भगवान से मिलेंगे तो उनसे कहा देना वो कब मुझे मिलेंगे " नारद जी भगवान के पास गये और बताया की ऐसी ऐसी जगह पर एक भक्त है और उसने पूछा है आप कब उसे मिलेंगे ? तो भगवान ने कहा - उसे कहो की उस पेड़ के जितने पत्ते है उतने जन्मो के बाद मैं मिलूँगा। ये बात सुनकर नारद जी उदास हो गये। और कुछ समय बाद वो उस भक्त से मिले लेकिन भगवान ने क्या कहा ये नहीं बताया। पर भक्त ने बहुत आग्रह किया और पूछा तब नारद जी ने कहा ,"सुनकर क्या करोगे आप आतश हो जाओगे इसलिए नहीं बता रहा हूँ " लेकिन भक्त ने प्रार्थना किया जो भी हो जैसे भगवान ने कहा है वैसे बता दे महाराज !

  नारदजी भक्त की विनती सुनकर आखिर बता ही दिया ,"भगवान ने कहा है इस पेड़ के जितने पत्ते है उतने जन्मो के बाद में वो आप से मिलेंगे " भक्त ये सुनकर ख़ुशी से नाचने लगा और मुख से कहने लगा ,"भगवान ने कहा वो मिलेंगे तो जरुरु मुझे मिलेंगे उनका वचन सिद्ध होता है , वो मुझे मिलेंगे भगवन मुझे मिलेंगे .......... ऐसी अनहद आनंद में वो मगन हो नाचते हुवे ख़ुशी में मगन हुआ। और उतने में वहाँ पर भगवान भी आ गये।

   भगवान को वहाँ देखकर नारदजी बहुत दांग रह गए। और कहने लगे भगवान आपको आना ही था तो फिर मुझ से ये क्यों कहा की इतने जन्मो के बाद मिलूँगा , इस पर भगवान ने कहा नारद जिस वक्त अपने मुझे पूछा था उस वक्त इस की अवस्था पुरुषार्थ का ठीक वैसे ही था ,लेकिन जैसे ही अपने मेरी बाद भक्त को बता दी तो उसका रफ़्तार बहुत तेज हुआ पुरुषार्थ का जिस के वजह से मैं खींचे आ रहा हूँ। मेरा तो क्या है जैसी भक्त और उसका भावना और ढूढ उदेश हो मैं अपने आप आ जाता हूँ।  जो जितना सिद्दत से उत्साह से याद करता उतना ही जल्दी मैं उस से मिलता।

सीख - हम जीतना आनंद , उत्साह और लगन  वस्तु की या ईश्वर की चाहत करेंगे वो उतना ही जल्दी हमें प्राप्त होगी................ 

Wednesday, November 12, 2014

Hindi Motivational Stories........कुछ ऐसा भी होता है।

कुछ ऐसा भी होता है। 

     बहुत पुरानी बात है लेकिन आज भी इस तरह का अनुभव हम कभी कभी करते है। सन्त-महात्माओं को हमारी विशेष गरज रहती है। जैसे माँ को अपने बच्चे की याद आती है। बच्चे को भी भूख लगते ही माँ स्वम् चलकर बच्चे के पास आती है, ऐसे ही सन्त-महात्मा सच्चे जिज्ञासुऔ के पास खिचे चले आते है। इस विषय में कहानी भी है। …

   एक गृहस्थ बहुत ऊँचे दर्जे के तत्वज्ञ, जीवन्मुक्त, महापुरुष थे। वे अपने घोड़े पर चढ़कर किसी गॉव जा रहे थे। चलते - चलते घोडा एक जगह रास्ते पर मूड गया और चलने लगा गृहस्थ ने बहुत कोशिश की सीधे रस्ते चलने की लेकिन घोडा नहीं माना तो गृहस्थ ने सोचा अच्छा ठीक है आज तेरी जहाँ से मर्जी हो वहा से जायेंगे ये कहा कर गृहस्थ फिर घोड़े पर सवार हुवे और घोड़े की दिशा में चलने लगे घोडा आगे जाकर एक घर के सामने रुख गया गृहस्थ घोड़े से उत्तर कर घर के अन्दर चले गये। वहा एक सज्जन मिले। और सज्जन ने इस महापुरुष का सम्मान और आदर-सत्कार किया। सज्जन इस गृहस्थ को जानते थे। और उनके मन में बहुत उत्कण्ठा थी महापुरुष से मिलकर कुछ साधना की बाते करू। और आज तो गंगा खुद चलकर उनके घर आयी थी। सो सज्जन ने बहुत से प्रश्न किये और जिसका उन्हें संतोष जनक उत्तर मिला। फिर सज्जन ने गृहस्थ सन्त को भोजन कराया। उसके बाद गृहस्थ सन्त ने कहा अच्छा अब आज्ञा दीजिए और कोई बात हो तो निसंकोच पूछे और यह मेरा पता है। आप आना या फिर समाचार दे तो मैं खुद आ जाऊंगा। सज्जन ने कहा 'महाराज इस बार कैसे आप आये तो सन्त ने कहा मेरा घोडा अड़ गया। अच्छा तो फिर जब आपका घोडा अड़ जाय तो फिर आना।

   कहने का भाव ये है की सच्ची जिज्ञासा होती है तो सन्तो का घोडा अड़ जाता है।

सीख - सन्तो की बात क्या ! स्वम् भगवान के कानो में भी सच्ची पुकार तुरन्त पहुँच जाती है और वे किसी सन्त के साथ हमारी भेट करा देते है।
सच्चे ह्रदय से प्रार्थना जब भक्त सच्चा गाय है। 
तो भक्त-वत्सल कान में वह पहुँच झट ही जाय है।।

Tuesday, November 4, 2014

Hindi Motivational Stories....एक सेठ की कहानी

एक सेठ की कहानी 

सदी पुरानी बात है  एक गॉव में सेठ रहता था बहुत धनवान था ईश्वर का दिया सब कुछ था। सेठ रोज सुबह सुबह लोटा लेकर मंदिर जाते और जल चढ़ाकर पूजा पाठ करके घर आते। एक दिन रास्ते में एक सन्त महात्मा बैठे थे ,उसने सेठ को देखा तो राम राम कहा  सेठ ने उसकी तरफ देखा अनदेखा किया। सन्त ज्ञानी थे वे समझ गए सेठ को डर है कही कोई कुछ माँग न ले,इस लिए उन्होंने  प्रतिक्रिया नहीं दी। पर सन्त ने मन में सोच लिए सेठ का ये डर निकाल देने कि पैसे का मोह निकाल देने की। 

दूसरे दिन सुबह ही सन्त ने सेठ जैसा रूप धारण कर लिया और सेठ के घर के अन्दर चला गया। सेठ का बेटे ने देखा की आज पिताजी जल्दी कैसे आ गये। उसने पूछा पिताजी आप आज जल्दी कैसे आ गए ? सन्त जो सेठ का रूप धारण किया था कहा 'बेटे कुछ मत पूछो एक बहुरुपिया बिलकुल मेरे जैसा रूप धारण करके इस गॉव में आया है। मुझे डर लगा कही वो घर के अन्दर ना गुस आये ,इसलिये हम जल्दी आ गए है आप चौकीदार को कह देना कोई मेरे जैसा रूप धारण कर आये तो उसे भागा देना दरवाजे आदि बंद कर देना। " लड़के ने कहा ठीक है। और उधर सेठ पूजा अादि कर घर आये तो चौकीदार उसे रोका ,सेठ चौकीदार से कहा - तू पागल हो गया क्या , मुझे रोकने की हिम्मत कैसे कर रहा है। चौकीदार ने कहा - 'सेठ तो अन्दर है ,आप बहुरुपिया हो इसलिए अब आप यहाँ से चले जॉव ' उसी समय उसका लड़का भी खिड़की से कहा चले जॉव ! ये सुनकर सेठ बिलकुल चौक गया उसका दिमाग चकराने लगा। 

सेठ वहा से राजा के यहाँ गया और बोला ऐसी ऐसी बात है। राजा ने कहा तो ठीक है अभी सेठ को बुलाते है कौन असली है और कौन नकली है पता लगा देते है। राजा का एक सिपाही सेठ के घर आया और सेठ को खबर दी सेठ ने लडके को कहा देखो वो बहुरुपिया राजा के पास गया है। लड़के ने कहा 'अब क्या करे ' सन्त जो सेठ का रूप धारण किया था कहा कोई बात नहीं चलते है। तुम तैयारी करो ,सेठ अपने घोडा गाड़ी के साथ बड़े रुबाब के साथ राजा से मिला और कहा प्रणाम राजा साहब कैसे है आप ? राजा ने कहा मै तो ठीक हूँ लेकिन ये बताईये आप में से असली कौन है ? इस का अभी फैसला करते है आपके पास हमारा बही खाता का खिताब है। उसे निकालो मैं तुम्हे बता देता हूँ। आप देखते रहना। सन्त जो सेठ के रूप में था उसने बिना देखे सारा लिखा हिसाब पालने को ये तारिक को ये रक्कम दिया है और उसमें से इतना आया है इतना बाकी है।बता दिया और  ये सब बाते सूनकर असली सेठ तो हक्का बक्का रह गया। 

और राजा ने असली सेठ को नकली समझ उसे दण्ड दे दिया। लेकिन फिर सन्त जो सेठ बना था उसने कहा इसे माफ़ कर दो राजा। इसने मेरा कुछ नुकसान नहीं किया है। राजा ने उसे छोड़ दिया। और दूसरे दिन फिर से सेठ अपने घर गये तो सब कुछ वैसे ही था ,पर सेठ का मन बदल गया था। और सुबह मंदिर जाते समय सेठ को वाही सन्त महात्मा बैठे दिखाई दिये सेठ ने उन्हें राम राम किया और फिर आगे बड़े। 

सीख - व्यक्ति को कभी भी किसी को छोटा नहीं समझना चाहिये या उनका तिरस्कार नहीं करना है। ये संसार ईश्वर का बनाया है हम सब  अपना अपना पाठ बजाने आये है। तो सब के साथ प्यार से बातचीत कर चलना है। 

Sunday, November 2, 2014

Hindi Motivational Stories..............................................पाप का बाप कौन ?

पाप का  बाप कौन ?

               एक पण्डित जी काशी से पढ़कर आये। कुछ समय बाद उनकी शादी हुई , स्त्री आयी। कई दिन हो गये। एक दिन स्त्री ने प्रश्न पूछा कि "पण्डितजी महाराज ! यह तो बताओ कि पाप का बाप कौन है ?" अब पण्डितजी पोथी देखते रहे , पर पता नहीं लगा , और उत्तर नहीं दे सके। पण्डितजी को बड़ी शर्म आयी कि स्त्री ने जो प्रश्न पूछा उसका जवाब कही भी नहीं मिल रहा है।

    कुछ सोच विचार कर वो फिर से काशी के लिए चल दिये , और रास्ते में एक वेश्या रहती थी। उसने पण्डितजी के बारे में सुना था कि काशी से पढ़कर आये है। वेश्या ने पूछा - ' पण्डितजी कहा जा रहे हो ? पण्डित ने कहा "काशी। "  वेश्या बोली क्यों ? पण्डित ने कहा -'स्त्री ने पूछा है -पाप का बाप कौन है ?  यही समझने के लिए जा रहे है। वेश्या बोली - ' इसका उत्तर तो हम ही आपको बता देँगे। ' पण्डितजी ने कहा ठीक ! काशी जाने से बच गये आप ही बता दे। वेश्या बोली - ' अमवस्या के दिन भोजन के लिये पधारो "

        पण्डित जी अमवस्या  के दिन वेश्या के घर गये जैसे ही पण्डित पहुँचे वेश्या ने सौ रुपये पण्डित जी को दिये और भोजन कि सारी सामग्री बता दी और पण्डितजी भोजन बनाने कि तैयारी करने लागे। तब वेश्या ने पण्डित जी के आगे एक और सौ रुपये रख दिये और कहा आप तो पक्का भोजन रोज पाते हो आज कुछ भोजन हम बनाएंगे और आप खा लेना। पण्डित ने सिर हिला दिया कोई हर्जे नहीं, हम घर पर स्त्री का हाथ का खाना खाते ही है। रसोई बनाकर वेश्या ने पण्डितजी को परोस दिया। और फिर सौ रुपये और पण्डितजी महाराज के आगे रख दिये और नमस्कार करके बोली - महाराज ! जब मेरे हाथ से बनी रसोई आप पा रहे है तो मैं अपने हाथ से ग्रास दे दूँ। हाथ तो वही है, जिन से रसोई बनायीं है. ऐसी कृपा करो। ' पण्डितजी ना नहीं कर सके और तैयार हो गये, उसने ग्रास को लेने के लिये मुहँ खोला , और वेश्या ने उसी समय उठाकर मारी थप्पड़ जोर से, और बोली - ' अभी तक आपको ज्ञान नहीं हुआ ? ख़बरदार ! जो मेरे घर का अन्न खाया तो ! आप जैसे पण्डित का मैं धर्म- भ्रष्ट करना नहीं चाहती। यह तो मैंने पाप का बाप कौन है, इसका ज्ञान कराया है। '

सीख - रुपये ज्यों - ज्यों आगे रखते गये पण्डितजी ढीले होते गये। इससे सिद्ध क्या हुआ ? पाप का बाप कौन हुआ ? रुपयो का लोभ ! "त्रिविध नरकस्वेद द्धार नाशनमात्मन :" (गीता १६ /२१ )
काम , क्रोध और लोभ - ये नरक के खास दरवाजे है। ( पर उपदेश कुसल बहुतेरे। जे आचरहिं ते नर न घनेरे।। )
दुसरो को उपदेश देने में तो लोग कुशल होते है, परंतु उपदेश के अनुसार ही खुद आचरण करनेवाले बहुत ही कम लोग होते है। इस लिये दुसरो को उपदेश देते समय जो पंडिताई होती है, वाही अगर अपने काम पड़े, उस समय आ जाय तो आदमी निहाल हो जाय। जानने की कमी नहीं है, काम में लाने की कमी है।   

Monday, October 27, 2014

Hindi Motivational Stories - "जीवन"

जीवन

जीवन के कुछ पहलू शयद हम जीवन के अंतिम शान तक नहीं जान पाते। जो दिखता है इन आँखों से हम उसे ही सत्य मान लेते है। और कभी समय के अंतराल में हम उसे असत्य मान लेते है। सत्य और असत्य ,सही और गलत , अच्छा और बुरा इन सब के बीच मन बहुत बार चिन्तन करता है। और बहुत समझ के साथ हम चलते भी है। लेकिन फिर भी कुछ है जो अभी समझना बाकी है। मन की ये जिज्ञासा हर बार जगती है और बुझती है। और हम कभी उसे सुनते है और कभी उसे अनसुना  करते है।

जीवन के इन ही पहलूओं में हम ख़ुशी और गम का अनुभव करते है। और मन की उलझन भी यही है। और इस लड़ाई में हम भुत और भविष्य की कल्पना करते है। और योग कहता है वर्त्तमान में जीयो। और व्यक्ति वर्त्तमान में रहता हुवे भी भुला है की उसे जीना है। हर पल हर शान को जीना है। एक बात मुझे यहाँ ऐसा समझ में आ रहा है। जहा तक ज्ञान की बात है कुछ न कुछ ज्ञान हर एक के पास है जरूर लेकिन ये अलग बात है की व्यक्ति उस ज्ञान का समरण या उसे प्रैक्टिस में कितना लता है। ज्ञान हमें मीडिया से मिलता है माता पिता से मिलता है, गुरु से मिलता है संग से मिलता है, पढ़ाई से मिलता है, खुदरत से मिलता है, भगवान से मिलता ही , किताबो से मिलता है  और आज कल तो इलेक्ट्रॉनिक गैजेट से भी मिलता है। चलो और भी बहुत विकल्प है जहा से ज्ञान हम ले सकते है। और ज्ञान की बात या समझ की बात इस में भी अंतर होता है। इस विषय में चर्चा हो सकती है ये फिर कभी। लेकिन जीवन जीना ये  एक कला है।  तो हम सब को आज इस विषय पर चर्चा करनी होगी। वर्त्तमान के इस समय सीमा को देखे तो लगता है। की हम को जीवन जीने की कला को अब प्रैक्टिस में लाना होगा। ऐसा नहीं की में तो अच्छा हूँ और मेरे साथी भी अच्छे है और मैं सब के साथ अच्छा रहता हूँ , नहीं ये सिर्फ ऊपर की बात है ,क्यों ऐसा में कह रहा हूँ  ये एडजस्टमेंट है। लेकिन जीवन जीने की कला इस से आगे है। जहा आपको सहारे या सपोर्ट की जरुरत नहीं लगती।

हर पल हर दिन नया हो अपने आप में एक अनोखा अनुभव आपका रूहानी अस्तित्व आपकी अनोखी पहचान हर कर्म के साथ चलते फिरते चाहे घर में या बाहर हो। किसी को आपका साथ मिले तो वो अपने को  भाग्यशाली माने और आप उसका धन्यवाद माने। कोई मालिकपण नहीं लेकिन ईश्वर और उसकी रचना को हर पल हर शान सलाम ऐसा धन्यवाद का गीत आपके साथ अनहद नाद की तरह बजता रहे ।  

Wednesday, October 15, 2014

Hindi motivational Stories................तीन दिन का राज्य

तीन दिन का राज्य


एक राजकुँवर थे। स्कूल में पढ़ने के लिये जाते थे। वहाँ प्रजा के बालक भी पढ़ने जाते थे। उनमें से पॉँच-सात बालक राजकुँवर के मित्र हो गये।  वे मित्र बोले - " आप राजकुँवर हो राजगद्दी के मालिक हो। आज आप प्रेम और स्नेह करते हो , लेकिन राजगद्दी मिलने पर ऐसा ही प्रेम निभायेंगे, तब हम समझेंगे कि मित्रता है , नहीं तो क्या है ? ये हम समझ जायेंगे। " राजकुँवर बोले कि अच्छी बात है। समय बीतता गया। सब बड़े हो गये। राजकुँवर को राजगद्दी मिल गयी। एक-दो वर्ष में राज्य अच्छी प्रकार जम गया। राजकुँवर ने अपने मित्रों में से एक को बुलाया और कहा कि तुम्हे याद है कि तुमने कहा था - " राजा बनने के बाद मित्रता निबाहो, तब समझे। ' 'अब तुम्हें तीन दिन के लिए राज्य दिया जाता है। आप राजगद्दी पर बैठो और राज्य करो। ' वह बोला - ' अन्नदाता ! वह तो बचपन की बात थी। मैं राज्य नहीं चाहता। ' बहुत आग्रह करने पर उस मित्रने तीन दिन के लिये राज्य स्वीकार कर लिया।

वह मित्र राजगद्दी पर बैठा और उस दिन खान-पान ऐशे-आराम में मगन हो गया। दूसरे दिन सैर-सपाटा आदि में लगा रहा। रात हुई तो बोला- ' हम राजमहल में जायेँगे। ' सब बड़ी मुश्किल में पड़ गये। रानी बड़ी पतिव्रता थी। वह मित्र तो अड़ गया कि सब कुछ मेरा है, मैं राजा हूँ तो रानी भी मेरी है। रानी ने अपने कुलगुरु ब्राह्मण देवता से पुछवाया कि अब मैं क्या करुँ ? गुरूजी महाराज ने उस तीन दिन के लिए राजा बने मित्र से पूछा कि आप महलों में जाना चाहते है तो राजा की तरह जाना होगा। इसलिये आपका ठीक तरह से श्रृंगार होगा। और एक के बाद एक व्यक्ति आते गये और अलग-अलग श्रृंगार करते रहे दर्जी ,नाई ,इत्र लगने वाला ऐसा करते करते पूरी रात बीत गयी। सुबह हो गयी  और अखरी दिन था समय पूरा हो गया। और फिर राजा को राजगद्दी मिल गयी। राजा ने अपने दूसरे मित्र को बुलाया और आग्रह किया और तीन दिन के लिये राज्य दे दिया और बोला कि मैं, मेरी स्त्री, मेरा घर - ये सब तो मेरे है। मैं भी आपकी प्रजा हूँ। बाकी सारा राज्य आपका है। वह मित्र तीन दिन के लिये राजा बन गया।

राज्य मिलते ही उस मित्र ने पूछा कि मेरा कितना अधिकार है ? मन्त्री ने जवाब दिया - " महाराज ! सारी फौज, पलटन, खजाना और इतनी पृथ्वी पर आपका राज्य है। ' उसने दस-बीस योग्य अधिकारियों को बुलाकर कहा कि हमारे राज्य में कहाँ-कहाँ, क्या-क्या चीज की कमी है, किस को क्या-क्या तकलीफें है - पता लगाकर मुझे बताओ। उन्होंने आकर खबर दी - फलाँ-फलाँ गॉव में पानी की तकलीफ है, कुआँ नहीं है, धर्मशाला नहीं है , पाठशाला नहीं है।उस राजाने हुक्म दिया ये सब काम तीन दिन में पुरे हो जाना चाहिये। खजांची को कहा इन्हें जो चाहिये वो दे दो और हर गॉव की जरुरत तीन दिन में पूरी  हो जाय। जितना भी खर्च हो वो तुरंत पूरी कर दो। तीन दिन पुरे होते-होते समाचार आने लगा की इतना काम हुआ है इतना बाकी है। राजा ने जल्दी पूरी करने का आदेश दिया। और मित्रने राज्य वापस राजा को दे दिया। राजा बड़े प्रसन्न हुए और बोले कि हम तुम्हें जाने नहीं देंगे, अपना मन्त्री बनायेँगे। हमें राज्य मिला, लेकिन हमने प्रजा का इतना ध्यान नहीं रखा, जितना आपने तीन  दिन में रखा है। अब राजा तो नाम मात्र के रहे और वह मित्र सदा के लिये उनका विश्वास पात्र मन्त्री बन गया।

सीख - इसी प्रकार हमें बाल्यावस्था, युवावस्था और वृद्धावस्था - ऐसे तीन दिन भगवन ने हमें राज्य दिया है। अब जो रूपया-संग्रह और भोग भोगने में लगे है, उनकी तो हजामत हो रही है। और जो दूसरे मित्र की तरह सेवा कर रहे है, उनको भगवन कहते है-

"मैं तो हूँ भगतन को दास, भगत मेरे मुकुट मणि।।" 

इसलिये अब सेवा करो और भगवन को याद करते रहो। उसका दिया हुआ सब कुछ है दुसरो की सेवा में लगाने से भगवन के विश्वास पात्र बनेंगे। और उसके धाम में निवास करेंगे। और अब निर्णय अपने को करना है की हजामत करवानी है या परमात्मा का साथ उनके धाम में रहना है।