Tuesday, April 1, 2014

Hindi Motivational Stories - ' कतनी - करनी एक समान हो '

कतनी - करनी एक समान हो

              किसी सत्संग में महत्मा जी ज्ञानोपदेश कर रहे थे - बस, राम नाम की माला जपते रहो। राम नाम से भवसागर पार कर जायेंगे। सच्चे मन से राम का नाम लो, वह नाव का काम करेगी। श्रद्धालू में से एक परम भक्त भी था। सत्संग में आने के लिए उसे प्रतिदिन नदी पार करनी पड़ती थी। गुरु जी की वाणी उसके लिए राम - बाण बन गया। वह सच्चे मन से प्रभु - स्तुति कर ईश्वरीय अनुकम्पा (याद ) से नदी पार करता था। उसने एक बार सहृदयता से उपकृत होकर एक दिन वह महात्मा जी को अपने घर में आमंत्रित किया। और महात्मा जी उस परम भक्त का निमंत्रण स्वीकार किया और चल पड़े जब महात्मा जी नदी के किनारे पहुँचे तब वह कोई नाव न देख बोले - वत्स, नाव कहाँ है ? इसे पार कैसे किया जय ? भक्त ने कहा - महात्मा जी, आप भी मज़ाक करते है। आप ही ने कहा था, कि राम नाम लो तो सहज ही भवसागर से पार हो जाएंगे। और उसी दिन से मै यह आकर जब ईश्वर को याद करता हूँ तो सन्मुख नाव और नाविक हाज़िर हो जाते है।

                 देखिये, हाथ कंगन को आरसी क्या। तब भक्त ने ईश्वर - स्मरण किया। और उसी समय नाव और नाविक हाज़िर हुए ये देखकर महात्मा जी आत्मग्लानि से विह्ल हो गये। उन्हें उस चमत्कार को देख अपनी कथनी - करनी में असमानता पर बड़ी ही लज्जा का अनुभव हुआ। और उस दिन से वे भी कथनी और करनी को समान करने में लग गये।


सीख - कथनी - करनी को समान बनाने ने के लिए हमे अन्तर ध्यान करना होगा। एक बार समय दे अपने आप को जाने और समझे कि मेरी कथनी और करनी में कितना अन्तर है। उसके बाद ही हम उस पर कार्य कर सकेंगे वर्ना महात्मा जी कि तरह हमें भी आत्मा ग्लानि का अनुभव करना पड़ेगा। 

Monday, March 31, 2014

Hindi Motivational Stories - ' सच्चा सुख सन्तुष्टता में '

सच्चा  सुख सन्तुष्टता में 

             एक सेठ बहुत सम्पत्ति का मालिक था। उसके पास इतनी सम्पत्ति थी कि उसकी १० पीढिय़ाँ बैठकर खा सकती थी।  परन्तु फिर भी वह सेठ हमेशा चिंताग्रस्त रहता था और चिन्ता का कारण यह था कि मेरी ११ वी पीढ़ी का क्या होगा ? उसके लिये तो मैंने कुछ भी नहीं जमा किया। इसी चिन्ता ने उसे रोगग्रस्त कर दिया और दिन - प्रतिदिन उसकी सेहत बिगड़ती चली गई। उसकी बिगड़ती सेहत को देखकर उसका एक शुभ - चिन्तक उसके पास आया और उसे सलाह दी कि पास के जंगल में एक साधु जी रहते है आप उनके पास जाये वे आपकी चिन्ता के निवारण अर्थ कोई न कोई उपाय जरुर करेंगे। यह सुनकर सेठ के मन में आशा की एक किरण जगी। अगले दिन वह साधु के दर्शन के लिये चल दिया। वैसे तो सेठ बहुत कंजूस था परन्तु कुछ प्राप्ति की आशा थी इसलिए अपने साथ एक फल की टोकरी ले गया था।

            जब सेठ साधू के पास गया तो उस समय साधू जी ध्यान में मग्न थे। सेठ ने बड़ी श्रद्धा से साधू को प्रणाम किया और फल की टोकरी आगे बढ़ाते हुए बोला - महाराज ! मेरी ये छोटी से भेंट स्वीकार कीजिये। साधु ने धीरे से आँखे खोली, फल की टोकरी और सेठ को देखा और कुटिया के दूसरे तरफ रखी फल की टोकरी की तरफ इशारा करते हुए साधू बोले - बेटा, भगवन (दाता ) ने मेरे लिए भोजन भेज दिया है। अब इसकी आवश्कता नहीं है। और हाँ, तुम अपनी समस्या मुझे बताओ। यदि सम्भव हुआ तो मै उसका समाधान तुम्हें बताऊँगा।

            साधू के यह बड़ी शान्ति थी और उस शान्ति के वातावरण में सेठ की आत्मा जग गयी। सेठ ने देखा साधू के पास एक टोकरा फल का है तो वह दूसरे की कामना ही नहीं रखता। और साधू के चेहरे पर शान्ति है। भरपूर है कोई कामना नहीं है। न आज कि न कल कि। .... येही बात खुद से सेठ ने जानी सोचा मेरे पास अथाह सम्पत्ति होते हुए भी मै और सम्पत्ति की कामनाओं में खोया रहता हूँ तथा दुःखी होता रहता हूँ। अपने अन्तर मन का बोध हुआ और वह साधू के चरणों में गिर पड़ा और बोला - महाराज, मेरे सवालों का जवाब मुझे मिल गया है।  आज मुझे मालूम हुआ है कि सच्चा सुख सन्तुष्टता में है न कि कामनाओं का विस्तार करने से।

सीख - वास्तव में आज मनुष्य अपनी इछाअो के पीछे भागता जा रहा है और ये इछाये मृगतृष्णा समान है। वो कभी पुरे नहीं होने है। लालच व्यक्ति को अंधा बना देता है। इस लिए इछाओ को कम करो अपने आप दुःख कम होगा।

                   

Sunday, March 30, 2014

Hindi Motivational Stories - " रात और दिन का अध्यात्मिक रहस्या "

' रात और दिन  '

    जैसे सूर्य अस्त होते ही अंधेरा होने लगता है। वैसे ही एक बदलाव हम देखते है, चारों तरफ अंधकार और रात्रि का प्रहार शुरू हो जाता है। तब बुढ़िया ने अपनी झोपड़ी में दीया जला लिया, और उसके पड़ोसियों ने भी अपने - अपने दीपक और लालटेन जला लिए, पहरेदारों ने टार्च निकाल लिए। गॉव तथा पटरी के दुकानदारों ने गैस जला दिये, शहरों में, रास्तों घरों, दुकानों और कंपनियो में बिजली के अनेकों बल्ब और लाइट जल उठे। मतलब यह कि सब ने कुछ न कुछ रोशनी का साधन कर लिया ताकि रात्रि में कुछ - कुछ कार्य व्यवहार चल सके। 

       कुछ बत्तियां तो रात्रि के प्रहार में ही मनुष्यों के सो जाने पर या तेल - ईधन समाप्त होने पर बुझ गई। परन्तु सूर्योदय होने पर सभी बत्तियां बुझा दी गई। यदि दिन में किसीका दिया जला दिखाई दे तो दूसरे उस से कहेंगे कि भाई अब दिन निकल आया है। अभी इसे बुझा दीजिये। ये हम सभी जानते है। ठीक इसी प्रकार सृष्टि चक्र में भी बेहद का दिन और बेहद कि रात होती है।

      इस  बेहद सृष्टि - चक्र में सतयुग और त्रेतायुग जो २५०० वर्ष में पूरा हुआ (जिसे ब्रह्मा का दिन कहते है ), उस समय जो लोग थे उनका जीवन देवी देवता समान था। फिर बाद में भारतवासी देवी - देवतायों का पुण्य क्षीण होने पर वे वाम - मार्गीय बने। उस में माया (काम, क्रोध आदि विकारो ) की प्रवेशता हो गई और द्वापर युग तथा कलियुग रूपी २५०० वर्ष ( जिसे ब्रह्मा कि रात कहते है ) कि ब्रह्मा कि रात का प्रहार शुरू हो गया - तब पूज्य भारतवासी देवता स्वम् ही पुजारी बन गये। वे हिन्दू कहलाने लगे और उन्होंने पूजा करना शुरू किया साथ ही साथ मनुष्यों ने वेध - शास्त्र बनाये और उन्हें पढ़ने लगे। और कुछ सन्यासी बन गये, उन्होंने घर - भार छोड़ा। जप, तप, दान, पुण्य आदि अनेक प्रकार के कर्म - कांड प्रचलित हो गये, मनुष्यों ने पाप धोने के लिए गंगा आदि पानी की नदियों को पतित - पावनी मानकर स्नान करना शुरू कर दिया।  कई मनुष्यों ने अन्य मनुष्यों को ही सद्गुरु माना और अनेक शिष्य बन गये। मतलब यह कि सब ने कुछ - न - कुछ साधन अपनाये, ताकि कुछ - न - कुछ अल्पकाल के लिए ही सही, शांति और सुख की प्राप्ति होती रहे। कई तो विकारों से लिप्त होकर माया की कुम्भकर्णी निद्रा में पूरी तरह ही सो गये। अन्य कई भक्ति द्वरा कुछ प्राप्ति होती न देख श्रद्धा खो बैठे। परन्तु कलियुग के अन्त में तो भक्तिमार्ग को पूरा होना ही है क्यों कि तब 'ब्रह्मा की रात्रि ' का समय पूरा होने पर, पाप का घड़ा भर जाने पर, ज्ञान सूर्य परमात्मा 'शिव' प्रजापिता ब्रह्मा के शरीर रुपी रथ में अवतरित होकर गीता - ज्ञान सुनाकर, मनुष्यात्माओं को योग-युक्त करके, पुनः सतयुग की स्थापना करते है।

सीख - समय के इस चक्र को जनने से हमें समय के साथ चलने में मदत मिलेंगी। और हम सब जनते  एक बार हाथ में आया समय निकल गया तो वो किसी भी कीमत से हमें वापस नहीं मिलेगा।  इस लिए समय  को जानो खुद को पहचानों खुदा को जानो और समय के साथ अपने को अपडेट करते रहो। वर्ना ऐसा न हो कहीं समय आगे निकल जाए और आप पीछे रह जाए। क्यों कि अभी नहीं तो कभी नहीं ये समय का कहना है। बेस्ट ऑफ़ लक !.... 

Friday, March 28, 2014

Hindi Motivational stories - " तजो बुराई, करो बड़ाई "

तजो बुराई, करो बड़ाई

           दो बड़े विद्वान जो कि आपस में दोस्त थे, किसी यजमान के निमंत्रण पर उसके घर पूजा - पाठ के लिए गये। वहाँ उन दोनों का काफी आदर - सत्कार हुआ। और दूसरे दिन सुबह उन में से एक विद्वान् हवन करने गया हुआ था तो यजमान  दूसरे विद्वान से कहा - महाराज, आपके दोस्त तो बहुत बड़े ही नेक इन्सान है। अब यह सुनते ही वह तपाक से बोला - अरे ! वह तो निरा बैल है। कुछ भी जानता नहीं है। वह तो मेरे साथ रहता है, इसलिये उसकी थोड़ी - बहुत इज्ज़त होती है, नहीं तो उसे कौन जानता है। वह तो यहाँ मेरे साथ आया हुआ है मेरी सेवा के लिए !

          उसी प्रकार अगले दिन जब दूसरा विद्वान हवन करने गया तो उस यजमान ने पहले वाले से कहा -महाराज ! आपके दोस्त तो बहुत नेक इन्सान तथा विद्वान है। यह सुनते ही पहले वाले विद्वान ने कहा - वह तो निरा गधा है गधा। वह तो मेरे साथ मेरा सामान ढोने के लिए तथा मेरी सेवा के लिए आया है। ये सुनते ही यजमान को बहुत आश्चर्य हुआ। दोनों साथ रहते भी दोनों के अन्दर मै बड़ा  -  मै बड़ा का  पहाड़ है।

          श्याम को जब दोनों विद्वान पूजा समाप्त करके खाना खाने के लिए आये तो यजमान ने दोनों के सामने हरी घास रख दी और बोले - महाराज! भोजन स्वीकार कीजिये।  दोनों विद्वान आग - बबूला हो गए। क्रोध और आवेश में वे यजमान से बोले - मुर्ख, तूने हमारा आपमान किया है। हम तुम्हें इसके लिये अभिशाप देंगे। मगर.… महाराज ! मेरा अपराध क्या है ? सरलता से यजमान ने प्रश्न किया। क्या हम लोग घास खायेंगे? क्या हम जानवर है ? गुस्से में दोनों विद्वानों ने पूछा।
 
        यजमान ने तुरन्त हाथ जोड़कर बड़े आदर से कहा - महाराज ! आप दोनों ने ही एक दूसरे को बैल तथा गधा बताया है और मेरे विचार से दोनों ही जानवरो का प्रिया भोजन घास है। अंतः मैंने तो आपके बताए अनुसार ही आपका प्रिय भोजन आपके सामने रखा है। फिर भी यदि मेरे से कोई गलती हो गई हो तो कृपया मुझे क्षमा करें।                                                                                                                            
         आज यह वास्तविकता हम देख सकते है। व्यक्ति हमेशा अपनी तारीफ और दूसरों कि बुराई ही करता है। जहाँ वह चाहता है कि मेरा सम्मान हो, मेरा नाम हो, लोग मेरी तारीफ करे, मुझे सलाम करे, ठीक उसके विपरीत वह यह भी चाहता है कि लोग उसके साथी कि बुराई करें, निंदा करें तथा उसे नीचा दिखाये। मनुष्य को चाहिये  कि वह अपने अवगुण देखें और दुसरो के गुण देखे लेकिन मनुष्य आपने गुणों को देखता और दूसरों के अवगुणों को देखता है। जिसके कारण मनुष्य को अपने जीवन में बार - बार घास (ठोकर ) खानी पड़ती है।


सीख - अगर व्यक्ति आपने अवगुण देखना और दूसरे के गुणो को देखना सुरु करें तो ठोकर खाने से बच जायेगा।इस लिये किसीने सच ही कहा है। गुण अवगुण में अन्तर जो जाने वाही सच्चा ज्ञानी है। 

Thursday, March 27, 2014

Hindi Motivational stories - " पहले तोलो, फिर बोलो "

पहले तोलो, फिर बोलो

          कोयल कि मीठी आवाज़ सुनने के लिये सभी लालायित रहते है,  मगर कौवे की नहीं। क्यों ? तो चलिए जानते है एक कहानी के द्वारा - एक  बार एक कौवा बड़ी तेजी से उड़ा जा रहा था।  कोयल ने देखा कौवा बड़ी तेजी से जा रहा है। कोयल ने पूछा - भैय्या, इतने उतावले होकर कहाँ जा रहे हो ? क्या बात है ? कौवा बोला - बहन, मै जहाँ जाता हूँ मुझे भगा दिया जाता है, मुझे अपमान मिलता है, सत्कार नहीं।  इसलिये यहाँ से कही दूर, दूसरे देश में चला जा रहा हूँ। वहाँ तो अपरिचित ही रहूँगा।  तो सभी मुझे सम्मान की दुष्टि से देखेंगे।
     
        कोयल ने कहा - भय्या, बात तो ठीक है, लेकिन अपनी बोली बदलते जाना। कॉव- कॉव को बदल देना। अगर इस को नहीं बदला तो वहाँ भी आदर सत्कार नहीं मिलेगा। यह जो तुम्हारे प्रति घृणा है वह इस वाणी के कारण है। इस कर्कश और सुखी बोली को बदल दो, फिर कही भी चले जाओ सभी जगह सम्मान होगा।

         कौवा ध्यान से सुन रहा था। और उसी समय उसकी नज़र कोयल के गले में पड़े हार पर पड़ी, उसका मन ललचा गया कौवे ने पूछा - बहन यह उपहार तुम्हें कहाँ से मिला है ? कोयल ने कहा - मै स्वर्ग लोक गई थी वहाँ मैंने गाना सुनाया। मेरे गाने को सुनकर इंद्र प्रसन्न हुए और उन्होंने मुझे ये हार उपहार में दिया। कौवे ने भी सोचा कि सिर्फ गाना सुनाने से यदि हार मिलता है तो मै भी स्वर्ग में जाकर गाना सुनाऊँगी और हार ले आऊँगा। बिना अभ्यास किये ही कौवा  स्वर्गलोक गया और इंद्र से बोला - मै भू - लोक से आया हूँ। गाना सुनना चाहता हूँ। पहले मेरी बहन आई थी, अब मै आया हूँ। इंद्र ने सोचा - भाई और बहन का रंग - रूप तो मिलता है।  बहन का कण्ठ तो बड़ा सुरीला था। इसका भी सुरीला होगा। अब इसका भी सुन लेते है । इंद्र ने सारे देवताओं को भी सुनने के लिए आमंत्रित किया सभागार सभी देवताओं से भर गया। इंद्र ने कौवे से कहा अच्छा अब आप अपना गाना सुनाओ। कौवे ने गाना शुरू किया। कुछ ही क्षण में सभी चिल्ला उठे बन्द करो, बंद करो। हमारे कान फटे जा रहे है इंद्र ने कहा हे भू - लोक वासी ! बन्द करो अपना काँव - काँव करना और चले जाओ यहाँ से। कौवा सकपका गया और सोचने लगा - हार तो नहीं मिला, तिरस्कार ही मिला। कोयल ने ठीक ही कहा था कि बोली को बदले बिना जहाँ भी जाओगे निकाल दिए जाओगे। आदर नहीं मिलेगा।  इस लिए संसार में भी बोल का ही महत्व है। 

सीख - आज कि दुनियाँ में भी अगर कोई व्यक्ति कड़वे, कटाक्ष और कर्कश बोल बोलता है तो लोग उस से दूर ही रहते है। लेकिन कोई व्यक्ति सुमधुर, मिठे, अदारयुक्त बोल बोलता है तो सभी उसका सम्मान करते है। कहा भी जाता है - बोल के घाव तीर और तलवार से भी तीखे होते है। और इतिहास इसका साक्षी है कि कृष्ण के मधुर वचन सुनकर अर्जुन का मोह समाप्त हो गया और दूसरी ओर द्रोपदी के कटाक्ष के दो बोल से महाभारत हो गया। मंथरा ने अपने कड़वे बोल से कैकेई के अन्दर राम के प्रति भावना ही बदल दी। ऐसे अनेक उदहारण हमारे सामने है।  इस लिए मिठे बोलो, कम बोलो, आदर युक्त बोलो येही सफलता का राज है। 

Tuesday, March 25, 2014

Organic Farming - जैविक किटनाशक

जैविक किटनाशक 

दशपर्णी अर्क

दशपर्णी अर्क बनाने की विधि -

१. ५० लीटर पानी
२. २ किलो कड़वे नीम के पत्ते
३. १ किलो सीताफल के पत्ते
४. १ किलो कन्हेर के पत्ते
५. १ किलो पपीता के पत्ते
६. १ किलो करंजा के पत्ते
७. १ किलो हरी मिर्ची के पत्ते
८. १ किलो एरंडी के पत्ते
९. १ किलो गाय का गोबर
१०. २ लीटर गोमूत्र

अब इन सभी चीजों को एक साथ मिलकर १०० लीटर के एक ड्रम में सड़ने के लिए रख दीजिये २५ दिनों के लिए और उसके बाद उसे लकड़ी से मिलकर छान कर २ - २ लीटर की बोतल में भरकर रख दे और इस २ लीटर को १०० लीटर पानी में मिलकर खेती में स्प्रे करे या छिड़काव करे  ८ से १५ दिन में एक बार। अधिक जानकारी के लिए रेडियो शो सुनिये।



जैविक खाद और खेती



जैविक खाद और खेती

     प्राचीन काल में मानव स्वास्थ्य के अनुकुल तथा प्राकृतिक वातावरण के अनुरूप खेती की जाती थी, जिससे जैविक और अजैविक पदार्थों के बीच आदान-प्रदान का चक्र निरन्तर चलता रहा था, जिसके फलस्वरूप जल, भूमि, वायु तथा वातावरण प्रदूषित नहीं होता था। भारत वर्ष में प्राचीन काल से कृषि के साथ-साथ गौ पालन किया जाता था, जिसके प्रमाण हमारे ग्रांथों में प्रभु कृष्ण और बलराम हैं जिन्हें हम गोपाल एवं हलधर के नाम से संबोधित करते हैं अर्थात कृषि एवं गोपालन संयुक्त रूप से अत्याधिक लाभदायी था, जोकि प्राणी मात्र व वातावरण के लिए अत्यन्त उपयोगी था।

     परन्तु बदलते परिवेश में गोपालन धीरे-धीरे कम हो गया तथा कृषि में तरह-तरह की रसायनिक खादों व कीटनाशकों का प्रयोग हो रहा है जिसके फलस्वरूप जैविक और अजैविक पदार्थों के चक्र का संतुलन बिगड़ता जा रहा है, और वातावरण प्रदूषित होकर, मानव जाति के स्वास्थ्य को प्रभावित कर रहा है। अब हम रसायनिक खादों, जहरीले कीटनाशकों के उपयोग के स्थान पर, जैविक खादों एवं दवाईयों का उपयोग कर, अधिक से अधिक उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं जिससे भूमि, जल एवं वातावरण शुद्ध रहेगा और मनुष्य एवं प्रत्येक जीवधारी भी स्वस्थ रहेंगे।

     जैविक खेती कृषि की यह एक विधि है जो जमीन कि उर्वरक शक्ति को बने रखती है और अच्छी गुणवत्ता वाला फ़सल किशन को मिलता है और यही आज कि मांग है।  १९९० के बाद से पुरे विश्व में जैविक उत्पद कि मांग बहुत बढ़ गया है और तब से ही किशन इस बात कि और आकर्षित हुए है।  लेकिन आज भी बहुत ऐसे किशन है जिन्हें जैविक विधि से खेती करने में असुविधा हो रही है। और आज हम उन्हीं किशानो को ध्यान में रखते हुए जैविक खाद का उपयोग और विधि बता रहे है। महिन्द्रा ठाकुर जो जीवाणु विशेषयज्ञ  है, उन के द्वारा सुनते है N. P. K. क्या है और कैसे ये जैविक तरीक़े से खेती में उपयोग करे और साथ ही साथ खेती कि सुरुवात बीज से लेकर फ़सल तक कि सारी बाते सुनेंगे।