Saturday, May 31, 2014

Hindi Motivational Stories......................दान दो, धनवान बनो

दान दो, धनवान बनो 


       धनपतराय करोड़पति सेठ थे, पर स्वाभाव से बड़े कंजूस। उनकी पत्नी थी सुमति। वह शीलवान, दयालु, सहनशील तथा दानी स्वाभाव की थी। उसने दाता का गुण अपनी माँ से सीखा था। सेठ जी जब काम-धन्धे पर जाते थे तब सुमति दीन-दुःखी की मदत करती, गरीबों की सहायता करती, बच्चों को पढ़ती, साधु-महात्माओं को खिलाती-पिलाती, दान-दक्षिणा देती। वह भूखे को अपने पेट की रोटी भी दान दे देती थी। सुसंस्कारी थी। कभी-कभार धनपतराय को पता चलता तो वह उसे खूब डाँटता -तुम तो बड़ी खर्चीली हो,मैं दिन-रात मेहनत करता और तुम खर्च करती रहती। सेठ जी को धनवान बनने की लालसा थी। सोने की चारपाई पर लेटा हुआ हूँ, सोने की थाली में खाना खा रहा हूँ - इसके वे दिन-रात स्वप्न देखा करते थे। और यही कारण था कि वे दिन-प्रतिदिन पाई-पाई जुटाकर पूँजी को बढ़ाने में व्यस्त रहते थे।

    एक दिन सेठ जी बाहर गये हुये थे। सुमति अकेली घर में थी। द्द्वार पर एक साधू-महात्मा आये। दिव्य ज्ञान से उनका मस्तक चमक रहा था। पवित्रता की सुगन्ध सर्वत्र फ़ैल रही थी। सुमति ने आदरपूर्वक उन्हें घर में बुलाया और अपने लिए बनाया हुआ भोजन तथा मिठाईयां आदि खिलायी। रुचिकर भोजन खाकर साधु संतुष्ट हुए। वह उन्हें दक्षिणा देने जा रही थी कि उतने में सेठ जी ने घर में प्रवेश किया। सेठ जी आग-बबूला हो उठे। उन्होंने पत्नी को डाँटना शुरू किया - पता नहीं तुम्हारी बुद्धि कैसी भ्रष्ट हुई है, मैं मेहनत करता हूँ और तुम इन लफंगे ढोंगी साधुओं को खिलाकर लुटाती रहती हो। इन दर-दर भटकने वालों का क्या भरोसा ? तुम कहीं मेरा घर न लूटा दो। बहुत भली-बुरी सुनाकर सेठजी ने साधु को निकालना चाहा। पर साधु जी शांत मुद्रा में खड़े थे। सारी भावनाओं को भली- भाँति समझ चुके थे।

     साधु जी ने कहा -सेठ जी ! क्या तुम्हेँ धनवान बनने की इच्छा है ? धन, सोना और रत्नों को पाने की इच्छा है ? सेठ जी बोले - हाँ, में सोने की चारपाई पर चैन की नींद सोना चाहता हूँ। साधु ने कहा - मैं भोजन कर प्रसन्न हुआ। तुम्हें जो चाहे दे सकता हूँ। धनपतराय जी का मन लालच से भर उठा। उन्होंने कहा - उपाय बताओ महाराज। साधु ने अपनी झोली से एक छोटा बीज निकाला और सेठ जी को देते हुए कहा - ये बीज तुम्हें सच्चे रत्न देगा (सेठ जी बड़े खुश हो रहे थे ), इस बीज को घर के पीछे बगीचे में लगाना। नित्य नियम से पानी देना। हीरे - रत्नों के फल लगेँगे। लेकिन यह याद रहे कि यह बीज तब फलीभूत होगा जब तुम सबके सहयोगी बन मदत करेंगे, सब की सेवा करोगे। सब को सम दृष्टि से देख उनसे व्यवहार करोगे। दान करोगे। जितना सत्कर्म करोगे, प्रभु चिन्तन करेंगे उतने ही जल्दी फल लगेंगे। इस बीज को प्रतिदिन शुभ-भावना रूपी जल से सीचना तो सहज फल मिलेंगे, अन्यथा नहीं।

    सेठ जी बीज बोया।और सच, एक दिन पौधा भी निकल आया। उन्हें आश्चर्य हुआ तथा विश्वास भी। अब वे साधु की हर एक बात का ध्यान रखने लगे। उन्होंने रोज सत्कर्म करना, सबके प्रति शुभ भावना रखना शुरू किया। सब की मदद कर उन्हें सुख देने लगे। असहाय की सहायता कर उनकी दुआओं लेने लगे ,हरेक के प्रति आत्मीयता उनके मन में जगने लगी। सब के साथ प्रेमपूर्वक व्यवहार करने लगे।  उन्हें लगता - अब तो जल्दी ही मैं धनवान हो जाऊँगा। उन में परिवर्तन  देख सब खुश हो उन्हें दुआये देते। दुआओ को पाकर  सेठ जी शांति का अनुभव करते। अब धीरे- धीरे सेठ जी की धन इकट्ठा करने की लालसा क्षीण होती गयी और दान करने की इच्छा दिनोंदिन बढ़ने लगी। अब वे तृप्त थे और समझ चुके थे कि सच्चे रत्न से धनवान मैं बन गया हूँ। ये तो साधु की युक्ति थी मुझे शिक्षा देने की। धनपतराय, शान्ति पाकर अपने को अब धन्य-धन्य महसूस कर रहे थे।

सीख - सच्चा सुख देने में है लेने में नहीं जब इस की महसूसता आती है तो मन शांति से भर जाता है। और जो व्यक्ति शान्ति से भरपूर है वही सच्चा धनवान है। 

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