नम्रता और धैर्यता की शक्ति से क्रोधाग्नि को शान्त करो तुम ।।
हर एक राही को भटक कर ही दिशा मिलती रही
सच हम नहीं सच तुम नहीं।
बेकार है मुस्कान से ढकना हृदय की खिन्नता।
आदर्श हो सकती नहीं तन और मन की भिन्नता।
जब तक बंधी है चेतना,
जब तक प्रणय दुख से घना,
सच हम नहीं सच तुम नहीं।
सच हम नहीं सच तुम नहीं।
बेकार है मुस्कान से ढकना हृदय की खिन्नता।
आदर्श हो सकती नहीं तन और मन की भिन्नता।
जब तक बंधी है चेतना,
जब तक प्रणय दुख से घना,
सच हम नहीं सच तुम नहीं।
चेतन की जब हो जय पहचान फिर नहीं डर किसीका
बस एक बार सही दिशा में चलो तुम
नम्रता और धैर्यता से होगा सफ़र तपस्या का असान
सच हम भी सच तुम भी
नम्रता और धैर्यता की शक्ति से क्रोधाग्नि को शान्त करो तुम।।।
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