प्यार बाँटते चलो
एक बार खलीफा हजरत उमर ने एक व्यक्ति को किसी प्रदेश का गवर्नर नियुक्त किया। नियुक्ति पत्र देने से पहले उन्होंने उसे आवश्यक बातें भी समझा दी। उसी समय एक बालक उसके पास आ पहुँचा। हजरत उमर ने बच्चे को प्रेम से गोद में उठा लिया और तरह - तरह की आवाज़ें कर और बातें सुनाकर रिझाने लगे। यह देखकर वह व्यक्ति बोला कि खलीफा साहब, मेरे यहाँ तो चार बच्चे है लेकिन मैंने कभी भी उनके प्रति ऐसा प्यार या स्नेह नहीं जताया।
ऐसी बात सुनकर हजरत उमर एक दम गम्भीर हो गये। उसी वक्त उन्होंने उस व्यक्ति का नियुक्ति पत्र उससे वापस ले लिया और उसके टुकड़े - टुकड़े करते हुए कहा कि मैंने तुम्हारी नियुक्ति की इसका अफसोस है। जब तुम बच्चों के साथ प्यार या स्नेह नहीं कर सकते तब तुम प्रजा के साथ कैसा व्यवहार करोगे। तुम्हारे हृदय में प्रेम का पवित्र झरना सुख चूका है। अब तुम इस पद के योग्य नहीं हो।
सीख - वर्तमान समय भी कलयुगी संसार में सच्चा आत्मिक स्नेह तो ज़रा भी नहीं रहा। यदि स्नेह नज़र आता है तो वह भी अल्पकाल का स्वार्थी या फिर मोह, काम आदि विकारों के वशीभूत। इस लिए अब सच्चे आत्मिक प्यार या स्नेह को जगाना है। येही समय कि माँग है।
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