निर्णय का आधार शब्द नहीं शब्दार्थ हो
बहुत पुरानी एक कहानी है रामनगर में एक सेठ जी थे जिनका नाम था धनपतराय। वे बहुत धनी - मानी व्यक्ति थे। बहुत धनवान होने के कारण वे बहुत शान - शौकत से रहते थे। सारे शहर के लोग भी उनको उसी निगाह से देखते व इज्जत करते थे। और सेठ जी का एक लड़का अब विवाह योग्य हो चूका था। सेठ धनपतराय अपने पुत्र के लिए योग्य - वधु की खोज शुरू कर दी और आखिर वह दिन आ गया जब उन्हें अच्छे कुल की एक कन्या की जानकारी मिली उन्होंने अपने इकलौते पुत्र की शादी बहुत ही धूमधाम से सम्पन किया और बाजे बजवाते अपनी पुत्र - वधु को ख़ुशी- ख़ुशी अपने घर ले आए। सेठ जी अपनी पुत्र - वधु को देख ख़ुशी से फुले नहीं समाते थे। बहु भी बहुत ही समझदार, आज्ञाकारी तथा हर कार्य में कुशल थी इसलिए सेठ जी भी उससे बहुत प्रसन्न थे।
इस तरह बहुत दिन बीत गए करीब साल दो साल हो गए होंगे। एक दिन एक भिखारी भीख माँगता, आवाज़ लगाता हुआ सेठ जी के मकान के आगे खड़ा हुआ। और कहने लगा - अरे भाई तीन जन्म का भूखा हूँ, कोई रोटी का टुकड़ा दे दे। बहु सुना और ऊपर से ही आवाज़ लगते हुए कहा - बासी टुकड़े खाते है, कल उपवास करेंगे। सेठ जी के कानों में जब ये शब्द गये तो उन्हें बहुत गुस्सा आ गया। वे सोचने लगे कि कमाल है, इस बहु को मै हर चीज़ बढ़िया - से - बढ़िया लाकर देता हूँ - पूड़ी, कचौड़ी, हलवा, खीर, मालपुए अनेक प्रकार के व्यंजन इसे भरपूर लाकर देता हूँ - यह फिर भी कहती है कि बासी टुकड़े खाते है, कल उपवास करेंगे। आखिर मैंने क्या कमी राखी है इसको ! यह बहु तो मेरी इज्जत ही मिट्टी में मिला देगी। सोचते - सोचते उनका क्रोध का पारा बढ़ता गया और उन्होंने तय कर लिया कि अब तो इसे वापस इसके मायके में भेजना ही पड़ेगा।
सेठ जी बड़े तेज कदमों - से अपने घर के आँगन से बहार निकले और उन्होंने पंचायत बिठाई। वधु के पिता को भी बुलवाया गया और सेठजी सारी कहानी उन्हें सुनाते हुए कहा कि ले जाइए अपनी बेटी को अपने साथ ! इसने तो हमें कहीं का नहीं छोड़ा। पंचायत के मुखिया सेठजी के इस बात को सुनते हुए कहा - सेठजी, उतावलेपन में फैसला कर लेना उचित नहीं। आप तो स्वम ही कहते थे कि आपकी बहु बहुत समझदार है, आप उसे बुलाकर पूछिए तो सही कि उसने ऐसा क्यों कहा ? अवश्य ही उसका कोई अर्थ होगा। सेठ जी को भी उनकी ये बात जँच गई। उन्होंने अपनी बहु को बुलवा भेजा। बहु बड़े आदर - भाव से आकर वहाँ बैठ गई। और उससे सेठ जी ने पूछा कि बहु, तुम यह तो बताओ कि भिखारी के यह कहने पर तीन जन्म का भूखा हूँ, कोई रोटी का टुकड़ा दे दे तो तुमने यह क्यों कहा कि बासी टुकड़े खाते है, कल उपवास करेंगे ? क्या तुम बासी टुकड़ो पर गुजारा कर रही हो ? इतनी समझदार होते हुए भी तुम ने ऐसा क्यों कहा ? बहु ने कहा - ससुरजी, मै कुछ गलत कहूँ तो क्षमा कर दीजिएगा। मेरा भाव कुछ और था। बात यह है कि भिखारी का यह कहना कि तीन जन्म का भूखा हूँ , इसका अर्थ यह कि पिछले जन्म में वह गरीब था तो वह कुछ दान नहीं कर सका और इसलिए इस जन्म में भिखारी है। इस जन्म में क्यों कि गरीब है तो अभी भी वह दान नहीं कर सकता और इसलिए अगले जन्म में भी यह गरीब और भूखा रहेगा और इसलिए वह कहता है कि तीन जन्म का भूखा हूँ।
और जो मैंने कहा जवाब में उसका भाव यह है कि हमने पिछले जन्म में जो दान पुण्य किया था, उसकी बदौलत हमें इस जन्म में धन - धान्य मिला है यह हमारे पिछले जन्म का फल है तभी मैंने कहा कि बासी टुकड़े खाते है। और ससुरजी, इस जन्म में हमारे इस घर में तो दान करने की प्रथा ही नहीं है तो अगले जन्म में जरुर भूखा ही रहना पड़ेगा याने उपवास ही रखना पड़ेगा। मेरा कहने का भाव ये था। सेठ जी बहु कि ये बात सुनकर कुछ लज्जित भी हुए और मन -ही - मन उन्होंने ढूढ संकल्प भी किया कि आज से लेकर वे सुपात्र को अवश्य ही दान करेंगे।
सीख - शब्दों का सही भावार्थ न समझने के कारण कैसे अर्थ का अनर्थ हो जाता है और अगर सही भाव समझ में आ जाए तो वही शब्द जीवन को परिवर्तन करने वाले सिद्ध हो सकते है। जैसे सेठ जी का जीवन बदल गया। अंतः कभी भी किसी के शब्दो पर न जाकर उसके भावों को समझने का पुरषार्थ करना चाहिए।
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