' न रहेगा बॉस न बजेगी बाँसुरी '
शंकर और पार्वती साधु का वेश धारण कर एक लोटा दूध माँगने निकले। एक बहुत बड़े डेरी वाले के पास गए जिसकी सैकड़ो की तादाद में भैंसे थी। उसने दूध माँगने पर टका-सा जवाब दिया -अरे मोट्टे , जा तेरे जैसे निठल्ले को एक लोटा दूध देने लगा तो मेरी डेरी तो गई पानी में !
साधु ने आशीर्वाद दिया कि बाबा तुझे और ज्यादा भैंसे का मालिक बनाए। इसके बाद शंकर और पार्वती एक साधु की कुटिया में गए और कहा - साधु महाराज एक लोटा दूध का सवाल है। भगवन की याद में तल्लीन साधु उठा और ताजा दूध निकाल कर प्रेमपूर्वक सारा दूध साधु को दे दिया। शंकर भोले ने एक कदम आगे बढ़ते हुए कहा - बाबा करे तेरी एक गाय मर जाय।
पार्वती को बड़ा आश्चर्य हुए उसने झट पूछा - महाराज आप का यह कैसा वरदान और अभिशाप है। इस पर शंकर ने कहा, ' हे पार्वती, उस डेरी वाले को तो बाबा की याद आती ही नहीं और कभी-कभी कुछ क्षण मिलते भी होंगे तो अब उसे बाबा का नाम लेने का अवसर ही नहीं मिलेगा। क्यों की कुछ भैंसे बड़ा दिया है। और उसका पाप का घड़ा जल्दी भर जायेगा और वहाँ दण्ड का भागी बन जायेगा। और साधु जब बाबा की याद में बैठता है तो उसे बीच बीच में गाय के दूध, चारे या गाय के बच्चे की याद आती है। इसलिए जब गाय नहीं रहेगी तो वह निरंतर याद में मस्त रहेगा। और उसे उसका पुण्य का फ़ल मिलेगा। - इसे कहते है - न रहेगा बॉस न बजेगी बाँसुरी।
सीख - कभी कभी किसी मोड़ पर हम ये सोचते है की मैं तो अच्छा करता हूँ पर मेरे साथ ही ऐसा क्यों होता है। तब कही न कही हम अगर इस कहानी को याद करे तो जवाब मिल जायेगा।
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