भोले का साथी भगवन
एक बार की बात है एक सियार जंगल में से गुजर रहा था। दोपहर का समय था, गर्मी का मौसम था। गर्मी बहुत पड़ रही थी। सियार को बहुत प्यास लगी, उसका गला सूखता जा रहा था, उसे ऐसे लगा कि अगर जल्दी पानी नहीं मिलेंगा तो आज प्राण पखेरू उड़ जायेंगे। वह पानी की तलाश में हांफता हुआ आगे बढ़ रहा था कि उसकी निगाह एकाएक एक खड्डे की ओर गयी जिस में कुछ पानी था। उसे देखते ही जीवन बचने की कुछ उमीद लगी परन्तु वह खढडा कुछ गहरा था। उसमें वह जैसे-तैसे उतर तो जाता परन्तु फिर उस में से बाहर निकलना उसे मुश्किल लग रहा था। यह सोचकर उसे महसूस होने लगा कि आज उसकी मौत तो आ ही जायेगी। या तो वह प्यासा ही खढ़डे के बाहर मर जाएगा या पानी पीकर खढ़डे में पड़ा-पड़ा बाहर आने की चिंता में दम तोड़ देगा।
अचानक ही उसने देखा कि एक बकरी उस ओर आ रही थी। उसे लगा कि वह भी पानी ही की तलाश में आ रही है। उसे ख्याल आया कि अब शायद काम बन जाये। जब बकरी उसके निकट पहुँची तो सियार ने उससे कहा - बहन बकरी, क्या तुम्हे प्यास लगी है ? क्या तुम पानी की तलाश में निकली हो ? बकरी बोली - हाँ भैय्या ? गला सुखा जा रहा है और प्यास के मरे दम घुटता जा रहा है। अगर थोड़ी देर पानी न मिला तो आज यह तेरी बहन बचेगी नहीं।
सियार बोला - अरे, ऐसा क्यों कहती हो ? चलो मैं तुम्हे दिखाऊँगा पानी कहाँ है ? सियार मक्कार तो होता ही है। वह बकरी को बहन कहकर पुकारता हुआ नेता बनकर स्वयं को बड़ा निःस्वार्थ प्रगट करता हुआ खढडे की ओर ले चला। खढ्डे पर पहुँच कर सियार बोला - लो जितना पानी पीना हो, पि लो। बकरी बोली - भैय्या, पानी पीने के लिए इस में उतर तो जाऊँ परन्तु फिर निकालूंगी कैसे ? दूसरी बात यह है कि तुम भी तो पानी पी लो। सियार बोला - अच्छा, तो फिर ऐसा करते है कि तुम कहती हो तो मैं भी पानी पि लेता हूँ। मैं भी उतरता हूँ, तुम भी उतरो। मैं पानी पीकर तुम्हारी पीठ पर चढ़कर बाहर निकल आऊंगा और बाहर खड़े होकर तुम्हारे सींगो से पकड़कर तुम्हे भी बाहर खींच लूँगा ताकि तुम भी बाहर आ सको। अगर मैं तुम्हें सींगो से खींच लूँ, तब तुम बुरा तो नहीं मानोगी ?
बकरी बोली - इसमें बुरा मानने की भला क्या बात है ? तुम तो मेरा भला ही चाह रहे हो। लो, अब देर किस बात की है। दोनों उतर कर जल्दी से पानी पी लेते है। अब सियार तो बकरी की पीठ पर चढ़कर बाहर निकल आया। तब बकरी ने उसे कहा - लो भैय्या, अब मुझे भी खींच लो। ऐसा कहकर बकरी ने अपने सींग आगे बढ़ाये। परन्तु मक्कार सियार बोला - वाह बहन वाह, अगर तू मेरी खैर चाहती होती, तू कभी न कहती कि मुझे सींगो से पकड़कर बाहर खींच लूँ क्यों कि तुझे खीचने की कोशिश करने पर तो मैं स्वयं ही वापस खढ़डे में गिर जाऊँगा। तू स्वयं ही सोच की तू कितनी भारी और बड़ी है। मैं तुम्हे खींचने की कोशिश करूँगा तो तुम्हारे साथ मैं भी खढ़डे में मर जाऊँगा। इस लिए नमस्कार, मैं तो अब चलता हूँ क्यों कि मेरी साथी मेरा इंतज़ार करते होंगे। ऐसा कहकर वह तो वहाँ से चल दिया और बकरी वही ठगी-सी खड़ी रह गयी।
सियार कुछ ही आगे बढ़ा था कि रास्ते में एक बाघ आ रहा था। बाघ सियार पर झपटा उसे अपनी भूख का शिकार और गले का ग्रास बना लिया। बकरी वहाँ खड़ी मैं.. में कर रही थी मानो भगवान से प्रार्थना कर रही हो कि प्रभु, सच्चाई वालों के आप ही साथी हो। हे प्रभु, आप मुझे इस खढ़डे से निकालो। वह अपना मुँह ऊपर को उठाकर मैं. मैं … मैं कर रही थी।
कुछ देर बाद उसी रस्ते से एक भक्त स्वभाव का यात्री वह से गुजर रहा था। उसने मैं.. मैं की आवाज़ सुनकर जब चारों तरफ देखा उसे कोई बकरी दिखाई नहीं दी तो उसे ख्याल आया कि बकरी किसी परेशानी में है। वह उस आवाज़ का अनुशरण करते खढ़डे के पास पहुँचा गया। उसने उसे निकाल कर बाहर किया। जीवन की रक्षा पाकर बकरी ख़ुशी से उछलती-कुढ़ती चली गयी।
सीख - इस कहानी से हमें ये सीख मिलती है कि हम चालाकी से अपना काम तो कर लेँगे पर उसका भुगतान कहाँ और कैसे किस रूप में भरना पड़ता है इस का पता वक्त ही बताएगा। इस लिये चालाकी नहीं करे। और एक सीख ये मिला की भोले का साथी भगवान है मुश्किल घडी में ईश्वर को दिल से याद करो तो मदत अवश्य मिल जाती है।
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