रघुपति सिंह की सचाई
ये उस समय की बात है जब अकबर बादशाह की सेना ने राजपूताने के चित्तौड़ गढ़ पर अधिकार कर लिया था। महाराणा प्रताप अरावली पर्वत के वनों में चले गये थे। महाराणा के साथ राजपूत सरदार भी वन में जाकर छिप गये थे। महाराणा और उनके सरदार अवसर मिलते ही मुग़ल-सैनिकों पर टूट पड़ते थे और उन में मार-काट मचाकर फिर वनों में छिप जाते थे।
महाराणा प्रताप के सरदारों में से एक सरदार का नाम रघुपति सिंह था। वह बहुत ही वीर था। अकेले ही वह चाहे जब शत्रु की सेना पर धावा बोल देता था और जब तक मुग़ल-सैनिक सावधान हों, तब तक सैकड़ों को मारकर वन-पर्वतों में भाग जाता था। मुग़ल-सेना रघुपति सिंह के मारे घबरा उठी थी। मुग़लों के सेना पति ने रघुपति सिंह को पकड़ने वाले को बहुत बड़ा इनाम देने की घोषणा कर दी। इस की योजना बनाई गयी।
रघुपति सिंह वनों और पर्वतों में घुमा करता था। एक दिन उसे समाचार मिला कि उसका लड़का बहुत बीमार है और घड़ी-दो-घड़ी में मरने वाला है। रघुपति का ह्रदय पुत्र प्रेम से भर आया, वह वन में से घोडे पर चढ़कर निकला और अपने घर की ओर चल पड़ा। पुरे चित्तौड़ को बादशाह के सैनिकों ने घेर रखा था। प्रत्येक दरवाजे पर बहुत कड़ा पहरा था। पहले दरवाजे पर पहुँचते ही पहरेदार ने कड़ककर पूछा - कौन है ? रघुपति सिंह झूठ नहीं बोलना चाहता था, उसने अपना नाम बता दिया। इस पर पहरेदार बोला - 'तुम्हें पकड़ने के लिये सेना पति ने बहुत बड़ा इनाम घोषित किया है। मैं तुम्हें बन्दी बनाऊँगा। ' रघुपति सिंह - 'भाई ! मेरा लड़का बीमार है। वह मरने ही वाला है। मैं उसे देखने आया हूँ। तुम मुझे अपने लडके का मुँह देख लेने दो। मैं थोड़ी देर में ही लौटकर तुम्हारे पास आ जाऊँगा। ' पहरेदार सिपाही बोला - ' यदि तुम मेरे पास न आये तो ?' रघुपति सिंह - मैं तुम्हें वचन देता हूँ कि अवश्य लौट आऊँगा। '
पहरेदार ने रघुपति सिंह को नगर में जाने दिया। वे अपने घर गये। अपनी स्त्री और पुत्र से मिले और उन्हें आश्वासन देकर फिर पहरेदार के पास लौट आये। पहरेदार उन्हें सेनापति के पास ले गया। सेनापति सब बातें सुनकर पूछा - 'रघुपति सिंह ! तुम नहीं जानते थे की पकड़े जाने पर हम तुम्हें फाँसी दे देंगे ? तुम पहरेदार के पास दोबारा क्यों लौट आये ? ' रघुपति सिंह ने कहा - 'मैं मरने से नहीं डरता। राजपूत वचन देकर उससे टलते नहीं और किसी के साथ विश्वासघात भी नहीं करते।
सेनापति रघुपति सिंह की सच्चाई देखकर आश्चर्य में पड़ गया। उस ने पहरेदार को आज्ञा दी - ' रघुपति सिंह को छोड़ दो। ऐसे सच्चे और वीरको मार देना मेरा ह्रदय स्वीकार नहीं करता। '
सीख - सच्चाई का जीवन में कितना महत्व है ये इस कहानी से पता चलता है। इस लिये जीवन में सदा सच्चाई को धारण करो।
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